*बहू तो बहू ही रहेगी* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

             मालती को कुल दो वर्ष ही तो हुए थे शादीशुदा हुए।बड़े अरमान लिये बाबुल का घर छोड़ खींची चली आयी थी,नीरज के साथ इस बड़े घर मे,जहां उन दोनों के अतिरिक्त बस सासू मां और ननद रूपा ही थे।बड़ी गर्मजोशी से उसका स्वागत हुआ था।उसे लगा था अब वह हिरनी की तरह कुलाचे मारने वाली नहीं रह गयी है,

वरन इस घर की महत्वपूर्ण किरदार हो गयी है।कितने ही दिनों तक वह धीरता गंभीरता का मुखोटा ओढ़े रही, पर अंदर की चंचलता कहाँ लेकर जाये।उसे कभी कभी रूपा से ही ईर्ष्या होने लगती कि वह तो स्वच्छंद है पर उसे घर की सब परंपराओं का ध्यान माँ दिलाती रहती। इससे उसे अंदर ही अंदर कुढ़न सी होती,पर नीरज का प्यार उसे सब निर्वहन करने की प्रेरणा देता।

      एक बात मालती नोट करती कि सासू माँ घर मे उसकी सलाह के बिना कुछ भी नही करती।कभी कभी तो वे उससे बात करते समय रूपा को भी हटा देती,तब मालती को लगता कि वह इस घर मे कितनी महत्वपूर्ण है।समय के साथ मालती भी परिपक्व होती जा रही थी।एक दिन रूपा बोली भाभी एक बात कहना चाह रही हूं,पता नही आप क्या सोचोगी,कैसे रियेक्ट करोगी?अरे बोल ना रूपा, मुझसे  कुछ भी कहने में क्या हिचक,चल बता क्या बात है?

    भाभी- भाभी असल मे वो मैं और पीयूष एक दूसरे से प्यार करते हैं, पीयूष बहुत अच्छा है,भाभी आप एक बार मिल लो ना उससे,फिर माँ से बात कर उन्हें राजी कर दो ना भाभी।

    ओह, तो ये बात है,अपनी रूपा बड़ी हो गयी है।देख रूपा पीयूष यदि तुम्हारे लायक होगा,तो मैं कोशिश करूँगी अन्यथा तुम्हे उसका साथ छोड़ना होगा।कल मुझसे उसे सामने वाले पार्क में मिलवा देना।ओह भाभी तुम कितनी अच्छी हो।

     अगले दिन मालती से पीयूष की भेंट हो गयी।मालती ने केवल यही पूछा कि पीयूष जिस तरह से रूपा ने मुझे तुमसे मिलवाया है,क्या तुम भी मुझे अपने घर मे किसी से मिलवा सकते हो?यह प्रश्न सुन पीयूष एकाएक सकपका गया,फिर कुछ क्षण बाद बोला भाभी सही बात तो यह है कि मैंने रूपा के बारे में घर पर अभी बताया ही नही है,

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पर भाभी मैं आपसे वायदा करता हूँ कि दो तीन दिन के अंदर मैं आपको अपनी मां से मिलवाऊंगा।तो ठीक है पीयूष मैं तुम्हारे निमंत्रण का इंतजार करूँगी,एक बात और देखो तुम दोनो को एक वायदा और करना पड़ेगा,जब तक अब तुम्हारी शादी की बात पक्की न हो जाये,तुम एक दूसरे से प्रत्यक्ष नही मिलोगे। रूपा और पीयूष ने यह वायदा निभाने का आश्वासन दिया।

       पीयूष एक सम्पन्न परिवार का बेटा था।पिता के साथ वह अपने कारोबार की ट्रेनिंग लेने साथ ही जाता था।उसके पिता एक अच्छे उद्योगपति थे।मालती को यूं तो पीयूष रूपा के लिये एक नजर में भा गया था,पर वह कही रूपा के साथ फ्लर्ट तो नही कर रहा यही मालती को परखना था।चार दिन बाद ही पीयूष का फोन मालती के पास आ गया,बोल रहा था,भाभी माँ और बाबूजी तैयार हैं,

वे भी आपसे मिलने को उत्सुक हैं।जानती हैं भाभी बिना रूपा से मिले,मम्मा और पापा तैयार कैसे हो गये, भाभी उनका कहना था जिस परिवार की बहू सीधे अपनी ननद के प्रेमी से उसके परिजनों से पहले मिलने की शर्त रखती है,तो बेटा हम ऐसे संस्कारित परिवार से रिश्ता जोड़ना चाहेंगे,फिर रूपा को तो तुम जानते ही हो।

        मालती ने माँ को सब बात बता कर कि वह कैसे पीयूष से मिली और बाद में उसकी माँ से भी मिली,रूपा की शादी पीयूष से कराने का आग्रह किया।सासू माँ ने एक क्षण मालती की ओर देखा और उसके सिर पर हाथ रख स्वीकृती दे दी।कुछ ही दिनों में रूपा और पीयूष की शादी हो गयी।

      उस दिन घर पर मिलने आयी पड़ौसन से सासू माँ कह रही थी कि बहना,मालती को मैं बेटी कतई नही मानती,केवल बहू मानती हूं बहू-एक अच्छी ,एक आदर्श बहू।बहना बेटी तो अमानत होती है,वह तो पराया धन होती है, दूसरे घर की बहू होती है। बहू होती है घर की मालकिन, हमारे बुढ़ापे का सहारा।बहना मैंने तो अपनी मालती में कभी भी रूपा को नही देखा,मैंने तो उसे रूपा के संरक्षक के रूप में देखा है।इस घर की मालकिन के रूप में देखा है।

     सुनकर मालती अपनी नम आंखों को पोछते हुए चाय बनाने रसोई की ओर चल दी।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

*#सिर्फ बहू से ही बेटी बनने की उम्मीद क्यों???*

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