लघु कथा”
आज क्या हुआ बहेन तुमने फिर से, सबसे लडाई की “
नहीं भाई ,,मैं आपको कैसे बताऊ”आपका आना जाना
हमारे ससुराल वालो को पसंद नहीं।
तो हम नहीं आऐगे कल से “बहेन अपने घर में खुश रहे एक भाई को और क्या चहिए “मायूस होकर बोला नदीम “
इतने सालो का बँधन कैसे तोड दू. भाई वो भी समुदाय के चक्कर मे “मै कैसे भूल जाऊ “मेरे पति के लिए आप भगवान के रूप मे आऐ थे। जब सारे रिश्ते नातो ने मुहँ मोड लिया था।
तब आपका और इनका खून एक ही था। न कोई हिन्दू न कोई मुस्लिम आज जब सब कुछ ठीक है। तो सारे रिश्ते
अपने और आप पराए।
नहीं मै आपको नही छोड सकती भाई”सुधीर जी आज आ जाऐगे “तो ꯬सब सही कर देगे “
अब आप हमारे, साथ ही रहेगे भाई”
उधर से शायद फोन क़ट गया था। अब कोई आवाज नहीं आ रही थी। क्षमा “अपने काम में लग गई”उसका मन अधीर हो गया था। घर वालो की हरकते अक्सर उसे तोड देती।
अभी एक घण्टा ही गुजरा होगा की बाहर से आवाज आयी।
सुधीर जी आ गए थे। उन्होने जैसे ही घर में पैर रखा। क्षमा की नजर उनपर पड गई “उनके हाथ में एक बडा बेग था।
क्षमा “” पानी लेकर उनके पास आ गई “तभी उसकी नजर नदीम पर पडी “अरे भाई “आप कब आए “सुधीर जी ही जिद करके ले आऐ”क्षमा ने सुधीर को सम्मान भरी नजर से देखा।
अब तक
पूरा परिवार इक्ट्ठा हो चुका था। सबको नदीम चुभ रहा
था। पर सुधीर ने साफ साफ शब्दो मै सहमति दे दी “। की आज के बाद नदीम,,,,
हमारे साथ रहेगा। पर किस हक से””किसी ने पूछा”
क्षमा “का भाई बनकर “अब आपलोग हमे अपनाओ या छोड दो “सुधीर की बात सुनकर सब ओर खमोशी छा गई।
फिर सब को एक तरफ कर सुधीर ने नदीम और क्षमा के
रिश्ते को सहमति दे दी”सारे बन्धन तोडकर पवित्र बन्धन मे बाँध दिया।
रीमा ठाकुर