आज रमाशंकर सिंह जी बहुत खुश थे। बहुत दिनों बाद उनका फ़ौजी बेटा घर आने वाला था। गांव में उनका छोटा सा घर था। पत्नी हमेशा बीमार रहती थी। मानसिंह उनका इकलौता बेटा जो बहुत मन्नत मांगने के बाद हुआ था। खुद भी सेना में रहे तो बेटे को भी देश सेवा के इतने पाठ पढ़ाये कि बेटे में भी देश सेवा की भावना
बचपन से ही बैठ गई बड़े होते फ़ौज मेंजाने की ज़िद्द करने लगा। माँ उर्मिला देवी अपने आंख के इकलौते तारे को खुद से दूर भेजने के पछ में नहीं रहती थी। पर बेटे की जिद्द के आगे हार गयी। बेटा फौज में भर्ती क्या हुआ उर्मिला देवी ने खाट ही पकड़ लिया।
आज सुबह जब मानसिंह ने फोन कर के पिता से बात की तो बोला मुझे छुट्टी मिल गई है मैं दो दिन में घर आने वाला मॉं को बोले अब चिन्ता नहीं करेंगी मैं उसके साथ ही रहूंगा। रमाशंकर पूरे गांव में घूम घूम कर सबको ये खबर दे चुके थे।
आज वो दिन भी आ गया रमाशंकर के साथ पूरा गांव मानसिंह के स्वागत की तैयारी में लगा हुआ था। पूरे गांव को गांव वालों ने रंगीन कागज के फूलों से सजा दिया। अचानक गांव की सड़क पर हॉर्न बजा। सब चिल्लाने लगे मानसिंह आ गया। रमाशंकर सिंह अपने बेटे को गले से लगाने को व्याकुल होकर आगे बढ़ने लगे । तभी दो जवान सर झुकाए पूछने लगे रमाशंकर सिंह कौन है?
रमाशंकर आगे बढ कर बोले जी मैं ही रमाशंकर सिंह हूँ ,आज मेरा बेटा मानसिंह आने वाला वो किधर है और आप सब ऐसे क्यों पूछ रहे? जवान सर झुकाए उनके पास आया उन्हें प्रणाम किया और बोले जी हम उनको लेकर ही आये है। दोनों जवान वैन के पास गये और एक ताबूत निकाल कर लाते तिरंगे में लिपटा वो ताबूत अनहोनी का संकेत दे चुका था।
रमाशंकर कांपते हुए हाथों से ताबूत का ढक्कन हटाया और गश खाकर गिरने को हुये। गांव वालों के साथ साथ जवानों ने भी उन्हें सहारा दिया। जब रमाशंकर ने अंदर देखा तो उनके होश उड़ गया। शहीद मानसिंह थे शरीर के साथ एक बैसाखी रखी थी और एक लिफाफा भी था। रमाशंकर ने जल्दी से लिफाफा खोला और पढ़ने लगे।
मेरे प्यारे पिता जी
सादर चरण स्पर्श,
आपको जब ये खत मिलेगा मैं आपके सामने तो रहूंगा पर आपके गले नहीं लग पाऊंगा। याद है पिताजी मैंने उस दिन जब आपको फोन किया तो एक दोस्त की बात कर रहा था, जिसने अपना एक पैर दुश्मनों का सामना करते हुए गंवा दिया । मैं उसको अपने साथ लाने के बारे में जब पूछा तो आपने कहा था,बेटा हम उसकी देखभाल कैसे कर पाएंगे ,
तेरी मां भी हमेशा बीमार रहती हैं। वो हमपर बोझ बन जायेगा।ऐसा कर तू उसको लेकर मत आना हम खुद जैसे तैसे अपना ख्याल रख पाते है उसके आने से परेशानी बढ़ जायेगी। पिताजी मैं समझ गया था मैं आपलोगो पर बोझ बन कर रह जाऊंगा। खुद तो बैसाखी थे बोझ तले दब गया आपसब खो अब परेशान नहीं घर सकता इसलिए
मैं आपको इस बोझ से मुक्त कर दिया। आप अपना और मां था ख्याल रखें। मैं कमजोर नहीं हूं पिताजी पर आप पर बोझ बन कर नहीं रह सकता था इसलिए मैं जा रहा हो सके तो मुझे माफ कर दीजिएगा।
आपका मानसिंह
रमाशंकर कभी अपने बेटे को देखते ,कभी खत तो कभी बैसाखी। उनके आंखों से आंसू थम ही नहीं रहे थे। आज जिस बेटे का इंतजार कर रहे थे वो ऐसे आयेगा सोच सोच घर उनका दिल बैठा था रहा था। बेटे ने पिता खो बैसाखी के बोझ से मुक्त घर दिया था। उर्मिला देवी पहले ही बीमार रहती थी अब बेटे की मौत से टूट गई।
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धन्यवाद
अँग्रेजी कहानी का अनुवाद है|
Oh, “The Load Of A Crutch”