” सुनीलsss.., जब एक हाथ से काम होता नहीं तो चुपचाप बैठे क्यों नहीं रहते…।कितना मंहगा शो- पीस था…तुमने तोड़ दिया…इसका पैसा क्या…।” कामिनी अपने देवर पर चिल्ला रही थी कि तभी सुनील की पत्नी नंदा आ गई,” साॅरी दीदी..इनसे गलती से गिर गया है।मैं इसके पैसे दे दूँगी…।”
” कहाँ से देगी…तुझे खिलाते हम हैं..तेरी बेटी का फ़ीस हम भरते हैं…बेटा तो है नहीं जो तुम लोगों का बोझ…।” कामिनी की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि नंदा की बेटी रिया ज़ोर-से चिल्लाई,” बस ताईजी…मेरे मम्मी-पापा का अपमान करना बंद कर दीजिये।बेटा न सही लेकिन बेटी तो है।मैं अपने माता-पिता का सहारा बनूँगी।”
सुनील के पिता किसान थे और माँ गाँव के बच्चों के कपड़े सिलती थीं।सुनील का बड़ा भाई अशोक स्कूली पढ़ाई पूरी करके शहर चला गया।वहाँ उसने बीएससी किया और बीएड करके एक स्कूल में अध्यापन-कार्य करने लगा।उसके पिता ने सुनील के लिये भी बहुत सपने देखे थे लेकिन बारहवीं की फ़ाइनल परीक्षा से पहले ही उसे टायफ़ाॅइड हो गया…
फिर उसकी माताजी का देहांत हो गया जिसके कारण वो पास होने लायक अंक ही प्राप्त कर सका।तब अशोक ने उसे अपने पास बुला लिया और अपने एक परिचित के गैराज़ में उसे काम दिला दिया।वहाँ पर गाड़ियों की साफ़-सफ़ाई के साथ-साथ वो उनके पार्ट-पुर्जों को ठीक करने और बदलने का काम भी सीखने लगा।तनख्वाह कम थी लेकिन वह खुश था कि वो अपने पैरों पर खड़ा है.. किसी का मोहताज नहीं है।
कुछ समय बाद आकाश ने कामिनी नाम की लड़की के साथ विवाह कर लिया।इसी बीच सुनील की तनख्वाह बढ़ी तो वो घर के खर्चे में अपनी भाभी को मदद करने लगा।
समय के साथ कामिनी दो बेटों की माँ बन गई।सुनील भी तरक्की कर रहा था, तब उसके पिता ने अपने एक पहचान वाले की बेटी नंदा के साथ उसका विवाह करवाकर अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गये।
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सुनील अभी भी अपनी भाभी को घर-खर्च में मदद करता था और नंदा घर के कामों में अपनी जेठानी की मदद करती थी।इस तरह उनके बीच मधुर संबंध बने रहे।साल भर बाद नंदा एक बेटी की माँ बनी तब वह बेटी को समय देने लगी और सुनील भी अपनी भाभी को कम रुपये देने लगा जो कामिनी को अच्छा नहीं लगा।
वो गाहे- बेगाहे नंदा पर अपना गुस्सा निकालने लगी।तब आकाश ने उसे समझाया कि अब सुनील की ज़िम्मेदारी बढ़ गई है, उससे पैसे लेना ठीक नहीं है और फिर मेरी सैलेरी काफ़ी है।फिर भी कामिनी के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया।
सुनील और नंदा चुपचाप अपनी ज़िम्मेदारी निभाते जा रहें थें। सुनील के पिता का देहांत हो गया.. कामिनी के बच्चे सयाने हो गये…और अब रिया भी नौवीं कक्षा में पढ़ने लगी थी।
सब कुछ अच्छा चल रहा था कि एक दिन किसी गाड़ी की रिपेयरिंग करते समय न जाने कैसे सुनील का दाहिना हाथ बिजली के तार से छू गया।उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया लेकिन अफ़सोस..उसका दाहिना हाथ हमेशा के लिये बेकार हो गया।उसका काम छूट गया और अब वो और उसका परिवार कामिनी पर आश्रित हो गया।यद्यपि कामिनी नंदा से घर का पूरा काम करवाकर वसूली कर लेती थी लेकिन फिर भी दिन में एक बार वो नंदा को याद दिला ही देती कि तुम लोग मेरे दिये टुकड़ों पर ही पल रहे हो।
सुनील अब अपने कमरे में ही रहता था।नंदा उसका पूरा ख्याल रख रही थी।गरमी के दिन थे…सुनील को प्यास लगी..उसने नंदा को आवाज़ दी लेकिन कूकर की सीटी बजने में नंदा ने आवाज़ नहीं सुन सुनी।सुनील स्वयं पानी लेने लगा कि तभी उसके दूसरे हाथ से टेबल पर रखा फूलदान टकराकर नीचे गिर गया।
फ़र्श पर गिरे टुकड़े देखकर कामिनी का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। नंदा ने उससे माफ़ी माँगी, फिर भी कामिनी ने उसे ताना मार ही दिया।उसी समय रिया ने स्कूल से आकर घर में कदम रखा ही था, अपनी ताई के मुख से ‘बेटा तो है नहीं ‘ सुनकर तिलमिला उठी और अपनी ताई को जवाब दे बैठी।सुनकर कामिनी भी चिल्लाई,” इतने ही तेवर हैं तो खिला न अपने बाप को…हमारे आगे हाथ क्यों फैलाती है?” यही बात रिया को लग गई।
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अगले दिन इतवार था।रिया अपने पिता को लेकर गैराज़ गई और मालिक श्याम अग्रवाल से बोली,” अंकल..पापा घर में बैठे बोर होते हैं, इसलिये मैं इन्हें यहाँ ले आई।एक हाथ से करने वाले जो भी काम हो, आप इन्हें दे दीजिए।स्कूल से आकर मैं भी पापा का हाथ बँटा दिया करुँगी।पगार आप जो भी देंगे…हमारे लिये बहुत होगा।”
रिया की बात सुनकर अग्रवाल जी बहुत खुश हुए,” बेटी..मैं भी सुनील को आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूँ कि ताकि उसे किसी के आगे हाथ पसारना न पड़े।” कहते हुए उन्होंने सुनील को कुछ काम समझा दिये और उसी समय से सुनील काम करने लगा।शुरु- शुरु में तो सुनील को बायें हाथ से काम करने में काफ़ी परेशानी हुई
लेकिन फिर उसे आदत हो गई।स्कूल की पढ़ाई के बाद रिया गैराज़ चली जाती..पिता की मदद करती और वहाँ के काम को समझती।हाथ में पैसा आने लगा, अब उन्हें अपनी ज़रूरतों के लिये कामिनी के आगे हाथ पसारना नहीं पड़ता था।लेकिन कामिनी तब भी चुप नहीं बैठी..अक्सर कहती कि बेटी तो तुमलोगों की नाक कटा देगी।
दसवीं और बारहवीं की परीक्षा पास करके रिया ने ‘Diploma in Computer Science & Engineering’ कोर्स में एडमिशन ले लिया।फिर तो कामिनी ने ‘ मोहल्ले में बदनामी हो रही है’ का बहुत शोर मचाया।तब रिया ने अग्रवाल जी से रहने के लिये जगह माँगी जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया और एक छोटा-सा कमरा उन्हें दे दिया।
गैराज़ में काम करते हुए रिया ने अपना कोर्स पूरा किया और बैंक से लोन लेकर खुद का एक मोटर गैराज़ खोल लिया।गैराज़ में एक लड़की और एक लूले आदमी को काम करते देख लोग पहले तो आने से कतराने लगे लेकिन फिर जब एक ने उनका काम देखा तो ग्राहकों की संख्या दो से चार होने लगी। फिर तो गैराज़ का शटर उठने से पहले ही ग्राहकों की भीड़ लगने लगी।लोग पिता-पुत्री की मेहनत और हौंसले की प्रशंसा करते नहीं थकते।
रिया ने स्टाफ़ बढ़ा दिये, साथ ही वो शरीर के किसी अंग से अपाहिज़ लोगों को ट्रेनिंग देकर अपने गैराज़ में ही काम भी देने लगी ताकि उन लोगों को किसी का मोहताज न बनना पड़े…किसी के आगे हाथ फैलाना न पड़े।
रिया ने पिता के नाम से एक घर भी खरीद लिया।नये घर में शिफ़्ट होने के बाद नंदा उससे बोली,” बेटी..तूने हमें तो सेटेल कर दिया, अब ज़रा अपने बारे में भी तो सोच..।” तभी सुनील भी बोले,” कोई है तो बता दे..।” सुनकर वो मुस्कुरा दी।
एक दिन सुनील गैराज़ के ऑफ़िस में बैठे हिसाब- किताब देख रहे थे कि तभी एक बड़ी गाड़ी से निकलकर एक सज्जन आये।उन्हें देखकर सुनील खड़े हो गये,” साहब, आप! गाड़ी में कोई खराबी हो गई है क्या..मैं अभी स्टाफ़…।”
” नहीं सुनील जी..मैं आपसे कुछ माँगने आया हूँ।”
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” हुकम कीजिए…।” कहते हुए सुनील ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिये।
सज्जन बोले,” ईश्वर की कृपा से हमारे दोनों मोटर शोरूम से अच्छी कमाई हो रही है।बेटी अपने ससुराल में खुश है और बेटा सुशांत आपकी रिया को पसंद करता है।”
” रिया को प..सं..द.., कहाँ-कैसे?” सुनील ने आश्चर्य व्यक्त किया, तब वो बोले,” छह महीने पहले सुशांत अपनी कार की सर्विसिंग कराने आया था, तभी से वो रिया बिटिया को पसंद करने लगा था।अपनी मम्मी से तो वो सिर्फ़ रिया की ही बातें करता है।हम चाहते हैं कि रिया हमारी बहू और सुशांत आपका दामाद बन जाये।”
सुनकर सुनील खुशी-से फूले नहीं समाये।घर आकर उन्होंने नंदा को सारी बातें बताई..रिया से पूछा तो वो शरमा गई।तब समय निकालकर सुनील नंदा और रिया के साथ सुशांत के घर गये।सुशांत से मिले और उसके माता-पिता से बात करके शादी पक्की कर दी।महीने भर के अंदर ही एक शुभ-मुहूर्त में रिया और सुशांत परिणय-सूत्र में बँध गये।
ससुराल जाकर रिया घर में बैठी नहीं, वो सुशांत के साथ ही शोरूम जाने लगी।सुनील के गैराज़ पर भी ग्राहकों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी।सुनील के कहने पर नंदा भी वहाँ का काम समझने लगी।
एक दिन सुनील पत्नी से बोले,” नंदा..सालों हो गये भाभी से मिले..रिया के विवाह में भईया तो आये थे लेकिन भाभी..।क्यों न कल चलकर उनसे भेंट कर लिया जाये..तुम क्या कहती हो..।”
” इसमें कहना क्या है..भाभी रूठी हैं तो चलकर उन्हें मना लेते हैं..।” कहकर नंदा ने अपने एक स्टाफ़ को फ़ोन करके कह दिया कि कल आपके भईया ज़रा देर से आयेंगे।
सुनील और नंदा को देखकर आकाश बहुत खुश हुए।सुनील ने पूछा,” भाभी…।” आकाश दोनों को कमरे में ले गये।बेड पर एक दुबली-पतली काया को लेटे देखकर सुनील चौंक पड़ा।गौर-से देखने पर ‘भाभी’ कहकर कामिनी के पैरों से लिपटकर रोने लगा।आकाश ने बताया कि कामिनी दिन-रात अपनी बहुओं को खुश करने में लगी रहती थी।एक दिन बड़ी बहू ने उसे छत पर अचार रखने को कहा।अचार की बरनी रखकर
वो सीढ़ियों पर तेजी से उतरने लगी..न जाने कैसे उसका पैर फिसल गया और वो पाँच सीढ़ियाँ लुढ़कती चली गई।तभी से उसके शरीर का दाहिना हिस्सा काम नहीं करता है।इलाज चल रहा है लेकिन…।डाॅक्टर के अनुसार, कामिनी के शरीर के दाहिने हिस्से को लकवा मार दिया है।बिस्तर पर लेटे- लेटे ही थोड़ा बोल लेती हो लेकिन खाने-पीने और अन्य कार्यों के लिये वो अपने बहुओं की मोहताज है।अभी तो मैं हूँ लेकिन मेरे बाद..।” कहते हुए अशोक की आँखें नम हो गई।
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सुनील भाभी के पास जाकर उन्हें दिलासा दिया..नंदा ने भी उन्हें आश्वासन दिया कि सब ठीक हो जाएगा।कामिनी ने बायें हाथ से नंदा का हाथ पकड़ लिया जैसे कह रही हो, मैंने तुम्हें बहुत सताया है…सुनील को बहुत दुखी किया था…उसी का फल है कि आज मैं दूसरों की मोहताज हूँ…।नंदा निःशब्द थी।
विभा गुप्ता
# मोहताज स्वरचित, बैंगलुरु
समय बदल रहा है, आज बेटियाँ भी अपने पिता का सहारा बनती हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग करती हैं जैसे कि रिया ने अपने पिता के लिये किया।कामिनी की तरह कभी किसी को अपमानित नहीं करे…वक्त कब किसी को दूसरे का मोहताज बना देगा, कोई नहीं जानता।