बेजुबान आँसू – वीणा सिंह   : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :  टाटा कैंसर हॉस्पिटल के बेड पर कीमो के बाद आंसुओं के उमड़ते सैलाब को रोकने की असफल कोशिश करती मैं  ममता तुम्हारी मां.. शायद मैं अपने दोनो बच्चों से ना मिल पाऊं पर अपने दिल की आवाज अपनी भावनाएं अहसास और मजबूरियां मैं कलमबद्ध कर रही हूं , जो तुम्हे मेरे मरने के बाद पढ़ने को मिले.. और तब मेरी भटकती आत्मा को जो बिना किसी अपराध के अपराधबोध से ग्रस्त है मुक्ति मिल जाए..

                पहले मैं अपने बेटे आकाश से कुछ कहना चाहती हूं, बेटा तुम पांच साल के लिए कैलिफोर्निया‌ यूनिवर्सिटी में रिसर्च के लिए गए हो.. तुम चाहते तो बीच बीच में इंडिया आ सकते थे, क्योंकि तुम्हारा दोस्त रोहन साल में एक बार आता है, तुम्हारे साथ हीं तो गया है..  खैर तुम्हे मुझसे शिकायत है की मैने तुम्हे बहुत छोटी उम्र में हॉस्टल में डाल दिया था.. और ये शिकायत शायद अब नफरत का रूप ले लिया है, ऐसा मुझे लगता है..

                   बेटा आकाश मैं शादी के बाद जब ससुराल आई तो मायके से बिल्कुल उल्टा माहौल था.. तुम्हारे दादा जी रेलवे के ठिकेदार थे.. तुम्हारे पापा कुछ नही करते थे.. दादा और दादी बेहद दबंग किस्म के थे.. हमारी शादी भी झूठ बोल कर धोखे से हुई थी.. स्कूल कॉलेज में डिवेट में हमेशा ट्रॉफी जीतने वाली ममता शादी के बाद आंसुओं को अपना नसीब और साथी बना चुकी थी..

            घर में हमेशा लोगों का आना जाना पीना पिलाना चलता रहता.. मैं रसोई में फरमाइश के अनुसार दिन रात जूती रहती. तुम्हारी दादी झूले पर बैठी बैठी मेरी कमी निकालती या मेरे मायके की बुराई करती रहती.. तुम्हारे पापा भी दादा जी के पैसे को अपनी कमाई का पैसा समझने की गलतफहमी पाल रखे थे..

अपने माता पिता के इस अहसान तले वो दबे हुए थे.. तुम्हारा जनम हुआ.. पार्टी हुई.. शराब का दौर देर रात तक चला,.. तुम्हारे दोनो मामा आए थे जो मुझसे छोटे थे.. उन्हे ये माहौल बिल्कुल भी नही भाया.. मेरा भाई मयंक इसी महीने बैंक में नौकरी ज्वॉइन किया था और छोटा भाई मिहिर इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर में था..

                पति में स्वाभिमान हो खुद्दार हो और सबसे बड़ी बात अपने पैरों पर खड़ा हो तभी अपनी पत्नी के लिए कोई स्टैंड ले सकता है.. सच हीं कहा गया है पराधीन सुख सपने नहि.. और तुम्हारे पापा तो बेशाखी यानी अपने पिता के सहारे थे..

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                तुम तीन साल के हो गए थे, मैने एडमिशन के लिए तुम्हारे पापा से बात की उन्होंने कहा पापाजी से बात करूंगा.. बहुत कोशिश के बाद पांचवें साल में तुम्हारा एडमिशन हुआ.. थोड़ी देर के लिए पढ़ाने बैठती तुम्हारे दादा जी गाड़ी से घूमने जाने का प्रोलोभन देकर तो कभी टीवी के नाम पर तुम्हे बुला लेते..

एक दिन किसी ने अधजले सिगरेट का टुकड़ा फेंक दिया था ड्राइंग रूम में जिसे तुम उठाकर पी रहे थे और तुम्हारे दादाजी ताली बजाकर हंस रहे थे, तुम्हारे पापा भी वहीं खड़े थे, मैने तुम्हे बुलाया, तो तुम्हारे दादाजी चिल्लाने लगे अपनी पत्नी को समझा दो वरना.. और तुम्हारे पापा मेरा बाल पकड़ कर बोले औकात में रहो.. आसूं बहाने के अलावा मैं क्या कर सकती थी.. तुम गाली देना भी सिख गए थे.. जिद्दी और बदतमीज होते जा रहे थे.. मैं मजबूर थी..

                   मैं फिर से मां बनने वाली थी.. खून की कमी थी डॉक्टर ने सख्ती से कहा बेड रेस्ट जरूरी है.. दो तीन बार चक्कर खा कर गिर भी गई थी.. तुम्हारी दादी ने अबॉर्शन करवाने की कोशिश की पर चार महीने हो चुके थे पैसे के प्रलोभन के बाद भी डॉक्टर तैयार नहीं हुई.. मुझे मायके पहुंचा दिया गया.. क्योंकि ना मैं तुम्हारे पापा के लिए किसी काम की थी ना हीं रसोई संभालने के लायक थी..

               तुमको लेकर मैं मायके आ गई.. मिहिर और मयंक ने जब तेरी हरकतें देखी तो मुझसे सवाल किया मजबूरन अब तक छुपाया हुआ सच मुझे बताना हीं पड़ा.. घरवालों ने सर पीट लिया.. मिहिर और मयंक दोनो तुम्हे हॉस्टल में डालने पर अड़ गए..

                    तुम्हारे दादाजी ने एक कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए बहुत पैसा लगाया था और जी जान से लगे थे इसमें बहुत मुनाफा होने वाला था.. वो किसी दूसरे को मिल गया, उन्हे इतना सदमा लगा की बीपी हाई हो गया और ब्रेन हेमरेज और पैरालाइसिस का अटैक आया.. तीन महीने गंगा राम हॉस्पिटल में एडमिट रहे, पैसा पानी की तरह बह रहा था.. पर कोई फायदा नही था..

तुम्हारे भविष्य के लिए ये हादसा सही समय पर हुआ.. तुम्हारा एडमिशन तुम्हारे दोनो मामा अथक प्रयास से अच्छे स्कूल में करवा दिए.. और तुम हॉस्टल चले गए.. इतने छोटे से बच्चे को हॉस्टल भेजना मेरे लिए कितनी बड़ी परीक्षा की घड़ी थी… मेरी आंखें हमेशा आसुओं से भरी रहती..

तुम्हारे लिए किस दिन और किस रात मैने आसूं नहीं बहाया होगा.. जब तुम पिता बनोगे तब तुम्हे अहसास होगा कलेजे के टुकड़े को अपने से दूर करना कितना मुश्किल होता है… पर तुम्हारे भविष्य के लिए मैंने ये भी किया.. फिर आशी का जनम हुआ.. दोनो भाई जब भी मुझे रोते देखते मुझे समझाते आकाश का भविष्य देखो अपने आसुओं को मत बहने दो..

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                       चार महीने की आशी को लेकर मैं ससुराल आ गई.. तुम्हारे बारे में ज्यादा कुछ किसी ने नहीं पूछा क्योंकि सभी तुम्हारे दादाजी में लगे थे.. उन्हे हॉस्पिटल से घर लाया गया था…घर में हीं एक नर्स को रखा गया था.. फिजियोथेरेपी कराने की व्यवस्था की गई पर एक महीने बाद हीं उनकी मृत्यु हो गई.. बहुत सारे कर्ज उनपर था.. चुकाते चुकाते घर भी बिक गया.. किराए के छोटे से घर में मैं तुम्हारी दादी पापा और आशी आ गए.. गांव की जमीन बेचकर जो पैसे मिले उससे घर चल रहा था.. तुम्हारे पापा आज तक जिस बैसाखी के सहारे चलते थे वो अब नही रहा..

मैं घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी.. दोनो भाई हर महीने पैसे देते थे.. तुम्हारा पूरा खर्च वही दे रहे थे.. फिर मैं एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगी और घर पर ट्यूशन भी करती.., इतने के बाद भी मां बेटे का व्यवहार मेरे लिए वही था..परिस्थितियां मुझ जैसी मुखर लड़की को दब्बू बना दी थी.. तुम छुट्टियों में ज्यादातर नानी के घर आते.. जाते समय मिहिर या मयंक एक दो दिन के लिए लाते पर तुम मुझसे खींचे खींचे रहते.. मैं तुम्हे कलेजे से लगाना चाहती पर तुम..

               और आशी की शिकायत है मुझसे कि मैंने उसे पैसे बचाने के लिए बाहर नहीं भेजा…समय गुजरता गया.. तुम मास्टर्स डिग्री के बाद अपनी योग्यता के बल पर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में पीएचडी के लिए चले गए.. आशी भी सीए की पढ़ाई दिल्ली से कर रही है.. छुट्टियों में अक्सर घर आने की बजाय कहीं कहीं घूमने चली जाती है फ्रेंड्स के साथ.. जब घर आती है तो मैं जी जान लगा देती हूं उसे खुश करने के लिए.. उसके पसंद का खाना नाश्ता यू ट्यूब से देखकर आने के पहले सीखती हूं..

हुलस कर बना के ले जाती हूं पर ऐसा मुंह बनाती है जैसे जहर खा लिया हो.. उसकी सहेलियां कितना तारीफ करती हैं, आंटी आपके हाथों में गजब का स्वाद है.. पर कोखजाई..आंखों  में आंसू लिए लौट आती हूं… कहने में झिझक हो रही है पर आज सब कुछ बता दूंगी तुझे,

तुम्हारे जनम के बाद से हीं मुझे पंद्रह पन्द्रह दिन रक्तस्राव होता था, तुम्हारे पापा से कहा तो बोले ये आम बात है सभी औरतों को होता है.. आशी के जनम के बाद मायके में थी, तो लेडी डॉक्टर से दिखाया उन्होंने कुछ परहेज बताया, रेस्ट पौष्टिक भोजन टेंशन नहीं लेना और बच्चे के जन्म के बाद कम से कम तीन महीने पति से दूरी.….. ससुराल में इसमें से कुछ भी संभव नहीं था…

                     लापरवाही तनाव और तुम्हारी आंखों में मेरे लिए शिकायत मुझे तोड़ने के लिए काफी था… काश की तुम मेरे आंसू देख पाते आकाश, मेरी मजबूरी समझ पाते..

               कहते हैं बेटियां मां के दुःख दर्द को समझती है पर आशी तुम.. तबियत खराब होने पर भी तुमने कभी एक कप चाय एक ग्लास पानी मुझे प्यार से दे देती तो मैं निहाल हो जाती.. तुम कहती दादी ठीक हीं कहती थी जब से ब्याह के आई है महारानी बीमार हीं रहती है नखड़े इसके मैं और मेरा बेटा दोनो समझते हैं.. अब तो मुझे भी समझ आ रहा है..

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लालिमा बिखेरता सूरज – डा.मधु आंधीवाल

                     मिहिर राखी में आकर मुझे ले गया, बच्चे यहां हैं नही चलो.. मुझे एक महिने से फिर से रक्तस्राव हो रहा था.. पेड़ू में दर्द था और वजन भी तेजी से कम हो रहा था..मिहिर उसकी पत्नी और मैं डॉक्टर के पास गए.. उन्होंने कुछ टेस्ट बताए.. रिपोर्ट मुंबई से आयेगी टाइम लगेगा.. और रिपोर्ट में  गर्भाशय कैंसर निकला.. तीसरा स्टेज था.. डॉक्टर समझाते आप अपना आत्मविश्वास और जीने की चाह को जिंदा रखिए..

आप ठीक हो जाएंगी.. पर सिनेमा और असली जिंदगी में यही फर्क है, सिनेमा में अंत में सब ठीक हो जाता है पर हकीकत में ऐसा नहीं होता.. दोनो भाईयों को मैने कसम दे रखी है आशी और आकाश को कुछ नही बताए.. और तुम्हारे पापा को भी.. अब तुम्हारे पापा भी अपनी गलती महसूस कर रहे है..

मेरा ख्याल रखने की कोशिश करते हैं पर मैं उनसे मन से दिल से इतनी दूर जा चुकी हूं कि वापस लौट कर आना असंभव है.. एक गाना है जो हमारे रिश्ते पर फिट बैठता है सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया.. आसुओं के सैलाब से शब्द धुंधले हो रहे हैं… मिहिर और मयंक पूरी कोशिश कर रहे हैं इलाज पूजा पाठ सब कुछ की मैं ठीक हो जाऊं पर मेरी जीने की इच्छा खतम हो चुकी है.. डॉक्टर राउंड पर आने वाले हैं, मैं अपने आसूं पोंछ रही हूं.. मेरी मजबूरियां जान कर शायद तुम मुझे माफ कर दो बेटा.. तुम्हारी मां ममता.. जिसकी ममता के मूक गवाह सिर्फ आंसू हीं रहे हैं जो बेजुबान है…

#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

      Veena singh

#आँसू

 

 

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