बेटा, जरा सी तबीयत ठीक नहीं लग रही है, तू मुझे डॉक्टर के दिखा ला, अब तो हाथ-पैर भी काम नहीं करते हैं, शरीर में ढीलापन सा रहता है” विमला जी ने अपने बेटे अंकित से कहा।
लेकिन अंकित तो अपने ऑफिस के काम में लगा था, और लैपटॉप पर नजरें गड़ाए हुए था, अपनी मां की बात सुनकर भी वो सुन नहीं रहा था, पांच मिनट तक विमला जी उसकी ओर आशा भरी दृष्टि से देखती रही, पर उसने कोई जवाब नहीं दिया, तभी अंदर से अंकित की पत्नी मेघा बाहर आती है,” ओहहह!!आप फिर से बाहर आ गई, आप अपने कमरे में अच्छे से बैठ नहीं सकती है क्या? बार-बार आकर इन्हें परेशान करना जरूरी है क्या? यूं तो कहेगी कि हाथ-पैर में दर्द है और यूं दिन भर घर में घूमती रहेगी, अब ये ऑफिस का काम करेंगे या आपकी सेवा में बैठे रहेंगे, ससुर जी तो हमारे लिए कोई खजाना नहीं छोड़कर गये है, अब इनकी कमाई से ही घर चलता है तो इन्हें चैन से काम करने दो”।
मेघा का गुस्सा देखकर विमला जी अन्दर अपने कमरे में आकर लेट गई, अब दर्द के मारे नींद भी नहीं आती है, एक तो दर्द उस पर बुढ़ापे का शरीर, नींद आंखों से गायब हो रही थी।
अंकित सुबह भी जल्दबाजी में रहता है और शाम को आते ही लैपटॉप में लग जाता है, आखिर अपनी पीड़ा किससे कहूं? जब बेटे को ही फुर्सत नहीं है तो बहू से क्या उम्मीद करूं? विमला जी की आंखों के कोर गीले हो गए। शरीर भी साथ नहीं देता है और उनका बेटा भी उनसे दूर हो गया था, उसे अपनी बूढ़ी मां की जरा भी परवाह नहीं थी। वो अपने ऑफिस, घर, बच्चों की दुनिया में ही व्यस्त रहता था, मां तो उसकी दुनिया में आती ही नहीं थी।
अगली सुबह विमला जी बिस्तर से नहीं उठी दर्द से कराहती रही, सुबह के दस बज गये पर किसी ने चाय-पानी की नहीं पूछा। आज तो रविवार था, सभी देर तक सोते हैं , पर आठ बजे तक तो उठ ही जाते हैं।
विमला जी धीरे-धीरे हिम्मत करके उठी और फिर कमरे के बाहर गई तो देखा अंकित अपने बच्चों और पत्नी के साथ समोसे जलेबी का नाश्ता कर रहा था, पर किसी ने उन्हे खाने के लिए पूछा तक नहीं।
विमला जी रसोई में गई और पानी लेने लगी तो वो ही फ्रिज का पानी था। इतनी गर्मी में बोतल का पानी भी गर्म ही आता है, वो फ्रिज का पानी पीती नहीं है और बोतल के पानी से प्यास बुझती नहीं है, कितनी बार कहा है, गर्मी में मटकी लेकर आजा ताकि ठंडा पानी पी सकूं, पर बहू को घर में मटकी रखना झंझट का काम लगता है, बुढ़ापे में बेटे-बहू ने पानी के लिए तरसा दिया है।
एक बार उन्होंने टोक दिया तो मेघा बोली,” मम्मी जी, हमारे साथ रहना है तो अपने नखरे छोड़ दीजिए, आजकल सब फ्रिज का ही पानी पीते हैं, फिर मटकी रखो तो पूरे रसोई की शान खराब हो जायेगी, अब पानी ही तो पीना है वो चाहें मटकी का पियो या बोतल का क्या फर्क पड़ता है ?
वो पानी लेकर बाहर आ गई और फिर से अंकित से बोली,”अंकित, मुझे डॉक्टर के दिखा दें, तबीयत सही नहीं लग रही है” ये सुनते ही अंकित भड़क गया, और गुस्से से चिल्लाने लगा, ” ये क्या एक ही रट लगा रखी है, आखिर बुढ़ापे का शरीर है, ये छोटे-बड़े दर्द तो लगे ही रहते हैं, अब इसका मतलब ये थोड़ी है कि मै आपको डॉक्टर के यहां ही ले जाता फिरूंगा? अब डॉक्टर की फीस भी कितनी महंगी है, देखने से पहले तो सौ तरह के टेस्ट लिख देगा, वो कराओं, फिर दुनिया भर की दवाई लिख देगा, अब थोड़ा सहन करना भी सीखो, घर का खाना खा रही हो, और क्या चाहिए?
विमला जी इतना गुस्सा देखकर सहम गई, फिर बोली,” ठीक है, बहू मुझे बादाम और खसखस का दूध बना दें, थोड़ी शरीर में ताकत आयेगी, तो चल फिर लूंगी”।
मेघा ने अजीब सा मुंह बनाया,” ये लो हम तो कभी एक बादाम भी मुंह में नहीं रखते हैं, बादाम कितनी महंगी आती है, अब इस महंगाई में बच्चों को पढ़ायें, या सारे पैसे आपके दूध और बादाम पर खर्च कर दें? आपकी तो उम्र निकल गई है, पर हमें तो अपनी जिंदगी जीनी है और बच्चों का भी करियर बनाना है”।
“ठीक है, बहू तो कुछ खाने को दें दे, सुबह से कुछ खाने को दे दें, सुबह से कुछ खाया नहीं है”।
मेघा अन्दर रसोई में गई और रात की बची रोटी और साथ में अचार लाकर दे दिया, विमला जी चुपचाप कमरे में आ गई और उसके छोटे-छोटे टुकड़े करके उन्हें धीरे-धीरे खाने लगी, खाते वक्त उनकी आंखें भर आई, क्यों कि उन्होंने कभी इस तरह खाना नहीं खाया था।
उनके पति की ठीक-ठीक कमाई थी, वो कपड़ों और गहनों से ज्यादा खाने-पीने पर खर्च करती थी, उनका मानना था कि ,”अच्छा खायेंगे तो शरीर चलेगा, गहने कपड़े तो रखें रहते हैं, पर शरीर तो हमेशा ही साथ चलता है, हमें सदैव अच्छा खाना चाहिए:!
विमला जी हमेशा रस की सब्जी में रोटियों को चूरकर खाती थी, इनसे उनका पेट अच्छे से भरता था, वो अपने पति और दो बच्चों के साथ आराम का जीवन जी रही थी, उनकी बड़ी बेटी रीवा की शादी पास के ही शहर में की थी, पर उसके पति की नौकरी विदेश में लग गई तो वो वहां पर चली गई।
बेटी की शादी के बाद बेटे की शादी की, मेघा यूं तो दिखने में सही लगती थी पर उसका व्यवहार इतना बुरा होगा, वो ये सोच भी नहीं सकती थी, मेघा जब भी बोलती कड़वा ही बोलती थी।
वो सबके सिर पर सवार रहती थी और अपने ससुर जी को भी जवाब दे दिया करती थी, ससुर जी को अचानक लकवे का अटैक आया और वो दुनिया से चले गए, अपने पिता की मृत्यु पर रीवा विदेश से आई थी और मां को साथ चलने को कहा था, पर विमला जी ने मना कर दिया कि,” जब मेरे बेटे -बहू है तो मै बेटी के घर नहीं जाऊंगी, अब तो इन्हीं के साथ रहूंगी”।
विमला जी ने सोचा था कि अपने ससुर जी को खोने के बाद मेघा में कोई बदलाव आयेंगे, पर वो तो और भी ज्यादा कड़वी हो गई, बेटे ने भी विधवा बूढ़ी मां का दर्द नहीं समझा और बहू के बहकावे में आकर उन पर भी मानसिक अत्याचार करने लगा।
एक दिन विमला जी मंदिर में पूजा कर रही थी, और उन्होंने ईश्वर को प्रसाद चढ़ा दिया, उन्हें भूख लग रही थी और बहू है कि खाने को नहीं दे रही थी, उन्होंने कटोरी में रखा प्रसाद खा लिया, उन्हें प्रसाद खाते देखकर मेघा ने कमरे में आते हुए देख लिया, ये देखते ही वो फिर से गुस्सा हो गई,” मम्मी जी आपको शर्म आनी चाहिए, आप तो प्रसाद ही चोरी करके खा रही है तो और भी ना जाने क्या -क्या खाती होगी, मुझे तो पता ही नहीं था, मै तो आपको रसोई में ऐसे ही जाने देती थी, पर आज के बाद आप मेरी रसोई में कदम नहीं रखोगी और ना ही भगवान के मंदिर में प्रसाद चढ़ाओगी”।
इतना अपमानित होने के बाद आज विमला जी फूट-फूट कर रोई, उनसे आजकल भूख सहन नहीं होती थी, हर थोड़ी देर में भूख लगती थी, जब बहू ने देर तक खाने को नहीं दिया तो उन्होंने प्रसाद खा लिया। इस तरह रोज-रोज के अपमान से वो परेशान हो चुकी थी, लेकिन उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था क्योंकि उन्हें तो रहना बेटे-बहू के साथ था।
मेघा उन्हें रसोई में खाना नहीं बनाने देती थी, पर बाहर के सारे काम वो करवाती थी, झाड़ू-पोछा और बर्तन के साथ सब्जियां काटना, कपड़े सुखाना और कपड़े समेटना, अब इस उम्र में विमला जी थक जाती थी,और उतनी सफाई से काम नहीं कर पाती थी। जब वो पूरा काम कर लेती थी तब भी मेघा उन्हें तानें देते रहती थी, ज्यादा काम करने की वजह से उनके हाथ-पैरों में दर्द रहने लगा था, लेकिन दोनों विमला जी की थोड़ी भी परवाह नहीं करते थे, उन्हें ढंग से खाना -पीना नहीं मिल पाता था।
अंकित और मेघा दोनों अपनी ही दुनिया में व्यस्त रहते थे, घर में विमला जी के होने ना होने से उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता है, विमला जी घर में पड़े पुराने सामान की तरह थी, जिसकी कोई कदर नहीं थी। दोनों अपने बच्चों की हर इच्छा को पूरी करते थे, पर विमला जी की जरूरतों की भी उपेक्षा कर देते थे। विमला जी का चश्मा टूट गया था, वो महीनों से टूटे चश्मे से काम चला रही थी, पर अंकित ने नया चश्मा बनवाकर नहीं दिया, उनकी साड़ियां पुरानी हो गई थी, चप्पलें भी घिस गई थी, वो इन सब खर्चों के लिए पूरी तरह से बेटे-बहू पर निर्भर थी, क्यों कि पति की कोई पेंशन नहीं मिलती थी।
इसी बीच विमला जी की छोटी बहन ने घर में पूजा रखवाई, और उन्हें आने का न्यौता दिया, उनका भी जाने का मन था, क्योंकि घर में उन्हें घुटन महसूस होती थी, फोन पर वो जब भी किसी से बात करती थी तो मेघा सामने खड़ी रहती थी और वो ज्यादा देर तक बात नहीं कर पाती थी, रीवा के फोन आने पर भी वो कुछ नहीं बोलती थी, रीवा से मिले हुए भी तीन साल हो गये थे, अब बहन ने बुलाया तो वो खुश हो गई क्योंकि उनका भी अपनी बहन से मिलने का बड़ा मन था।
अंकित ट्रेन के टिकट बनवा रहा था, तभी मेघा आ गई, अरे!? एसी में टिकट बनवाने की क्या जरूरत है?
स्लीपर में ही चली जायेगी, पूजा में ही तो जाना है,
बेकार ही खर्चा क्यों करना? अंकित ने भी स्लीपर में टिकट बनवा दिया।
विमला जी जब ट्रेन में बैठी तो उन्होंने चैन की सांस ली, वरना कितने महीनों से वो जेल की जिंदगी जी रही थी,
ट्रेन से उतरी थी कि उनकी बहन का बेटा उन्हें लेने आ गया, इतना सम्मान पाकर वो बहुत खुश हुई, पूजा का घर था, और रौनक भी थी, वहां जाकर सबसे मिली, जब छोटी बहन ने उन्हें गले लगाया तो वो फूट-फूटकर रोने लगी, जैसे आज दिल का सारा गुबार ही निकल जाना था।
शाम को घर में छोटी सी पूजा थी, पंडित जी ने पाठ कराया और सबने प्रसाद गृहण किया, थोड़ी देर बाद उनकी नजरें ऊपर उठी तो देखा सामने रीवा खड़ी थी, अपनी बेटी को सामने पाकर वो रोने लगी और उसे कसकर गले लगा लिया,” मम्मी, अब मत रोओ, मै आ गई हूं और अब आपको मेरे साथ विदेश चलना ही होगा, मै आपको यहां छोड़कर नहीं जा सकती हूं, आप मुझसे जब भी बात करती थी, तो पता लग जाता था कि आप खुश नहीं हो, मेरे लिए आपका खुश रहना बहुत जरूरी है, इसीलिए मै आपको लेने आई हूं “।
रीवा की बात सुनकर विमला जी बोली,”लेकिन ऐसे कैसे? अचानक!!! तू यहां आ गई, अच्छा तुझे भी मौसी ने बुलाया होगा?
“नहीं, मैंने मौसी को कहा था कि आप पूजा रखवाये, ताकि मम्मी यहां आ सकें, मैंने आपका टिकट बनवा लिया है और अब आपको मेरे साथ में चलना है, मुझे सब पता है कि भैया -भाभी आपके साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं? मैंने आस-पड़ोस से मालूम किया है”।
“क्या!! तू घर के आस-पड़ोस में जाकर आ गई और घर नहीं आई? अंकित और मेघा से मिल तो लेती”।
“नहीं, मम्मी मै उन दोनों को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी, और मै उन दोनों से मिलना भी नहीं चाहती हूं,
जिन्होंने मेरी मम्मी को इतनी तकलीफ़ दी, मै ऊनका चेहरा भी देखना नहीं चाहती हूं “।
तभी विमला जी ने पूछा,” तू मुझे घर से भी लेकर जा सकती थी, यहां मौसी के यहां बुलाने की क्या जरूरत थी?
“मम्मी, यहां मौसी की समाज में अच्छी जान-पहचान है, और इनके जेठ जी का बेटा वकील हैं, मैंने उनसे सारी बात कर ली है, भले ही पापा कुछ नहीं छोड़कर गये हो, पर वो ये मकान तो छोड़कर गये है, जहां पर आप रह रहे हो, और ये घर तो आपके नाम पर ही है, आप घर की मालकिन हो, फिर भी आपके साथ गलत व्यवहार हो रहा है “।
“लेकिन, मै क्या कर सकती हूं? विमला जी ने बोला।
“आप उन्हें घर खाली करने का नोटिस भेज सकती है, तभी दोनों की अक्ल ठिकाने आयेगी, रीवा ने बोला”।
विमला जी ने नोटिस पर साइन कर दिये और उन्हें घर खाली करने का नोटिस भेज दिया, नोटिस पाकर अंकित और मेघा के पैरों से जमीन सरक गई।
“ये, देखो तुम्हारी मम्मी पूजा में अपना भला करने गई है, चाहें बेटे-बहू सड़क पर ही क्यों ना आ जायें”। अब हम सामान और बच्चों को लेकर कहां जायेंगे? अच्छे -भले हम यहां पर रह रहे थे” मेघा बरस पड़ी।
अपनी मम्मी का ये रूप देखकर अंकित को हैरानी हुई और पछतावा भी” मम्मी ने कुछ गलत नहीं किया, हम ही उनके साथ गलत व्यवहार कर रहे थे, जब हमने गलत कर्म किये तो हम अच्छे की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? हमें बुढ़ापे में उनका ध्यान रखना चाहिए था।
“मेघा, हमें ये घर खाली करना होगा, जब हमने मम्मी की जिम्मेदारी ढंग से नहीं निभाई तो हमारा उनकी जायदाद पर भी कोई हक नहीं बनता है, हमें यहां से जाना होगा, मम्मी को हमने कितना दुख दिया है, उनका कितना दिल दुखाया है, उन्होंने तभी ये कदम उठाया होगा”।
कुछ समय बाद विमला जी घर पर अपनी बेटी रीवा के साथ आ गई, रीवा ने तो दोनों भाई-भाभी से बात नहीं की, अंकित और मेघा ने घर खाली कर रहे थे, अब वो पछतावे की अग्नि में जल रहे थे।
‘बहू बुढ़ापा सबको आता है, तुझे भी आयेगा, तूने जो कर्म किये है, वो एक दिन पलटकर वापस आयेंगे।
ये सुनकर मेघा और अंकित की आंखें पछतावे से भर आई।
विमला जी घर बेचकर, बेटे-बहू से नाता तोड़कर हमेशा के लिए अपनी बेटी के साथ रहने के लिए विदेश चली गई।
पाठकों, ‘मां बच्चों को बड़े ही प्यार से पालती है, लेकिन बुढ़ापा आते ही बच्चों के लिए मां बेकार हो जाती है और वो जाने अनजाने में उन्हें कष्ट देते रहते हैं, बच्चों को बुढापे में माता-पिता को खुश रखना चाहिए।
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
#बुढ़ापा
कृतघ्न सन्तान द्वारा वृद्ध माता – पिता अथवा विधवा मां के प्रति उपेक्षा और अपमान किए जाने पर उन्हें सबक सिखाना आवश्यक हो जाता है , इसके एक अच्छे उदाहरण को रेखांकित करती एक भावोत्पादक एवं उत्कृष्ट रचना की प्रस्तुति के लिए हृदयतल से साधुवाद और अनेकानेक मंगलकामनाएं 💐
प्रतिक्रिया प्रस्तुतकर्ता: महेंद्र सक्सेना , पल्लवपुरम , मेरठ !!
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Absolutely