बारिश का इश्क (भाग – 10 ) – आरती झा आद्या: Moral stories in hindi

कॉलेज मिलते ही और हॉस्टल जाने की तिथि तय होते ही “वो” हमसे मिलने हमारे कॉलेज आया था। हम तीनों ने उस दिन कॉलेज कैन्टीन में साथ साथ लंच लिया, इधर उधर की बातें हुई। भविष्य को लेकर अपने अपने सपने शेयर किए हमने।”उसने” बताया.. “कल “वो”हास्टल जा रहा है और उसे हम सब की याद आएगी।” ऐसी ही कितनी बातें होती रही और मैं चुपचाप उसके द्वारा बोले जा रहे एक एक शब्द को आत्मसात् करने में लगी रही। उस समय की मिलनसार बातों ने हमारे बीच एक सुखद माहौल बना दिया था, जो हमें अपनी आने वाली जिंदगी को और भी उत्साही रूप से देखने की प्रेरणा दी।

“तुम भी कुछ बोल लो तो उन शब्दों के जरिए ही तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी।” अचानक उसके इस तरह बोलने पर मैं आश्चर्यचकित सी उसकी तरफ देखने लगी। मैं भी तो यही सोच कर उसके द्वारा बोले गए शब्दों के खजाने से अपना हृदय भर रही थी। उसके शब्दों में जो माधुर्य था, जो किसी के भी दिल में बस जाने वाला था।

“नहीं वो”.. मुझे समझ नहीं आया कि क्या बोलूँ। सच कहूँ तो मन तो हो रहा था आई लव यू बोल गले से लग जाऊँ। लेकिन अपने आँखों में आ गए आँसू को छुपाने के लिए मैं कैन्टीन से बाहर देखने लगी थी।

“क्या लड़की है ये”.. संगीता ने कहा। 

“कोई बात नहीं.. मेरे लिए, “अधरों की मुस्कान, आँखों के आँसू हुए प्रसाद।” वो गुनगुना उठा था, जैसे कि वह अपने अंतर में कुछ बड़ा और गहरा महसूस कर रहा था और उसके अंतर की वह आँखें अपने चेहरे पर महसूस कर मैं विचलित हो रही थी। 

एक दूसरे से कभी इकरार ना करने के बावजूद भी उसका जाना मुझे अखर रहा था, पर चुप्पी साधे बैठी ही रह गई मैं। इस चुप्पी के बावजूद उसके साथ का संबंध एक अज्ञात सुंदरता से भरा हुआ था।

“तुम लोग के कैन्टीन का लंच बहुत मजेदार है। खा खा कर तुम दोनों मुट्ल्ली मत हो जाना।” उसने हँसते हुए कहा था l

“अरे अरे, मैंने क्या गलत कह दिया।” संगीता किताबों से उस पर वार करने लगी थी तो उसने खुद को बचाते हुए कहा। 

स्वच्छ निर्मल पवित्रता लिए हुए बच्चों सी हँसी…बस मैं देखती ही रह गई और मेरे दिल में ताउम्र के लिए उसकी वो हँसी कैद हो गई। जब इच्छा करे झाँक कर देख लो.. ना कोई डर.. ना कोई रोक टोक। उसकी बच्चों सी मुस्कान में छिपी निर्मलता ने मेरे दिल को स्वच्छ और पवित्र भावनाओं से भर दिया था। उसकी निर्मल हँसी मेरे मन को कहती थी कि चाहे जैसी भी स्थितियाँ हों।

जीवन को पूरी तरह से और खुलकर जीने का आनंद लो।

चलो चलता हूँ मैं। कुछ पैकिंग बची है और मम्मी को भी थोड़ा समय देना है। मेरे हॉस्टल जाने से दुःखी हो गई हैं। जाने क्या क्या बनाने में जुटी हैं सुबह से ही.. उसने उठते हुए कहा। अभी मैं उसकी हँसी में खोई सोच ही रही थी, “कोई इतना पाक कैसे लग सकता है” कि तभी उसकी आवाज ने मुझे उस सम्मोहन से बाहर निकाला। 

हम तीनों कॉलेज की पार्किंग में आ गए और वो अपनी बाइक निकाल स्टार्ट कर आगे बढ़ा। 

“इधर कहाँ जा रहे हो.. कॉलेज गेट तो इधर है”.. संगीता ने उससे कहा। 

चुपके से वो आती है, 

याद दिला कर जाती है,

हिचकी है ऐसी कहानी, 

दिल में समा जाती है।

वो मुस्कुराया और मेरे कानों में ऐसी ही कुछ पंक्तियाँ कहता हुआ बाइक मोड़ चला गया। उसकी आवाज भराई हुई थी, उसकी भावनाएं, जो उसकी आवाज में बसी थीं, दिखा रही थीं कि उसके नयन भी तरल थे

उसकी आँखों के आँसू ने एक अनमोल राज खोल दिया, जो भाषा के पार होता है और जिसे सिर्फ दिल समझ सकता है। 

“क्या कह गया तेरे कान में, इसकी कान में फुसफुसाने वाली अदा कितनी रोमांटिक है ना।” संगीता अपनी धुन में कहे जा रही थी और मैं उसे खुद के इतने नजदीक महसूस कर रक्तिम हुए जा रही थी। संगीता ने अपने अल्फाज से एक नया रंग भर दिया था और मैं उसकी मधुर आवाज को दिल के बहुत करीब से महसूस कर रही थी। संगीता ने अपनी धुन में मेरे अंदर नए अर्थ भर दिए थे।

“और जैसे हम घर लौटे, मैंने महसूस किया कि वह समय न केवल गजरे की खोज में ही बीता था, बल्कि नए दृष्टिकोण का आरंभ था। मेरी ज़िंदगी में आए उस स्मार्ट और जहीन बंदे की मुलाकात ने मेरे हृदय को छू लिया था। स्कूल के उस दिन से हमारा मेलजोल कभी कम ही नहीं हुआ और उसके साथ मेरी ज़िंदगी में एक नया अध्याय शुरू हुआ था। गजरे की खोज में शुरू हुई यह कहानी आज भी मेरी यादों में एक खास रुप से जगह बनाए हुए है।”

उस समय आज की तरह मोबाइल तो होता नहीं था। जो हमें एक दूसरे की खबर मिलती। कभी कोई स्कूल फ्रेंड मिल जाता था, तभी खबर मिलती थी “उसकी”। हमारा स्नातक भी मुकम्मल हो गया था। संगीता प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में लग गई। मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन में एडमिशन ले लिया और अपने सपने साकार करने में जी जान से लग गई । मम्मी की रह रह कर मेरी शादी की इच्छा बलवती होने लगी। पापा अडिग रहे, पहले नौकरी और उसके बाद ही शादी विवाह की बात होगी। मैं पापा के निर्णय से बहुत प्रसन्न थी.. इसी बहाने “उसका” इंतजार भी करना था। वैसे तो हमने एक दूसरे से कभी कुछ नहीं कहा था, फिर भी!

संगीता यूपीएससी तो नहीं पीसीएस क्रैक कर ट्रेनिंग के लिए चली गई। मैंने केमिस्ट्री में यूनिवर्सिटी टॉप किया था। हम दोनों के पेरेंट्स बहुत गौरवांवित थे। किसी से मुझे पता चला था कि “उसने” बी.टेक में कॉलेज टॉप किया था और पेट्रोलियम इंजीनियरिंग से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा है। अच्छा लगा था सुन कर कि हम सब अपने अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं।

समय के साथ मेरा भी नेट क्लीयर हो गया। चार पाँच इंटरव्यू के बाद रसायन विज्ञान की व्याख्याता बनना और अपने ही महाविद्यालय में जॉइन करना सपने को साकार करने का एक शानदार मौका था। यह बहुत सुखद होता है कि आपकी पहली जॉइनिंग ही आपके महाविद्यालय में हुई हो।

जॉइन कर मैं सीधे कैन्टीन गई। उसी टेबल पर जाकर बैठी, जहाँ हम तीनों उस दिन बैठे थे। लग रहा था “वो” और संगीता भी साथ आकर बैठे हो। इसी बेख़्याली में मैंने तीन कॉफी मँगवा लिया। लड़के ने बहुत आश्चर्य से मुझे देखा। खैर वो तीन कॉफी लेकर आया… “दीदी आपकी कॉफी।” 

तब मेरी नजर तीन कॉफी पर गई। ये तीन कॉफी किसलिए, मैंने एक ही मँगवाई थी। कन्फ्यूज होकर लड़के ने बताया कि “आपने तीन कॉफी लाने को कहा था।”

“अच्छा ठीक है”…मैंने कहा। 

मैंने तुरंत संगीता को कॉल लगाया। उसने अपना डिपार्टमेंट जॉइन कर लिया था और कहीं विजिट पर निकली थी। 

मैंने पूछा, “पाँच मिनट का समय देगी मुझे। मुझे तेरे साथ कॉफी पीनी है” और संगीता को मैंने तीन कॉफी वाली बात बताई। पहले तो वो खूब हँसी…

फिर “चल पी मेरे साथ”, कहकर फोन पर ही मुँह से सिप की आवाज़ निकालती रही। 

मुझे हँसी आ गई उसकी इस हरकत पर। तू ऑफिसर होकर भी बिल्कुल नहीं बदली.. तेरे मातहत भी होंगे ना साथ में। 

“तो क्या हुआ? तू सामने हो तो दिल बच्चा बनने के लिए मचल जाता है। अब तीनों कॉफी खत्म कर और तेरे “उसका” क्या हाल चाल है।” संगीता फोन पर धीरे से फुसफुसाती है।

“वो फिलहाल पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में इंटर्नशिप के लिए दुबई शिफ्ट हो गया है।” मैंने भी धीरे से जवाब दिया।

“जाने से पहले तुझसे मिला था क्या?” संगीता के स्वर में आश्चर्य था।

“नहीं यार… दो चार दिन पहले अभिलाष मिला था। उसी ने बताया।” मैंने संगीता को बताया।

फिर आगे का क्या विचार वर्तिका…संगीता अब गंभीर हो गई थी।

“देखते हैं, एक सपना पूरा हुआ है, किस्मत ने साथ दिया तो दूसरा भी पूरा हो जाएगा।” मैंने सब कुछ समय पर छोड़ते हुए कहा था।

“चल खत्म.. जा काम कर अब अपना।” मैंने थोड़े प्यार के साथ संगीता से कहा, जिसमें धन्यवाद भी मिला हुआ था।

पेमेंट करने के बाद, मैं स्टाफ रूम में गई और सबसे मिलना शुरू किया। वह लोग, जिन्होंने मुझे पढ़ाया था, उनके साथ क्लास शेयर करना सुखदायक और अद्वितीय तजुर्बा लिए हुए थे। यह मेरे लिए एक नए अध्याय की शुरुआत थी, जिसमें सिखने के लिए बहुत कुछ था।

अब मम्मी मेरी शादी के लिए पापा के पीछे ही पड़ गई। पापा भी अपना मूड बना रहे थे कि अच्छा घर बार देखकर शादी की जाए। लेकिन पहले उन्होंने मुझसे मेरी राय लेनी चाही। एक दिन डिनर के समय पापा ने पूछा…. 

“वर्तिका हम तुम्हारी शादी की सोच रहे हैं।अगर तुम्हें कोई पसंद है तो हमें बेझिझक बता सकती हो। हमें बिल्कुल भी दिक्कत नहीं होगी। तुम्हारी पसंद हर हाल में हमारी पसंद होगी।”

मैं क्या बताती। जब मुझे खुद कुछ नहीं मालूम था। 

“नहीं पापा.. ऐसा कोई नहीं है”, भारी मन से बोल कर मैं अपने कमरे में चली आई।

क्या करूँ? कैसे पता करुँ? कुछ समझ नहीं आ रहा था। हार कर मैंने संगीता के लैंडलाइन पर फोन लगा दिया। बहुत देर तक घंटी बजती रही। संगीता ने कॉल नहीं लिया। किसी काम में होगी सोचकर मैं सोने की कोशिश करने लगी।

अभी निन्द्रा देवी ने मुझे अपने आगोश में लिया ही था कि मेरे घर की फोन की घंटी बजने लगी।

 उसका एक कनेक्शन मेरे कमरे में भी था। मैंने नींद में ही कॉल लिया। उधर से संगीता की आवाज़ सुनते ही निन्द्रा देवी फुर्र से उड़ गई। मेरी हालत तो डूबते को तिनके का सहारा वाली थी।

“तूने कॉल किया था क्या नौ बजे के लगभग।” संगीता थकी आवाज में पूछती है।

“हाँ यार.. तू शायद व्यस्त थी।” मैंने उसे बताया।

“हाँ एक मीटिंग में थी, अभी आई हूँ। आते ही मेरी हाउस हेल्पर ने बताया कि रिंग थी किसी की। मैंने उसे रिसीव करने से मना किया हुआ है। मुझे ऐसा लगा कि तेरा ही कॉल था, इसीलिए कॉल किया मैंने।” संगीता विस्तार से अपने मनोभाव बता रही थी।

संगीता मेरे इस समय कॉल करने पर चिंतित थी क्यूँकि हम लोग ज्यादातर रविवार के दिन बातें किया करते थे।

“इस समय कॉल किया तूने, सब ठीक है ना।” 

“पापा ने आज मेरी शादी की बात की है और मेरी पसंद पूछी थी। बता, मैं क्या बोलती?” मेरी आवाज रूआँसी हो गई थी।

“तो बताना चाहिए था ना अंकल को”, संगीता मुझसे कहती है।

मैंने संगीता की बात पर उत्तर देते हुए कहा, “क्या बताऊँ यार, उसे अब तक कोई और पसंद आ गई होगी तो। मैं खुद श्योर नहीं हूँ तो पापा से क्या कहूँ। तू पता कर ना.. कहाँ है.. क्या कर रहा है.. तेरे लिए कौन सा मुश्किल है ये सब पता करना।”

अब तक संगीता आश्वस्त होकर अपने स्टाइल में आ चुकी थी।

“ठीक है डार्लिंग… आपकी प्रेम कहानी के लिए ये बांदी आपके “उसके” की खोज खबर जरूर लाएगी। अगर आप कहे तो हथकड़ी लगा कर पेश भी कर दूँ।” संगीता खिलखिला कर हॅंसती हुई कहती है।

संगीता की ह़ँसी सुनकर मुझे भी ह़ँसी आ गई थी। उसकी खुशी और हंसी ने मेरे अंदर के माहौल को सकारात्मकता और आनंद से भर दिया था। संगीता की  हँसी ने मेरे आसपास के गम की बदरी को सहजता से खुशियों की बौछार में बदल दिया था। मेरा मन अब फूल सा हल्का हो गया था।

“तेरी खनकती हँसी सुनकर मन प्रसन्न हो गया। इस हँसी के लिए मैं “उसे” पाताल से ढ़ूँढ़ लाऊँगी। सो जा अब काफी रात हो गई है। मुझे भी भूख लग रही है… फ्रेश होकर खाना खा लूँ। तुझे मैं दो तीन दिन में अपडेट देती हूँ।” संगीता जम्हाई लेती हुई कहती है।

संगीता से बात करने के बाद आशा की एक किरण दिखाई देने लगी। लगा जैसे कोई बड़ा भारी बोझ मेरे हृदय से उतर गया हो और मैं उत्साहित रूप से आगे बढ़ने के लिए तैयार थी।

क्रमशः

आरती झा आद्या

दिल्ली

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