Moral stories in hindi : कावेरी को अपने दोनों बेटों पर बड़ा नाज़ था। स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानती रही। चूंकि कोई बेटी नहीं थी तो घर में बेटियों का होना क्या होता है। कावेरी को बिल्कुल भी इस बात एहसास नहीं था।
घर भी साधारण था। उस घर को वह बहुत संभाल कर रखती थी। मज़ाल है कोई सामान उनकी मर्जी के बिना इधर से उधर हो जाए।
यदि कोई साफ किए हुए घर में गीला पांव इधर से उधर करदे तो पूरा घर सिर पर उठा लेती। माँ के कड़े स्वभाव की वज़ह से दोनों बेटे भी अपनी मां को कुछ न कह पाते।
अपने मन के उद्गार व्यक्त न कर पाने से दोनों दबे दबे से रहते।
कावेरी का कड़ा स्वभाव बेटों के मानसिक विकास में अवरोध पैदा करता। लेकिन इस इस बात से किसी को कोई फर्क नहीं था।
एक दिन पड़ोस से मीना उनके घर आई और अपने बेटे के बेटी होने के उपलक्ष्य में बधाई देनेऔर मिठाई का डिब्बा देते हुए कावेरी को कहने लगी।हमारे घर लक्ष्मी आई है।
जैसे ही कावेरी ने बेटी होने की खुशी पर मीना के हाथ में मिठाई का डब्बा देखा तो तुनककर कर बोली, अरे मीना, तुम भी कैसी हो, बेटी होने पर कोई मिठाई खिलाता है भला।
मेरे देखो दो बेटे हैं और उनकी शादी के बाद भी उनके बेटे ही होंगे
पड़ोसी मीना को यह बात एक दम अच्छी नहीं लगी और बहाना बनाते हुए मिठाई का डब्बा देते हुए जाने के लिए खड़ी हो गई। कावेरी के मुहँ से बेटियों की उपेक्षा मीना को बिल्कुल अच्छी नहीं लगी।
समय बितता गया और कावेरी ने अपने बेटे की शादी सुघड़ संस्कारी लड़की के साथ कर दी। बहु के आने के बाद कुछ समय तक तो सब कुछ अच्छा चलता रहा।
लेकिन जैसे ही पता चला बहु प्रेगनेंट है तो अचानक से सास का स्वभाव बदला बदला सा रहने लगा।
हर बात पर रोका टोकी, हर वक्त यह मत करो, वह मत करो, खूब काम करो इत्यादि । तुम्हारे पहला बच्चा लड़का ही होना चाहिए।
मुझे देखो मैंने भी दो बेटों को जन्म दिया है।
बुढ़ापे में बेटों का ही सहारा होता है। बेटियों को तो पराए घर जाना है।
बेटियों को पैदा करके क्या फायदा?
मोना यह सब कुछ चुपचाप सुनती रहती और सोचती की मां को को खुद पर कितना सघमंड है।
बेटियाँ भी तो घर परिवार की रौनक होती है और यह सब मेरे वश में तो नहीं है न मैं भी तो किसी की बेटी हूँ, मां जी भी तो किसी की बेटी है।
फिर बेटियों की इतनी उपेक्षा क्यूँ ।
मीना पढ़ी लिखी और समझ दार थी ।
उसने मन ही मन निश्चय कर लिया थी की मेरी संतान चाहे जो भी हो
मैं उसका लालन पालन बहुत बढ़िया करूंगी।
वह अपनी सास की बातों का कभी भी बुरा नहीं मानती थी और अपने आचार व्यवहार के द्वारा अपने सुखी जीवन की कल्पना करती।
समय बितता गया और नौ महिने उपरांत हुए मीना ने एक स्वस्थ, दृष्ट पुष्ट, बेटी को जन्म दिया। आज मीना और उसके पति पहली बार माता पिता बने थे। बहुत खुश थे कि वह पहली बार माता-पिता बने थे।
लेकिन यह क्या सास कावेरी को काटो तो खून नहीं उनको तो जैसे बेटी के जन्म पर सौंप सूँघ गया था।
जबकि परिवार के सभी लोग बहुत खुश हुए।
सास को तो जैसे मौका मिल गया था अब तो हर वक्त मीना को उल्हाना देना उनकी दिनचर्या में शमिल हो चुका था।
सास के ताने सुन सुनकर मोना बहुत व्यथित रहने लगी।
जिसका उसके स्वास्थ्य पर दिन प्रतिदिन दु प्रभाव होने लगा।
मोना अपनी बेटी के रख रखाव पर पूरा ध्यान देती।
लेकिन सास का बात-बात पर यह कहना “ये तूने क्या पैदा किया है।” उसके अर्न्तमन को पश्चाताप के आंसुओं में भिगो देता।
अब तो मोना को भी लगने लगा कि काश पहली संतान बेटा ही होता तो अच्छा होता।
सास कावेरी हर बात पर बेटा और बेटियों में फर्क रखती।
लेकिन मोना ने मन ही मन निश्चय किया की वह अपनी बेटी की उचित परवरिश करेगी और उसे
काबिल इंसान बनाएगी।
मोना चूंकि पढ़ी लिखी और समझदार थी। तो अब उसने अपनी सास की बातों की परवाह करना छोड़ दिया।
ओर अपनी बेटी के सुनहरे भविष्य को लेकर उसे उच्चशिक्षित किया।
और आज जब वह शहर की जानी मानी वकिल बन गई तो आज मोना गर्व से फूली न समा रही थी।
अब कावेरी की भी बोलती बंद हो गई थी।
मोना ने अपनी सुझबुझ से अपनी सास को अपनी मौन भाषा में यह समझा दिया था कि जिसकी आप उपेक्षा कर रही थी। आज उसी के नाम से परिवार का नाम रौशन हो रहा।
आज कावेरी जी को समझ आ गया था कि उनके दो बेटों के होने के बाद भी उन्होंने कोई भी ऐसा कार्य नहीं किया गया जिससे परिवार का नाम रोशन हो।
आज कावेरी जी के हाथ में मिठाई का डिब्बा था जो कि वह आज अपने हाथों से पड़ोसी मीना को खिलाने जा रही थी।
मोना यह सभी देखकर बहुत खुश थी कि उसकी सास ने बेटा बेटी में तुलना करना छोड़ दिया।
मन ही मन कह रही थी कि मां आपने देख लिया
मैंने “किसे जन्म दिया” हैं।
मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है।
मां बेटा और बेटी ईश्वर प्रदत्त होते हैं।मुझे आज खुशी है कि आप दोनों को उचित सम्मान दे कर अपनी खुशी जाहिर कर रही है।
कावेरी की आंखों से बरबस ही पश्चाताप के आंसू निकल गए।
ऋतु गर्ग, सिलिगुड़ी, पश्चिम बंगाल
स्वरचित मौलिक
#उपेक्षा
(V)
बहुत सुंदर कहानी थी और मैंने इस कहानी मनुष्य को एक सीख की आवश्यकता जरूर जो आजकल का ग्रामीण समाज है।
Thank you so much