करुणा अपनी आंखों में खुशियों की नई दुनिया बसाने के ढेर सारे रंगीले सपने लेकर आ गई पिया की नगरी!
तीन बहनों और एक भाई में सबसे बड़ी थी करुणा। पिता एक सामान्य लिपिक थे, अतः आय सीमित ही थी। मगर संतोष और संस्कार का धन अकूत था उनके परिवार में! प्रत्येक आम पिता की तरह उनकी भी यही मनोकामना थी कि उनकी बेटियां सभ्य और सुसंस्कृत परिवारों में ब्याही जाएं और इतनी तो संपन्नता हो कि जीवन सुचारु रूप से चल सके। और एकमात्र पुत्र भी पढ़ लिख कर ढंग की नौकरी पा जाए…बस…
ईश्वर की कुछ ऐसी लीला रही कि पड़ोस के घर में उनकी पुत्री का विवाह था, उसी में बारात के साथ दूल्हे के मित्र के रूप में अविनाश भी आया था। धीर-गंभीर, सभ्य, सुसंस्कृत अविनाश करुणा के पिता को एक ही दृष्टि में भा गया अपनी करुणा के लिए। अविनाश के विषय में आगे जानकारियां एकत्रित करने के क्रम में उन्हें पता चला कि अविनाश के परिवार में केवल अविनाश और उसकी छोटी बहन दीपिका ही हैं। अविनाश ने 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण ही की थी कि तभी एक सड़क दुर्घटना में उसके माता-पिता चल बसे।
अविनाश के कंधों पर अब आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली छोटी बहन दीपिका का भार भी आ गया। परंतु बहुत ही जीवटता से अविनाश ने इस स्थिति का भी सामना किया। वह एक दुकान पर पार्ट टाइम सहायक का काम करने लगा और साथ में कुछ ट्यूशन भी पढ़ाने लगा। और इसके साथ-साथ में उसने अपनी और दीपिका की पढ़ाई भी जारी रखी। अपनी लगन, परिश्रम और कर्मठता के कारण वह शीघ्र ही पढ़ाई पूरी कर एक माध्यमिक विद्यालय में अध्यापक के रूप में पदस्थापित हो गया।
उसके परिवार में किसी और के न होने की बात जानकर करुणा के पिता थोड़े निराश तो हुए परंतु उन्हें लगा कि उनकी करुणा के लिए अविनाश ही सुयोग्य वर है। शीघ्र ही उन्होंने अविनाश से संपर्क किया। करुणा की तस्वीर देखते ही अविनाश को भी सांवली सलोनी तीखे नैन नक्श वाली दुबली पतली करुणा पसंद आ गई। और फिर चट मंगनी और पट ब्याह हो गया। इस ब्याह में अविनाश के एक दूर के रिश्ते की बुआ ने अविनाश के अभिभावक की भूमिका निभाई।
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हर आम लड़की की तरह करुणा के भी कुछ सलोने प्यार भरे सपने थे अपनी नई गृहस्थी के को लेकर! उसने भी यही सोचा था कि वह अपने सुघड़ हाथों से अपने परिवार को संवार देगी और एक मात्र ननद दीपिका को ढेर सारा स्नेह और प्यार देगी ताकि उसे कभी माँ की कमी का अनुभव न हो।
विवाह की गहमा गहमी समाप्त होने के बाद जब जीवन सामान्य ढर्रे पर आया तो करुणा बहुत ही सुघड़ता से घर संभाल लिया था। मगर न जाने क्यों दीपिका उससे खिंची खिंची रहती थी। उसे कहीं न कहीं शायद यह लगता था कि भाभी ने आकर उसके भाई के प्यार का बंटवारा कर लिया।
इधर कुछ दिनों से करुणा गौर कर रही थी कि दीपिका में कुछ तो बदलाव आ गया है.. जैसे वह पहले से भी अधिक अंतर्मुखी हो गई हो। भाई से भी बातें करती तो उत्तर सिर्फ “हां हूं” मैं देकर अपने कमरे में चली जाती। और नाश्ता-खाना भी आजकल उसने वहीं करना शुरू कर दिया था।
एक दिन जब नाश्ता ले जाने के लिए बहुत देर तक दीपिका कमरे से बाहर नहीं आई तो करुणा ने प्लेट में उसका नाश्ता निकाला और उसके कमरे में जा पहुंची। दीपिका किसी से फोन पर बातें कर रही थी, उसे देखते ही उसने तुरंत फोन काट दिया। इस पर करुणा ने मुस्कुरा कर पूछा, “-किससे बातें कर रही थी दीपिका..तुम्हारी सहेली थी क्या..?”
इस पर दीपिका ने न आव देखा न ताव और चीख पड़ी, “-भाभी क्या आपको इतना भी समझ में नहीं आता कि किसी के कमरे में प्रवेश करने से पहले दरवाजे पर दस्तक दी जाती है। कुछ तमीज सीखा है या नहीं आपने! भाभी हो भाभी बनकर रहो.. भगवान के लिए मेरी मां बनने का प्रयास भी मत करना।” और करुणा को वही हतप्रभ छोड़कर पैर पटकते हुए तीर की तरह कमरे से बाहर निकल गई।
इस अपमान और दुर्व्यवहार से करुणा की आंखें छलछला गईं।
इतना सब होने के बाद भी करुणा सदैव दीपिका से अच्छा व्यवहार करने का प्रयास करती परंतु प्रतिदान में सदैव अपमान और दुर्व्यवहार ही मिलता था। मगर करुणा धैर्य के साथ सब कुछ सहन करती रही। उसने कभी अविनाश को भी कुछ नहीं बताया। उसे लगता था कभी न कभी उसके प्यार से दीपिका पिघल जाएगी और सब कुछ ठीक हो जाएगा। मगर दीपिका अपनी ही दुनिया में मगन रहती। कॉलेज जाना.. कॉलेज से आना.. अपना खाना लेकर या तो अपने कमरे में या छत पर चली जाती और फोन पर बातें करती रहती।
उस दिन रात के लगभग 12:30 बज रहे थे। अविनाश और करुणा बिल्कुल गहरी नींद में थे। तभी अचानक हल्के से खटके से करुणा की नींद खुल गई। उसने दीपिका को अपने कमरे में पाया तो चौंक कर पूछ बैठी-” क्या हुआ दीपिका??”
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दीपिका ने धीमे स्वर में कहा,”- कुछ नहीं भाभी.. कॉलेज का कुछ काम था। भैया के हस्ताक्षर लेने थे लेकिन खैर…भैया सो गए हैं तो कोई बात नहीं.. कल ले लूंगी..” इतना कह कर वह बहुत तेजी से बाहर चली गई।
दीपिका दबे पांव घर से बाहर निकली और गली के मुहाने तक पहुंच गई। वहां पहले से ही कॉलेज में उसके साथ पढ़ने वाला लड़का सोमेश खड़ा था। उसने झट से आगे बढ़कर दीपिका को आलिंगनबद्ध करते हुए कहा- “कितनी देर लगा दी… कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा था..”
दीपिका ने फूलती हुई सांसों के साथ कहा, “- अरे भाभी जाग गई थी..बड़ी मुश्किल से निकल कर आई हूं… इससे पहले कि अब हमें कोई देख ले चलो भाग चलें… जहां बस मैं और तुम हों.. विवाह करके हम अपनी एक प्यारी सी नई दुनिया बसा लेंगे…”
अचानक एक झटके से उसे स्वयं से अलग करते हुए सोमेश ने उतावले स्वर में पूछा,”- पर तुम पैसे और जेवर तो लाई हो ना..”
दीपिका ने सांसों को संयमित करते हुए कहा,”- अरे वही तो नहीं ला पाई ना…भाभी जाग गई थी लेकिन मेरे पास दो-तीन हजार रुपये थे, वो मैं ले आई हूं.. चलो अब हम भाग चलें… हमारे पास पैसे नहीं है तो क्या हुआ.. प्यार तो है.. हम अपनी नई दुनिया बसा लेंगे।”
सोमेश दांत पीसते हुए बोला, “-अरे पैसे नहीं लाई… तुमने तो सब कुछ गुड़गोबर कर दिया… प्यार से पेट नहीं भरता…समझी!!! पैसा चाहिए पैसा!”
दीपिका पर तो जैसे वज्रपात हो गया..”- कैसी बातें कर रहे हो सोमेश! मैं तो समझती थी कि तुम मुझसे प्यार करते हो और आज तुम्हें प्यार से बढ़कर पैसा नजर आने लगा… लगता है मुझसे ही गलती हो गई है.. अंधी हो गई थी मैं तुम्हारे प्यार में… लेकिन अब और नहीं.. मैं जा रही हूं अपने घर वापस..”
सोमेश ने कुटिल मुस्कान के साथ झट से उसकी बांह पकड़ ली, “-अरे ऐसे कैसे जाने दूंगा..इतनी मुश्किल से क्या यूं ही फंसाया था… पहले तो पैसे जो नहीं लेकर आई उसका हरजाना वसूलूंगा… और फिर तुझे अपने साथ ले जाऊंगा! कम से कम तेरे बदले में अच्छे पैसे तो मिल ही जाएंगे मुझे…”
उसने दीपिका को झाड़ियां में खींचकर उसके मुंह में अपना रुमाल ठूंसा और उसका दुपट्टा खींचकर उसके मुंह पर बांध दिया। वह वहशी की तरह दोनों हाथों से उसके कपड़े फाड़ने का प्रयत्न करने लगा। तभी अचानक सिर पर हुए वार से वह तिलमिला गया। उसने पीछे मुड़कर देखा… हाथ में डंडा लिए करुणा खड़ी थी। क्रोध से उसकी आंखें लाल हो रही थी। उसने रौद्र रूप धारण करते हुए अंधाधुंध सोमेश पर डंडे बरसाने प्रारंभ कर दिए। बौखलाकर सोमेश उल्टे पैरों भागने लगा… तभी पुलिस ने आकर उसे धर दबोचा।
कांपती हुई दीपिका को करुणा ने अपनी बाहों में संभाल लिया और उसके फटे हुए वस्त्रों पर आंचल ओढ़ाते हुए घर की ओर ले चली।
घर पहुंच कर करुणा ने दीपिका को पानी पिलाया और उसके खरोचों पर मलहम लगाया। दीपिका थोड़ी शांत हुई तो आत्मग्लानि से उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उसने झट झुक कर करुणा के दोनों पैर पकड़ लिए और रूंधे गले से बोली, “-भाभी अगर आज आप न होती तो पता नहीं क्या हो जाता..आपने सही समय पर आकर मुझे बचा लिया… मैं सोमेश के झूठे प्यार के जाल में फंस गई थी और मुझे सही गलत कुछ समझ में नहीं आ रहा था… उसने जो जो कहा मैं अंधी की तरह सब कुछ मानने को तैयार हो गई थी… और आज तो कुछ अनर्थ हो ही जाता अगर सही समय पर आप न आ जातीं…. आज मुझे यह अनुभव हो रहा है कि आप केवल भाभी ही नहीं मेरी मां भी हैं.. भाभी माँ !!! मैने सदैव आपके स्नेह को ठुकरा कर आपके साथ दुर्व्यवहार किया… बहुत बड़ा अपराध हो गया मुझसे लेकिन यदि हो सके तो आज अपनी इस बेटी को क्षमा कर दीजिए भाभी…”
भावातिरेक करुणा का कंठ भी अवरुद्ध हो गया,”- कैसी बातें करती है पगली… बेटियां तो घर की लक्ष्मी होती हैं.. ऐसे क्षमा मांगते अच्छी नहीं लगतीं… सच कहूं तो मुझे बुरा तो लगता था जब तुम मुझसे दुर्व्यवहार करती थी लेकिन फिर मैं अपने मन को समझा लेती थी कि तुम्हारे अंदर अभी बचपना है..शीघ्र ही सब ठीक हो जाएगा…”
अचानक दीपिका ने पूछा,”- लेकिन भाभी आप अचानक वहां कैसे पहुंच गईं ?? आपको कैसे पता चल गया??”
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गहरी सांस लेते हुए करुणा ने कहा, “- मुझे संदेह तो तुम पर कुछ दिनों से हो ही रहा था। एक दो बार मैंने तुम्हारी कुछ बातें भी सुनी थी, जिससे मुझे यह तो पता चल ही गया था कि तुम्हारे जीवन में कोई तो है। और मैं तुम्हें समझाने के विषय में सोच ही रही थी, पर निश्चित नहीं कर पा रही थी कि कैसे समझाऊं। क्योंकि तुम तो मेरी कोई भी बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं रहती थी…
लेकिन आज जब तुम कमरे में आई और मेरी नींद खुलने पर यह कहा कि तुम भैया से हस्ताक्षर करवाने आई हो.. तभी मेरा संदेह और पक्का हो गया क्योंकि तुम्हारे हाथ में कोई भी कागज नहीं था।
इसलिए मैं भी दबे पांव तुम्हारे पीछे आने लगी। मुझे अंदेशा हो रहा था कि तुम्हारे साथ कुछ गलत न हो जाए इसलिए मैं डंडा लेकर ही चली थी… वहां सोमेश के साथ तुम दोनों की बातें सुनते ही मैं पुलिस को फोन कर दिया। और समय से यह अनहोनी टल गई। खैर चलो देर आयद दुरुस्त आयद! अब इन बातों को एक बुरा सपना समझ कर भूल जाओ… अब रात काफी हो गई है, तुम भी सो जाओ और मैं भी अब सोने जा रही हूं। कल एक नई सुबह के साथ नई शुरुआत होगी….”
करुणा ने आगे बढ़कर दीपिका का मस्तक चूम लिया।
दीपिका ने सुकून से आंखें मूंद लीं। अब कुछ बुरा नहीं हो सकता था उसके साथ.. वह अपने स्नेहिल भैया और ममतामयी भाभी माँ के छाँव तले सुरक्षित थी।
निभा राजीव निर्वी
सिंदरी धनबाद झारखंड
स्वरचित और मौलिक रचना