Moral Stories in Hindi : आज निशा एक ऐसे ओहदे पर हैँ जहां पहुँचना नामुमकिन तो नहीं पर मुश्किल ज़रूर हैँ वो भी ऐसे हालातों में जब सास इतनी खतरनाक हो,,जोईंट फैमिली हो… बेचारी निशा 21 साल की थी जब राजवती जी के घर ब्याहकर आयी थी…. मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की ने जब ससुराल में अपना पहला कदम रखा तो…. निशा के कानों में घर की किसी औरत की आवाज गूंजी …..
अब तो आराम के दिन आ गए रज्जो (राजवती जी) तेरे… बैठकर रोटी तोड़ना … घर की बुआ सास बोली… तेरे पैरों में वैसे भी दर्द रहता… खूब पैर मसकवाना बहुरिया पर .. यह सुन निशा के अरमानों को जैसे धक्का लग गया हो….
वो तो यहीं सोचकर आयी थी कि उम्र ही क्या हैँ अभी मेरी… पढ़ने में होशियार हूँ.. ससुराल जाकर अपनी पढ़ाई जारी रखूँगी … अपने पैरों पर खड़ी होऊंगी … पति के साथ कांधे से कांधा मिलाकर चलूँगी … वो ऐसे सपने देखती भी क्यूँ ना समीर निशा के पति ने ब्याह से पहले फ़ोन पर बतियाते समय हमेशा यहीं तो कहा… कि ज़ितना चाहो उतना पढ़ना …
मेरे घर में सब तुम्हे रानी की तरह रखेंगे .. उसे क्या पता था कि बेटे को तो राजा की तरह रखते हैँ पर बहू तो पराये घर से आयी हैँ.. घर की नौकरानी हैँ… कुछ भी यहां मुफत में नहीं मिलेगा…. हर चीज की कीमत आपको अपने शारीरिक श्रम से चुकानी पड़ेगी…. बिमार तो घर की बहुएं पड़ ही ना सकती… वो तो बस नाटक करती हैँ….
बेचारी निशा भैंस पोयों का काम उनकी सानी, दूध काढ़ना , उनका गोबर उठाना सब करती क्युंकि भैंस का दूध निशा के बच्चे भी तो पीते हैँ…. दोनों छाक की रोटी चूल्हे पर ही बनती क्यूँकि गैस की किसी को पसंद ही नहीं थी…. मेघ आ जायें तो जल्दी से चूल्हा बुझा अंदर के चूल्हे पर आटा लेकर भागना पड़ता….सिल पर ही मसाला पीसती… मिर्च का तीखापन हाथों और आँखों से खत्म भी न हो पाता तब तक दूसरे छाक की सब्जी के लिए बट्टा चलाना पड़ता…
सासू माँ बस बैठी बैठी हुकम करती … साग पसंद ना आता तो थाली छोड़ देती और दस बातें अलग सुनाती…. आज तक मजाल हैँ सास ने अपना पेटीकोट भी अपने हाथ धोया हो निशा के आने के बाद से… तीन सालों दो बच्चों की माँ भी बन गयी… पर सास की तरफ से सहूलियत किसी काम में ना मिली… राजवती जी के जोड़ों का दर्द उस समय और बढ़ जाता जब बेचारी रात को चौका बासन कर बच्चों को सुला पति समीर के पास कुछ प्यार भरें पल गुजारने आती …
राजवती जी जोर जोर से कराहती कि समीर खुद ही कह देता जाओ माँ को ही देख लो…. शायद रात में ज्यादा ही दर्द होता हैँ उन्हे … बेचारी फिर मेक्सी चेंज कर साड़ी पहन बाहर आती … जब तक सासू माँ के पैरों की मालिश कर वापस ज़ाती तब तक पतिदेव खर्राटे भर रहे होते…. वो भी थकी हारी बच्चों की तरफ करवट बदल सो ज़ाती… सोती भी क्या आधी नींद… सुबह 3:30 -4:00 बजे उठना होता भैंसों को सानी जो देने होती… रात भर गुड़िय़ा निशा से चिपकी रहती…
पर कहते हैँ ना कभी न कभी तो आवाज उठानी ही पड़ती हैँ… बच्चें थोड़े बड़े हुए निशा ने एलान कर दिया… मुझे कोचिंग करनी हैँ सिविल सर्विसेस की… यह सुन राजवती जी को सन्न रह गयी… इस उम्र में पढ़ेगी ..बुद्धि सठिया गयी हैँ… बच्चें पढ़ जायें ये ही बहुत हैँ.. तू पढ़ेगी तो घर के काम कौन करेगा…
आपको समय पर रोटी मिलेगी… सारे काम मैं ही करूँगी … इससे पहले की सासू माँ कुछ बोलती पहली बार पतिदेव समीर बोले…. जब कह रही हैँ ये माँ कि सारे काम करते हुए पढ़ाई करेगी तो क्या दिक्कत हैँ आप लोगों को… ससुरजी तो मन ही मन बहुत खुश हुए कि चलो बहू पढ़ना चाहती हैँ…
पर अपनी खूँखार पत्नी के आगे ज्यादा बोलने की वो भी कभी हिम्मत ना कर पायें…. बस इतना ज़रूर बोले… रज्जो … देखते हैँ कौन सा तीर मार लेती हैँ बहू कोचिंग करके…. काम तो सब करेगी ही…. हां कर दें…. राजवतीजी बस इतना बोली….. समीर के बापू कुछ ऊँच नीच हुई तो इसे इसके मायके ही भेज दूँगी इसके बाद….
ठीक हैँ… ठीक हैँ… बहुरिया बहुत समझदार हैँ… ससुरजी इतना बोल निशा के सर पर हाथ रख चले गए… पहली बार आज जीवन में निशा ससुरजी का अपनापन देख खुश थी….
अगले दिन से नई निशा का जन्म हुआ जो सुबह जल्दी उठ दूध काढ़ घर का झाड़ू पोंछा कर खाना पीना बना अपने बच्चों को लेकर 8 बजे निकल ज़ाती… बच्चों को स्कूल छोड़ देती खुद आगे कोचिंग चली ज़ाती…. बच्चों के आने से पहले कोचिंग से आ ज़ाती…. जब समय मिलता चौके के बखत , पाखाने में , गुसलखाने में बच्चों के सोने के बाद, सासू माँ के पैर दबाते समय बस याद किया य़ा समझा हुआ दोहराती रहती…
राजवती जी ससुर जी से कहती… बहुरिया अधिकारी तो नहीं पागलखाने में ज़रूर भर्ती हो जायेगी… पूरे दिन बड़बड़ाती हैँ….
धीरे धीरे मेहनत रंग ला रही थी निशा की… प्री पेपर हर बार निकल जाता आईएएस का पर मेंस में रह ज़ाती… बहुत निराश होती… फिर हिम्मत कर लग जाती मेहनत करने… हर बार एक दो नंबर से रह ज़ाती…. उसका लास्ट अटेम्ट बचा था… दिन रात एक कर दी थी निशा ने…. आखिरकार मेहनत रंग लायी… हर अखबार मिज निशा की फोटो छपी थी….
लोग तारीफें करते नहीं थकते थे… ससुराल में बधाई देने वालों का तांता रुक नहीं रहा था…. आज वहीं राजवती जी जो निशा को कुंये का मेंढक समझ रही थी.. किसी के भी आने पर यहीं कहती… बहुरिया तो होशियार थी वो घर गृहस्थी के जाल में फंसकर थोड़ा समय लग गया बस…. आखिर सासू माँ को भी निशा की कदर हो ही गयी….
आज निशा एसडीएम हैँ…. और अपने परिवार की ज़िम्मेदारियां भी बखूबी निभा रही हैँ…
#सासू जी तूने मेरी कदर ना जानी….
स्वरचित
मौलिक अप्रकाशित
मीनाक्षी सिंह
आगरा