बेटियों को दर्द देने वालों को सज़ा जरूर मिलनी चाहिए- शोना सिंह 

“रुचि बेटा तैयार हो जा,तेरी बुआ के यहां चलना है, तेरी थोड़ी बहुत पैकिंग तो मैंने कर दी हैं बाकी की पैकिंग तुम खुद करो और हां शादी के हिसाब से 2-3 जोड़ी कपड़े जरूर रख लेना,वरना वहां जाकर शिकायत करोगी कि मां मेरी वो ड्रेस क्यों नहीं लाई…वो ड्रेस नहीं पैक नहीं की,हर बार तुम ऐसे ही करती हो ख़ुद अपनी पैकिंग करती नहीं हो और फिर बार में मुझसे ढेरों शिकायतें करती हो” इतना बोल कविता कमरे से बाहर निकली ही थी कि रुचि चिल्ला पड़ी,” मां!! आपको समझ नहीं आता क्या???

नहीं जाना मुझे बुआ के घर,कल भी आपको बताया था लेकिन आप फिर भी मुझे हिदायतें दिए जा रही हो, एक ही बात कितनी बार बताऊं, नहीं जाना मुझे आपके साथ???” “मैंने भी तो तुम्हें समझाया था ना बेटा,जाना जरूरी हैं,बुआ के जेठ के बेटे की शादी हैं और हमारा जाना बनता हैं,सब लोग जा रहे हैं तेरी दादी,पापा, मैं और तेरी भाई भी,अब तुम बड़ी हो गई हो,अकेली लड़की को घर नहीं छोड़ सकते” “क्यों नहीं मां.. क्या दिक्कत हैं.. अपने ही घर में अकेला रहने में और फिर 2-3 दिन की तो बात हैं मैं मैनेज कर लूंगी,आप लोग निश्चिंत होकर जाओ”

“रुचि तुम बात को समझती क्यों नहीं,जवान बेटी को ऐसे अकेला नहीं छोड़ सकते और फिर आजकल लड़कियों के लिए कोई जगह सेफ नहीं हैं,मेरी बात मानो साथ चलो,अकेले तो तुम्हें मैं बिल्कुल नहीं छोड़ने वाली” “मां जिस जगह तुम मुझे लेकर जा रही हो उस जगह से ये घर बहुत सेफ है…बात को समझो मां,मुझे वो सब दोबारा नहीं चाहिए,डर लगता है

मुझे फूफा जी से,प्लीज बात को समझो,या फिर जब कुछ हो जायेगा तब समझ आएगा आपको” गुस्से में अनवरत बोलती रुचि को जब एहसास हुआ कि उसने गुस्से में सब बोल दिया हैं तो वो खामोश हो गई इतना सुन कविता जी खामोश हो गईं….मन में कुछ सोच विचार सा करने लगीं. कुछ पुरानी यादें आंखों के सामने घूम गईं और उन्होंने अपनी बेटी को अचानक बाहों में भर लिया,मां से लिपटते ही वो फूट फूट कर रो दी. मां ने बेटी के बिना कुछ कहे ही उसके मन की पीड़ा को समझ लिया था… जब एक बच्ची के साथ ऐसा कुछ होता हैं

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तो मां के दिल को सबसे ज्यादा ठेस पहुंचती हैं कविता जी खुद को संभाल कर बोलीं,”मेरी बेटी कब से इतनी बड़ी हो गई कि मुझसे बातें छुपाने लगी.” “कुछ छुपाना नहीं चाहती थी मां,बस डर थी कि कोई मेरी बात पर यकीन करेगा या नहीं. सब लोग आपके वैसे ही पीछे पड़े रहते हैं अगर मैं ये बात आपसे कहती तो आप पापा को बताती और पापा दादी को… फिर घर में हंगामा होता,आपकी परेशानियों को और नहीं बढ़ाना चाहती,इसीलिए आप भी किसी से कुछ मत कहना… फूफा जी की नज़रें और उनका व्यवहार बहुत बुरा है,एक बार जब मैं उनके घर थी तो उन्होंने मुझे दबोच लिया था जैसे तैसे ख़ुद को छुड़ा कर मैं भागी, उस दिन के बाद भी ये सब नहीं रुका. उनका मुझे बिना मतलब छूना और गंदी निगाहों से देखना आज भी चालू हैं.



उनकी आंखों में आज भी शर्म नहीं हैं. आज भी वो सब याद आता है तो मैं सो नहीं पाती हूं,वो हादसा दिल और दिमाग से जाता ही नहीं हैं,फूफा जी चेहरा याद आता हैं दिल करता उस इंसान को जान से मार दूं,मैं मर जाऊंगी लेकिन उनके घर कभी नहीं जाऊंगी” इतना बोल रुचि फिर से बिलख पड़ी. “बेटा, मैं हूं तेरे साथ,इस परिवार को बचाने के लिए मैं बहुत समझौते करते आई हूं,अब और नहीं,मुझे मेरी बेटी के लिए आवाज़ उठानी पड़ेगी वरना मैं खुद की नजरों में गुनहगार हो जाऊंगी,हम कहीं नहीं जा रहे,अब तू आराम कर और याद रखना इन सब मैं खुद को कभी दोष मत देना,गलती तेरे फूफा जी की हैं जो उन्होंने तुझ पर बुरी नज़रे डाली” इतनी बोल रुचि के सिर पर प्यार भरा हाथ फेर कविता अपने कमरे में आ गई. कहीं ना कहीं कविता इन सबके लिए खुद को दोषी मान रही थी क्योंकि ऐसा ही कुछ उसकी जेठानी की बेटी तन्वी के साथ हुआ था और जब जेठ जेठानी ने आवाज़ उठाई थी तो सबसे पहले उनका विरोध उनके अपने परिवार ने किया था।किसी ने उनका दर्द समझने की कोशिश तक नहीं की थी ननद रेवती ने खूब हंगामा किया था

और बड़ी ही दृढ़ता के साथ पति महेश का साथ दिया था,कहने को कमला जी घर की बड़ी थीं लेकिन उन्होंने भी बेटी रेवती और दामाद महेश का साथ दिया था. ऐसी ऐसी बातें कही गईं उस बच्ची के खिलाफ़ जिन्हें सुनकर किसी के भी कानों से खून निकल आता. अंत में हुआ कुछ नहीं तन्वी के माता पिता वो शहर छोड़ दूसरे शहर जा बसे और एक नई जिंदगी की शुरुवात की,आज वो परिवार के किसी भी सदस्य के संपर्क में नहीं हैं। उनके जाने के बाद भी तरह तरह की बातें जारी रही, लोगों ने पीठ पीछे उनकी खूब बातें बनाई आज कविता को लग रहा था काश!! उसने तन्वी और जेठ जेठानी का दर्द समझकर उनका साथ दिया होता तो आज ये सब उनकी अपनी बेटी के साथ नहीं होता। लेकिन उस समय कविता और उनके पतिदेव सुरेश चुपचाप मूकदर्शक बन खड़े थे।

ना उन्हें तन्वी का दर्द दिखाई दिया ना ही उसके माता पिता का शायद इसी कारण महेश जी का हौंसला बढ़ा और उन्होंने वही हरकत रुचि के साथ भी की… वो जानते थे कि वो तो घर के दामाद बाबू हैं जिन्हें अपनी मन मर्जी करने का हक़ है, उन्होंने कुछ गलत कर भी दिया तो उन्हें बचाने के लिए कई लोग खड़े हो जायेंगे जैसे की उनकी पत्नी रेवती,सासु मां कमला जी,जो घर की बड़ी थी और पूरे घर पर उनकी हुकूमत चलती थी शाम को जब रुचि के पापा सुरेश जी घर आए तो कविता ने सारी बात उन्हें बताई,सुरेश जी वहीं बैठ गए। कुछ देर के लिए कमरे में खामोशी छा गई फिर वो बोले,” इस बार नहीं बचेगा वो,पिछली बार भी मैं जानता था

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कि उसने गलती की है लेकिन बस चुप रह गया,तन्वी इस परिवार की बेटी थी और कोई दरिंदा हमारे ही घर में उसे नोच खा गया और हम देखते रहे,आज वही सब रुचि के साथ हुआ हैं कल को ये सब मैं किसी के साथ नहीं होने दूंगा, अब जो होगा देखा जायेगा,अब महेश को उसके किए की सज़ा जरूर मिलेगी” सुरेश जी ने उसी समय अपने बड़े भाई को फ़ोन किया और सारी बात बताई, दोनों ने फैंसला किया कि बहुत हुआ अब गुनहगार को सज़ा दिलाने का समय आ गया है. इसके बाद सुरेश जी पुलिस के पास गए और महेश जी के खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज़ करवा दी,पुलिस अपनी कार्यवाही में जुट गई. जब ये बात कमला जी को पता लगी तो वो बोली,” तुम दोनों भाइयों की हिम्मत कैसे हुई मेरे दामाद पर ऐसे इल्ज़ाम लगाने की और तुम दोनों ने सोचा हैं इससे परिवार की कितनी बदनामी होगी,लोग क्या क्या बातें करेंगे,मेरी बेटी का घर टूटेगा और कौन करेगा तन्वी और रुचि से शादी???”

“होने दो मां अब जो होगा सो होगा,आज हमारी बेटियों को हमारी जरूरत है ,अगर आज अपनी ही बेटियों के साथ नहीं खड़े हुए तो ख़ुद से कभी नज़रे नहीं मिला पायेंगे” सुरेश जी बोल ही रहे थे कि तभी रेवती वहां गई और सभी को भला बुरा सुनने लगी। तो सुरेश जी ने साफ़ शब्दों में कह दिया,”दीदी सुनो, तुम भी जानती हो तुम्हारा पति कैसा है, कब तक उसकी गलतियों पर पर्दा डालती रहोगी,आपकी भी तो एक बेटी हैं ना!!!! सोचो यही सब उसके साथ हुआ होता तो??इन्हीं जैसे दरिंदों के कारण बेटियां घर में भी सुरक्षित नही हैं,अब और नहीं,इस बार तुम बीच ने बिल्कुल मत आना वर्ना…..” गुस्से में बोलते हुए सुरेश जी ने जैसे तैसे खुद को रोक लिया. उनकी आंखों में इतना गुस्सा था कि सब चुप हो गए. पुलिस महेश को ले गई थी और उसे उसके किए की सज़ा दिलवाने में जुट गई इन सब बातों ने तन्वी के दिमाग पर गहरा प्रभाव डाला था,उसे समय लगा इन बातों से बाहर आने में, परिवार वाले चाहते थे कि बच्चियां उस हादसे से जल्द से जल्द उभरे इसीलिए उन्होंने काउंसलर की मदद ली, एक समय के बाद सभी की ज़िंदगी पटरी पर आ गई जो कुछ हुआ उसे तन्वी और रुचि ने बुरा सपना समझ भुला दिया. कहानी पूरी तरह स्वरचित हैं लेकिन कहानी लिखने की प्रेरणा हमें हमारे आसपास हुई घटनाओं से ही मिलती है. अभिभावकों से कहना चाहती हूं जब आपकी बेटी आपसे कुछ कहती हैं या आप पर भरोसा करके आपको कुछ बताती हैं तो उसका साथ दे🙏🙏 आप और हम मिलकर बेटियों के लिए एक सुरक्षित समाज जरूर बना सकते हैं और उसकी शुरुवात हमें हमारे घरों से करनी होगी

शोना सिंह 

# दर्द

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