“चिट्ठी…”अचानक पोस्टममेन की आवाज़ से दरवाज़े की तरफ दौड़ पड़ी शालिनी, एक अजीब सा चुंबकीय बुलावा था जैसे, लिफाफा उठाकर देखा, इंश्योरेंस कंपनी का अपडेट था, भारी मन से शालिनी भीतर आ गई, लेकिन आंखों के सामने बीते कुछ चित्र तैर गए।
“चिट्ठी…” शालिनी बेतहाशा दौड़ती हुई दरवाजे पर पहूंची।
“ये ले बिटिया, तेरी चिट्ठी, चाहे जो हो जाए, पर तेरी चिट्ठी नहीं रुकती”पोस्टमेन ने चिट्ठी देते हुए कहा।
“हां दादा, मेरी मां रोज चिट्ठी लिखतीं हैं, आपकी साइकिल की घंटी मेरे जीवन का ऑक्सीजन है और यह चिट्ठी मेरा जीवन, बहुत बहुत धन्यवाद दादा”शालिनी ने हृदय से पोस्टमेन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा।भीतर आते आते चिट्ठी खोली ली, लिखा था-
मेरी परी,
तू कैसी है, तेरे बिना घर बहुत सूना सूना लगता है, बाकी सब ठीक है, आज तेरे पसंद की उड़द की दाल बधाई है, तेरी बहुत याद आई, बाकी सब ठीक है, तेरे बाबूजी तुझे बहुत याद करते हैं, बाकी सब ठीक है, तू ससुराल में रम जाना, रच जाना,बस जाना, हम सदा तेरे साथ है, बाकी सब ठीक है, तुझे बहुत सारा प्यार, बाकी बातें ,कल की चिट्ठी में , बाकी सब ठीक है।
“तेरी अम्मा”
शालिनी ने इस चिट्ठी को भी बाकी चिट्ठीयों के साथ अलमारी में साड़ियों के बीच दबा दिया और प्रसन्न मन से काम में लग गई।
“क्या लेटर है” अनिल की आवाज़ से शालिनी की तंद्रा टूटी।
“इंश्योरेंस कंपनी से है , ये लिजिए”कहकर उसने अपने पति अनिल को लिफाफा पकड़ा दिया।मन ही मन बोली-
“मां, अब तो मैं ससुराल में रच बस गई हूं, पर तुम्हारे बिना सब सूना है, बाकी सब ठीक है, तुम्हारी वो प्यार भरी चिट्ठीयां नहीं है, बाकी सब ठीक है, काश एक चिट्ठी ऊहलोक से भी तुम्हारी आ जाती,और बता जाती मुझको “बाकी सब ठीक है”
*नम्रता सरन “सोना”*
भोपाल मध्यप्रदेश