नव्या को ससुराल आए हुए एक साल हो गया था घर की जिम्मेदारी भी अधिकतर उसने सम्हाल ली थी लेकिन आज भी सासू मां से ही पूछ कर खाना बनता ,महीने का राशन हो या कभी ज्यादा लोगों को खाना बनना हो तो सासू मां खुद रसोई सम्हालती
नव्या को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आती उसे लगता सासू मां को बड़ा घमंड है की ये घर उनका है मैं तो जैसे
नौकरानी हूं इस घर की हर काम पूछ पूछ कर करो लेकिन वो भूल गई की उसने ही जिम्मेदारी को सही तरीके से नही निभाया
नव्या की सास विभाजी घर परिवार चलाने मैं बहुत सुघड़ थी उनका मानना था नव्या मैं अभी इतनी समझ नही है की कितना बनाना है नव्या जब घर मैं नई आई थी तो उसे जिम्मेदारी दे कर वो निश्चिंत हो गई उसे समझा दिया की खाना उतना ही बनाना की बहुत ज्यादा नही बचे
एक दिन वो घर नही थी तो नव्या ने चार लोगों के लिए काफी सारी दाल चावल सब्जी बना ली जिस दूसरे दिन तक खानी पड़ी
उस दिन उन्होंने नव्या को समझाया की नाप से बनाया करो पर नव्या को समझ नही आया और वो अपने हिसाब से बनाने लगी विभाजी को लगा की रोज रोज टोकने या कहने से रिश्ते खराब हो जायेंगे इसलिए उन्होंने कहा अब मुझसे पूछ कर बनाना
नव्या अपने मायके मैं अपनी सासू मां की बुराई करती रहती और दिन ब दिन उनसे नफरत करने लगी
इस बात से अनजान बिभा जी नव्या का बहुत परवाह करती की उसे ससुराल मैं परायापन नही लगे उन्हे क्या पता उनकी फिक्र को नव्या घमंड समझ रही है
आज उन्होंने नव्या को मां से बात करते सुना की अभी तक नौकरों की तरह उनसे पूछो रसोई मैं ज्यादा सामान लिखो तो कहती है खराब हो जायेगा जब जरूरत हो तब मंगा लेना बड़ा घमंड है उन्हे अपने घर पर जैसे मै तो कुछ हूं ही नही,।।
विभाजी अपने कमरे मै आ गई मन मै सोचा ऐसे तो रिश्ते बिगड़ जायेंगे दूसरे दिन उन्होंने नव्या से कहा की तुम्हे लगता होगा हर सामान मेरी मर्जी से आता है तुम्हारी तो चलती नही है तो ऐसा नहीं है मुझे फिक्र है तुम्हारी और सबकी मैने तुम्हे शुरू मैं जिम्मेदारी दी थी पर तुम्हे समझ नही आया की गृहस्थी मैं सब सोच समझ कर चलना पड़ता है अब मैं रोज तुम्हे टोकती तो हमारा रिश्ता खराब होता धीरे धीरे तुम्हे समझ आ जाएगा तब तुम ही सम्हालना और तुम नौकरानी नही लक्ष्मी हो घर की
अब नव्या को अहसास हुआ की जिसे वो घमंड समझ रही थी वो फिक्र थी सासू मां की वो बेटी की तरह गले लग गई विभाजी के
स्वरचित
अंजना ठाकुर