बेटा हुआ पराया – शैलबाला रवि : Moral Stories in Hindi

माँ हमारा  बैंगलुरू जाना  कनफर्म हो गया है ओर परसों की फलाइट है।

क्या ? माँ ने खिन्नता से पूछा।

बेटा पहले नही बताया

ओर टकिट बुक करते समय भी  नही बताया ?

बस माँ यूंही काम की व्यस्तता के कारण दिमाग से निकल गया।

ठीक है जाओ हमारा आशिर्वाद है।

अंबिका बेटे के व्यवहार से बेहद आहत हुंइ बात बात में सलाह लेकर चलने वाला बेटा आज इतनी बड़ी बात बताना भूल गया,

सलाह मशविरा तो दूर 

अग्रिम जानकारी देना भी मुनासिब नही समझा।

क्या उसके मन में कोइ संशय था की हम उसे जाने से रोकेंगे,या बहु ने

इस कहानी को भी पढ़ें:

कर्मफल ( टूटता विश्वास) – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi

रोका होगा।हमने कभी किसी बात के लिए उन्हें रोका तो नही ओर वह तो जानता है

की हमने सदैव ही उसकी प्रगति के मार्ग प्रशस्त ही किये हैं स्वयं कष्ट उठाकर भी उसकी राहें आलोकित की हैं।

हालांकि की मैं अभी स्वस्थ हुं पर  रोहन जानता तो है अपने पिता की सेहत कितनी नाजुक रहती है,

अभी पिछले महीने ही उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ गया था

एक बार उन्हीं के विषय में सोच लेता,

उसे पता है जब तक ये घर नही आ जाता तब तक सागर खाना नही खाते।

रोहन के युं अचानक जाने की खबर सुन सागर कंही बीमार ही न पड़ जांयें।हजारों चिंताओं ने

जैसे एक साथ आक्रमण कर दिया था उनके कोमल चित पर।

उसका जी चाह रहा था किसी मजबूत वक्ष पर सिर टिका कर रो दे, सागर तो पहले ही कमजोर दिलके हैं

बिटिया सात समुद्र पार बैठी है।कोइ तो नहि है।

चशमा उतार आँखें साफ कर त्वरित गति से रसोइ की तरफ बढ़ जाती हैं।शक्करपारे,मठरी,बालूशाही, नमकीन ओह कितना कुछ बनाना है उसके लिए।वहाँ यह सब तो नही मिलेगा ना। 

अब जो है सो है निभाना तो पड़ेगा।

अब ब्यार ही कुछ ऐसी चली है तो कोइ कर ही क्या सकता है।

आजकल इनसान कुछ ज्यादा ही असंवेदनशील होते जा रहे हैं,

माना की प्रगति आवश्यक है लेकिन ये क्या बात हुइ शेष सब कुछ भुला दिया जाये,

इस कहानी को भी पढ़ें:

बिट्टो की ससुराल – पुष्पा जोशी  : Moral stories in hindi

नही मैं अपने किये का बदला नही चाहती पर अपनी बगिया को अपनी आँखों के आगे फूलते फलते तो देखना चाहती हुं,

ओह उन्हें अचानक ध्यान आया लहर कल फोन पर कुछ कहना बताना चाहती थी

शायद यही होगा फिर किसी आशंका वश नही बता पाइ।

भाइ की चुगली खाना ठीक नही।शायद यही सोच कर रुक गइ होगी।

खैर जो हो फिलहाल तो मुझे ढेरों पकवान बनाने हैं  होली भी तो नजदीक है बहु बना पाये या नही।

अभी तो साल भी नही हुआ बेटे के विवाह को

इतनी जल्दी उसने हमें

पराया कर दिया।

नही यह कहना उचित नही,

पच्चीस वर्ष में जो अहसास जो लगाव जो दृढ़ता रिश्तों में आनी चाहिए थी वह नही आइ

तो ये उम्मीद इस कल आइ लड़की से क्युं।

 

बेटी को शादी कर विदा कर दिया तो बेटे को क्युं

नही।

इस कहानी को भी पढ़ें:

ससुराल – संगीता श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

बेटी तो होती ही पराया धन थी,

अब बेटा भी।

हमी ने तो दोनो को बराबर का किया है,

शिक्षा में सामाजिक दर्जे में यंहा तक की संपत्ति के हिस्से में।

फिर उत्तरदायित्व एक ही का?

 

बहते अश्रुओं को पौंछती जाती वसुधा एक एक पकवान बनाती रही।

रिश्तों में शिकायत नही समाधान दरगुजर होता है।

यही तो वह करती आइं

 है।

उन्हें अपनी नही सागर की फिक्र सता रही थी सागर किस तरहं लेंगे इस बात को वे क्रोध तो करते

नही दुख होता है तो घंटों

खामोशी ओढ़े रहते हैं

फिर बिमार हो जाते हैं।

चलो कोइ नही संभल जांयेंगे।

रोहन ओर बहु बाहर गये हैं रसोई का काम निबटा कर इन्हें बतला देती हुं सब।यही ठीक रहेगा।

इस कहानी को भी पढ़ें:

दूसरी पाठशाला -डॉ पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

 

वसुधा क्या कर रही हो इतनी देर से रसोई में

सारा घर पकवानों की महक से महक रहा है

रोहन कंही जा रहा है क्या,

सागर ने रसोइ में प्रवेश करते हुए कहा।

फिर मेरी उदास आँखों को देखकर  जैसे कुछ समझते हुए पूछा रोहन की ट्रांसफर ले रहा है।

मैंने सच्चाई से मुंह फेरते हुए मुंह फेर लिया।

पलटकर देखा तो सागर बोझिल कदमों सेअँधेरे  लॉन की तरफ बढ़ गये थे।

मेरे उत्तर की आवश्यकता नही लगी उन्हें।

शैलबाला रवि।।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!