मम्मी..! मुझे यह कप सेट बहुत पसंद आया है… यह मैं ले जाऊंगी भाभी से पूछ लो, उन्हें कोई दिक्कत तो नहीं..? राधा ने अपनी मां शारदा जी से कहा
शारदा जी: उससे क्या पूछना..? इस घर के फैसले मैं ही करती हूं… मेरा फैसला ही आखिरी होता है… तू ले जा ना… राधा की भाभी मनीषा भी वही खड़ी थी… वह चाहती तो थी की कुछ कहे क्योंकि यह कप सेट उसे उसकी सबसे खास सहेली ने उसकी शादी पर दिया था… पर शारदा जी की ऐसी बातें सुनकर वह आगे कुछ नहीं कह पाई… मनीषा के शादी को अभी 6 महीने ही हुए थे और तब से राधा एक-एक करके उसकी ज्यादातर चीजों को ले जा चुकी थी… उसे बुरा तो तब लगता जब उसकी चीज बिना उससे पूछे ही ले जाती थी…
यह बात जब मनीषा अपने पति रोहन से कहती तो वह भी कहता की बेटियों को मायके से निराश नहीं भेजते.. इसलिए मम्मी उसे दे देती है… छोड़ो ना क्या इन छोटी-छोटी चीजों के लिए सोचती हो..? एक दिन की बात है मनीषा के भैया का अलग शहर में तबादला हो गया था, तो वह जाने से पहले मनीषा से मिलने आए, उसने सोचा मनीषा को वह स्कूटी शादी से पहले चलाती थी, उसे देता जाए, क्योंकि उसके जाने के बाद वह स्कूटी यही बेकार पड़ी रहेगी और यहां मनीषा को इधर-उधर जाने के काफी काम आएगी… तो जब मनीषा के भैया स्कूटी लेकर आए और मनीषा से कहने लगे, इसे अब तू ही रख.. मनीषा का चेहरा उतर गया जिसे देख मनीषा के भैया अरुण उससे पूछता हैं, क्या हुआ मनीषा..? मैं तो सोचा तू मारे खुशी के उछल पड़ेगी, क्योंकि मुझे पता है तुझे इस स्कूटी से कितना प्यार है…
मनीषा: भैया यहां कोई भी सामान जो मेरी होती है उस पर मेरी ननद राधा आकर हक जमा जाती है.. अभी कुछ दिन पहले ही वह मम्मी जी से कह रही थी कि उसे एक स्कूटी की सख्त जरूरत है क्योंकि उसके पति ज्यादातर काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं.. तो उसे इधर-उधर पैदल ही जाना पड़ता है… अभी जब उसे पता चलेगा कि मेरे पास स्कूटी आ गई है तो वह इसे भी ले जाएगी… आप इसे ले जाओ… भले ही वह वहां पड़ी रहे, कम से कम मेरे काम तो आएगी..
अरुण: क्या वह ऐसा करती है और तुम्हारी सास..? वह कुछ नहीं कहती..?
मनीषा: वह तो और उसका साथ देती है… कहती है जो मेरा है सब उसका है और जो उसका है सब मेरा… हमें मिलजुल कर रहना चाहिए.. पर आज तक राधा ने कुछ दिया नहीं मुझे, बस लिया ही है
अरुण: तेरी सास की बात बिल्कुल सही है और तुझे बस उसी पर अमल करना है.. फिर तेरी समस्या का समाधान अपने आप ही हो जाएगा… मैं तो हैरान हूं तुझे अब तक यह समझ क्यों नहीं आया..?
मनीषा: क्या कह रहे हो..? जरा साफ-साफ बताओ ना
अरुण: अच्छा सुन तेरी सास कहती है जो तेरा है वह उसका और जो उसका है वह तेरा, तो कभी-कभी उसकी चीजों पर भी हक जता लिया कर, अपनी चीज आगे बढ़कर दे उसे और उसकी भी आगे बढ़कर ले, सबका फैसला बदल जाएगा, बस इस दौरान हो सकता है तुझे अपनी और कई चीजों की कुर्बानी देनी पड़ जाए..
मनीषा मुस्कुराने लगी क्योंकि उसे अपने भैया की बात समझ आ गई और उसने तय कर लिया कि कैसे घर में चल रहे एक तरफे फैसले पर वह प्रतिबंध लगाएगी..
एक दिन मनीषा शारदा जिसे कहती है, मम्मी जी भैया का अलग शहर में तबादला हो गया है तो उन्होंने स्कूटी मुझे दे दी है… पर मैं सोच रही हूं यह तो मुझे हर जगह ले ही जाते हैं, तो मुझे स्कूटी की क्या जरूरत..? विनोद जी बाहर रहते हैं तो राधा के यह बड़े काम आएगी, तो उसे ही दे दूं
शारदा जी: अरे वाह यह तो बहुत ही अच्छे विचार है.. मैं उसे अभी बताती हूं वह खुशी से नाचने लगेगी…
मनीषा: मम्मी जी बता दीजिए और उन्हें बोलना के अपनी नई वाली काली साड़ी ले आए.. वह क्या है ना कल मेरी सहेली की शादी में वही पहन कर जाने की सोच रही हूं… मेरे पास जो भी साड़ियां है वह तो पहनी हुई है कई बार.. तो कुछ अलग पहनने का मन हो रहा है
शारदा जी: यह क्या कह रही हो बहू..? वह तो बिल्कुल नई है राधा ने एक बार भी नहीं पहनी कुछ सोच कर तो मांगा कर…
मनीषा: आप बेकार में ही इतना सोच रही हो मम्मी जी… राधा ने भी तो मेरी नई साड़ी पहनी है कई बार, वह मना नहीं करेगी वैसे भी जो मेरा है वह उसका और जो उसका है वह मेरा.. उसके बाद शारदा जी राधा को सब कुछ बताती है जिस पर राधा आकर मनीषा से कहती है.. भाभी यह लो साड़ी, जो आपने मंगाई थी… कहां है स्कूटी..?
शारदा जी उसे किनारे ले जाकर कहती है.. अरे यह तुझे स्कूटी यूं ही दे देती… इसके लिए तुझे अपनी नई साड़ी देने की क्या जरूरत थी..?
राधा: मम्मी भाभी की यह चाल आपको समझ नहीं आई ना..? यह सोच रही है कि उनके सामान मांगने से मैं घबराकर इनसे सामान लेना बंद कर दूंगी… पर यह मुझे नहीं जानती.. देखो मैं भी इन्हें कैसे घूमाती हूं..? आखिर वह बहू है इस घर की और मैं बेटी फर्क तो रहेगा ही..
जब दोनों मां बेटी यह बातें कर रही थी पीछे से मनीषा आकर कहती है… सही कहा आपने राधा… फर्क तो रहेगा ही.. पर याद रखना जैसा बर्ताव अब अभी करोगी भविष्य में वैसा ही मिलेगा… मूर्ख थी मैं जो आपको सबक सिखाने चली थी… पर कुछ लोगों को ना तो कभी अकल आती है और ना ही सुधरने की कोई चाह ही होती है… इसलिए आज एक फैसला मैं भी करती हूं.. आज के बाद जो मेरा है वह सिर्फ मेरा होगा.. उसे किसी को लेने से पहले मेरी मंजूरी लेनी होगी… मम्मी जी बेशक घर के फैसले आप लेती होगी… पर मेरी चीजों के फैसले सिर्फ मेरे होंगे.. यह कहकर वह वहां से चली जाती है और मां बेटी की बोलती बंद हो जाती है…
दोस्तों… अक्सर हर घर में, हमें यह देखने को मिलता है की बेटी और बहू में भेदभाव होते हैं… जहां बहु सब कुछ समझते हुए भी कुछ कह नहीं पाती, क्योंकि वह रिश्ते खराब नहीं करना चाहती.. पर कभी-कभी उसे भी अपना रुप बदलना पड़ता है, और उसके इस बदलते रूप की जिम्मेदार सामने वाले होते हैं.. अगर जो आज मनीषा ने यह सख्त फैसला ना लिया होता तो शायद उम्र भर उसके साथ यह भेदभाव चलता ही रहता…
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
#फैसला