” हैलो नेहा ….”
” हां, बुआ नमस्ते , कैसी हैं आप?? और केशव भईया की शादी की तैयारियां कैसी चल रही हैं ?” अपनी इकलौती और प्यारी बुआ की आवाज सुनते हीं चहकते हुए नेहा पूछ बैठी।
” ठीक हूं नेहा और शादी की तैयारियां भी चल रही हैं लेकिन …. ,,
” लेकिन क्या बुआ !!” हैरानी से नेहा बोली।
” तुम्हारे पापा और छोटे भईया दोनों हीं ज़िद पर अड़े हैं कि वो अलग अलग आएंगे और शगुन भी अलग अलग हीं डालेंगे । अब तुम हीं बताओ पूरे परिवार के बीच हमारे मायके का मजाक उड़े तो क्या हम बहन बेटियां खुश रह पाएंगी?” उदास स्वर में बुआ बोली ।
” हां बुआ, आप सही बोल रही हैं। पता नहीं हमारे मायके को किसकी नजर लग गई। लेकिन बुआ आप चिंता मत कीजिए हम भले शादी करके मायके से दूर चली आई हैं लेकिन अब मायके के बीच आई ये दूरियां मिटाने का काम भी हम बेटियां हीं करेंगी” नेहा ने बुआ को सांत्वना देते हुए फोन रख दिया।
नेहा के मायके में उसके माता पिता एक छोटा भाई और उसके चाचा चाची और उनके दो बच्चे जिसमें से एक बेटी सोना की शादी नेहा की शादी के एक साल बाद हीं हो गई थी । दोनों भाईयों के परिवार में बहुत मिलाप था। दोनों परिवार के बच्चों में कोई फर्क नहीं करता था । नेहा की मां और चाची भी सगी बहनों की तरह रहती थीं। बेटियों की शादी तक तो सब ठीक था लेकिन उनकी शादी के बाद ना जाने कैसे दोनों भाईयों के बीच जमीन जायदाद को लेकर मनमुटाव हो गया। ऊपर नीचे के दो मंजिला मकान में दोनों बंट गए थे लेकिन अब तो दोनों भाईयों का परिवार एक दूसरे से बात भी नहीं करता था।
नेहा ने अपनी चचेरी बहन सोना के पास फोन मिलाया ,” सोना , क्या तुम चाहती हो कि हम दोनों का मायका फिर से एक हो जाए ??”
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” हां दीदी, मैं भी यही चाहती हूं । लेकिन कैसे? पापा और ताऊ जी तो एक दूसरे से बात भी नहीं करते। सच पूछो तो अब मुझे उस घर में जाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।” सोना बोली।
” मेरी बात सुन, हम दोनों हीं अपने घर चलते हैं और एक बार फिर पूरे मन से कोशिश करते हैं कि बुआ के बेटे की शादी में सब एक हो जाएं ।”
नेहा ने अपना प्लान सोना को बताया तो सोना का चेहरा खिल उठा। दोनों बहनें शादी के दो दिन पहले अपने मायके पहुंच गईं। नेहा किसी ना किसी बहाने अपनी चाची कंचन से बात करने की कोशिश करती रहती और सोना अपनी ताई सुनंदा को मनाती रहती ।
शादी के दिन सभी बेमन से अलग अलग तैयार हो रहे थे। सोना अपने लहंगे का ब्लाऊज लेकर भागती हुई अपनी ताई के पास गई ,” ताई जी देखो ना ये कितना ढ़ीला है। प्लीज़ आप इसमें थोड़ी सिलाई लगा दो।” मनुहार करते हुए सोना बोली।
“मैं क्यों लगाऊं? तेरी मां को तो सबकुछ आता है तभी तो सारे काम अब मेरे बिना हीं कर लेती है। जा नहीं तो तेरे पापा गुस्सा होंगे।” सुनंदा ने सख्ती से कह तो दिया लेकिन उनकी आवाज में दर्द झलक रहा था।
” अरे ताई जी, मम्मी को कहां सिलाई लगानी आती है । आपकी सिली हुई फ्राॅक और कुर्ते पहनकर ही तो मैं बड़ी हुई हूं” ताई से लिपटती हुई सोना बोली।
पिछली बातें याद करके सुनंदा की आंखें छलक उठीं। उन्होंने सोना के हाथ से ब्लाऊज लिया और उसमें सिलाई लगाने बैठ गई
” ले.. अब पहन कर देख”
” अरे वाह ताई जी, ये तो बिलकुल ठीक हो गया…. मेरी प्यारी ताई जी… “कहते हुए सोना अपनी ताई से लिपट गई….
सुनंदा के मन को में भी बच्ची के लिए फिर से प्यार उमड़ पड़ा।
उधर नेहा भी मुंह लटकाकर अपनी चाची के पास पहुंच गई, ” चाची देखो ना, मेरे पास तो इस साड़ी के मैचिंग की लिपिस्टिक हीं नहीं है और ये बाल भी नहीं बन रहे…. “
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” तो मैं क्या करूँ…. ?? अब तो तुम बड़ी हो गई हो.. खुद हीं तैयार हो जाती हो,” कंचन रूखेपन से बोली।
“चाची , बचपन से आप हीं तो मुझे तैयार करती थीं…. आपका मेकअप लगा कर ही तो मैं सारे स्कूल कालेज के फंक्शन में भाग लेती थी… तो क्या आज आप मुझे तैयार नहीं करेंगीं?,” नेहा मासूमियत से बोली।
नेहा की बातें सुनकर कंचन की आंखे भीग आईं… पिछले दिन मानो उछलते कूदते उसके सामने आ गए जब छोटी सी नेहा अपनी चाची के ड्रेसिंग टेबल से छिप छिप कर लिपिस्टिक पाउडर लगा लेती थी…
कंचन ने आज भी नेहा का खूबसूरत सा जूड़ा बनाया जिसे देखकर नेहा “थैंक्यू चाची ” कहते हुए कंचन से लिपट गई…
रिश्तों के बीच जमी हुई बर्फ आज प्रेम की गर्मी से थोड़ी पिघलने लगी थी।
सब तैयार हो कर निकल रहे थे । सोना के पिता के पास अपनी गाड़ी थी जबकि बड़े भाई मतलब नेहा के पिता जी टैक्सी वाले का इंतजार कर रहे थे।
बाहर आंगन में दोनों देवरानी जेठानी की नजरें आपस में टकरा गईं .. कंचन ने फुसफुसाते हुए अपनी बेटी सोना से कहा, ” तेरी ताई ने देख कितना छोटा पल्लू लिया है…. अभी तक अच्छे से पल्लू सेट करना नहीं आया.”
” तो फिर आप कर दो ना मम्मी,, सोना बोलते हुए अपनी माँ को पकड़कर अपनी ताई के पास ले आई… कंचन ने अपनी जेठानी का पल्लू अच्छे से बना दिया … इतने में सुनंदा बोली, ” ये कैसा हार पहना है तूने?? ,, साड़ी से बिलकुल मेल नहीं खा रहा.. रूक मैं अभी अपना रानी हार देती हूँ जो तूं हमेशा मुझसे मांग कर पहनती थी ।
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कंचन वो हार पहनकर खिल उठी थी । दोनों देवरानी जेठानी को यूं आपस में बातें करते देख उनके पति हैरान थे। दोनों के मन में एक हीं सवाल था, जब ये पराया खून होकर भी फिर से एक हो सकती हैं तो हम भाईयों के बीच ये अहम की दीवार कैसे खिंची हुई है ??”
आखिर छोटा भाई बोल हीं पड़ा, “भईया , भाभी और नेहा को गाड़ी में भेज दीजिए , मैं और आप ऑटो में चले जाते हैं नहीं तो देर हो जाएगी। बड़े भाई ने भी घड़ी देखते हुए सर हिलाकर स्वीकृति दे दी । सभी औरतें खुशी खुशी एक साथ गाड़ी में चली गईं। दोनों भाई ऑटो में चढ़ रहे थे तो बड़े भाई का पैर लड़खड़ा गया । छोटे ने झट से हाथ थामते हुए कहा, ” भईया , लगता है आपने घूमना फिरना छोड़ दिया है तभी दोबारा पैरों का दर्द बढ़ गया है”
” हां…. अब तूं भी तो सुबह सैर पर जाने के लिए नहीं टोकता,” बड़े भाई ने मीठी सी शिकायत की।
” कल से सुबह तैयार रहना भईया , अब कोई बहाना नहीं चलेगा,” छोटे ने भी हक जताते हुए कहा तो बड़े ने उसे अपने सीने से लगा लिया। दोनों भाई ऑटो में बैठे नम आंखों से एक दूसरे को देख रहे थे। छोटे ने कस कर अपने बड़े भाई का हाथ पकड़ रखा था।
सभी अपनी बहन के घर एक साथ पहुंचे तो वो फूली नहीं समा रही थी। नेहा और सोना को बुआ ने गले से लगा लिया, ” सच , बिटिया, तुमने अपना वादा पूरा कर दिया। आज फिर से हमारा मायका एक हो गया। हमारे भरे पुरे मायके की चाहत आज पूरी हो गई। “
दोस्तों, कई बार बस कुछ शब्दों की हीं कमी रह जाती है जो रिश्तों को फिर से जुड़ने नहीं देती। इसलिए छोटी छोटी बातों पर मौन रहकर दूर होने से अच्छा है बोलकर उस दूरी को मिटा दिया जाए। जिंदगी एक बार मिलती है इसे नफरत में ना बिताएं……
#चाहत
सविता गोयल