आ गया मेरा राजा बेटा ।” अंश के स्कूल से आते निशि जल्दी से उसके कंधे से बैग निकालती हुए उसके जूते मोजे और कपड़े निकालते उससे स्कूल की बातें करने लगी
“ बहू तुम तो हर वक्त अंश में ही लगी रहती हो… अब वो उतना बच्चा भी नहीं रहा कि वो खुद से जूते मोज़े नहीं निकाल सकता…और कब तक यूँ ही बच्चा बना कर रखने का इरादा है…. खुद से खाता तक नहीं है…उसको खिलाने के चक्कर में खुद भूखी बैठी रहती हो…. जब बीमार पड़ोगी ना तब कहना सासु माँ आप सही कहती थी… बिगाड़ो लाडले को हमें क्या…!” रसोई में अपने खाने के बर्तन रखने आई सुमेधा जी निशि से बोली जो अंश का टिफ़िन रखने आई थी..
“ माँ कर लेगा ना बाद में अभी बच्चा ही तो है… आप का बेटा इतना बड़ा है फिर भी आप बाबू बाबू करती रहती हैं ना… और आपके लिए तो वो अब भी बच्चे ही है …अंश तो फिर भी बच्चा ही है ।” कह निशि अंश के लिए खाना निकाल कर उसे खिलाने बैठ गई.
अंश का हर दिन का यही था निशि कौर मुँह में डालती जाती और अंश धीरे-धीरे चबाती कभी मुँह में ही खाना दबाए रहता और नज़रें टीवी पर गड़ाए रखता।
ये सब देख कर सुमेधा जी अक्सर निशि को समझाती रहती पर अपने इकलौते बेटे पर सब ख़ुशियाँ न्योछावर करने की सनक में निशि उसे पंगु बनाए जा रही थी इसका अंदाज़ा भी उसे नहीं हो रहा था ।
निशि सुबह उठ कर अंश के पसंद का टिफ़िन पैक करती …उसे गोद में उठाकर तैयार करती …. अपने हाथों से नाश्ता कराती फिर दरवाज़े पर वैन आता उसपर बिठा कर बाय कर घर में आती फिर घर के काम निपटाती….
एक दिन निशि को बुख़ार हो गया….. अंश का उस दिन एग्ज़ाम था…. दवा लेकर सोने की वजह से निशि उठ नहीं पाई….. अचानक उसकी नींद खुली तो देखा बस पैंतालीस मिनट बचे हैं वैन आने में…. उठ कर अंश को जैसे ही गोद में लेने को हुई सिर घुमने लगा वो वही बैठ गई…. पति निखिल जल्दी से निशि को बिस्तर पर लिटाकर बोला आराम करो …. आज अंश की छुट्टी करवा देते….
“ अरे नहीं नहीं…. उसका एग्ज़ाम है जाना ज़रूरी है मैं करती हूँ तैयार…।” कराहते हुए निशि किसी तरह बोली
निखिल माँ को आवाज़ देकर बुलाया…. सुमेधा जी निशि के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली,“ इसे तो बहुत बुख़ार है…. बेटा तू इसे बिस्कुट और चाय देकर दवा दे दे तब तक अंश को तैयार करती हूँ आज तो इसकी परीक्षा भी है।”
अंश दादी के साथ जाने को तैयार ही नहीं हो रहा था उसे तो मम्मा तैयार करती थी किसी और से कैसे हो सकता था….. सुमेधा जी निखिल बहुत प्रयास किए पर वो ना माना हार कर किसी तरह निशि ही उसे तैयार कर स्कूल भेजी
निशि को आराम करने कह सुमेधा जी रसोई निपटाने में लग गई…. उनके पति और बेटे कोचाय देरर वो निशि के पास आ कर बैठ गई…
“ बहू मैं ये नहीं कहती अंश बहुत बड़ा है पर बेटा उसे तुम अपने उपर इतना आश्रित बना दी हो कि आज बीमारी में भी तुम्हें ही उसे तैयार करना पड़ा… अभी भी समय है सुधार कर लो।” सुमेधा जी निशि से बोली
निशि सुन कर हाँ में सिर हिला दी…
अंश स्कूल से आने के बाद बिना खाना खाए बैठा रहा क्योंकि दव खा कर निशि सो रही थी…. सुमेधा जी थक गई फिर छोड़ दी
निशि जब उठी तब अंश खाना खाया…. निशि चाहकर भी अंश को खुद से कुछ करने को प्रेरित नहीं कर पा रही थी….
कुछ समय बाद निशि की बड़ी बहन उसके घर आई जिसके दो बच्चे थे और बेटी अंश से बड़ी और बेटा अंश से छोटा…
एक दिन निशि अपने भांजे को भी अंश की तरह खुद से खाना खिलाने लगी तो वो बोला,“ मासी मैं बिग बॉय हूँ खुद से खाता हूँ छोटे बच्चों को मम्मा खिलाती हैं ना….जैसे अंश भैया अभी भी छोटे है आप उन्हें खिलाओ।”
अंश ये सुन कर अपनी मम्मी की तरफ़ देखने लगा…
निशि अब नोटिस कर रही थी अंश अपने भाई बहन को देख बहुत कुछ खुद से करने लगा था….. सप्ताह भर रह कर निशि की बहन तो चली गई पर जाते जाते उसके बच्चों ने अंश को खुद से काम करना सीखा दिया….
अब वो स्कूल के लिए भी खुद तैयार होने लगा था…. स्कूल से आकर कपड़े बदल जगह पर बैग और जूते रखने लगा था….. सुमेधा जी ये देख कर खुश होती थी कि चलो बच्चों ने कुछ तो अच्छा सीखाया नहीं तो मेरी बहू पोते को पंगु बना कर रख देती।
दोस्तों बहुत सारी माएँ अपने बच्चे को इस कदर करती रहती है कि वो जब खुद से अपना काम करने लायक भी हो जाते बच्चों जैसे व्यवहार करती उनके साथ…. जबकि ऐसा करना बच्चों के लिए सही नहीं है…. वो आश्रित हो जाते हैं…… उन्हें इस ग़लत व्यवहार से बचाइए जितना हो सके उन्हें उनके हिसाब से काम करने दीजिए ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश