बेरोजगार (भाग-1) – रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi

तरुण ने चलते-चलते एक पत्थर को जोर से लात मारा…

पत्थर उछलते हुए पेड़ के नीचे खड़े कुत्ते की दुम पर जाकर लगा… कुत्ता कें कें करता हुआ दूर भागा….

और तरुण फक्क की हंसी हंस पड़ा….!

यह हंसी कुत्ते को पत्थर मारने की नहीं थी…. उसे लगा जैसे उसकी भी स्थिति उस कुत्ते की तरह ही है…. फर्क बस इतना ही है कि कुत्ता भाग सकता है…. और वह भाग भी नहीं सकता…. अभी कुछ ही देर पहले की तो बात है…. पापा ने कुछ ऐसे ही उसके पिछवाड़े पर पत्थर मारा था….लानत का पत्थर….. ऐसा पत्थर जो आजकल हर कोई… जब जी चाहे उसके ऊपर फेंक डालता… और वह उसके चोटों को अपने ऊपर खाता… उफ्फ भी नहीं कर पता था….।

अभी साल भर ही तो बीता था…. उसे घर में रहते… लेकिन यह 1 साल तरुण के पिछले 29 सालों पर भारी पड़ रहा था…।

बचपन से तरुण पढ़ाई में कुछ खास नहीं था… एक साधारण दिमाग का साधारण बच्चा…. जो किसी तरह अपने एकेडमिक्स निकाल रहा था… यह नॉर्मल ब्रेन का बच्चा अपने ब्रिलिएंट भाई के मुकाबले हमेशा पिछड़ा ही रहा….।

अनुज जहां हर साल अव्वल आ रहा था… वहीं तरुण केवल पास होकर किसी तरह अपनी इज्जत बचाता हर साल एक कक्षा बढ़ता जाता था… दसवीं फिर 12वीं…।

अनुज ने दसवीं में भी टॉप किया… 12वीं में भी…. वह एक जीनियस था पढ़ाई में…. और उसकी तुलना में खड़ा उसका बड़ा भाई एक साधारण विद्यार्थी….।

अनुज ने 12वीं पास कर इंजीनियरिंग की राह पकड़ी….। आसानी से आईआईटी में दाखिला पाया… फिर बढ़िया मल्टीनेशनल कंपनी में प्लेसमेंट…. 25 की उम्र तक जाते-जाते अनुज अपने पैरों पर पूरी तरह खड़ा हो गया था….।

इधर तरुण 12वीं के बाद ग्रेजुएशन , पोस्ट ग्रेजुएशन, फिर कंपीटीशन की तैयारी में जुटा चार-पांच सालों से यहां वहां रहकर तैयारी कर रहा था… लेकिन कभी प्रीलिम्स में रिजेक्शन, कभी मेंस में, तो कभी फुल्ली रिजेक्टड…. एक फ्रस्ट्रेटेड लड़का बन चुका था….।

घर में मां पिताजी का अभी तक तो पूरा सहयोग बना हुआ था…. अनुज भी बार-बार उसकी हौसला अफजाई करता रहता था…. पर बाहर की तैयारी से कोई रिजल्ट ना आता देख..… तरुण इस साल घर आ गया… अब वह घर पर ही रहकर तैयारी करना चाह रहा था…. कारण कई थे…. वह अपनी असफलता से उकता गया था…।

छोटे भाई को नौकरी करते 7 साल हो चुके थे… लड़की वाले उनके घर के चक्कर लगाकर थक चुके थे…. लेकिन तरुण की बेरोजगारी ने पूरे घर का माहौल बिगाड़ रखा था…।

दो बेटों की मां जानकी…. अपने भाग्य पर हमेशा ही रस्क किया करती थी… दोनों गोरे स्मार्ट बेटे… बढ़िया पद पर कार्यरत समझदार, कुशल पति… पर अब वही मां दिन रात चिंता में डूबी रहती…।

ना चाहते हुए भी मां पिताजी कोई ना कोई ऐसी बात कह ही देते जिसे सुनकर तरुण का अहम तार तार हो जाता था….।

आज भी वही हुआ था… तरुण ने जेब से मोबाइल निकाला… थोड़ा आगे पीछे घूमाने के बाद… फिर से वापस जेब में डाल दिया… और खुद से बोल उठा… इसे भी रिचार्ज कराना होगा, आज ही डिस्चार्ज हो जाएगा…..!

अगला भाग

बेरोजगार (भाग-2) – रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi

स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित

रश्मि झा मिश्रा

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