बालक की पुकार – डॉ संजय सक्सेना

कोई मेरे बेटे को बचा लो…… डॉक्टर मेरी ऑक्सीजन निकाल कर मेरे बेटे को लगा दो….. यह मासूम है ज्यादा समय संघर्ष न कर सकेगा…. डॉ प्लीज…. मेरी बात सुनो अर्पिता ने आईसीयू में भर्ती होते अपने बेटे को बचाने के लिए गुहार लगाई।

दरअसल एक दिन पहले ही अर्पिता को कोविड-19 के कारण सरकारी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था और आज उसके 6 वर्षीय बेटे… विजय को भी कोविड-19 के कारण अस्पताल लाया गया था। काफी अनुनय विनय के बाद रंजन ने अपने बेटे को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टर का कहना था कि…

अस्पताल में दवा के साथ ऑक्सीजन भी कुछ घंटों के लिए ही बची है। ऐसी स्थिति में वे इसे एडमिट करके भी कितने समय तक जीवित रख सकेंगे ।

            आज देश के हालात बहुत खराब हैं। सरकारी अस्पताल ऑक्सीजन के लिए कंपनियों पर निर्भर हैं और कंपनियां कहती हैं कि उनका बहुत सा पेमेंट सरकार से ना होने के कारण वह भी लाचार हैं। लेकिन गलती किसी की भी हो हम लोग क्या करें। खामियाजा तो हम सभी को भुगतना पड़ता है.. क्योंकि हम मरीजों से जुड़े हैं…. उनके दुख दर्द में चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकते। डॉ ने रंजन को समझाया।

   विजय आईसीयू में मां के बेड के पास पड़ा यूं ही गहरी और उथली सांसे ले रहा है। उसे देख कर उसकी मां ने अपनाऑक्सीजन मास्क निकालने की कोशिश की मगर नर्स ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। वह अपने बिस्तर पर पड़ी पड़ी व्याकुल है। उसने धीरे से आवाज दी.. विजय तू ठीक हो जाएगा बेटा !

यहां कोई नहीं सुनने वाला!! तू हिम्मत ना हार!!  तभी डॉक्टर ने सूचना दी ऑक्सीजन खत्म हो रही है। पेशेंट को उनके घर वालों के हवाले करो और डिस्चार्ज करके जल्दी अस्पताल से बाहर भेजो। नर्स ने सभी लोगों को डिस्चार्ज करने की कार्यवाही प्रारंभ कर दी। धीरे-धीरे मां और बेटे को अस्पताल से बाहर कर… रंजन से कहा गया…. किसी प्राइवेट अस्पताल से तुरंत संपर्क करो…. शायद जान बच जाए!!


   रंजन की आंखों से आंसू बहने लगे। उसे अपनी दुनिया उजड़ते दिखने लगी। गरीबी के कारण वह  किस से प्रार्थना करें! कहां ले जाए बिना पैसे के इन दोनों को!! इस संसार में दुख की इस घड़ी में कोई किसी के लिए कैसे मदद करें!!  वह जमीन पर पड़ी अपनी पत्नी और अपने बच्चे को गहरी और उथली सांसे लेते देखकर..

. रोने के सिवा और कुछ ना कर पा रहा था!!  मां बेटे के लिए परेशान थी! वह कह रही थी कि… विजय तू तो कान्हा का भक्त है ना… तू तो कहता था कान्हा तेरा दोस्त है ! उसी को याद कर बेटा…. शायद तेरा दोस्त तेरी पुकार सुन ले!! विजय ने आंखें खोली और बोला… मां.. मैं अपने कान्हा का ही ध्यान कर रहा था। मैंने उससे कहा है कि..

मेरी मां को बचा ले! अगर वह मर गई तो मेरा खाना कौन बनाएगा,… मेरे कपड़े कौन धोएगा,… मुझे प्यार कौन करेगा और अगर मैं मर भी गया मां तो मेरे कान्हा मुझे अपने पास बुला लेंगे मैं तुझे तारा बनकर ऊपर से देखा करूंगा !!

       बच्चे के मुंह से ऐसी बातें सुनकर मां और बाप का कलेजा फट पड़ा । वे जोर जोर से रोने लगे। उन्होंने प्रार्थना की… आओ कृष्ण.. एक मासूम की पुकार सुन लो जल्दी आओ ना …तुम्हारा बच्चा तुम्हें पुकार रहा है…  बालक की सांसें छिनती जा रही थी। सभी मरीज वहां से जा चुके थे ।डॉक्टर और नर्स बाहर खड़े रंजन को समझा रहे थे ….

वक्त बहुत कम है… इन्हें ले जाओ भाई… वरना यह दोनों सड़क पर पड़े पड़े दम तोड़ देंगे!! बच्चे की बात सुनकर नर्स की आंखे पसीज गई। उसने आंखें पौछते हुए रंजन से कहा ……भैया कुछ पैसे मैं तुम्हें देती हूं.. तुम कहीं और जाकर इनका इंतजाम करो! …ऐसे तो यह …….कहते-कहते वह अंदर अस्पताल में गई और अपना पर्स ला कर… दो हजार रुपए देते हुए….. बोली …..भैया मेरी तरफ से मेरे भतीजे के लिए इन्हें रख लो और एंबुलेंस कर लो! बच्चा और मां उथली उथली सांसे ले रहे थे। तभी विजय ने गहरी सांस भरी… और कहा …कान्हा… कान्हा …आओ ना.. मेरी मां को बचा लो…

तभी वह हुआ जो किसी ने सोचा ना था कान्हा ने अपने भक्त की पुकार सुन ली!! कुछ पुलिस वाले एक टेंपो में कुछ ऑक्सीजन के सिलेंडर लिए अस्पताल की ओर बढ़ रहे थे! जल्दी से अस्पताल के सामने आकर टेंपो रुका। डॉक्टर की आंखों में उत्साह की किरण जागी। सभी मरीज वहां से पहले ही जा चुके थे। विजय और उसकी मां …

मौत के नजदीक थे! डॉक्टर ने कहा …नर्स जल्दी करो..! शायद इस बालक के कान्हा ने इसकी करुण पुकार सुन ली। नर्स के चेहरे पर खुशी की चमक देखी जा सकती थी। जल्दी से उन्होंने उन दोनों को पुलिस वालों की मदद से आईसीयू में भर्ती किया। ऑक्सीजन सप्लाई शुरू कर दी गई। उनकी जान बचाने की प्रक्रिया शुरू हुई ।

एक दिन के अथक प्रयास के बाद मां… बेटा.. कुछ स्वस्थ हुए! नर्स ने बालक के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा …बेटा… विजय कैसे हो तुम?? बालक बोला नर्स… दीदी… मैं ठीक हूं! मां.. कैसी है?

    मां भी ठीक है बेटा ….नर्स ने कहा!!

हां.. ठीक तो होगी ही….कल कान्हा जी आए थे मेरे पास और बोले तुम्हें और तुम्हारी मां को कुछ नहीं होगा विजय! तुम जैसे बालक की प्रार्थना भला मैं कैसे अस्वीकार कर सकता हूं और फिर वह चले गए।

          सच में देश के इस संकट काल में डॉक्टर, पुलिस सामाजिक कार्यकर्ता सभी उस प्रभु के रूप हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर भी दूसरों को बचाने का अथक प्रयास कर रहे हैं। ईश्वर हमेशा ऐसे लोगों का साथ देता रहा है और देता रहेगा ….जो उसे निश्चल और स्वच्छ हृदय से याद करते हैं और जो निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करते हैं !! इसका फल उन्हें अवश्य मिलता है।

डॉ संजय सक्सेना

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