बर्तन गिरने की आवाज सुन ऋचा दौड़ती हुई आँगन में पहुँची। पहुंचते देखा कि उसके ससुर जी ने नाश्ते की थाली गुस्से में फेंक दिया है। उनकी नजर जैसे ही ऋचा पर पड़ी उन्होंने गुस्से में कहा, “ना जाने कौन घड़ी में तू निकम्मी हमार गले पड़ गई। अरे! चार आदमी का खाना बनाने में भी मौत आती है तुझे। लगता है सब्जी में नमक नहीं नमक की पूरी थैली ही डाल दी है।
गुस्से से उनका शरीर कांप रहा था। आवाज में इतनी गरज कि नई नवेली बहू ऋचा की रुलाई फूट पड़ी। रून्धे गले से ही उसने क्षमा याचना की। ” गलती हो गई बाबूजी, गलती से दो बार नमक डल गया होगा। आगे से न होगा। “
“अपनी थाली उठा और चलती बन यहाँ से। मेरे गुस्से का इम्तेहान ना ले… ” ससुर जी फिर गरजे ।
बहू ऋचा ने सुबकते हुए थाली उठाई और रसोई घर की ओर चल दी।
ससुर जी यानी महेंद्र सिंह बड़े ही रोबिले व्यक्तित्व के पुरुष हैं। उनकी कड़कती आवाज से गाँव भर में लोग घबराते हैं। हँसते मुस्कुराते कम ही दिखाई देते हैं। खेत खलिहान जमीन जायदाद किसी बात की कोई कमी नहीं है। उनके दो बेटे सागर और सुरेश हैं पत्नी सालों पहले गुजर गई है । बड़े बेटे सागर की अभी कुछ दिन पहले ही शादी हुई है।
ऋचा महेंद्र सिंह की नयी नवेली दुल्हन, एक गरीब परिवार से है इसलिए ससुर जी हमेशा ही उसको दबा कर रखने की कोशिश करते हैं। बड़ा बेटा तो मानो बाप की परछाई है। पिता कहे दिन तो दिन, कह दे रात तो रात। पत्नी को प्रेम और सम्मान देना तो उसने सीखा ही नहीं है।बात बात पर ताने देना, मायके छोड़ देने की धमकी देना या यूँ ही बिना कुछ सोचे पत्नी को किसी के भी सामने लताड़ देना उसके लिए बेहद समान्य सी बात है।इतने अपमान और ज़िल्लत सहन कर के भी ऋचा अपने पति को ही अपना सर्वस्व समझती थी।
अट्ठारह बरस की कमसिन सी ऋचा अपनी माँ की एकलौती संतान थी। गरीबी और मुफलिसी ने उसे पत्थर की तरह मजबूत बना दिया था। कमर तोड़ मेहनत और ऐसे छोटे मोटे प्रहार जिनसे आम लडकियों का स्वाभिमान चूर चूर हो जाया करता है, ऋचा बिना माथे पर शिकन लाए सह जाती थी। ऊपर वाले ने भी फुर्सत से गढ़ा था उसे, गुलाबी रंगत, लंबे घुंघराले बाल, पतली कमर और ऊँचा लम्बा कद! ससुर जी ने एक नजर में उसे अपने सागर के लिए पसंद कर लिया था।
उसी रात “यूँ तो ससुर जी कड़क स्वभाव के हैं मैं समझ रही हूँ, लेकिन जरा सी बात पर अन्न का अपमान! कुछ ज्यादा ही अजीब बर्ताव किया ससुर जी ने।” ऋचा अपने पति को बता रही थी।
“देख तू ज्यादा दिमाग मत चला और आइंदा कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए तेरी। तुम्हें पता नहीं है बाबू जी ने मां के गुजरने के बाद कैसे हमें पाल पोस कर बड़ा किया हमारे लिए बाबूजी मां से कम नहीं है।अगर बाबू जी से मैंने एक भी तुम्हारे बारे में शिकायत सुनी तो उठा कर तेरे बाप के पास पटक आऊँगा। जो लुगाई मेरी बाबूजी का ध्यान न रख सके उसे क्या फोड़े पर घिस के लगाऊँगा मैं।” त्योंरियाँ चढ़ाते हुए सागर ने ऋचा को फटकार लगा दी।
बस घर में एक देवर ही था जो उससे कुछ इज्जत और प्यार से बात करता। वो भी ‘लल्ला जी’ ‘लल्ला जी’ कह उसकी सारी फरमाइश पूरी करती। सागर को शहर में गाड़ी चलाने का काम मिल गया था। हफ्ते में एक ही दिन वो घर आता। बाकी दिन ससुर जी और ऋचा ही अकेले रहते। सुरेश के होते ससुर जी को कोई डर भी नहीं था।
छह फुट का बाँका नौजवान था सुरेश। भाई की अनुपस्थिति में घर, खेत, जमीन सबका ख्याल रखता। रात में जब घर लौटता तो ससुर जी का पैर दबाता , फिर अपने कमरे में जाकर सोता । ऋचा अपने कमरे में खड़ी बाप बेटे का प्यार देख कर भाव विभोर हुई जाती।
धीरे धीरे भाई के कमरे में अकेली सोती जवान खूबसूरत भाभी को देख सुरेश की नीयत बदलने लगी थी। रात बेरात वो ऋचा को किसी ना किसी बहाने से बुलाता और कोई काम पकड़ा देता। ऋचा भी लल्ला जी के काम को कभी इंकार नहीं करती। पूरी तन्मयता से वो काम में जुट जाती। उधर सुरेश बदनियत से उसे घूरता रहता। दिन भर सीधे पल्ले की भारी भरकम साड़ी और सर पर पल्लू ओढ़े रहने वाली ऋचा रात में हल्की जॉर्जेट की साड़ी पहन लेती। उस पर भी उसका बेफिक्री से उड़ता आँचल, खुले बाल जिसकी लटें उड़ उड़कर ऋचा के चेहरे को चूमती रहती,
सुरेश के दिल में हलचल पैदा कर देती थी। ससुर जी को सुरेश का यूँ ऋचा से बोलना बतलाना बुरा न लगता था। ना ही उन्होने कभी ऋचा को बिना घूँघट करे सुरेश से बात करने को मना किया था।सुरेश के हँसी मजाक को भी वो उसका बचपना समझ कर नजरअंदाज कर देती थी।
ऋचा के मन में कोई खोट न था। वो तो बस दो मीठे बोल की प्यासी थी जो उसने अपने जीवन में कभी सुने ही नही थे।पहले बाप और फिर पति भी गर्म मिजाज मिल गया था।किस्मत में अगले पल क्या होने वाला था इसका अंदाज़ा नहीं था ऋचा को। समय बीत रहा था। सुरेश की गिद्ध दृष्टि भी ऋचा पर बढ़ती जा रही थी। एक दिन ससुर जी अपने खास दोस्त के बेटे की शादी थी मे गए थे।
सुरेश उस दिन देर रात को घर पहुँचा। देखा तो ऋचा को अपना ही इंतज़ार करते पाया। “भाभी एक कप चाय बना दोगी थकान बहुत हो गई। “
“अभी लाई..” आँचल समेटती ऋचा रसोई की ओर बढ़ गई। पानी चढ़ाया ही था कि ऋचा को अपने पीछे एक साया सा लहराता दिखाई दिया। पलट कर देखा तो सुरेश उसके बिल्कुल नज़दीक खड़ा था। वासना से भरी नज़र उसने ऋचा पर डाली, ऋचा एक पल को असहज हो गई ।दिमाग नेA चेताना चाहा लेकिन दिल ने मानने से इंकार कर दिया। नहीं नहीं!! लल्ला जी ऐसी नज़र से कभी नहीं देख सकते। चाय का कप सुरेश को थमा कर वो अपने कमरे में चली आई। पीछे पीछे फिर से वही पद चाप सुनाई पड़ने लगे। अगले ही पल सुरेश उसके ठीक सामने खड़ा था।
‘इतनी रात को मेरे कमरे में’… लल्ला जी कुछ चाहिए क्या? “तुम्हारा लल्ला नहीं हूँ मैं।सुरेश भी बुला सकती हो। हाँ चाहिए तो लेकिन तुम समझती कहाँ हो मेरी ज़रूरत।” सुरेश कुटिलता से मुस्कुराया।
ऋचा पर घड़ों पानी गिर गया मानो। इतनी बेशर्मी..! इतना दुस्साहस…! “भूल रहे हो तुम्हारे बड़ी भाई की पत्नी हूँ। अभी निकलो यहाँ से, नहीं तो ससुर जी को सब बता दूँगी।” गुस्से में चीख़ पड़ी थी ऋचा।
“अच्छा! और तुम्हें लगता है बाबू जी तुम्हारी बात सुनेंगे । एक मिनट में निकाल बाहर करेंगे तुम्हें झूठी मक्कार बता कर! फिर बताती रहना अपने शराबी बाप को अपनी आप बीती।” वो ढीटता से मुस्कुराया।
“चुपचाप मेरी बात मान लो किसी को कुछ पता नहीं चलेगा।”
“मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ आप जाइए यहाँ से… ” ऋचा गिड़गिडाई।
मतलब तुम प्यार से नहीं मानोगी। एक ही झटके में उसने ऋचा को बिस्तर पर गिरा दिया। ऋचा जाल में फंसे पंछी की तरह उसकी पकड़ से छूटने को छटपटा रही थी। “ये पाप है.. छोड़ दो मुझे… ससुर जी जी… ससुर जी जी..कोई बचाओ…” ऋचा विलाप कर रही थी।
खट से दरवाजा खुला, देखा तो सामने ससुर जी खड़े थे । कमरे में रोती बिलखती बहु, अर्ध नग्न हालत में बेटा और लगभग वैसे ही हालत में बहु भी।
“सुरेश..” ससुर जी गरजे ।
“बाबू जी मेरी कोई गलती ना है ये ऋचा ही मुझे बहला फुसला कर… “, सुरेश ने कहानी बनानी शुरू की। उसे पूरा यकीन था बाबू जी अपने लाडले बेटे की बात को टाल ही नहीं सकते । उधर ससुर जी ने अपनी छड़ी से सुरेश को पीटना शुरू कर दिया। मेरी बहू सीता है सीता तू मेरी बहू पर लांछन लगाने चला है कमबख्त तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा अभी मैं पुलिस को बुला कर तुम्हें उनके तुम्हें उनके हवाले करता हूं तूने जैसा कृत किया है तुम्हें इस घर में रहने का भी हक नहीं है तुम्हें तो अब जेल में भिजवा कर ही मानूंगा।
“मुझे माफ कर दो बाबूजी मेरी कोई गलती नहीं है। मैंने तो आज तक भाभी को आंख उठाकर भी नहीं देखा है घर में मुझे अकेला देख यह खुद ही मेरे साथ जोर जबरदस्ती की।इसमें मेरा क्या कसूर बताओ?
महेंद्र सिंह जी ने अपने बेटे की बात पर विश्वास नहीं किया क्योंकि उन्हें यकीन था कि उनकी बहू ऐसा कभी नहीं कर सकती है उन्होंने तुरंत मोबाइल से 100 नंबर डायल किया और पुलिस को कॉल करके बुलाया।
“बाबू जी मेरी कोई गलती नहीं” , बहु हाथ जोड़े खड़ी थी। डर के मारे पैर कंप कंपा रहे थे। पूरा साहस जुटा ससुर जी फिर से बोली, “तू मेरी बिटिया है । ये बेगैरत है। माँ समान बड़ी भाभी पर हाथ डालने की हिम्मत भी कैसे हुई इसकी । मुझे क्या पता था मैं औलाद नहीं साँप पाल रहा हूँ जो एक दिन घर की इज्जत को ही डस लेगा। गरीब की बेaटीa की इज्जत इतनी सस्ती नहीं होती कि कोई भी उसे अपने रुपए पैसों से खरीद सके। ये बाल तजुर्बे से सफेद हुACए हैं मेरे। सही गलत में खूब फ़र्क समझ आता है।थोड़ी देर में पुलिस आई और सुरेश को पकड़कर थाने ले गई।
पुलिस के जाने के बाद ऋचा अपने ससुर जी से बोली” लेकिन ससुर जी आप यहाँ कैसे?” बहु ने सवाल किया। आप तो अपने दोस्त की बेटे की शादी में से कल वापस लौटने वाले थे ना
“ना जाने क्यूँ मुझे घबराहट हो रही थी। मेरा दिल नहीं माना लग रहा था जरूर कुछ अनर्थ होने वाला है मैं आधे रास्ते से ही वापस घर आ गया आज अगर मैं घर वापस नहीं आता तो बहुत अनर्थ हो जाता तू मेरे बेटे की अमानत है, इस घर की लक्ष्मी है । लक्ष्मी तो सदा ही पूजनीय होती है। किसी के गंदे नियत या गंदे हाथों से छू लेने भर से वो अपवित्र नहीं हो जाती,
महेंद्र सिंह जी ने अपने बेटे को फोन कर बुलाया और कहा आज के बाद से तू ड्राइवर की नौकरी नहीं करेगा यही शहर में छोटा सा कोई अपना बिजनेस कर ले और बहू के साथ सुखी जीवन बिता।
मौलिक व स्वरचित
सोनिया निशांत कुशवाहा
बहुत सुंदर कृति है ।
Very nice story of traditional family members.i like it.