Moral stories in hindi :“ मम्मी पापा की पच्चीसवीं सालगिरह आ रही है.. क्यों ना हम सब कुछ वैसे ही करवाए जैसा सबकी शादियों में होता है… हमारे मम्मी पापा की शादी की एक भी तस्वीर हमने नहीं देखी.. और तो और क्यों ना इस बार हम लोग नाना नानी से जाकर बात करें और उनकी नाराज़गी दूर करने की कोशिश करें?” नव्या ने अपने दोनों भाइयों बड़े भाई नवल और छोटे भाई नकुल से कहा
“ दीदी आइडिया तो अच्छा है पर तुम्हें लगता है मम्मी इसके लिए तैयार होगी हमें इतना तो पता है नाना नानी मम्मी पापा से बहुत नाराज़ है तो क्या वो इसमें शामिल होंगे ?” नकुल ने पूछा
“ हम पहले नाना नानी से मिलकर आते हैं .. वो अगर अपने आने की रज़ामंदी दे देंगे तो मैं किसी तरह मम्मी को मना ही लूँगी ।” नव्या ने कहा
“ चलो फिर ठीक है तुम लोग लग जाओ काम पर मैं ऑफिस जा रहा हूँ, नई नई नौकरी लगी है काम भी ज़रूरी है।” कहते हुए नवल निकल गया
नव्या ने जाकर अपने नाना नानी से बात की तो वो नव्या और नकुल को देख रोने लगे…बच्चे भी कभी अपने नाना नानी के घर नहीं गए थे….पहली बार ही मिल रहे थे और स्वाभाविक था ये मिलन ख़ुशी और दुख दोनों लेकर आया था ।
नव्या ने ज्यों ही अपने मम्मी पापा की शादी की बात की वो हर्षातिरेक हो बोले,” बच्चों ये हो पाएगा तो हम भी अपनी बेटी को आशीर्वाद दे पाएँगे… कन्यादान का पुण्य कमा पाएँगे… इकलौती बेटी की शादी के जाने कितने अरमान हमने सजा रखे थे पर सब पर ….।” नव्या के नाना कहना चाह रहे थे पर उसकी नानी ने उनका हाथ पकड़कर आगे कुछ कहने से रोक दिया
नव्या और नकुल ने अपने मम्मी पापा की शादी की सालगिरह धूमधाम से मनाने की पूरी प्लानिंग कर ली और नवल को सब कुछ बता दिया साथ ही साथ अपने पापा को भी इसमें शामिल कर लिया ।
सालगिरह वाले दिन नव्या अपनी मम्मी को दुल्हन की तरह तैयार कर मंडप में ले जाने आई तो रत्ना जी संकुचा रही थी।
“चलो माँ सब लोग आ गए हैं….. बस सब तुम्हारे आने का इंतज़ार कर रहे हैं उसके बाद ही सारी रस्में शुरू होगी ।”नव्या ने माँ से कहा
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“ पर बेटा तू ये सब क्या करवा रही है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा…. तेरी शादी की उम्र हो रही और ऐसे में मैं…।” रत्ना जी कहते कहते चुप हो गई
“ कोई कुछ नहीं कहेगा मैं हर कदम तुम्हारे साथ हूँ अब मंडप की ओर चलो…हम कोई ग़लत काम नहीं कर रहे जो डर रही हो…!” वीरेन जी रत्ना जी का हाथ थामे मंडप की ओर बढ़ने लगे
“ एक बार और सोच लीजिए… ये कोई उम्र है शादी करने की…. समाज क्या कहेगा….आप लोग ये सब सोच ही नहीं रहे हो…।” रत्ना जी परेशान सी वही जड़ हो गई
“ अरे आओ ना माँ क्या तुम भी नई दुल्हन की तरह शरमा रही हो….।” तभी नवल और नकुल भी वहाँ गए
“ ये तुम्हारी माँ भी ना पता नहीं क्या सोच रही है….लगता है ज़बरदस्ती मंडप तक ले जाना पड़ेगा ।” कहते हुए वीरेन जी रत्ना जी की ओर ऐसे लपके मानो वो रत्ना जी को गोद में उठा कर ही ले जाएँगे ये देखते रत्ना जी घबराते हुए बोली,“अजी कुछ तो शरम कीजिए तीन जवान बच्चे है … उपर से ये लहंगा पहना दिया सबने शरम नहीं आएगी क्या?” रत्ना जी लजाते सकुचाते बोली
“ माँ देरी मत करो मुहूर्त निकल जाएगा फिर जो मैंने इतनी मुश्किल से तुम्हें इस लहंगे में फिट कर मेकअप किया है सब व्यर्थ चला जाएगा ।” नव्या रत्ना जी का हाथ पकड़कर मंडप की ओर बढ़ने लगी
रत्ना जी मंडप में जाकर बैठ गई….. वीरेन जी भी आ गए ..
पंडित जी के मंत्र शुरू हो गए थे…. कन्यादान की रस्म अदायगी करने जब रत्ना जी के माता-पिता सामने आए तो रत्ना जी की आँखें आश्चर्य और ख़ुशी दोनों से भर गई…दूल्हा दुल्हन ने फेरे लिए… सिन्दूरदान सम्पन्न होने के बाद दोनों बड़ों का आशीर्वाद लेने गए…
ह्वीलचेयर पर बैठी एक महिला के पास जाकर नव्या ने कहा,“ लो नानी हो गए अब आपके अरमान पूरे …कर लिए ना आपने अपनी बेटी का कन्यादान…अब तो ख़ुश हो ना…।”
साठ साल की महिला के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई और आँखों में आँसू बह आए…
“ माँ इतने साल हो गए आज जाकर तुमने मुझे माफ कर अपना आशीर्वाद दिया ।” रत्ना जी ने कहा
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“ बेटा तुम दोनों मुझे माफ़ कर दो…. इतने साल की नाराज़गी को सीने में दबाकर ना जाने कितनी बार रोई हूँ देख तेरे पिताजी भी तुम दोनों को आशीष देने को बेताब है जाओ उनसे भी आशीर्वाद ले लो… पच्चीस साल से हम यही सोचते रहे रत्ना ने हमारी बात क्यों नहीं मानी… हमने जहाँ चाहा वहाँ शादी क्यों नहीं की ….पता बेटा हमारी एक तू ही तो बेटी …. ना जाने कितने अरमान थे तेरी शादी को लेकर पर तुमने अपनी मर्ज़ी से सब कर लिया ……
मानती हूँ हमें तेरी ख़ुशी पहले देखनी चाहिए थी पर समाज के सामने विजातीय विवाह हम कैसे स्वीकार कर सकते थे इस अकड़ में बेटी का कन्यादान करने का अरमान धरे का धरा ही रह गया था और तेरी शादी विदाई सब से तुझे वंचित कर दिया…पर जब नवासों ने तेरी पच्चीसवीं सालगिरह के लिए हमें न्योता देने पहली बार हमारे दरवाज़े पर आए हम दोनों खुद को रोक ना पाए बेटा…. ऐसा लगा हमने ना बेटी की ख़ुशी देखी ….
ना अपने नवासे और नातिन को कभी देखने आए …..जब उन्होंने नाना नानी कह संबोधित किया बेटा हम रो पड़े…. बच्चों ने बहुत प्यार दिया रत्ना….जरा सा भी एहसास ना होने दिया हम दोनों तुमसे अबतक नाराज़ बैठे थे…. बस ऐसे ही तेरे पापा के मुँह से निकल गया…. हमने अपनी बेटी की सारी ख़ुशियाँ छिन ली….
एक ही बेटी थी धूमधाम से ब्याह करते…. कन्यादान करते शादी देखते और देख मेरे नवासों ने हमारी बात मान ली इस उम्र में तुम दोनों की फिर से शादी करवा दिया…. समाज का भी ना सोचा मंदिर वाली शादी में कहाँ सब रस्में हुई होगी ना रे रत्ना….मुझे माफ कर दे बिटिया…. हमारी वजह से तुमने भी तो अपनी शादी कितने सादे तरीक़े से की।”रत्ना जी की माँ ने कहा
“ माँ सच कह रही हो इस उम्र में ये सब बहुत अजीब लग रहा था पर बच्चों के साथ वीरेन ने भी कहा समाज का सोच कर अपने माता-पिता का दिल नहीं दुखा सकते… माना उस वक़्त शादी हमने मर्ज़ी से की पर अब जब आप लोग आशीर्वाद देने को तैयार है तो हम भी दुल्हन दुल्हन बनने को तैयार हो गए।” कह रत्ना जी ने अपने बेटे को नाना जी को लेकर आने कहा जो एक कोने में अपने आँसू छिपाने की कोशिश कर रहे थे ।
“ बाबूजी हमें माफ़ कर दीजिए…. देखिए आपकी बेटी को मैंने वैसे ही रखा जैसे आप रखना चाहते थे….।” वीरेन जी कहते हुए उनके चरणों में झुक गए
“ नहीं जंवाई बाबू…. आपने मेरी रत्ना को हमसे ज़्यादा प्यार दिया तभी तो वो हमें छोड़कर आपके साथ रहने को तैयार थी वैसे जो होता अच्छे के लिए होता है हम जिस लड़के से इसकी शादी करना चाहते थे वो अय्याशी में डूबा रहता है कोई कामधाम नहीं करता है आपने हमारी बिटिया को रानी की तरह रखा… हमें लोगों से आप सब के बारे में पता चलता रहता था…
आज अपनी आँखों से शादी भी देख लिया और कन्यादान का सुख भी ले लिया यही तो अरमान होते हैं माता-पिता के कि बच्चों को अच्छा जीवनसाथी मिले और बेटी के माता-पिता होने के नाते उसका कन्यादान कर पुण्य का भागी बनें… पर हमने खुद को ही इस पुण्य से वंचित कर लिया था पर हमारे नवासों ने ये अरमान भी पूरे कर दिए।”
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वीरेन जी को आशीष देकर वो अपने नवासे और नातिन को गले से लगा लिए जिन्होंने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए अपने माता-पिता का फिर से ब्याह करवा कर सभी रस्मों की अदायगी करवाई जो उनके नाना नानी चाहते थे ।
तभी फ़ोटोग्राफ़र ने कहा आइए एक फ़ैमिली फ़ोटो ले लेते हैं…. रत्ना जी की शादी की पहली तस्वीर ली गई वो भी अपने माता-पिता के साथ साथ जिसमें उनके बच्चे भी शामिल हुए ।
कभी कभी माता-पिता बच्चों की पसंद पर इतने नाराज़ हो जाते है कि सब रिश्ते नाते तोड़ देते हैं पर ये भी सच है कि अपने बच्चों के लिए ममता कोई कैसे छोड़ सकता है…. रत्ना जी के माता-पिता भी उनमें से ही एक थे पर जब उन्हें एहसास हुआ की बेटी की पसंद उनकी पसंद से बेहतर निकली तो खुश भी हुए पर कभी आगे बढ़ कर माफ़ नहीं कर पा रहे थे और रत्ना जी भी डरती रहती थी कि माता-पिता शायद कभी माफ़ ना कर पाए और अक्सर अकेले रोती रहती थी पर कभी सामने से जाकर वो माफ़ी माँगने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रही थी…पर इस बार बच्चों ने सारे गिले शिकवे दूर कर उन्हें उनके परिवार से मिलवा दिया ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
स्वरचित
#अरमान