आँखों में आंसू भर कर अपने घर को जाने के लिए गाड़ी में बैठ चुकी थी निर्जला , उस घर जहाँ की वो मेहमान नहीं बल्कि मालकिन थी। जैसे जैसे गाड़ी आगे बढ़ रही थी , निर्जला से पीछे छूटता जा रहा था वो घर जहाँ अब वो सिर्फ मेहमान समझी जाती थी और नज़दीक आते जा रहा था उसका अपना घर जहां वो मालकिन थी।
कल तक निर्जला अपने उस घर में जाने के लिए कितना उत्साहित थी , कितना खुश थी , लेकिन आज उसे उसी के घर में मेहमान कह दिया गया.
मेहमान ??? उस घर की मेहमान जहाँ उसने जन्म लिया , जहाँ वो चलना बोलना खेलना सीखी , जहाँ उसने अपना बचपन गुज़ारा , जहां वो पढ़ी लिखी, बड़ी हुई , अब उसी घर की मेहमान ???
शादी होते ही इतनी पराई हो गई वो कि अब उसी घर की मेहमान बन कर रह गई।
गाड़ी अपनी गति से भागी जा रही थी, अलग अलग मंज़र और नज़ारे गुज़रते जा रहे थे और निर्जला के नज़रों के सामने एक एक कर करके कल से अब तक की हर बात हर मंज़र सामने आता जा रहा था।
अभी कल ही की तो बात है , निर्जला ने चहकते हुए अपने मायके जाने की सारी पैकिंग कितनी ख़ुशी ख़ुशी की थी , शादी के बाद पहली बार वो पुरे एक महीने के लिए मायके जा रही थी।
रवि, आज मैं बहुत खुश हूँ , हमारी शादी को 6 महीने हो गए लेकिन आज पहली बार मैं पुरे एक महीने के लिए मायके जा रही हूँ , मैं बहुत ख़ुश हूँ रवि , मैं बहुत ख़ुश हूँ , अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए निर्जला ने अपने पति रवि से कहा।
मैं भी तुम्हारे लिए ख़ुश हूँ निर्जला , आख़िर तुम्हें भी तो अपने उस घर की याद आती होगी जहाँ तुम ने इतने साल गुज़ारे। निर्जला के हाथों को थामते हुए रवि ने उसे प्यार से कहा।
हाँ, रवि उस घर से मेरा जीवन जुड़ा है , बहुत यादें हैं बहुत बातें हैं , जो उस घर से जुड़ी है, और मेरा प्यारा कमरा कब से मेरा इंतेज़ार कर रहा है, तुम्हे पता है रवि मेरा कमरा मैंने बहुत प्यार से सजाया हुआ था, कल मैं अपने कमरे को फिर से देखूंगी, उसमें रहूँगी,निर्जला भावुक होने लगी तो रवि ने उसे संभालते हुए कहा कि मैडम वहां जाकर हमें न भूल जाना, हमें और इस घर को भी आपकी उतनी ही ज़रूरत है जितनी आपके मायके के घर को।
आप तो मेरी ज़िंदगी है रवि, आपको कैसे भूल सकती हूँ , अब मैं एक महीने के लिए जा रही हूँ तो आपके खाने पीने और घर की व्यवस्था के लिए माला से कह दिया है वो अब से दो वक़्त आकर आपका खाना भी बना दिया करेगी और घर के बाक़ी काम भी करके जाएगी।
वो तो ठीक है लेकिन तुम्हारी बहुत याद आएगी , रवि निर्जला को अपने क़रीब करते हुए बोला।
हटिये , मुझे पैकिंग करने दीजिये ,। अगले दिन सुबह की गाड़ी थी लेकिन निर्जला की आँखों से नींद कोसों दूर थी , मायके जाने की ख़ुशी में नींद भी नहीं आई।
निर्जला को रवि ने गाड़ी में बिठा दिया था , रवि ऑफिस के काम की वजह से साथ नहीं जा सकता था , निर्जला की सीट रिज़र्व थी तो कोई दिक्कत नहीं हुई। रास्ते भर निर्जला सपने संजोती रही कि मायके जाकर वो ये करेगी वो करेगी। सफ़र थोड़ा ही था लेकिन निर्जला को ये सफ़र बहुत लम्बा लग रहा था ,वो जल्द से जल्द मायके पहुंचना चाहती थी। ख़ैर किसी तरह सफ़र पूरा हुआ , निर्जला स्टेशन पर उतरी तो सामने ही उसका बड़ा भाई नज़र आ गया जो उसे लेने आया था।
निर्जला ने भाई को देखा तो उसकी आँखों में चमक आ गई , उसने भाई का हालचाल पूछा और उसके साथ अपने घर की तरफ़ रवाना हो गई। सारे रस्ते निर्जला अपने शहर की गलियों कूचों बाज़ारों को हसरत भरी निगाहों से निहारती रही , इन्हीं सबके बीच तो वो पली बढ़ी है।
हॉर्न की आवाज़ से निर्जला की तन्द्रा भंग हुई, उसने चौंक कर देखा तो भाई कह रहा था , निर्जला उतरो , घर आ गया मैं सामान लेकर आता हूँ तुम अंदर चलो।
अभी भाई बोल ही रहा था कि निर्जला हवा के झौंके की तरह अपने घर के अंदर पहुंच चुकी थी।
माँ, पापा , भाभी , देखिये मैं आ गई , निर्जला ने सबको आवाज़ लगाई।
अरे आ गई बेटी, निर्जला के माँ और पिता ने आकर निर्जला को आशीर्वाद देते हुए कहा ,
अरे निर्जला , आ गई बैठो, मैं चाय नाश्ते का प्रबंध करती हूँ , निर्जला की भाभी बोली।
जी, भाभी जल्दी कुछ खाने को लाओ , सच में बहुत भूख लगी है।
बुआ आ गई आप, हम कब से आपका इंतज़ार कर रहे थे। निर्जला के दोनों भतीजे आकर निर्जला के गले लग गए। निर्जला ने दोनों को प्यार किया और उनके लिए लाये खिलोने और कपड़े उन्हें दिए , साथ ही माँ बाबा भाई और भाभी के लिए लाये तोहफ़े भी उन्हें ख़ुशी ख़ुशी देने लगी।
बेटी इस सबकी क्या ज़रूरत थी , माँ बोली।
माँ ये घर है मेरा , और इस घर के लोग मेरे अपने हैं तो अपनों के लिए कुछ करने या लेने से पहले कुछ देखा सोचा नहीं जाता , निर्जला माँ को शाल उढ़ाते हुए बोली।
चाय नाश्ता करते करते निर्जला ने माँ पिता भाई भाभी से हज़ारों बातें आकर डाली। उसकी ख़ुशी देखते ही बनती थी।
माँ इस बार एक दिन के लिए नहीं पुरे एक महीने के लिए आई हूँ , सारे अरमान पूरे करुँगी।
हाँ हाँ बिलकुल करना।
सोमेश निर्जला का सामान कमरे में रख दो , सफ़र में थक गई होगी , थोड़ा आराम कर ले बेटी, बाक़ी बातें शाम में करते हैं।
हां माँ , थोड़ा आराम कर लेती हूँ , फिर तो एक महीना पूरा हुड़दंग मचानी है घर में , पहले की तरह।
ये कहते हुए निर्जला अपने कमरे की तरफ़ जाने लगी तो माँ ने निर्जला को आवाज़ देते हुए कहा कि बेटी अभी फिलहाल तू भाभी के कमरे में आराम कर ले , तेरे कमरे में कुछ सामान रखा है।
ठीक है माँ, निर्जला भाभी के कमरे में जाकर सो गई।
शाम को निर्जला सोकर उठकर फ्रेश होकर नीचे आई तो देखा भाभी रात के खाने की तैयारी कर रही है और माँ बरामदे में बैठी है ,
माँ , कहते हुए निर्जला माँ के गले में झूम गई
माँ और पापा से बात करते करते कब रात के खाने का टाइम हो गया, पता ही नहीं चला।
रात का खाना सबने बहुत ही अच्छे माहौल में खाया , खाने के बाद सबने आइसक्रीम खाई , इतने में माँ ने सबको चाय बनाकर दी और इस बीच निर्जला सबसे लगातार बातें करती रही।
चलो, सब अब बहुत रात हो गई है , सोने का टाइम हो गया। सुबह सोमेश् को दफ़्तर और मुझे दुकान जाना है और बच्चों चलो तुम्हें भी सुबह स्कूल जाना है , निर्जला के पिता जी ने कहा तो सब उनकी बात मानकर अपने अपने कमरे की तरफ़ चल दिये।
निर्जला भी अपने उसी कमरे की तरफ़ जाने लगी जो शादी से पहले उसका कमरा था, जिसे उसने पापा से ज़िद करके अपनी मन मर्ज़ी मुताबिक सजवाया था और घर का सबसे बड़ा कमरा उसने ही लिया था। पापा ने भी ख़ुशी ख़ुशी इस कमरे को बेटी के मुताबिक़ बना दिया था।
शादी की विदाई के वक़्त निर्जला सबसे ज़्यादा अपने इस कमरे को लेकर ही रोई थी, उस वक़्त सबने उसे समझाया था कि वो उस कमरे से जा रही है लेकिन उसका कमरा यही रहेगा और जब भी वो आएगी , अपने कमरे को ऐसा ही पायेगी।
निर्जला यही सब सोचकर अपने कमरे की तरफ जा ही रही थी कि माँ बोली , निर्जला तुम कहाँ जा रही हो ???
अपने कमरे में माँ , निर्जला ने कहा।
बेटा तेरी तो शादी हो गई थी तो इसलिए तेरा यहां आना तो कभी कभार ही होगा इसलिए तेरा वो कमरा अब बच्चों का कमरा बना दिया गया है , तू नीचे गेस्ट रूम वाले कमरे में रहेगी , वहां तेरी सुविधा की सारी चीज़ें रखवा दी हैं।
ये सुनकर निर्जला हैरान रह गई , ये आप क्या कह रही हो माँ , वो कमरा मेरा है , मैंने उसे कितने अरमानों से सजाया संवारा था , और शादी हो गई तो क्या मेरा कमरा भी मेरे लिए पराया हो गया , निर्जला आँखों में आंसू भर कर बोली।
क्या अब मैं गेस्ट रूम में रहूंगी , इतना पराया कर दिया आपने मुझे।
ऐसी बात नहीं है निर्जला , तुम्हारी शादी हो चुकी है, तुम्हे यहाँ अब अब कभी कभी आना है , बच्चों के लिए कमरे की ज़रूरत थी , वो कमरा सबसे बड़ा कमरा है तो दोनों बच्चों को दे दिया , इसमें बुरा क्या है।
तुम गेस्ट रूम में तो रह सकती हो , भाई और भाभी ने अपने कमरे से बाहर आते हुए कहा।
पापा , आप कुछ बोलते क्यों नहीं, आप ने ही तो मेरे लिए वो सबसे बड़ा कमरा मुझे दिया , उसे मेरे मन मर्ज़ी मुताबिक सजवाया , और आज मेरी शादी क्या हो गई ,मुझसे मेरा कमरा ही छीन लिया गया।
माना कि बच्चों को कमरे की ज़रूरत है लेकिन उन्हें भी तो कोई और कमरा दिया जा सकता था, इस घर में कमरों की कमी तो नहीं , निर्जला अपने पिता की तरफ़ देखते हुए बोली।
बेटा तू बेकार में परेशान हो रही है , ऐसा कुछ नहीं है, पिता ने निर्जला को समझाने की कोशिश की।
निर्जला देख बेटी , लड़की का असली घर उसका ससुराल होता है , अपने ससुराल पर उसका हक़ होता है , वहां की हर चीज़ , कमरों पर उसका अधिकार होता है लेकिन मायका तो पराया होता है।
तू इस घर की बेटी है लेकिन अब शादीशुदा है और अब तेरा अपना घर ससुराल है , इस घर में तो अब तू मेहमान है , माँ ने निर्जला को समझाते हुए कहा।
मेहमान , मैं मेहमान हूँ इसलिए मुझे मेहमानों के कमरे में ठहराया जा रहा है , ठीक है माँ।
इतना कहकर निर्जला मेहमानों वाले कमरे में चली गई , पीछे से सब उसे आवाज़ देते रह गए लेकिन कमरे में जाकर वो कुण्डी लगा चुकी थी।
अगले दिन सुबह सुबह रवि को दरवाज़े पर देखकर सब हैरान रह गए , रवि ने माँ पापा के चरण स्पर्श किये , इससे पहले कोई रवि से कुछ पूछता, निर्जला अपना सामान लेकर बाहर आ गई , उसने रवि को सामान पकड़ाया और माँ पापा के चरण स्पर्श किये , भाई भाभी के गले मिली , बच्चों को प्यार किया और सबसे जाने की इजाज़त मांगी।
ये तू क्या कह रही है निर्जला , तू तो एक महीने के लिए आई थी और एक ही दिन में जा रही है , माँ चिंतित स्वर में बोली।
हाँ , माँ इस घर की बेटी एक महीने के लिए आई थी , लेकिन यहां आकर पता चला कि मैं तो मेहमान हूँ और माँ मेहमान तो एक दो दिन ही अच्छा लगता है न , इसलिए जा रही हूँ और हाँ माँ , इस घर के सुख दुःख में आ जाया करूंगी एक दो दिन के लिए एक मेहमान की हैसियत से , अपने पति के साथ अपने उस घर जा रही हूँ जहाँ की मैं मालकिन हूँ मेहमान नहीं।
रवि बेटा तुम ही समझाओ इसे , रवि के ससुर ने रवि से विनती करते हुए कहा।
पापा निर्जला सही कह रही है , वो यहां मेहमान हो सकती है लेकिन मेरे घर की वो मालकिन है और वो घर अपनी मालकिन का इंतज़ार कर रहा है , मेहमान कितने दिन भी कही रह ले लेकिन अपने घर तो लौटना ही पड़ता है।
माँ , मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है , मैं ही भूल गई थी कि बेटियां तो शादी होते ही पराई हो जाती हैं और ससुराल ही उनका असली घर होता है , मायके में तो वो बस मेहमान होती हैं।
ये कहकर निर्जला ने एक हसरत भरी निगाह से अपने घर और अपने कमरे की तरफ़ देखा और रवि के साथ तेज़ क़दमों से बाहर निकल गई।
रवि ने गाड़ी स्टार्ट की और निर्जला का हाथ थामकर उसे आँखों से तसल्ली दी , निर्जला ने अपने आंसू पोछें और रवि के साथ चल पड़ी अपने घर की तरफ , जिस घर की वो मालकिन हैं मेहमान नहीं।
लेखिका: शनाया अहम
#बेटी अब से ससुराल ही तेरा घर है अब तो तू यहाँ की मेहमान है