“भाभीजी का स्पेस स्टेशन” – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral Stories in Hindi

   आज के स्त्री विरोधी युग में सुनीता विलियम्स  ‘अंतरिक्ष परी’  जब से आसमान में अपना परचम लहरा कर वापस लौटी है  तब से खासकर भारत की महिलाओं के बीच क्रांति छा गई है। चारो तरफ महिलाओं के महिमा मंडन का डंका बज रहा है। 

घर -घर में हर माँ बाप अपनी बेटियों को नसीहते दे रहे हैं कि मॉडर्न कहाने वालीं ल़डकियों सुन लो रोज रोज़ कपड़े चेंज करने और मेकअप  लगाने से नहीं होगा। कुछ ऐसा करो कि तुम्हें देखने के लिए दुनियां वाले जमीन से आसमान तक पीछे पीछे भागे। कहावत चरितार्थ मत करो कि लोग कहें  “चार अक्षर पढ़ लिया और संतन को…..

।”

कुछ  इसी तरह का असर मैंने अपने पड़ोस में देखा  ….

कल मैं किसी काम से अपने पड़ोसी वर्माजी के घर गई थी। उनकी पत्नी यानि भाभी जी को  चौके में अकेले बर्तनों के साथ झगड़ते देखा तो सहम गई हिम्मत जुटा कर पूछा,” भाभीजी गुस्से में लग रहीं हैं आप! ” 

मुझे देख उनका पारा और चढ़ गया बोलीं,” और नहीं तो क्या,” दुनियां की औरतें स्पेस में जा रहीं हैं और हम यहां सुबह शाम बर्तन माँज रहे हैं, काहे भाई हमारा कोई वजूद नहीं है क्या? बताइए आप ही हममें क्या कमी है, हम क्यों अपना टैलेंट चूल्हा में झोंके!” 

मैंने जल्दी से अपना सिर हिला कर हामी भरी-“आप बिल्कुल सही कह रहीं हैं भाभी जी आप तो सर्व गुण संपन्न महिला हैं। ” 

“हाँ जी हम कोई ऐरे गैरे थोड़े हैं हमने भी अपने जमाने में इन्टर पास किया था। हमारे पास भी अक्ल है …..फिर भी सुबह- सुबह आपके भाई साहब वर्माजी आग में घी डाल कर चले गये तब से मेरा कलेजा जल रहा है। जब से सुनीता उपर से वापस आई है तब से हमें ताना दिए जा रहे हैं।  हम किसी से कम हैं क्या  गृहिणियों को ‘अधजल गगरी’ कहने वालों का थोबड़ा तोड़ देने का मन करता है। 

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भाभीजी का पारा देख  हमने उनका ध्यान हटाने के लिए टोका- 

,”भाभीजी आपकी लाडली दिखाई नहीं दे रही है ” 

बेटी का नाम सुनकर थोड़ी नरम हुईं बोलीं,”अरे दीदी वो ऊपर  ही रहती है आजकल ! उसके लिए मैंने सारा इंतजाम ऊपर के कमरे में ही कर दिया है ।” 

“हाँ -हाँ उसे तो डॉक्टर बनाना है न तो उस की तैयारी के लिए अच्छा इंतजाम कर दिया है आपने ।” 

“अरे नहीं  उसको कोई डॉक्टर- वक्टर नहीं…अब वह सीधे सुनीता की तरह वैज्ञानिक बनेगी बस !”

उन्होंने गंभीर होते हुए कहा,” मैंने ठान लिया है कि भले ही मुझे मेरे माँ -बाप ने शादी कर के इस नर्क में चूल्हा झोंकने के लिए भेज दिया पर  मैं  अपनी बेटी को वहां भेजूंगी जहां सुनीता गई थी चाहे जैसे भी हो। मैंने उसे साफ कह दिया है कि तुम्हें वहां हर हाल में जाना है।” 

“वह चूल्हे पर चाय चढ़ाते हुए अपनी आंखें मटका कर बोलीं बेटी ने तो प्रैक्टिस भी शुरू कर दिया है!” 

मैं अचंभे में थी ,अभी तो वह बेचारी ने  बोर्ड दिया है  वह कौन सा प्रैक्टिस कैसा प्रैक्टिस….मतलब मैं समझी नहीं। भाभी जी ने मेरी फैली आंखे देख  समझाया…. आपको नहीं पता…वहां स्पेस में जाने से पहले सबको साल दर साल प्रैक्टिस करना पड़ता है। 

वह आगे बोलीं ,” हमने कमरे को उसके लिए स्पेस स्टेशन जैसा बना दिया है। अब वह उसी में अपना सारा काम करती है। पढ़ना -लिखना खाना, सोना ….! 

” वाह !भाभीजी ऊपर आपने कमरा भी बनवा दिया  मुझे तो पता ही नहीं था!” 

उन्होंने मेरी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश की…

अरे नहीं  .. ऊपर सीढ़ी से लगा कबाड़ रूम था न उसी को स्पेस स्टेशन जैसा बना दिया है । वैसा ही तो रहता है ना वहां। देखा नहीं आपने चारो तरफ लोहा -लक्कर के बीच में सुनीता उड़ती रहती थी। 

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मुझे अपना माथा खुजाते हुए देख  वह  बोलीं…  हमने तो सुना है आपने भी तो ढेरों डिग्री बटोरी है  अबतक आपको सुनीता के बारे में नहीं पता…. !    वह स्पेस में चली गई थी नौ महीने बाद घूम -घाम कर आई है। 

भाभीजी ने तो सालों से घिस घिस कर ली गई मेरी डिग्री का बखिया ऊघेर कर मेरी औकात बता दी और खुद के ज्ञान का नमूना पेश कर सीढ़ी घर में ही स्पेस- स्टेशन बना दिया।

वाह! इसको कहा जाता है दिमाग ! 

मैंने अपनी डिग्री का लाज बचाने के लिए एक पासा फेका  -“भाभी जी वहां स्पेस में जाना आसान थोड़ी है सब थोड़े ही जायेंगे। जो उस लायक होगा….!” 

“उस लायक का क्या मतलब…. यही तो सोच है हम महिलाओं की जो बर्तन घिस रहे हैं चौके में!” 

 भाभी जी नाराज ना हो हमने बात पलटते हुए कहा,” क्या तैयारी कर रही है बिटिया आपकी!” 

वह गर्वीले अंदाज में बोलीं बहुत मेहनत कर रही है मेरी बेटी, सुनीता से भी ज्यादा । पूरे मुहल्ले का नाम रौशन करेगी एक दिन। ” 

” वह आगे बोलीं पता है आपको मेरी बेटी अभी से अपने नाश्ते में ब्रेड ,चॉकलेट वगैरह ही  लेने लगी है और उसको हवा में उछाल कर खाती है। वहां तो आदमी उड़ते हुए ही खाता- पीता है ना। पानी भी बहुत कम पीती है आपने देखा नहीं सुनीता को……! 

भाभी जी बार-बार सुनीता सुनीता ऐसे कह रहीं थी जैसे सुनीता विलियम्स नहीं उनके घर की कोई बाई हो। 

भाभी जी का नॉलेज देख मैं जहाँ खड़ी थी मुझे धरती घूमते हुए महसूस हो रही थी वह मुझे कुछ समय के लिए सचमुच में अंतरिक्ष में लेकर चली गई थीं । 

अच्छा हुआ उसी समय वर्माजी ऑफिस से घर आये वर्ना मैं ऊपर ही अटक जाती। वर्मा जी ने अपना बैग उन्हें थमाते हुए  कहा कि एक ग्लास पानी देना तो… बाद में अंतरिक्ष की सैर करना। वर्माजी ने खौलते हुए दूध पर पानी झोंक दिया था। भाभी जी ने मेरी मौजूदगी के चलते कुछ बोला नहीं बस दांत पिसते हुए पानी लेने अंदर चली गईं। 

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   वर्मा जी ने अपना माथा पीटते हुए कहा,” क्या बताऊँ बहन जी छत पर बड़े अरमान से एक झुला डाला था  जिस पर शाम में चाय लेकर हम दोनों कुछ देर सुकून से बैठ कर झूलते थे। उस झूले को  इसने वहां से हटाकर कबाड़ वाले कमरे में रख दिया। कहती है कि ,”बेटी के लिए बेड बना दिया है वह उसी पर झूलते हुए पढ़ेगी तभी तो स्पेस में जाने पर उसे दिक्कत नहीं होगी सुनीता को देखा नहीं कैसे झूलते झूलते सो लेती थी स्पेस में। अधजल गगरी   ….” 

भाई साहब अबकी बार मुझे वर्माजी के साथ साथ मर्द जात पर बड़ी दया आई। दुनियां को मुट्ठी में करने के चक्कर में आसमान क्या जमीन पर भी हिलते नजर आयेंगे सारे। काबिल पंथी के फिराक में अंतरिक्ष में स्टेशन बना दिया। तीस पर बीवियों को अधजल गगरी कह कर जले पर नमक छिड़क दिया। 

अब भरो गुस्ताखी का खामियाजा … बीवियों ने घर में ही ‘स्पेस स्टेशन’ बना दिया अब ढीमलाते रहो ! 

बेचारे वर्माजी कातर दृष्टि से कभी पत्नी को और कभी अपने घर को निहार रहे थे। भाभीजी पानी का बोतल उनके तरफ उछालते हुए कहने लगी ” इन्हीं मर्दो के चाय- पानी और खाना पकाने की वज़ह से आज तक सिर्फ एक -दो महिला वहां जा पाई है नहीं तो आज तक  सभी महिलाएं वहां घूम आई रहती! 

उनके पति बोतल लपकते हुए बोले,” पता नहीं वह कौन सी मनहूस घड़ी थी जो हमने गलती से  सुनीता विलियम्स की तारीफ कर दी थी उस दिन से मेरा घर  ‘स्पेस स्टेशन’ और मेरी जिंदगी स्पेस शटल’ की तरह हो गई है। ” 

तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है ढोल ,गँवार…  इतना सुनते ही भाभी जी आपे से बाहर हो गईं बेसिन में प्याली पटकते हुए बोलीं ,” क्या कह रहे हैं आप यह तो शुक्र मनाईये कि बुढऊ जब यह लिख रहे थे उस समय हमारे जैसी नारियां नहीं थीं। धीरे से उलूल जुलूल लिख कर चले गये वर्ना हम उनको कलम  सहित  स्पेस में भेज देते समझे।” 

बेचारे वर्माजी भाभी जी की क्रांतिकारी विचार और समय की नजाकत देखते हुए अपने कमरे के ‘स्पेस स्टेशन ‘में घुस गये। 

मैं तो गई थी दही लेने पर मेरे दिमाग का दही बन गया था। फिर सोचा नहीं …नहीं सही है और कहो महिलाओं को ढोल..गँवार…..ऐसे ही बैंड बजाती रहेंगी हसबैंड और उनके चैलेंज को 🤣🙏

डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर बिहार

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