सौम्या नाम ही नहीं स्वभाव की भी सौम्य थी । उदास सी खिड़की में खड़ी देख रही थी । पार्क में एकत्रित हरे परिधानों में गीत गाती सजी धजी महिलाओं को झूला झूलता देख रही थी पर उसकी जिन्दगी तो बेरंग हो चुकी थी । अच्छी खासी वैवाहिक जिन्दगी चल रही थी । इतना प्यार करने वाले सास ससुर ,ननद ,देवर और सबसे अधिक प्यार करने वाला पति शोभित । शोभित और देवर अंकित दोनों बिलकुल जुड़वा थे । दोनों में बहुत प्यार था । सौम्या हमेशा कहती देवरानी भी अपनी जैसी लाऊंगी तुम भाइयों की लगाम लगाने के लिये । सब सही चल रहा था अचानक एक दिन शोभित के सर में भयंकर दर्द उठा पहले भी हल्की शिकायत थी पर किसी ने इतना ध्यान नहीं दिया । जब उसे हास्पिटल दिखाया और मैडीकल टैस्ट हुये तब पता लगा की ब्रेन ट्यूमर है वह भी अन्तिम चरण पर । यह आघात सबको अन्दर से तोड़ गया पर शोभित को किसी ने महसूस नहीं होने दिया पर उसने चुपके से सारी बातें सुन ली। सौम्या भी उसके सामने बहुत खुश रहती पर उसे पता था की धीरे धीरे शोभित की जिन्दगी का हर पल बीत रहा है। अंकित भी शोभित और सौम्या का बहुत ध्यान रखता बल्कि उस पर तो मां बाप को भी मानसिक रुप से संभालने का भार था । सौम्या के मायके वाले भी आहत थे । श्रावण का महीना शुरू होने वाला था। सब नव विवाहिता मायेके जाने को तैयार थी । शोभित सौम्या से कह रहा था तुम भी तैयारी करो हरियाली तीजों पर अच्छी तरह श्रृंगार करना पहली तीज हैं मैं तुम्हें देखने आऊंगा पर उसकी ये बात बात ही रह गयी एक रात फिर तेज दर्द उठा बहुत दवा दी परन्तु कोई काम नहीं आई और वह सबको रोता बिलखता छोड़ कर चला गया दोबारा ना आने के लिये । धीरे धीरे एक साल बीत गया । कुछ दिन पहले ही वह कुछ दिन के लिये अपने मायके आई
थी । उसकी सास जो अब पूरी तरह उसकी मां बन गयी थी एक मिनट भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देती थी । आज तीजों का त्यौहार था काश शोभित होते तब वह भी ऐसे ही श्रंगार करती अचानक मां ने उसे आवाज दी और कहा नीचे आऒ तुमसे कोई मिलने आया है। नीचे आकर देखा सास जी ,ससुर जी उसकी ननद और अंकित बहुत सारा सामान ले कर आये हैं वह कुछ समझ नहीं पाई सास ने उसे गले से लगा लिया और तुरन्त लाल दुपट्टा सर पर डाल कर कहा फौरन तैयार होकर आऒ । सौम्या बोली मां ये मेरे से ना होगा अंकित ने कहा अपना वायदा भूल रही हो कहती थी अपनी जैसी ही देवरानी लाऊंगी अपनी जैसी नहीं केवल तुम ही आओगी क्योंकि तुम शोभित का प्यार हो जिसे मै ऐसे जीते हुये नहीं देख सकता वह भाग कर कमरे में चली गयी अंकित को पीछे जाने के लिये मां ने इशारा किया । अंकित कमरे में पहुँचा और बोला तुम क्या समझती हो शोभित को अपनी बीमारी के बारे में पता नहीं था उसे सब पता था और उसने मां पापा और मुझसे तुम्हें अपनाने के लिये पहले ही वचन ले लिया था । सौम्या अंकित को देखती रही क्योंकि दोनों जुड़वा थे इसलिए दोनों में बहुत समानता थी । अचानक वह अंकित से लिपट गयी और बहुत रोने लगी अंकित ने चुप करके तैयार होकर नीचे आने को कहा जब वह तैयार होकर नीचे आई मां के कहने पर अंकित ने उसकी मांग में सिन्दूर लगा दिया । सौम्या की मां पापा दोनों की आंखों में आंसू थे वह सोच भी नहीं सकते थे की आज भी सौम्या की ससुराल जैसा परिवार हो सकता है। सौम्या की सासु जी ने कहा बेटा पहले भी मेरी बेटी थी पर अब बहू बेटी हो ।
दूर कहीं गाना बज रहा था ” सावन के झूले पड़ेगे तुम चले आऒ तुम चले आओ ” । ये होते हैं आत्मिक रिश्ते ।
#अपने_तो_अपने_होते_हैं
स्व रचित
डा.मधु आंधीवाल