बंटवारा – उषा शर्मा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :  मुन्नी जब कोर्ट से केस हार जाती है तो वह बुरी तरह से तिलमिला उठी कहने लगी  , यह मेरे बाप के खेत है मैं इतनी आसानी से इन्हें किसी को दान में नहीं दे सकती  , इसके लिए मैं हाईकोर्ट तक चली जाऊंगी लेकिन खेत तो मैं ही लेकर रहूंगी ।

फिर मुन्नी अपना केस इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर करती है लक्खा के पास इतनी कमाई तो नहीं थी क्योंकि वह कोर्ट -कचहरी के चक्कर लगाने  में ही फंस कर रह गया , तो वह कब कपड़े बेचने जाता और कब पैसे कमाता ,  कचहरी चक्कर लगाने से लक्खा को फुर्सत  ही नहीं मिली ।

कोर्ट में तारीख पे तारीख निकलती रहती हैं हर महीने की तारीख पर कोर्ट में पहुंचना होता जिस वजह से लक्खा का काम रुक जाता लेकिन कोर्ट में पहुंचना बहुत ही जरूरी था ।

लक्खा हाई कोर्ट से भी केस जीत जाता है और सारे खेत लक्खा के अधिकार में आ जाते हैं , लेकिन लक्खा को जीतकर भी खुशी न हुईं , और इधर मुन्नी अपनी हार की वजह से लक्खा से हमेशा हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ बैठी , जैसे कि लक्खा उसका बहुत बड़ा दुश्मन है , बुरी तरह मुंह की खाने के बाद मुन्नी उस लक्खा के घर तो क्या , लक्खा के शहर में भी नजर न आई ।

अब तो गांव जाना भी पूरी तरह से मुन्नी का  बंद हो गया , गांव वालों को मुन्नी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी , मुन्नी ने हर किसी से अपना रिश्ता खत्म कर लिया ।

लक्खा के केस जीत जाने के बाद सभी चाचा ताऊ लक्खा से कहते हैं अब तो खेत तेरे हो चुके हैं अब तू चाहे इस पर खेती कर सकता है और फसल बेचकर अपना गुजारा कर सकता है ।

लक्खा बोला सुनो भाई मुझे यह खेत बिल्कुल भी नहीं चाहिए ,

मैं इन खेतों को कभी भी नहीं लेना चाहता था आप लोग पंचायत बिठाकर इन खेतों को तुम दोनों भाई बांट सकते हो , मुझे ताऊ का कुछ नहीं चाहिए आप दोनों ताऊ के भाई हो और दादा भी उनके भाई है, दादा अगर लेना चाहे तो उनकी मर्जी लेकिन मुझे कुछ भी नहीं चाहिए ।

लखा और दादा दोनों अपने गांव पहुंचते हैं और  पंचायत बिठाई जाती है , पांच पंच एक सरपंच सभी लक्खा के घर के बाहर  बने हुए चबूतरे पर नीम के पेड़ के नीचे पंचायत इकट्ठी हो जाती है । लक्खा अपना फैसला सरपंचों को सुनाता है कहता है सरपंच जी मैं इलाहाबाद हाईकोर्ट से केस तो जीत गया लेकिन मेरी आत्मा खेत लेने के लिए गवाही नहीं दे रही , आप जो भी फैसला करोगे वह मानूंगा , क्योंकि पंच परमेश्वर के समान होता है ।

ताऊ के तीन भाई हैं एक मेरे दादा और ये दोनों, आप इन दोनों से पूछ लो इनको आधा  – आधा खेत चाहिए तो ले सकते हैं ।

सरपंच कहते हैं लक्खा जब तू केस जीत ही गया है तो खेत तू भी तो रख सकता है । लक्खा बोला नहीं सरपंच जी वह मेरे अकेले  के ताऊ नहीं थी  , उनके भाई भी हैं और उनके भतीजे भी हैं , तो केवल मैं ही कैसे खेत ले सकता हूं । 

यह और जो भतीजे हैं वह क्या सोचेंगे  ?

माना कि उनके बेटे नहीं थे लेकिन उनके भाई और भतीजे तो हैं उन्हें भी तो हक चाहिए और मैं किसी के हक का लेना नहीं जानता  इसलिए मुझे वह खेत बिल्कुल भी नहीं चाहिए ।

आप जैसा चाहे वैसा बटवारा कर सकते हैं चाहे तो ताऊ के भाइयों को आधा-आधा बांट दो और चाहो तो सभी भतीजों को बराबर बराबर दे दो  , इससे भविष्य में कभी मनमुटाव भी नहीं रहेगा ।

लक्खा की बात सुनकर सभी गांव वाले कहते हैं लक्खा तू किस मिट्टी का बना है जब तुझे इतना बड़ा खेत मिल रहा है तो उसे तू क्यों हाथ से जाने दे रहा है  ।

लक्खा बोला उस खेत से मुझे क्या लाभ होगा ?

जब मुझ पर अपने ही खेतों की देखभाल नहीं होती तो फिर मैं ताऊ के खेत लेकर क्या करूंगा  ? 

सरपंच लक्खा की बात से खुश हो जाते हैं और पातीराम के दोनों भाइयों को खेत के बंटवारे के लिए पूछते हैं दादा से भी पूछते हैं दादा खेत लेने से मना कर देते हैं कि जब लक्खा ही खेत लेना नहीं चाहता तो फिर मैं ही उस खेत का क्या करूंगा  ? 

मेरा क्या है आज हूं कल नहीं , तो फिर उस खेत को कौन देखेगा मैं लक्खा की बात से पूरी तरह सहमत हूं हमें भैया का खेत बिल्कुल भी लेना मंजूर नहीं ।

पंच और सरपंच आपस में सलाह मशविरा करते हैं काफी देर तक चर्चा चलती है और सिर्फ लक्खा की मर्जी से  पाती राम के अन्य भतीजा के नाम कर दिया जाता है । लक्खा इस बंटवारे से बहुत खुश होता है सबको सबका  ” अधिकार ” मिल गया

यह बात लक्खा के लिए बेहद खुशी की बात है ।

 

स्वरचित,,,,, उषा शर्मा

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