रुचि बहुत ही चुलबुली और सदा हंसने वाली लड़की थी।
जब वह संदीप की जिंदगी में आई तो उसने संदीप की जिंदगी को खुशियों से भर दिया था।
रुचि और संदीप की शादी को ढाई वर्ष बीत चुके थे।
संदीप अपनी नौकरी के चलते अपने मां बाप से दूर अलग शहर में रहता था।
एक दिन जब काम से संदीप घर वापस आया तब रुचि ने उसे खुशखबरी देते हुए कहा” संदीप तुम पिता बनने वाले हो। मैं मां बनने वाली हूं।
अपनी पत्नी रुचि की यह बात सुनते ही जैसे संदीप को सब खुशियां मिल गई हो।
उसने फ्रिज में से एक चॉकलेट निकाली और मुंह मीठा कराते हुए पत्नी से कहा। “रुचि तुमने यह खुशी की खबर दे कर मुझे जीवन की सारी खुशियां दे दी है। आज मैं बहुत खुश हूं। बोलो तुम्हें क्या चाहिए। मैं तुम्हें कुछ उपहार देना चाहता हूं।
इतने में रुचि कहती है” उपहार देना ही है पतिदेव तो एक वायदा दीजिए कि आप इन 9 महीनों में मेरा पूरा ध्यान रखेंगे और मुझे एक छोटे बच्चे की तरह पैंपर करेंगे मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
पक्का वायदा। ऐसा कहते ही संदीप रुचि के माथे को चूम लेता है।
और इसी तरह कुछ दिन निकल जाते हैं। कुछ महीने बाद रुचि के मामा के लड़के की शादी होती है जिसमें रुचि बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती है आखिरकार भाई की शादी के अरमान जो होते हैं।
उस समय रूचि का पांचवा महीना चल रहा होता है। शादी की भाग दौड़ में ना जाने ऐसा क्या हुआ कि रुचि का बदकिस्मती से गर्भपात हो जाता है। गर्भपात की खबर से रुचि की सास सुनीता देवी भी उनके घर बहू की देखभाल और मदद के लिए कुछ दिन रहने आ जाती है।
गर्भपात की खबर से रुचि पर तो जैसे एक पहाड़ से टूट पड़ा। पति और सास को उसे संभालना जैसे बहुत मुश्किल हो गया था।
इस तरह से कई दिन बीत गए। बेटे और बहू के संग कुछ दिन बिताकर मां भी अब वापस अपने घर लौट गई थी।अपनी पत्नी रुचि को उदास देख एक दिन संदीप रुचि से कहता है” रुचि मैं मानता हूं हमारे आने वाले बच्चे को लेकर काफी अरमान थे। मैं भी बहुत आहत हुआ हूं। पर ईश्वर के आगे किसी की नहीं चलती।जो होता है अच्छे के लिए होता है।हो सकता है इसमें भी हमारी भलाई छिपी हो।
ऐसे उदास नहीं होते।तुम एक काम करो ।थोड़े दिन अपनी मम्मी और थोड़े दिन ससुराल लगा आओ।तुम्हारा मन बहल जाएगा। वैसे भी तुम्हारी मम्मी के कई बार फोन आ चुके हैं। वे तुम्हें बुला रही है।
इस पर रुचि ने कहा” ठीक है!
और अगले ही दिन वह कुछ दिनों के लिए मायके और ससुराल आ गई।
वहां उसे कुछ अच्छा लगा और पति को ज्यादा दिन अकेले ना रहना पड़े इस लिए वह संदीप के पास कुछ दिनों बाद अपने घर लौट आईं।
वापिस आने के बाद उसकी लेडी डॉक्टर ने उसे बुलाया और कुछ टेस्ट करने को कहे।और कुछ दवाइयां दी कि इनका सेवन रोज करना है साथ ही सलाह दी कि अभी 6महीने का अंतर रखना होगा।
आखिरकार 7से 8महीने बाद एक दिन फिर।
रुचि संदीप से कहती है”फिर से अच्छी खबर है। मैं मां बनने वाली हूं।
पर वो कहते है हर किसी के जीवन में फूलों की सेज हो ऐसा नहीं होता।
रुचि की जिंदगी इन 9 महीनों में कठिनाइयों से भरी रहने वाली थी इसका अंदाजा भी नहीं था उसको।लेकिन उसका मां बनने का ज्जबा चरम सीमा पर था। जैसे एक ईश्वरीय शक्ति उसका साथ दे रही हो।
अभी थोड़े ही दिन बीते थे कि उसे ब्लीडिंग शुरू हो गई।
रात के अंधेरे में उसने पति को उठाया और कहा।” संदीप गड़बड़ सी लग रही है मुझे। पेट में भी दर्द हो रहा है ।
और दोनों तुरंत रात के ३ बजे अस्पताल पहुंचे। रुचि का दिल जोर जोर से धड़क रहा था कि कहीं इस बार भी मंजिल छूट ना जाए।
डॉक्टर से मिलने पर पताचला कि भगवान ने एक नहीं दो दो औलाद गोद में दी है।
जुड़वा बच्चे है। पर एक पर समय भारी है।कई दिन अस्पताल र हना होगा।
ड्रिप और दवाइयां कई दिन चली। और रुचि का दिल भी धड़क रहा था कि कहीं इस बार भी कुछ गड़बड़ ना हो जैसा पिछली बार हुआ था।
वो कहते है ना दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है।
पर इस बार भगवान परीक्षा लेते लेते पास भी करते जा रहे थे।
रुचि को अस्पताल से छुट्टी मिल गई।संदीप ने अपनी मां को भी बुलवा लिया था।
घर आते ही सारे नियमो का पालन करते हुए जो डॉक्टर ने कहे थे रुचि एक एक दिन निकाल रही थी।
बीच बीच में तकलीफों का जोर चलता रहा।
परन्तु रुचि के हौंसले दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे थे।
पांचवे महीने ही रुचि का बीपी बहुत हाई रहने लग गया था।
इतना हाई की डॉक्टर ने उसे नमक ,घी ,तेल बहुत कम ना के बराबर खाने की सलाह दी थी।जहां प्रेगनेंसी में औरतों का मन खट्टा खाने को करता है। गोलगप्पे, चा ट,पपड़ी ।वही रुचि का खाना सादा आहार बन गया था जिसमें जैसे कि कम नमक वाली दाल, सब्जी ,फल दूध, आंवले का मुरब्बा यह सब शामिल था।
क्योंकि उसे मालूम था कि यह 9 महीनों की तपस्या एक ना एक दिन रंग अवश्य लाएगी ।
हाई बीपी में उसे रात रात भर चक्कर आते ।डॉक्टर ने बीपी कम करने के लिए दवाई से ज्यादा पानी पीने पर जोर दिया क्योंकि मां बनने के दौरान दवाई लेना उचित नहीं था।
साथ ही साथ अभी कुछ दिन और बीते ही थे कि उसके पूरे शरीर पर चिकन पॉक्स का जोर हो गया।
पूरा शरीर पानी वाले दानों से भर गया। दानों में जलन के साथ इतना दर्द होता कि उसकी चीस निकल जाती। दवाई लेने की मनाही थी। कि होने वाले बच्चों को कोई नुकसान ना हो जाए।
सास ने भी उसका साथ देते हुए उसे तसल्ली दी और कहा। “कोई बात नहीं बेटा! तेरी तपस्या के दिन है। यदि इसे तपस्या कहते हैं ,तो हां! तूने तपस्या कर ली। फर्क इतना है कि पुराने जमाने में ऋषि मुनि ईश्वर को पाने के लिए तपस्या करते थे और तू अपने नन्हे को पाने के लिए तपस्या कर रही है।
आठवां महीना आते आते दो बच्चे होने की वजह से रुचि को सांस आना बिल्कुल बंद सा हो गया था।
रुचि अपने घर के ही पिछले बगीचे में रात रात भर सांस के आने का इंतजार करती कि एक पल तो ऐसा हो कि जब ढंग से सांस आए।तब सास और पति भी कहीं ना कहीं दर्द से कराह उठते।
तब सास ने बहू से कहा ” बेटी हिम्मत कर। मैं तेरा दर्द अपने ऊपर तो नहीं ले सकती परंतु तुम्हें हिम्मत अवश्य दे सकती हूं ।और वैसे भी मैं भी एक माँ हूँ तो तेरी तकलीफ अच्छे से समझ पा रही हूँ। इस लिए इस कठिन समय में हम तेरे साथ हैं।
सास की इन बातों से कुछ और हिम्मत रुचि में आ गई थी।
परंतु आठवां महीना आते ही पूरे शरीर पर सूजन आ गई।,पैर तो ऐसे जैसे हाथी के पैर के समान।
बहुत कष्ट भरे माहौल में उसके पति मां और सास ने उसके हौसले कमजोर नहीं पड़ने दिए।उसे हिम्मत देने में पति संदीप ने अहम भूमिका अदा की
उसने अपनी पत्नी रुचि से कहा मुझे याद है रुचि तुमने मुझे पहली बार जब तुम मां बनने वाली थी तब उपहार में मुझे कहा था कि मैं तुम्हें पूरे 9 महीने एक छोटे बच्चे की तरह पैंपर करूं। तुम्हारी इतनी कठिन हालत में मैं तुम्हें पैंपर कर सकता था मैंने तुम्हें किया। फिर भी कोई कमी रह गई हो तो मुझे माफ कर दो।
इतने में पति के मुंह पर हाथ रखते हुए” अरे इसमें आपकी क्या गलती है संदीप। मुझे 9 महीने में कठिनाइयां आनी थी वह आ गई और आपने तो मेरा पूरा ध्यान ही रखा है और यकीन मानिए मुझे आप से ही तो हिम्मत मिली है।
और इसी तरह कुछ दिन और बीत गए।
परन्तु एक नारी की शक्ति अपरम्पार है।इतना कष्ट एक नारी ही सहन कर सकती है।
शायद इसी लिए मां को ईश्वर का दूसरा रूप कहते है।
आखिर वह घड़ी आ ही गई जिसका इंतजार था।
रुचि ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। जब उसने उनके नन्हे छोटे छोटे पैरों को चूमा तो वह अपने सारे दर्द भूल गई।
मां बनने के खूबसूरत अहसास को वह महसूस कर पा रही थी।और इसमें भूल गई उन 9 महीनों को जो उसकी तपस्या के दिन थे। उसी तपस्या का फल था कि आज एक नहीं भगवान ने दो बच्चे छप्पर फाड़ के दिए थे।
आज रुचि को संदीप के वे शब्द याद आ रहे थे जो उसने पहली बार जब उसने अपना बच्चा गवाया था तब कहे थे। वे शब्द थे” जो होता है ;अच्छे के लिए होता है। इसमें भी हमारी कोई भलाई है। वाकेही ही हर बात के पीछे कुछ अच्छा ही होता है। बहुत अच्छा होता है।
तभी तो एक के जाने के बाद दो हीरे मिल गए।
उसने सास और पति को दिल से धन्यवाद करते हुए कहा “आप लोगों ने कठिन समय में मेरे दर्द को समझा। मुझे हौसला दिया। ये मैं सदैव याद रखूंगी।
और वो पति और सास के गले लग जाती है
दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी पढ़कर बताइएगा अवश्य।
दोस्तों इस कहानी को लिखने का एक मात्र उद्देश्य यह बताना है कि नारी कितने भी कष्ट क्यों ना आए कभी विचलित नहीं होती। और यदि उसके दर्द को परिवार के सदस्य अपना समझ कर साथ दे तो हिम्मत और बढ़ जाती है। इस कहानी को पढ़कर हो सकता है कई पाठक अपने आप को जोड़ कर देख पाएं।मां बनने का खट्टा मीठा सफर एक बार फिर कहानी के माध्यम से यादों के रूप में कर पाएं।और एक सुखद अंत अपने बच्चे को गोद में पाकर मां शब्द को पूर्ण कर सकें।
#अपने_तो_अपने_होते_हैं
आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में।
आपकी दोस्त।
ज्योति आहूजा।
Bahut badhiya par sabka bhagya aur rishte ek se nhi hote.. heart touching story