बहू जीवनसाथी है ……. – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi

अब मैँ तुम्हारे इस घर में नहीं रह सकती सनी …. 

मेरा दम घुटता है इस घर में…..

शिवानी जोर जोर से अपने पति सनी पर चिल्ला रही थी जो अभी थका हारा काम से वापस आया था …. 

ये आज का नहीं रोज का है …. 

शिवानी को ब्याह कर आयेँ इस घर में सात महीने ही हुए है …… 

क्या हो गया शिवानी….

 तुम रोज रोज क्लेश करने लगती हो…. 

अभी हमारी शादी को समय ही कितनी हुआ है …… 

मोहल्ले में सब क्या सोचते होंगे कि जब से मनोहर जी की बहू आयी है तबसे कितना झगड़ा होता है इनके यहां…. तुम्हारे हाथ ज़ोड़ता हूँ धीरे बोला करो….. 

पापा की इस समाज में बहुत इज्जत है ….

 सालों से रह रहे है हम यहाँ…. 

इस स्वर्ग से घर में हंसी की किलकारियां ही गूंजती थी …… 

सनी बोला…. 

ओह तो सनी…… तुम कहना क्या चाहते हो साफ साफ बोलो…..मैने तुम्हारे इस स्वर्ग से घर को नरक बना दिया …. 

किस इज्जत की बात करते हो तुम ….. 

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तुम्हारे  पापा उस डंडे वाली सायकिल पर झोला टांगकर  ज़ाते हैं …..वो पोस्ट ऑफिस के क्लर्क की नौकरी करने……

एक मेरे पापा एवन ऑफिसर …….

इज्जत तो तुम लोगों ने मेरी मिट्टी में मिला  दी है …. 

हाई प्रोफाईल सोसायटी से थी मैँ….. 

इतने बड़े घर से जहां नौकर चाकर थे ….. हर चीज हाथों में मिलती थी …… वेस्टर्न ड्रेसेस पहनने वाली मैँ कहां इस घूँघट में मेरा दम घुटता है …. ना मन का खा पाओ ना पहन पाओ …. 

एसी भी नहीं है यहां …. ये कूलर ज़िसकी हवा खाने पूरा घर यहीं आकर बैठ जाता है …… 

खाने में भी राईस तब बनता है जब छोले , राजमा , कढ़ी बनती है …. बाकी बस रोटी थोप दी जाती हैं ……

 ऐसा लगता है मैँ पिंजड़े में कैद हो गयी हूँ मैँ ….. 

आज शिवानी बोलती जा रही थी ….. 

बस शिवानी मैं अपने माँ पापा की बेइज्जती अब और बर्दास्त नहीं कर सकता….. 

इस डंडे वाली सायकिल पर जाकर वो छोटी सी नौकरी करके ही मेरे बाऊ जी  ने हम चार भाई बहनों को पढ़ाया है …… इस मेरी सरकारी  नौकरी को देखकर ही तुम्हारे  पापा ने  हमारी शादी के लिए हां बोली …. मुझे इस ओहदे पर पहुँचाने वाले मेरे बाऊ जी और माँ ही है ….. 

बाऊ जी ने कितना मना किया कि बड़े घर की लड़की से शादी से मत कर लला….. 

उसे हमारी ज़िन्दगी पसंद नहीं आयेगी पर मैं तुम्हारे प्यार में अंधा था …. 

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तुमने भी तो हजारों वादे किये थे कि मैँ हर परिस्थिति में तुम्हारे साथ रह लूँगी सनी…… बस मुझसे शादी कर लो….. 

हमारी नयी शादी है ऐसलिये माँ तुम्हे साड़ी पहनने को कहती है ….. माँ बाऊ जी तो ऐसे है अगर तुम बिना कपड़ो के भी घूमो तो कुछ नहीं कहेंगे …. 

तुम्हे अगर उनके हाथ का खाना पसंद नहीं तो तुम खुद बना लो मन का….. वो तुम्हे कभी नहीं टोकेगी …… तुम जबसे आयी हो तुमने एक कप चाय भी उन्हे अपने हाथ से बनाकर पिलायी है … बात करती हो…… 

सब कहते थे सनी की शादी कर दो बहू आ जायेगी तो आराम मिल जायेगा तुम्हे सुशीला  (माँ) ….. 

माँ के घुटनों का ऑपेरेशन होना है पर फिर भी घर की शांति के लिये एक पैर पर घूमती रहती हैं …. 

तुम्हारे कपड़े भी उठाकर तहाकर दे जाती हैं …. 

अभी तुमने असली सास देखी नहीं है शायद तभी ऐसा बोल रही हो….. तुम्हे नहीं पसंद इस घर में रहना तो तुम मेरी तरफ से फ्री हो जा सकती हो अपने घर ….. ऐशो आराम से रहो…… अपने बाऊ जी माँ पर तुम जैसी हजारों लड़कियां कुर्बान ……. 

सनी की आवाज भी आज बुलंद थी ….. 

ओह तो तुम मुझे छोड़ दोगे….. मैं अकेले नहीं जाऊँगी तुम्हे भी साथ चलना होगा…. लॉ मैंने भी पढ़ी है … चाहूँ तो कुछ भी कर सकती हूँ…… समझे……

शिवानी की आवाज़ घर के बाहर तक जा रही थी …… 

मुझे पता था कि तुम इस हद तक गुजर सकती हो…. जाओ जो करना हो कर लो… पर मैँ अपने बाऊ जी, माँ, इस घर को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा ….. 

सनी बोला…… 

बाहर बरामदे से बाऊ जी मनोहर की आवाज आयी …… 

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सनी लला… यहां तो आ…. 

बाऊ जी की आवाज सुन सनी बरामदे में आता है …… 

जी कहिये ….. बाऊ जी….. 

काहे झगड़ा कर रहा बहू से…. 

नयी नयी आयी है … समय के साथ ढल जायेगी…. जैसे चाहे वैसे रहे….. हम कभी कुछ कहे है…. मन नहीं लग रहा बहू का तो कुछ दिन मायके हो आयेँ अपने…. मन बहल जायेगा….. 

पास में ही माँ सुशीला खड़ी थी …. वो भी मनोहर जी बातों से सहमत थी ……. 

पापा वो कुछ दिन के लिये नहीं हमेशा के लिये अपने घर जाना चाहती है …… और साथ में मुझे भी ले जाने के लिये बोल रही है ….. 

आप बताईये और क्या कहूँ उससे …. 

लला…. थोड़ा ठंडे दिमाग से सोच…

 हमारी तो उमर गुजर गयी… बमुश्किल 8-10 साल और जी ले तो  बड़ी बात है ….

 बहू के साथ तो तुझे पूरा जीवन गुजारना है …. तेरे बुढ़ापे की संगी साथी वही है …. हम कब तक रहेंगे तेरे साथ …… ऐसे रिश्ते मत बिगाड़ …. अभी उमर ही क्या है उसकी…. अनुभव होगा जीवन  का खुद समझ जायेगी…. जा लला… चला जा उसके साथ ….. कभी कभी ऐसा भी करना पड़ता है …. और कौन सा तू शहर से दूर जा रहा…… फ़ोन पर हाल चल ले लिया करना….. तेरी माँ है …. हम दोनों रह लेंगे…… 

मनोहर जी बेटे के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले…… 

बाऊ जी ये क्या कह रहे है आप… ऐसा कभी हुआ है …. आप तो उल्टी गंगा बहाने को कह रहे…. आप दोनो को छोड़कर नहीं रह सकता आपका लला…… 

सनी भाव विभोर था …… 

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बचवा मान जा अपने बाऊ जी की बात … बहू को खुश रखने की ज़िम्मेदारी तेरी है ….. सात फेरे लेकर तू लाया है उसे…. समझा…… जा अब….. 

सुशीला जी कड़क लहजे में बोली…… 

जैसी आपकी मर्जी …. सनी इतना बोल गुस्से में अपने कमरे में चला गया….. 

सामने शिवानी बेड पर बैठी थी …… 

सामान पैक कर लेना अपना… कल हम तुम्हारे घर जा रहे है ….. 

सनी इतना बोल बिना खाना खाये लेट गया…… 

क्या सच में…..?? 

यह सुन शिवानी की ख़ुशी का ठिकाना ना था ….. 

वो वाशरूम आयी तो उसे सास ससुर की आवाज सुनायी दी….. शिवानी ने झांककर देखा तो दोनों पति पत्नी एक दूसरे से लिपटे रोये जा रहे थे  …… 

कैसे रहेंगे जी लला के बिना….. और वो हमारे बिना…. जब नौकरी लगी उसकी बाहर तो हाथ पैर जोड़ मेरी बिमारी का बता यहीं अपने शहर में ही तबादला लेकर माना वो…… मेरा बच्चा…… 

सुशीला जी रो रोकर बोल रही थी ……. 

मैं भी क्या रह पाऊंगा उसके बिना….. मेरा दायां हाथ है वो सुशीला…. अब रोना बंद कर … अगर उसने हमें ऐसे देख लिया तो अपना फैसला बदल देगा….. 

मनोहर जी बोले…… 

शिवानी अपने कमरे में आ गयी… 

सनी को भी नींद कहां आ रही थी … बस करवटें लिए जा रहा था ….. 

सनी उठा तो शिवानी ने सोने का नाटक किया ……. 

उठकर सीधा सनी माँ सुशीला के पास आया….. 

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शिवानी भी अपने कमरे के दरवाजे को थोड़ा सा खोल देख रही थी कि बाहर क्या हो रहा है …… 

माँ… आज और खिला दे अपने हाथ से खाना… नींद नहीं आ रही भूखे पेट ….. 

सनी बोला…. 

जा खिला आ सुशीला… तुझे पता था लला ज़रूर आयेगा खाना खाने…. तूने पहले ही निकालकर रख दिया…. 

मनोहर जी बोले…. 

सुशीला जी झट से ख़ुशी ख़ुशी उठ रसोईघर में आयी ….. 

सनी को पटले पर बैठाकर अपने हाथों से खाना खिलाने लगी…… 

शिवानी अपने पति के इस बालरूप को देख स्तब्ध रह गयी ….. 

सनी के आने से पहले चुपचाप आकर सो गयी…. 

सनी के पास उसने आने की कोशिश की… सनी ने मुंह फेर लिया…… 

अगले दिन सनी तैयार होने लगा…. 

चलो तुम्हारा सामान पैक हो गया हो तो….. तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ दूँगा ….. फिर ऑफिस चला जाऊंगा… लौटकर वहीं आ जाऊंगा…… 

सनी रुखे स्वर में बोला…… 

मैँ कहीं नहीं जा रही सनी…. तुम जाओ ऑफिस…. 

क्यूँ तुम्हारी तबियत ठीक है ?? 

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सनी बोला….. 

हां…. 

मुझे रोज रोज का झगड़ा नहीं चाहिए…. चलो तुम …. 

मैँ नहीं करूँगी अब झगड़ा सनी….. आय एम वेरी सोरी…… 

मैँ समझ ही नहीं पायी कि तुम अपने माँ पापा से इतना प्यार करते हो……. और वो तुमसे…. मैँ तुम सबको अलग करना चाहती थी …. सच में मैने तुम्हारे स्वर्ग से घर को नरक बना दिया …… 

मुझे माफ कर दो….. 

शिवानी की आँखों में आंसू थे …. 

अब झगड़ा तो नहीं करोगी…..?? 

सनी बोला… 

नहीं बाबा… कभी नहीं… 

ऐसे प्यार करने वाले ससुराल वालों से कोई झगड़ा कैसे कर सकता है ज़िन्होने अपना बेटा मुझे सौंप दिया….. 

सनी ने मुस्कुराकर शिवानी को गले से लगा लिया….. 

आई लव यू शिवानी……

फिर बाऊ जी की बरामदे से आवाज आयी…. 

मनोहर जी बेटे के जाने की चिंता में इधर से उधर बेचैन हो चहलकदमी  करने में लगे थे ….. 

जी बाऊ जी….. 

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कितने बजे जायेगा लला?? 

थोड़ी देर हमारे पास भी बैठ ले…. फिर चला जायेगा…. पता नहीं कब आयेगा….. तेरी माँ कह रही थी छुट्टी वाले दिन आ जाया करना…. इतवार को……

मनोहर जी बोले…. 

ना बाऊ जी…. अब भेज रहे हो इतने मन से तो अब नहीं आ रहा….. रह लोगे मेरे बिना… रहो आराम से….. 

सनी बोला….. 

ऐसे क्यूँ बोल रहा है ….. 

फिर क्यूँ कहा जाने को…… बोलो बाऊ जी…… 

कहीं नहीं जा रहा मैँ और ना आपकी बहू….. उसने ही कहा है मैँ समझ गयी हूँ आप सबको…. 

क्या कही तूने लला… क्या सच में?? 

मनोहर जी की ख़ुशी का ठिकाना ना था ……. 

हां पापा जी….. कहीं नहीं जा रहे हम… माफ कर दीजिये मुझे…. 

शिवानी ने दोनों सास ससुर के पैर छुये …… 

बहू तू तो हमारे सनी की पत्नी है …… तू उतनी ही प्यारी है हमें ज़ितना सनी…. जैसे मन करे वैसे रह …. अभी घर का मुखिया ज़िन्दा है … किसी चीज की कमी नहीं होने देगा अपने बच्चों को…. 

लला…. इस महीने की तंख्वाह से एसी लगवा ले अपने कमरे में….. 

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मनोहरजी बोले….. 

सभी लोग मनोहर जी की इस बात पर हंस पड़े…. 

पाठकों….. पत्नी अगर अपने पति के माँ बाप को सम्मान प्यार दे तो उसके पति का प्यार उसके प्रति ना दोगुना हो जायें तो  कहना ,, चाहे तो आज़मा कर देख ले…. 

जय श्री राधे 

मौलिक अप्रकाशित 

मीनाक्षी सिंह की कलम से 

आगरा

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