बेटी की खुशी***एक पिता की नजर से – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

रोहन और मिताली एक मल्टीनेशनल कंपनी में बैंगलोर में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। दोनों तीन साल से एक ही जगह काम कर रहे थे सो आपस में मित्रता थी किन्तु यह मित्रता कब प्यार में बदल गई  वे स्वयं भी इससे अनजान थे। दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे और बात शादी तक जा पहुंची।

वे शादी करना चाहते थे किन्तु अपने माता-पिता के आशीर्वाद से। दोनों सजातीय थे, पढ़े-लिखे, अच्छी नौकरी कर रहे थे तो उन्हें विश्वास था कि उनके माता-पिता को इस रिश्ते से कोई समस्या नहीं होगी ।

अब उन्होंने अपने -अपने माता-पिता के सामने इस रिश्ते की बात रखी तो वे सहर्ष मान गए। आपत्ती करने लायक कोई कारण ही नहीं था।

रोहन ने मिताली को फोन कर कहा कि मैं मम्मी-पापा के साथ तुम्हारे यहां आना चाहता हूं ताकि ये लोग भी आपस में मिल लें। जब मिताली ने यह बात अपने मम्मी-पापा को  बताई तो उसके पापा ने उससे फोन नंबर ले स्वयं ही उन्हें आने के लिए आमंत्रित किया।वे लोग उनके यहां पहुंचे पूरे आदर सम्मान के साथ उनका स्वागत किया गया।

एक दूसरे के मम्मी-पापा को रोहन और मिताली पंसद आ गये।सो तुरन्त रिश्ता पक्का कर दिया गया। सगाई करने का फैसला भी जल्दी का लिया गया कारण दोनों को वापस जाना था। किन्तु मिताली के पापा सुधीर जी ने अपने होने वाले समधी रमन जी से लेन-देन के बारे में बात की।

उन्होंने स्पष्ट कहा मैं एक नौकरी पेशा हूं सो अधिक दहेज देने की मेरी सामर्थ्य नहीं है।मेरी दूसरी बेटी भी है जो अभी पढ़ रही है सो जो हमनें सोच रखा है उतना तो हम देंगे, पर आप लाखों की उम्मीद करें वह हमारे पास नहीं है।

यह सुन रमन जी बोले अरे नहीं समधी जी चिन्ता क्यों करते हैं अब हम रिश्तेदार हैं मैं दान-दहेज में बिल्कुल विश्वास नहीं करता हमें कुछ नहीं चाहिए।आप जो भी दें अपनी बेटी को दें।

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तभी रोहन की मम्मी महिमा जी बोलीं अरे भाई साहब आप चिंता  क्यों करते हैं हमें तो मिताली मिल गई तो सबकुछ मिल गया। मेरे बेटे की पसंद हमें बहुत पसंद आई हम तो खुश हैं।

असल में मिताली के मम्मी-पापा सीधे थे। उनकी इन बातों को समझ नहीं पाये।वे इस प्रवृति के थे कि जो मन में होता वही जुबां पर होता। जबकि रोहन के मम्मी-पापा बिल्कुल विपरीत थे मन में पाप था और मीठी जुबां बोल रहे थे वे जो कुछ बोल रहे थे सब उसके विपरीत था।

महिमा जी ने सोने की चैन मिताली को पहनाते हुए साड़ी उसके हाथ पर रख रिश्ते पर मोहर लगा दी।

करूणा जी ने भी ग्यारह हजार का लिफाफा एवं नारियल दे अपनी स्वीकृति भी पक्की कर दी।दस दिन बाद सगाई का कार्यक्रम रखने का निश्चय कर विदा हो गए। विदाई में उन्हें भी साड़ी और ड्रेस दी।

दस दिन बाद मिताली के मम्मी-पापा,बहन गिताली पूरी तैयारी से रोहन के घर गए और सगाई का दस्तूर कर लौट आए रोहन और मिताली भी वापस बैंगलोर चले गए। शादी की तारीख छः माह बाद की रखी।

अब सुधीरजी एवं करूणा जी हंसी खुशी शादी की तैयारी में जुट गए। नित्य बाजार जाना शापिंग करना।तभी एक दिन रमन जी का फोन आया कैसी चल रही है शादी की तैयारी।

सुधीर जी बोले भाई साहब समय निकाल तैयारी में ही लगे हैं ।

मैंने इसलिए फोन किया था कि समय रहते आपको बता दूं हमारे परिवार और रिश्तेदारों के कपड़े और साड़ीयां जरा हाई रैंज के होने चाहिए। मेरे भाई -बहन सब उच्च पद पर कार्यरत हैं सो वे सस्ती चीजें पसंद नहीं करते।कुल मिलाकर आप ग्यारह साडीयां और इतने ही सूट ले लेना, और छोटे -बडे आठ बच्चों के कपड़े जिनकी साइज मैं आपको भेज दूंगा पहली ही डिमांड इतनी जोरदार थी किन्तु वे बोले      

 ठीक है भाई साहब हो जाएगा।

अब रोज का नियम हो गया हर तीसरे चौथे दिन फोन आ जाता मसलन फर्नीचर में क्या बनवा रहे हैं। सोफ़ा हल्का नहीं होना चाहिए। बर्तनों में ऐसा वैसा। ज्वैलरी में क्या क्या बनवा रहे हैं।अब हालत यह हो गई कि सुधीर जी एवं करूणा जी को उनके फोन से डर लगने लगा पता नहीं फिर कौनसी फरमाइश कर दें।

एक दिन फोन आया समधी जी क्या बताऊं इन लेडीज के भी क्या नखरे होते हैं 

मां बेटी दोनों डायमंड के सेट चाहती हैं।

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अब सुधी‌र जी की सहनशक्ति जवाब दे  गई बोले भाई साहब मैंने आपसे पहले ही निवेदन किया था कि मेरी सामर्थ्य इतनी नहीं है।आप तो रोज एक नई डिमांड रख देते हैं इतना हम नहीं कर सकते। फर्नीचर की क्या जरूरत है उन लोगों को बैंगलोर में रहना है यहां से ले जाना भारी पड़ेगा सो वे वहीं खरीद लेंगे।

अरे ऐसे कैसे खरीद लेंगे। यहां मेरे चार रिश्तेदार एकत्र होंगे उन्हें मैं क्या दिखाऊंगा।मेरी इज्जत का सवाल है ।

अब सुधीर जी और करूणा जी के मन से शादी की सारी उमंग जाती रही और वे चिन्तामग्न रहने लगे कि इनका मुंह तो सुरसा की भांति खुलता ही जा रहा है न जाने शादी वाले दिन क्या  नई मांग रख मुसीबत खड़ी कर दें।

उधर इन सब बातों से अनभिज्ञ रोहन और मिताली अब और पास आते गए। भविष्य के सुनहरे सपने बुनते एक दूसरे के साथ सुखद जीवन की कल्पना में खो जाते।

मिताली के  मम्मी-पापा का फोन आया कि तुम सप्ताह भर के लिए आ जाओ। कपड़ों वगैरह की शापिंग कर लो।रोहन भी साथ आ जाए तो उसके भी कपड़े , अंगूठी वगैरह का नाप हो जाए।सो वे दोनों पहुंच गए।नाप दे , शापिंग कर रोहन अपने घर पहुंच गया। मिताली ने शापिंग की और पापा से बोली पापा ये मेरी सेविंग है दस लाख सो खर्च के लिए रख लें।

नहीं बेटा इन्हें तुम अपने पास ही रखो।

नहीं पापा आप रखें मेरे लिए ही तो खर्च हो रहे हैं।

मम्मी एक बात पूछूं आप लोग इतने चिन्तित और उदास क्यों लग रहे हैं। कोई बात हुई है क्या।

अरे नहीं बेटा काम बढ़ रहा है सो उसी की थकान है और कोई बात नहीं है।

मिताली ने उनकी बात पर विश्वास कर लिया उधर रोहन ने भी अपने मम्मी-पापा से पूछा पापा किसी तरह की कोई परेशानी तो नहीं है।

अरे बेटा क्या परेशानी हम लड़केवाले हैं चिन्ता तो बेटी के माता-पिता को होती है।

रोहन को उनकी बात अच्छी नहीं लगी किन्तु वह चुप रह गया। दोनों वापस चले गए यह कहकर शादी से दस दिन पहले आ जायेंगे।

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रमन जी की मांग बढ़ती जा रही थी।अब बोले बरातीयों को कम से कम चांदी का सिक्का भेंट स्वरूप जरूर दें एवं केश ग्यारह लाख तो दें।

अब सुधीर जी परेशान हो गए। कहां से लाएं पैसा,वे सोच नहीं पा रहे थे कि क्या करें। कभी सोचते रिश्ता तोड दें, फिर मिताली का चेहरा सामने आ जाता वह इस रिश्ते से कितनी खुश है।

उन्होंने रमन जी को फोन किया कि  यह मांग आपकी हम पूरी नहीं कर सकते।

वे बोले तो रिश्ता तोड देते हैं हमें लड़कियों की कमी नहीं है।

बेटी की खुशी की खातिर यहां सुधीर जी चूक गए वे यह नहीं कह सके कि तोड़ दो रिश्ता हमें भी कोई और मिल जायेगा।

आनन फानन में उन्होंने घर गिरवी रख पैसों का जुगाड उनकी मांग पूरी करने की सोच लिया।

शादी की तारीख से दस दिन पहले दोनों अपने अपने घर पहुंच गए।

मम्मी-पापा के खुशी से दमकते चेहरे को देख रोहन अचंभित हो गया पर उसकी समझ में इस खुशी का कारण नहीं आया। किन्तु वे इसलिए खुश थे कि बेटे  की शादी के नाम पर इतना ले लिया कि अपनी बेटी की शादी की पूरी तैयारी कर ली।

मिताली ने अपने मम्मी-पापा को इतना परेशान उदास देखा तो वह बोली आप लोग बता क्यों नहीं रहे क्या परेशानी है, पापा कितने कमजोर हो गये हैं।

कुछ नहीं बेटा तू तो बेकार चिन्ता कर रही है। कोई परेशानी नहीं है।पर मिताली का मन मानने को तैयार नहीं था कि सब कुछ ठीक है। हमेशा खुश रहने वाले उसके मम्मी पापा कैसे चुप उदास हो गये। चिन्ता की लकीरें उनके माथे पर स्पष्ट नजर आ रहीं थीं।तब उसने गिताली से पूछा तू तो बता हुआ क्या है।तू भी इतनी बूझी बूझी सी क्यों हो रही है।

कुछ नहीं दीदी बस तैयारी में ही थक गए। आखिर शादी की  रस्में शुरू हो बारात आने का समय भी आ गया। दुल्हन बनी मिताली बहुत ही सुन्दर लग रही थी।उसे  अपने रोहन का इंतजार था।कब वह घोड़े पर सवार हो आयेगा।दुल्हे के रूप में सजा

कैसा लगेगा सोच कर ही रोमांचित हो जाती।

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शोर हुआ बारात आ गई। उसकी सहेलियों उसे छोड़ दुल्हे को देखने भागीं।बारात के सत्कार के बाद स्टेज पर दुल्हा-दुल्हन बैठ गये। अभी वरमाला ले दोनों खड़े ही थे कि  मिताली ने देखा उसके पापा से रोहन के पापा कुछ कह रहे हैं और उसके पापा हाथ जोड़ परेशान से उनसे कुछ कह रहे हैं। उसने धीरे से रोहन को उधर देखने का इशारा किया। रोहन भी कुछ समझ पाता कि उसके पापा स्टेज पर आये और बोले रोहन बेटा जब तक मैं नहीं कहूं वरमाला नहीं डलेगी।

पर क्यूं पापा ऐसा क्या हो गया जो आप ये कह रहे हो।

कुछ नहीं बेटा वो मेरे और समधी जी के बीच की बात है जब तक वह सुलझ नहीं जाती तुम वरमाला मत डालना।

पर पापा मैं भी जानना चाहता हूं ऐसी कौनसी बात है जो सुलझ नहीं रही और नौबत यहां तक आ गई। बतायें मुझे शायद मैं कोई रास्ता निकाल सकूं।

तू चुप कर में सब कर लूंगा।

मिताली भी सब सुन रही थी अब उसे कुछ आशंका हुई। तभी नीचे से कुछ जोर -जोर से  बोलने की आवाज़ आई इन्हें लिटाओ आराम से। अरे कोई पानी लाओ।

मिताली ने अपने पापा को इस हालत में देखा तो वह वरमाला वहीं रख दौड़ पड़ी।उसे ऐसे अचानक भागते देख रोहन भी उसके पीछे चल दिया। वहां जाकर देखा तो सुधीर जी को एंजाइना दर्द हो रहा था। किसी ने डाक्टर को बुला लिया था। स्थिति अब नियंत्रण में थी। मिताली और रोहन दोनों ही नहीं समझ पा रहे थे कि माजरा क्या है।

मिताली पापा बात क्या है आप मुझे बता क्यों नहीं रहे। मैं आपकी हालत देख कर बार-बार पूछ रही थी कोई गड़बड़ है अब तो बतायें।

उसके पापा फूट-फूटकर रोने लगे।तब रोहन ने आगे बढ़कर उन्हें ढांढस बंधाया और बोला पापा मैं आपका बेटा हूं आप अपनी परेशानी हमें बताएं।आप बतायेंगे नहीं तो हल कैसे निकलेगा।

तब वे रोते हुए बोले बेटा मैं तुम्हें देने को पंद्रह बीस लाख की कार कहां से लाऊं। मेरा सुख-चैन, घर सब चला गया।जो कहा गया मैंने सब किया पर अब इस आखिरी क्षण खडे़ -खडे मैं कार का इंतजाम कैसे करूं न करने पर शादी रूक जाएगी। बारात लौटती देखने से तो अच्छा है मैं मर जाऊं और वे फिर फूट-फूटकर रोने लगे।

पर पापा आपसे कार किसने मांगी मुझे तो कुछ नहीं चाहिए। ये आप क्या कह रहे हैं सुख -चैन, घर क्या हुआ थोड़ा विस्तार से बतायेंगे।

तब तक रमन जी भी वहां आ चुके थे।अब सवालिया नजरें रोहन और मिताली की रमन जी की ओर थीं।

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रोहन बोला पापा ये कार की बात कहां से आई। क्या आप कार की मांग कर रहे हैं इसलिए मुझे वरमाला डालने को मना किया है।

हां बेटा वो समधी जी की ओर से  ही प्रस्ताव था वह बेटे से आंख चुराते बोले।

पापा आप झूठ बोल रहें हैं पापा जी की स्थिति ऐसी नहीं है कि वे कार की बात करते, ये आपके द्वारा ही दबाव बनाया गया है।आप मुझे खुलकर बतायेंगे कि पूरी बात क्या है।वे इतने परेशान हाल क्यों हैं।जब किसी तरह की लेन-देन की बात नहीं हुई थी फिर वे इतने परेशान क्यों हैं।

मेरी तरफ़ से तो कोई बात नहीं है रमन जी बोले।

पापा जी आप मुझे अपना बेटा समझ पूरी बात बतायें। उनके मुंह से आवाज़ नहीं निकल रही थी। तभी गिताली वहां  मम्मी के साथ आई। 

रोहन,गिताली  तू बता सच क्या है।

तब गिताली ने पूरी बात बताई।घर के गिरवी रखने की बात भी बताई ।

यह सुन कर मिताली आक्रोश  से भर उठी और बोली पापा मैं आपको परेशान देख तब भी आपसे पूछा था पर अपने कुछ नहीं बताया। क्यों पापा इतना पराया समझा मुझे।

नहीं बेटा मैं तुम्हारी खुशी के लिए ही यह सब करता गया। सोचा मेरी बेटी की खुशी उसका प्यार उसे मिल जाए।

पर पापा क्या आपने मुझे इतना स्वार्थी समझ लिया कि मैं अपनी खुशी के लिए आप लोगों की खुशी बर्बाद कर, आपको कंगाल बना,आपके सिर से छत छीनकर 

मेरी बहन के अरमानों को कुचला कर इतनी लाशों के ढेर पर अपना आशियाना सजाऊंगी। अगर आपने पहले बता दिया होता तो बात आगे बढ़ने ही नहीं देती। इतनी मुझे अपनी खुशी प्यारी नहीं है खैर मैं अब इस शादी से इंकार करती हूं। अंकल आप बारात लौटा ले जाना चाहते हैं न लौटा ले जाईए।अब यहां कोई शादी नहीं होंगी।जाईए आप अपने बेटे को ले जाईए।

तभी रोहन बोला मिताली होश में आओ तुम ये क्या बोल रही हो किसने कहा कि शादी नहीं होगी। पापा अपनी बारात ले जा सकते हैं। उन्होंने तो शादी के बाजार में मेरी बोली लगा दी मैं बिक गया और अब यहीं रहूंगा। पापा आपने ये क्या किया। रिश्ते बनते हैं एक दूसरे का साथ देने के लिए,

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सुख दुख में सहयोग करने के लिए पर आपने तो जौंक की तरह इन लोगों का खून चूस लिया। आपको कितने पैसे चाहिए थै मुझ से कहते मैं इतना कमा रहा हूं और अब मिताली भी आ रही थी वह तो अपने आप में ही दहेज है जिन्दगी भर कमा कर देगी फिर क्या जरूरत थी उसके मम्मी -पापा को परेशान करने की।

जितना पैसा आपने मेरी पढाई पर खर्च किया है उतना ही उसकी पढाई  पर उसके पापा ने।मेरे बराबर कमाती है अब दहेज किस बात का।वह तो हर महीने आपको दहेज देती। पापा सोचो आपके भी बेटी है भगवान न करे यदि किसी ने आपके साथ यही सब किया तो।उस ऊपरवाले से डरते जिसकी लाठी में आवाज नहीं होती

किन्तु मार जरूर पड़ती है।आज अगर पापा जी को कुछ हो जाता तो मैं मिताली को क्या मुंह दिखाता। मैं तो सुनकर भी हैरान हूं कि आपने दहेज मांगा वो भी अपरोक्ष तरीकों से और मम्मी आपने भी पापा को न रोक कर उनका साथ दिया।हो क्या गया था आप दोनों को।

अच्छा हुआ अंकल आप लोगों का असली चेहरा समय रहते सामने आ गया नहीं तो पता नहीं हम लोगों को और क्या -क्या झेलना पड़ता मिताली बोली।

मिताली मैं तुमसे तुम्हारे परिवार से माफी मांगता हूं और चाहता हूं पापा के किये की सजा तुम अपने आप को और मुझे मत दो। 

पापा आज तक जो आपने इनसे लिया है सब लौटायेंगे। पापा जी आप चिंता ना करें घर भी छुड़वा लेंगे आप हंसी खुशी हमारी शादी करें यह मेरा आखिरी फैसला है। मिताली हमारी कोई ग़लती नहीं है तुम कृपया मेरे फैसले में मेरा साथ दो।

पापा आप बिना दहेज शादी करना चाहते हैं तो रूकें  अन्यथा आप जा सकते हैं। मैं आपसे ऐसे बोलना नहीं चाहता था पर अपने मेरा सिर शर्म से झुका दिया ।अब मेरे दिल में आपके प्रति सम्मान नहीं रह गया। आपने अपने बेटे को इतना नकारा समझ लिया कि वह अपनी सुख-सुविधाएं मांग कर जुटायेगा।

पापा यह शादी तो होगी यह मेरा आखिरी फैसला है यदि आप सहमत हैं तो खुशी -खुशी अपना आशीर्वाद दीजिए और यदि सहमत नहीं हैं तो आज से मेरे और आपके रास्ते अलग अलग हैं।

शादी हंसी खुशी सम्पन्न हुई।बेमन से ही शादी में मम्मी-पापा ने आशीर्वाद बेटे बहू को दे प्यार से उन्हें गले लगाया।

रोहन दो दिन बाद ही मिताली को लेकर 

बैंगलोर चला गया ताकि अनावश्यक उसे ताने उलहाने न सुनना पड़ें। फिर दोनों ने पैसों का इंतजाम घर भी छुड़वा लिया और एक बेटी के बाप होने की सजा से सुधीर जी को मुक्त करा दिया।

शिव कुमारी शुक्ला 

28-11-24

विषय **आखिरी फैसला

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