” चल हट….बड़ी आई पढ़ाई करने वाली…जा..चौके में जाकर अपनी माँ से खाना पकाना सीख…वही तेरे काम आयेगा..।” दुत्कारते हुए विमला ने सात साल की सुकृति के हाथ से काॅपी छीन लिया तो वह रुआँसी होकर अपनी माँ माधुरी के पास चली गई।
विमला जब इस घर में प्रमोद की पत्नी बनकर आई थीं तब वो बहुत मिलनसार थीं।शहर के मेन मार्केट में उनके ससुर अयोध्या बाबू की ‘ ग्लास हाउस ‘ नाम की दुकान की जिसे बाद में उनके पति ने ‘ ग्लास इंम्पोरियम ‘ नाम रख दिया था।ब्याही छोटी ननद मंजू के साथ वो सहेली बन जाती और देवर अशोक तो भाभी-भाभी कहकर उनके आगे- पीछे घूमते रहते थे।
बड़ी बहू होने के नाते विमला सास-ससुर की दुलारी थीं।दो साल बीतते-बीतते वो एक बेटे अरुण की माँ बन गईं।दादा बनने की खुशी में उनके ससुर ने बहुत बड़ी पार्टी देकर अपनी खुशी व्यक्त की थी।दो साल बाद उसने फिर से एक पुत्र को जनम दिया जिसका नाम उसने वरुण रखा।
अशोक की पढ़ाई में विशेष रुचि थी।वह बीए के बाद लाॅ करना चाहता था लेकिन जब पिता ने कहा कि जब घर की दुकान से आमदनी हो रही है तो किताबों में सिर खपाने से क्या फ़ायदा तब वो अपनी इच्छा त्याग कर भाई के साथ ‘ ग्लास इंम्पोरियम’ में बैठने लगा।
मनीष नाम के लड़के के साथ अशोक की गहरी मित्रता थी।मनीष एम ए करके एक काॅलेज़ में लेक्चरर था,साथ ही वह एम फ़िल भी कर रहा था।उसे अध्ययन करते देख अशोक को बहुत खुशी मिलती है, इसीलिए वह अक्सर ही उसके घर जाया करता था।मनीष की छोटी बहन माधुरी भी बीएड कर रही थी।अक्सर ही दोनों में किसी-किसी विषय पर बातें होती रहती थीं।धीरे-धीरे दोनों के बीच नज़दीकियाँ बढ़ने लगी।
अशोक को ज़िम्मेदार बनते देख विमला ने अपनी सास से कहा कि माँजी..अरुण की छठियारी(छठी) में आपने मेरी बहन निधि को तो देखा ही था।देवर जी के साथ उसकी जोड़ी कैसी रहेगी।माताजी बोली कि ख्याल तो बुरा नहीं है…दोनों बहनें एक साथ रहेंगी तो अच्छा ही रहेगा लेकिन एक बार अशोक से भी पूछना ज़रूरी है।
विमला ने फिर तनिक भी देरी नहीं की।रात को जब सभी खाने की टेबल पर बैठे तो उसने अशोक से निधि की बात छेड़ दी।सुनकर अशोक गंभीर हो गया और बोला,” भाभी…निधि बहुत अच्छी है लेकिन मैं उससे शादी नहीं कर सकता क्योंकि..।वह एक मिनट चुप रहा और बोला,” मैं माधुरी से विवाह कर रहा हूँ।”
” कौन माधुरी अशोक..।” माताजी ने प्रश्न किया।
” मनीष की छोटी बहन है माँ…उसके बीएड के इम्तिहान खत्म होते ही आपसे मिलाने ले आऊँगा।” कहकर अशोक खाने की टेबल से उठकर बरामदे में चला गया और बात वहीं खत्म होगी।
अशोक के माता-पिता ने माधुरी को पसंद कर लिया और एक शुभ-मुहूर्त में दोनों का विवाह हो गया।माधुरी ने अपने सरल स्वभाव से सभी के दिल में अपनी जगह बना ली लेकिन विमला अशोक के इंकार को अपना अपमान समझकर माधुरी से चिढ़ गई और उसी दिन से उसकी ज़ुबान कड़वी हो गई।वह बात-बात पर माधुरी को ताने देती और बेवजह उसकी कमियाँ निकालती।
माधुरी को पहली संतान बेटी हुई तो सास पोती को गोद में लेकर बोलीं,” एक लक्ष्मी की कमी थी जो अब पूरी हो गई।” दूसरी संतान भी जब बेटी ही हुई, फिर तो विमला उस पर और उसकी बेटियों पर शब्दों के व्यंग्य-बाण चलाने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी।सास-ससुर और पति विमला को समझाते कि निधि अपने ससुराल में खुश है..अब तो माधुरी को कोसना बंद करो लेकिन विमला पर उनकी बातों का कोई असर नहीं होता।
माधुरी छोटी बेटी प्रकृति को खाना खिला रही थी और सुकृति अपने स्कूल की काॅपी पर लिख रही थी तो विमला ने उसके हाथ से काॅपी छीनते हुए उसे दुत्कार दिया।सुकृति रोती हुई बोली,” मम्मी…बड़ी मम्मी ने मेरी काॅपी फाड़ दिया।” तब बेटी को पुचकारते हुए वह बोली,” कोई बात नहीं…मैं नया ला दूँगी।”
अपने परिवार के प्रति भाभी के दुर्व्यवहार से आहत होकर अशोक ने कई बार अलग रहने का सोचा लेकिन माधुरी कहती कि परिवार टूटेगा तो माताजी-पिताजी को बहुत दुख होगा।
माधुरी के सास-ससुर के देहांत के बाद तो विमला माधुरी की बेटियों के पीछे हाथ धोकर पड़ गई थी।एक दिन स्कूल से आते वक्त सुकृति ने अरुण को कुछ लड़कों के साथ शराब पीते देखा तो उसने पापा को बताया।अगले दिन अशोक ने प्रमोद से कहा कि भईया…अरुण पर ध्यान दीजिए।गलत संगत में पड़ कर वह परिवार की प्रतिष्ठा पर कोई कलंक न लगा बैठे.. ।” इतना सुनते ही विमला विफ़र उठी,” देवर जी…प्रतिष्ठा पर कलंक तो बेटियाँ लगातीं हैं..बेटे तो चार चाँद लगाते हैं।” सुनकर अशोक से रहा नहीं गया और माधुरी से बोला कि अब मैं तुम्हारी एक न सुनुँगा।मैं डेरा देखने जा रहा हूँ..तुम सामान बाँध लो।”
दो कमरों के किराये के मकान को माधुरी ने अपने प्यार-से मंदिर बना दिया।उसकी दोनों बेटियाँ अच्छे नंबरों से पास होती जा रहीं थीं।सुकृति ने मेडिकल काॅलेज़ में दाखिला ले लिया था और प्रकृति बारहवीं के बाद CLAT परीक्षा की तैयारी कर रही थी।
उधर विमला का बड़ा बेटा शराबी बन गया।प्रमोद के कहने पर कुछ दिन वह शाॅप गया भी लेकिन नियमित रूप से नहीं।छोटा वरुण नौवीं कक्षा में ही तीन बार फ़ेल हो चुका था।स्कूल छूट गया तो माँ से पैसे लेकर आवारागर्दी करने लगा।प्रमोद उससे कहता कि बच्चों पर ध्यान दो तो वो लापरवाही से कहती,” बेटों पर क्या ध्यान देना..।”
फिर एक दिन वरुण घर के लाॅकर से रुपये- गहने लेकर गायब हो गया।विमला का तो रो-रोकर बुरा हाल था।महीनों बाद उसका फ़ोन आया कि मुंबई में किसी ईसाई लड़की से विवाह करके वह उसी के घर में रह रहा है।अरुण से तो परेशान थी ही…अब वरुण भी…… उसने अपना सिर पीट लिया।एक दिन अरुण नशे में धुत्त घर लौटा तो विमला ने सोचा कि अरुण की शादी करवा देती हूँ।पत्नी साथ रहेगी तो दूसरी चीज़ों यानि शराब पीने पर उसका ध्यान नहीं जायेगा।लेकिन ऐसा हुआ नहीं।विवाह के कुछ दिनों के बाद ही अरुण फिर से घर देर से आने लगा।उस की पत्नी श्वेता को पति के शराबी होने का पता चला तो वो गुस्से-से तमतमा गई।
एक दिन श्वेता ने अरुण को शराब पीने से मना कर दिया तब अरुण ने उस पर हाथ उठा दिया।श्वेता नये ज़माने की लड़की थी।वह अपना बैग लेकर मायके आ गई और सास-ससुर तथा पति के खिलाफ़ पुलिस में घरेलू-हिंसा की शिकायत दर्ज़ करा दी।
प्रकृति CLAT क्लियर करके अपने पिता के साथ लाॅ काॅलेज़ में एडमिशन ले रही थी तभी अशोक को उसके एक मित्र ने फ़ोन करके बताया कि प्रमोद भाई, भाभी और अरुण को पुलिस पकड़कर ले गई है।
अशोक तुरंत थाने पहुँचा।भाई से मिला और विमला को बोला,” भाभी…चिंता मत कीजिये…मैं हूँ ना।प्रकृति की सहेली के पिता वकील हैं तो मैं आप लोगों की जमानत…।” विमला अशोक का हाथ पकड़कर रोने लगी,” मुझे माफ़ कर दो अशोक…।”
अशोक श्वेता से मिला, उसे समझाया कि अपनी शिकायत वापस ले लो।घर की बात बाहर जाती तो दोनों परिवारों की बदनामी होती है।श्वेता के माता-पिता ने भी बेटी को यही समझाया तब श्वेता ने अपनी कंप्लेन वापस ले ली और पुलिस ने तीनों को रिहा कर दिया।
विमला माधुरी से माफ़ी माँगते हुए रो पड़ी,” अपने अहंकार में मैं भूल गई थी कि बेटी के साथ-साथ बेटों को भी अच्छे संस्कार देने और मान-मर्यादा का पाठ पढ़ाने की आवश्यकता होती है।आज मुझे समझ आया कि बेटियाँ कलंक नहीं होतीं।वो तो अपनी मान- प्रतिष्ठा बनाने के लिये जी-जान लगा देतीं हैं।” फिर वो हाथ जोड़ते हुए प्रकृति से बोली,” मुझे माफ़ कर दे बेटी…।”
” माफ़ी नहीं बड़ी मम्मी…आप तो हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम वकील बन जाएँ…।” कहते हुए वह विमला के चरण-स्पर्श करने के लिये झुकी तो विमला ने मेरी बेटी’ कहकर उसे अपने सीने-से लगा लिया।श्वेता ने भी अपने सास-ससुर से माफ़ी माँगी।अरुण ने भी श्वेता से प्राॅमिस किया कि अब वह शराब को हाथ नहीं लगायेगा और एक अच्छा पति बनने के पूरा प्रयास करेगा।
बरसों से बिखरा परिवार एक बार फिर से मिल गया।अपने परिवार को एक साथ देखकर विमला की आँखें खुशी-से छलछला उठीं।
विभा गुप्ता
# कलंक स्वरचित, बैंगलुरु
यह सच है कि बेटों की माँ कहलाना सौभाग्य की बात होती है लेकिन उन्हें अच्छे संस्कार देना और सही राह दिखाना भी माँ का ही कर्तव्य होता है।बेटों के आगे बेटियों को कमतर समझना अथवा उन्हें एक कलंक समझना मूर्खता है।