“ ये आपसे किसने कहा मामी जी कि मैं मम्मी जी का ध्यान नहीं रख सकती…. ज़रूर आपको कोई ग़लतफ़हमी हुई है… ये मेरी मम्मी जी है और इनके लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं किसी दूसरे को बताने की ज़रूरत नहीं है …ना ही मम्मी जी अकेली है ।”तृप्ति ने कमरे में घुसते हुए कहा और साथ लाया चाय नाश्ता उनके सामने रख दिया
तृप्ति की सास कांता देवी कातर निगाह से अपनी बहू को देख रही थी।
कांता देवी से मिलने आई कांता देवी की भाभी और उनकी बहू कुछ देर उनसे बात चीत कर बहू के खिलाफ कान भर कर चलती बनी।
तृप्ति उनके जाने के बाद सास के कमरे में आई और चुपचाप बर्तन समेट कर चली गई …. ना सास ने कुछ कहा ना तृप्ति ही कुछ बोली।
कांता देवी अपने बिस्तर पर पड़ी हुई थी ,जानती थी तृप्ति उनसे कभी कुछ नहीं बोलेगी…. पर अपनी तरफ़ से उनकी सेवा में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।
दो दिन पहले की ही तो बात है…कांता देवी बड़े चाव से अपनी महिला मंडली के संग भजन कीर्तन और बहू पुराण कर रिक्शे से घर आ रही थी कि एक गड्ढे में रिक्शा गिरा और कांता देवी के कमर में ज़ोरदार चोट लगी ,ग़नीमत यही रही कि कोई हड्डी नहीं टूटी पर शरीर में कई जगह खरोंचें आई और पूरे बदन में दर्द की लहर दौड़ गई चलने फिरने में भी थोड़ा कष्ट तो हो ही रहा था उपर से पैरों में सूजन आ गई थी जो सिकाई और दवा से चली जाएगी… ऐसा डॉक्टर ने कहा।
अब दिनभर इधर-उधर घूम कर बहू की ढेरों बुराई करने वाली कांता देवी के समझ नहीं आ रहा था कि बहू उनकी सेवा करेगी भी और नहीं…. उन्होंने बहुत सोच कर अपनी बेटी को फोन किया वो आ जाए और माँ की सेवा कर ले…पर बेटी कहाँ ये सब करने आने वाली थी …घर के हज़ारों काम गिना कर ना आ सकने की अपनी मजबूरी कह डाली।
जो भी कांता देवी की तबियत का सुनता मिलने चला आता… अब जो हर समय अपनी बहू की तारीफ़ इस तरीक़े से की हो तो लोग तो सास से हमदर्दी जताने आएँगे ही।
रात को तृप्ति कांता देवी के लिए खाना लेकर कमरे में आई… बेड पर एक छोटा मेज रख उसपर प्लेट रख कर बोली,“ खाने में दिक़्क़त हो तो बता दीजिएगा मैं इधर ही हूँ..।” कह वो उनकी रात की दवाइयाँ निकालने लगी
“ बहू अपनी सास को माफ़ नहीं करेगी?” अचानक से कांता देवी ने कहा
“ किस बात की माफ़ी मम्मी जी और आप माफ़ी क्यों माँग रही है?” तृप्ति अचानक उनकी तरफ़ देखते हुए बोली
“ बहू तू सब जानती है मुझे पता है आज की बात से तू बहुत दुखी भी है…..भाभी के साथ मुझे वो सब बात नहीं करनी चाहिए थी…. उनकी अपनी बहू से तो बनती नहीं मुझे सिखाने चली थी।“ रोटी का कौर हाथ में थामे…रूँधे गले से कांता देवी कहने लगी
“ जो हुआ सो हुआ मम्मी जी…अभी पहले आप खाना खाइए फिर बात करते हैं ।” तृप्ति सास के हाथ को पकड़ रोटी का कौर मुँह में देते हुए बोली
कांता देवी हर कौर के साथ सोच रही थी…. तृप्ति को पसंद यूँ तो बेटे ने किया था पर पूरे परिवार की रज़ामंदी और सब विधि विधान के साथ ही वो इस घर की बहू बन कर आई थी…जॉब के साथ घर को भी बख़ूबी सँभाल रही थी… एक ननद थी जिसके साथ उसने कभी कोई अनबन नहीं की थी… बड़े होने के हर फ़र्ज़ को वो अच्छी तरह-तरह निभा रही थी पर ना जाने क्यों कांता देवी तृप्ति से नाखुश रहती थी…. शायद बेटा अरूप माँ से ज़्यादा पत्नी को समय देने लगा था… उसकी तारीफ़ किया करता था जो कही ना कहीं कांता देवी को खटकने लगा था…. अब तो ऐसा हो गया था कोई जरा सा भी तृप्ति की बात करता वो खार खाए रहती और जो बेचारी तृप्ति कभी करती भी नहीं वो नमक मिर्च लगाकर दूसरों के सामने परोस दिया करती.. सबसे बस वो तृप्ति के खिलाफ ही बोला करती ….तृप्ति इन सब से अनजान नहीं थी पर जानती थी वक़्त आने पर परिवार में कौन किसका कितना अपना है मम्मी जी समझ ही जाएगी और जब बेटी ने आने से मना किया तभी से कांता देवी को लग रहा था कि अब तृप्ति उनकी देखभाल नहीं करेंगी और वो ऐसे ही लाचार सी बिस्तर पर पड़ी रहेगी पर इन सब के विपरीत तृप्ति कांता देवी की सेवा के लिए छुट्टी ले ली थी….. और वक़्त पर सिकाई और दवाइयाँ दे रही थी ।
सोचते सोचते खाते हुए अचानक गला रूँधा और कौर गले में अटक गया…. तृप्ति जल्दी से पानी पिलाते हुए देखी कांता देवी की आँखों में आँसू….,“ क्या सोच रही है मम्मी जी…. ज़्यादा तकलीफ़ हो रही है तो अरूप को बुलाऊँ?”
“ आज मुझे किसी की नहीं तेरी ज़रूरत है बहू…. तुझसे माफ़ी माँगना है और दिल का बोझ हल्का करना है ।” कांता देवी तृप्ति से बोली
“ मम्मी जी मुझे नहीं जानना आप मेरे ख़िलाफ़ किस से क्या कहती रही है बस इतना जानती हूँ आप अरूप की माँ है और मैं इस बात के लिए आपकी शुक्रगुज़ार हूँ…. अरूप को कुछ नहीं पता आप मेरे बारे में क्या कहती रहती हैं और मैं चाहती भी नहीं हूँ वो ये सब जाने….बस एक ही बात आपसे कहूँगी आप जितना किसी दूसरे से कुछ कहेंगी उतना उनको कहने का मौक़ा मिलेगा….. ये हमारे घर की बात है आपको मुझसे कोई शिकायत हो सीधे मुझसे कहिए यूँ दूसरे तीसरे से कहने से वो हमारे रिश्ते को कमजोर करते चले जाएँगे…. परिवार में रहने का मतलब ही यही होता है किसी का सुख दुख सबका होता है…. आप तकलीफ़ में है कोई करने नहीं आएगा…. बातें बना कर चले जाएँगे पर आप मेरा परिवार है आपको मैं जितनी अच्छी तरह जानूँगी समझूँगी दूसरे कभी नहीं…. बस आज के बाद ना तो आप किसी की बुराई सुनिए ना किसी की करिए…. हम एक बार अपने घर के दरवाज़े सब के लिए खुला छोड़ देंगे लोग हमारे घर की कही अनकही बात भी नमक मिर्च लगाकर करेंगे, जब हम किसी के खिलाफ एक कहते हैं वो मजे लेकर चार और जोड़ देता है ।” तृप्ति सास के हाथों को प्यार से सहलाते हुए बोली
“ सच में बहू …. तेरी सास से ये गलती हो गई अब नहीं होगी…. जैसे परिवार को सँभाल कर रखने की ज़िम्मेदारी तेरी है तो बुरी बला से बचाने की ज़िम्मेदारी मेरी होनी चाहिए और मैं अच्छी भली बहू को बुरा बनाने चली थी, अब कोई कुछ कहा तो मैं उसे चुप करा दूँगी…।”कांता देवी ने कहा
“ ये हुई न माँ वाली बात… अब चलिए दवा खा कर आराम करिए…. कल फिर कोई ना कोई तो मिलने आएगा ही ये देखने कि आपके परिवार में आपकी बहू आपका ध्यान रख भी रही है और नहीं ।” तृप्ति के ऐसा कहते ही दोनों सास बहू हँस दी
सच ही तो है अपने परिवार के किसी भी सदस्य के खिलाफ आप जरा सा कुछ भी कहेंगे सामने वाले को मौक़ा मिलेगा और वो परत दर परत बातों की झड़ी लगा कर आपके परिवार की धज्जियाँ उड़ा देगा… चाहे वो अपने परिवार में कैसा भी हो…।
परिवार की इज़्ज़त अपने हाथ में होती है चाहे वो सास बहू का रिश्ता ही क्यों ना हो इसलिए अपने रिश्तों के खिलाफ कहने से पहले एक बार सोचना ज़रूर चाहिए ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
मौलिक रचना
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