बेटियाँ परायी होती है बहू नहीं – रश्मि प्रकाश

सुबह सुबह घर के सारे काम खत्म कर एक कप चाय लेकर बैठी ही थी कि मौसमी का फोन आ गया। अब तो लंबी बातचीत होगी सोचती हुई वंदना चाय के घूंट के साथ साथ अपनी इकलौती चचेरी ननद से बतियाने लगी। पूरे ससुराल वालों में एक मौसमी ही थी जो वंदना से स्नेह भी रखती थी और घर की हर खबर भी पहुंचा दिया करती थीं क्योंकि वो उन लोगों के ही शहर में रहती थी।

“हैलो भाभी कैसी हो? बड़ी दीदी के बेटे अमित की सगाई है इसी महीने आप तो आएंगी न  आएगी अमित के सगाई समारोह में? देखो जल्दी आ जाना फिर हम दोनों गप्पे लड़ाएंगे।” बहुत देर तक अमित की होने वाली दुल्हन ससुराल वालों के साथ साथ इधर उधर की अनेकों बातें कर मौसमी ने फोन रख दिया।

वंदना जितने चाव से चाय लेकर पीने बैठी थी उतनी ही जल्दी चाय में कड़वाहट महसूस करने लगी।

सोचने लगी जब से इस घर में ब्याह करके आई ये लोग कभी मुझे कुछ क्यों नहीं बताते?? हर बार बात किसी दूसरे से पता चलती। वो तो मैं मौसमी को पता नहीं लगने दी कि मुझे इस बारे में कोई जानकारी भी नहीं है।   छोटा सा परिवार  एक माँ और हम दोनों के  दो बच्चे।

माँ बस दुखड़ा सुनाने के लिए जरूर फोन कर देंगी जब मिलो तो अपने अतीत और बेटी की परेशानी ही कहती रहती। पति रोहन भी घर की बात कभी नहीं बताते। कभी पूछ भी लूं तो कहते “अरे वक्त आने पर पता चल ही जाता ना इसलिए नहीं बताया सब कुछ तुमको जानना जरुरी तो नहीं जब तुम्हारे लायक कोई बात होगी बता दूंगा।”  

बहन  है वो भी बस भाई को ही फोन करती रहती  है जो जरूरत पूरी करे लोग उनसे ही बात भी करते हैं।वंदना तो तब याद आती जब उनको उसकी मदद की जरूरत होती। मजाल है जो ऐसे फोन कर दें वंदना को।

आज मौसमी ने अमित की सगाई की बात की मतलब रोहन को सब पता होगा, पर मुझे कुछ नहीं बताया। हाँ लड़की देखने गए तो थे पर सब कुछ तय भी हो गया ये बात आज मौसमी से पता चली।



ननद का  इकलौता बेटा अमित सब तय कर लिया पर मुझे कुछ खबर भी नहीं। अब आगे बढ़ कर पूछने का मतलब ही नहीं सोचती वंदना ,जब उसे कुछ बताया ही नहीं जाता।

पूरे दिन इसी उहापोह में बीत गया। बच्चों के स्कूल से आने के बाद वो बोली “मैं कल नानी के घर जा रही हूं कुश का मुंडन संस्कार होने वाला। नानी ने कहा है अकेली बुआ हो तो पहले ही आ जाना। तुम लोग भी चलोगे तो कपड़े पैक कर दूं?”

नानी घर जाने की बात सुन बच्चे चहक उठे।

वंदना ने सब के कपड़े पैक कर लिए।

शाम को रोहन ऑफिस से आए तो बैग देखकर पूछे “कहाँ जाने की तैयारी हो गई?” 

“कल हम सब नानी घर जा रहे मामा जी के बेटे कुश के मुंडन में।” पीहू (वंदना की बेटी) चहकती हुई बोली

“पर वंदना कल तो दीदी जीजाजी आ रहे वो अमित की सगाई की कुछ खरीदारी यहां से करने बोल रहे थे। तुम बाद में चली जाना।” रोहन ने कहा

 “वो अचानक आ रहे?” वंदना ने कहा

“नहीं पहले से ही प्रोग्राम बना हुआ था।” रोहन ने कहा

“पर मैंने तो आपको पहले ही बता दिया था,दिन वक्त सब कुछ फिर मेरा वहां जाना जरूरी है। आपने मुझे कब बताया कि दीदी जीजाजी आ रहें?मैं कल जा रही हूं। आप संभाल लेना।” वंदना ने कहा



“अरे मैं कैसे क्या करूंगा!!”

“फिर मैं भी कुछ नहीं कर सकती जब मुझे अपने घर की बात किसी और से पता चलती तो मैं किसके लिए यहां रुकूं? आपने कभी अपना समझा होता तो बातें भी बताया करते पर आप सबने मुझे मेरे ही घर में पराया कर दिया। अब मैं कैसे आप लोगों को अपना समझ सकती हूं? बहुत दिनों से कहना चाहती थी पर आज कह दे रही हूं अपना समझते तो आप और आपके घर वाले जितना एक दूसरे को मानते हैं ना उसका कुछ छंटाक भी मेरे हिस्से में दे देते तो ये शिकायत ना करती।

ना आपकी माँ ने ना आपके दीदी जीजाजी ने कभी मुझे अपना समझा  मतलब के रिश्ते में मै अपनी बलि क्यों दूं। आ रहे तो आए उनके लिए आप है ना!! ये घर तो मेरा हो कर भी मेरा कभी बन ही नहीं पाया।”वंदना ने थोड़ा ग़ुस्सा दिखाते हुए कह दिया

पूरे घर का माहौल बिगड़ चुका था।

दूसरे दिन वंदना बच्चों को लेकर चली गई। एक चिट्ठी छोड़ कर.. रोहन अभी भी वक्त है संभल जाओ कही ऐसा ना हो इतना पराया कर दो की कल हमारे बीच बात करने को कुछ ना बचे। मानती हूं वो तुम्हारे अपने है उनसे पहले से नाता है तुम्हारा  पर मैं भी इस घर की बन कर आई हूं  जैसे दीदी ;जब वो हर बात जान सकती तो मैं क्यों नहीं?? सोच कर देखो! गलती तुम कर रहे थे मुझे अपने घर तो लो आए पर कभी अपना समझ ना सके। बात बता देते तो आज जैसी हालत न होती। रिश्तों को दोनों हाथों से सहेजो   एक हाथ से सहेजने से सब बिखर जाएगा। मेरा मान सम्मान तुम्हारी जिम्मेदारी है। घर में मेरी जो जगह होगी वो तुम्हारे द्वारा दिए गए व्यवहार और इज्जत से होगी। अपनी पत्नी को समझो। दीदी जीजाजी के लिए काम वाली को बोल दिया है वो नाश्ता खाना तैयार कर देगी। उसकी चिन्ता मत करना। अब दीदी जीजाजी  को क्या जवाब देना वो तुम जानो क्योंकि मुझे तो कुछ पता ही नहीं है ना..।” वंदना

रोहन लेटर पढ़ कर सोचने लगा सच में मैं दस साल से वंदना के साथ हूं पर सच ही तो कह रही वो हमने कभी उसको पास बिठा कर अपने घर की कोई भी बात समस्या  खुशी ज़मीन जायदाद की कोई बात उससे कभी नहीं की।  मैं भी कितना पागल हूं अपनी ही पत्नी को उसके ही घर में पराया बना कर रखा।

दीदी जीजाजी  आए रोहन उनके साथ सारी खरीदारी करवा दिया पर मन वंदना के पास था। गलती सुधारने की जरूरत जो थी।

आपको क्या लगता है वंदना की जैसी हालत होती होगी आज के समय में? क्या आपके पति या घर के सदस्य हर बात आपसे करते हैं? वंदना ने तो अपने पति को समझाने के लिए कदम उठा लिया पर कितनी औरतें ऐसा कर पाती हैं?

आपके विचारों का इंतजार रहेगा।

आपको मेरी वंदना पंसद आये तो कृपया उसे लाइक करे कमेंट्स करें 

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