ये क्या!! डिब्बे में दो लड्डू रखे थे, दोनों खत्म हो गये !! अभी थोड़ी देर पहले तो मैंने देखे थे। मीनल ने गुस्से मे कहा… वो रसोई से बाहर निकली तो देखा उसकी सास के कमरे की लाइट जल रही थी, वो धीरे से कमरे में पहुंची और उनके हाथ में एक लड्डू देखकर उसके होश उड़ गए, वो तुरंत पुनीत को बुलाकर लाई और पुनीत ने बिना सोचे समझे कह दिया.. मां आपको शर्म नहीं आती, रसोई से चीजे चुराकर खाने में… ये सुनते ही गायत्री जी के चेहरे की हवाइयां उड़ गई, उन्हें अपने कानों पर जरा भी विश्वास नहीं हुआ, उनका अपना बेटा पुनीत उन्हें ये सब कह सकता है।
तभी गायत्री जी के पीछे से उनकी तीन वर्षीय पोती रिया निकली.. दादी एक ओर लड्डू खिलाओं ना, दादी कहानी सुनाओं ना, गायत्री जी ने अपने हाथों में रखा लड्डू उसे खिला दिया और रिया मचलती हुई कमरे से बाहर चली गई।
ये देखकर पुनीत और मीनल की आंखें शर्म से झुक गई, तुम दोनों ने आज मुझे चोर भी करार दिया, रिया ने खाना नहीं खाया था तो मैंने सोचा उसे कहानी भी सुना दूंगी और साथ में लड्डू भी खिला दूंगी तो बच्ची का पेट भर जायेगा, पर मुझे नहीं पता था कि मुझे ही चोर समझ लिया जायेगा।
क्या बेटे के घर पर मां का कोई अधिकार नहीं होता है? मैंने अपने हाथों से लड्डू ले लिएं तो मुझे ये उपाधि मिली है, क्या मै खुद अपने हाथों से बनाये हुए लड्डू चोरकर खाऊंगी,? तुम दोनों ने तो मुझे बिना हाथ उठाए गाल पर तमाचा दे मारा है, अब मै यहां एक पल भी नहीं रूकूंगी, और गायत्री जी ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।
आज तक वो अपमान के घुंट पीती रही थी, पर आज चोर बताकर बहू बेटे ने उनका गुरूर ही तोड़ दिया, उनके आत्मसम्मान की धज्जियां ही उड़ा दी। उनसे ये सब सहन नहीं हो रहा था, वो पहले ही मीनल के सवालों से बहुत परेशान रहती थी, पर आज तो उनके अपने बेटे ने हद कर दी थी… वो बेटा जिसे पालने के लिए उन्होंने उम्र भर तपस्या की थी, जिस बेटे को पालने के लिए उन्होंने अपनी खुशी का ध्यान नहीं रखा, सारी उम्र अकेले बिता दी, आज वो ही बेटा उन्हें चोर बता रहा है।
गायत्री जी को अपना अपमान बर्दाश्त नहीं हो रहा था, वो कमरे में सिसकियां भरती रही, रात का खाना भी नहीं खाया, वो पुराने दिनों को याद करने लगी, उनका और राजेश जी का विवाह बड़े धूमधाम से हुआ था, शादी के कुछ महीने ही बीते थे कि उन्हें पता चला कि वो गर्भवती है, ससुराल वालों ने उनका जरा भी ध्यान नहीं रखा, उन्हें नौंवा महीना लगा था कि एक दिन घर पर आये हुए एक पत्र ने उनका जीवन दुर्भर कर दिया… उनके मायके से किसी रिश्तेदार ने पत्र लिखा था कि जिस लड़की से तुम्हारे बेटे ने शादी की है, वो मांगलिक है, तुमसे ये बात छुपाकर शादी की गई है, अपने बेटे को जिंदा देखना चाहते हो तो तुरंत गायत्री से हर रिश्ता खत्म कर दो।
ये पत्र पढ़ते ही ससुराल में कोहराम मच गया, सास-ससुर उन्हें तानें देने लगे और मायके पत्र भिजवा दिया कि आपकी बेटी को यहां से ले जाएं… तलाक के पेपर मिल जायेंगे और हम अपने बेटे की दूसरी शादी करवा देंगे।
गायत्री जी पर मानों दुखों का पहाड़ टूट गया, वो ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं थी, मायके में उन्होंने अपनी पहली संतान पुनीत को जन्म दिया, थोड़े समय बाद वो अपने भाई-भाभी की नजरों में खटकने लगी, उन्होंने काम ढूंढने की शुरुआत की और एक कपड़े की फैक्ट्री में उन्हें काम मिल गया, पुनीत को वहीं ले जाकर बिठा देती और अपना काम करती रहती।
फैक्ट्री में अच्छा काम करने के लिए उन्हें अच्छे पैसे मिलने लगे, पुनीत भी अब स्कूल जाने लगा था और अब उन्होंने मायके के पास में ही अलग से कमरा ले लिया था।
फैक्ट्री में काम करने के अलावा वो लड्डू बनाकर भी बेचा करती थी, अब पुनीत बड़ा हो रहा था तो खर्चे भी बढ़ ही रहे थे। पुनीत को भी लड्डू बहुत पसंद थे, गायत्री जब भी ऑर्डर पर बनाती थी तो पहला लड्डू अपने बेटे को खिलाती थी, इसी तरह पुनीत बड़ा हो गया और नौकरी करने लगा।
अब उसने एक घर ले लिया था और वहीं पर अपनी मां के साथ में रहने लगा । मां के आशीर्वाद से वो तरक्की कर रहा था, सालों से काम कर रही गायत्री जी भी थकने लगी थी और उन्होंने भी आराम करना शुरू कर दिया, क्योंकि परिवार की जिम्मेदारी अब पुनीत ने संभाल ली थी।
एक दिन उन्होंने बेटे से कहा कि अब ये घर काटने को दौड़ता है, एक बहू तो ले आ… ताकि मैं घर परिवार की जिम्मेदारी से मुक्त हो सकूं। पुनीत ने अपने साथ काम करने वाली मीनल से शादी की इच्छा जताई, दोनों की शादी हो गई। दोनों ही सुबह नौकरी पर चले जाते थे और रात तक आते थे। जब शनिवार और रविवार की छुट्टी होती थी तो मीनल को गायत्री जी का घर पर रहना अखरने लगता था, उसे लगता था कि ये सास चौबीस घंटे घर में ही रहती थी, हमें तो जरा भी आजादी नहीं मिलती है, हमेशा ये अहसास रहता है कि घर में कोई है, इस वजह से वो अपनी इच्छानुसार रह नहीं पाती थी।
हां, यार मै तो अपनी सास से दुखी हो गई हूं, जोंक की तरह घर से चिपक गई है, कहीं जाने का नाम ही नहीं लेती है, हमें भी तो अपनी जिंदगी जीनी है। उसकी सहेली से जबसे उसकी बात हुई थी वो गायत्री जी को परेशान करने में लगी हुई थी। रोज किसी ना किसी तरह से उन्हें दुख पहुंचाती थी, ताकि वो घर छोड़कर चली जाएं। गायत्री जी सब सहन करती थी क्योंकि अपने बेटे पुनीत के अलावा उनका दुनिया में कोई ओर नहीं था।
एक दिन गायत्री जी रसोई में खाना बना रही थी तो मीनल रसोई में आई और कहने लगी, मम्मी जी रोटियों पर जरा घी सोच समझकर लगाइये, क्योंकि घी के भाव बढ़ गये है, माना हम दोनों कमाते हैं पर फिर भी घर तो देख कर ही चलाना पड़ता है।
खर्चे भी बढ़ गये है और महंगाई भी बढ़ ही रही है। गायत्री जी के हाथ रुक गये क्योंकि उनसे अब मुलायम रोटी ही चबाई जाती थी, इसलिए वो घी ज्यादा लगाती थी, क्योकि उनके दांत जो हिलने लगे थे। उस दिन के बाद मीनल अपने हिसाब से थोड़ा सा घी निकाल जाती थी और बाकी का घी अलमारी में बंद करके रख जाती थी।
मीनल की हरकतों के बारे में उन्होंने अपने बेटे को नहीं बताया, क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि घर में किसी भी तरह का कोई तनाव हो… क्योंकि मीनल गर्भवती थी और उसे तनाव मुक्त रहना चाहिए, इसलिए वो जिसमें खुश रहें वो वैसा ही करती थी।
रविवार के दिन मीनल उठी और उसकी चाय पीने की इच्छा हुई तो उसने देखा कि उसकी सास दूध में पानी मिला रही है। ये देखकर वो तुरंत बोली, मम्मी जी आप दूध में पानी मिलाकर मुझे देती है? आपको पता है ना मै मां बनने वाली हूं और मेरे लिए दूध पीना जरूरी है, पानी नहीं।
बहू, कुछ भी बिना सोचे बोले जाती हो, मै दूध में पानी मिला रही हूं क्योंकि ये दूध मुझे पीना है, तुमने जब से डेयरी से फुल क्रीम दूध मंगवाना शुरू किया है, मुझे इतना गाढ़ा दूध पचता नहीं है, तुम्हारे लिए दूध अलग भगोनी में रखा हुआ है।
मीनल आगे कुछ नहीं बोली… आज गायत्री जी को बहुत ही बुरा लगा था, पर वो चुप रही क्योंकि मीनल को तनाव नहीं देना चाहती थी। नौवें महीने मीनल ने प्यारी सी बेटी को जन्म दिया और घर में अब सभी उसकी देखभाल में व्यस्त हो गए।
रिया के जन्म के बाद मीनल मैटरनिटी लिव पर छह महीने घर पर ही रही, बच्ची की देखभाल में गायत्री जी भी बराबर लगी रहती थी और मीनल को पूरा आराम देने की कोशिश करती थी। उन्होंने मीनल के लिए डिलेवरी में खिलाने के लिए भी लड्डू बनाएं थे, पर मीनल ने उन्हें खाने से इंकार कर दिया… मै पढ़ी-लिखी हूं इन सबको नहीं मानती कि घी खाने से ही ताकत आती है, हेल्दी खाना ज्यादा बेहतर है, इतना घी खाऊंगी तो मोटी हो जाऊंगी, और मीनल को अपने फिगर की भी चिंता होने लगी तो उसने खाना भी कम कर दिया और रिया को दूध पिलाना भी बंद कर दिया… गायत्री जी ने बहुत समझाया कि ये बच्ची और तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं है, पर वो तब भी नहीं मानी।
पुनीत को इस बारे में सब पता लगने लगा था क्योंकि मीनल रोज ऑफिस से आते ही शिकायत करती थी, पर गायत्री जी अपनी बहू के लिए एक शब्द भी नहीं कहती थी, धीरे-धीरे पुनीत को भी अपनी मां की ही गलतियां नजर आने लगी थी।
वो भी उनसे उखड़ा हुआ सा रहने लगा था, और मीनल के कहे-कहे चलने लगा था। रिया अब स्कूल जाने लगी थी पर वो ज्यादातर अपनी दादी के ही पास में रहती थी, मीनल और पुनीत को नौकरी से समय मिलता था तो वो दोनों मोबाइल में व्यस्त हो जाते थे। अब रिया दादी से ही सब चीजें मांगने लगी थी, दादी मुझे भी लड्डू खाने है, टीवी पर देखकर रिया का मन मचल गया.. गायत्री जी लड्डू बनाने में माहिर तो थी, उन्होंने जल्दी ही पोती के लिए लड्डू बना दियें।
मीनल शाम को आई तो उन्होंने उससे घी मांगा, पर मै घी तो सुबह ही निकालकर गई थी.. हां बहू वो सारा घी मैंने लड्डू बनाने में काम ले लिया, रिया का बड़ा मन था, इतने से घी में चार-पांच लड्डू तो बन ही गये है।
आपने लड्डू बना लिये और मुझसे पूछा तक नहीं, कम से कम एक बार फोन करके तो पूछ लेते, मीनल की बात सुनकर गायत्री जी का चेहरा उतर गया, वो रात का खाना बनाकर अपने कमरे में आ गई। रिया भी उनके पास ही खेल रही थी, उसने फिर से लड्डू खाने की इच्छा जताई तो वो बचे हुए दोनों लड्डू लेकर आ गई। वो लड्डू रिया को खिला रही थी, और वो उनके पीछे-पीछे छुप रही थी, इसे देखकर मीनल को लगा कि उसकी सास लड्डू चुराकर खा रही है, उसने गुस्से में पुनीत को बताया और पुनीत ने गायत्री जी पर चोरी का इल्ज़ाम लगा दिया।
अगले दिन उन्होंने अपना सामान पैक किया और उन्हें जाते देखकर पुनीत बोला, मां कहां जा रही हो?
बेटा, तुम सबसे दूर जा रही हूं। क्योंकि अब इतना बड़ा झूठा इल्जाम लगने के बाद मै यहां पर नहीं रह सकती हूं, मेरा भी कुछ स्वाभिमान है, इज्जत से जीना चाहती हूं, मै अपमान सहन नहीं कर सकती हूं।
जिस बेटे को अपना पेट काटकर खिलाया, अपने खून से सींचा, उसी ने बिना सोचे समझे मुझको चोर कह दिया, क्या ये घर मेरा नहीं था? ये तो मै लड्डू रिया को खिला रही थी, अगर मेरा मन भी करता और मै लेकर खा लेती तो क्या मैं चोर हो गई ? अपने घर में कुछ लेकर बड़े बुजुर्ग अब खा भी नहीं सकते हैं?
वैसे भी जो कमाता है, घर भी उसी का होता है। मीनल कमा रही है, तू कमा रहा है, और मै घर पर रहती हूं पर फिर भी घर मेरा नहीं है। मै सालों से घर संभाल रही हूं और मीनल तो अभी आई है, तूने उसकी बात पर विश्वास किया और अपनी मां को ही झूठा साबित कर दिया।
पहले मुझे मायके वालों ने निकाला , फिर पति ने छोड़ दिया और अब बेटा भी घर से निकालने की तैयारी कर रहा है तो मैं उससे पहले ही कहीं पर चली जाती हूं,और जैसे -तैसे अपना गुजारा कर लूंगी।
मीनल तो यही चाहती थी, हां चली जाओ, पर रहोगी कहां पर ? मुफ्त में यहां खाना मिल रहा है, बाहर कोई भी नहीं खिलायेगा।
बहू, इस भ्रम में मत रहना, सिर्फ पढ़ा-लिखा आदमी ही नहीं कमाता है, जिसके पास हुनर हो वो भी इस दुनिया में कमाकर खा सकता है, और गायत्री जी घर से चली गई।
करीब एक साल बाद पुनीत अखबार पढ़ रहा था, तो मां की फोटो देखकर हैरान रह जाता है। मां लड्डू बनाकर बेचती थी और आज उनके लड्डूओं की मांग बहुत बढ़ गई है, शहर में और बाहर भी उनके हाथों के बनाएं लड्डू बहुत प्रसिद्ध हो रहे हैं और वो बहुत कमा भी रही है। उन्होंने किस तरह संघर्ष किया और यहां तक पहुंची उसकी कहानी भी लिखी थी।
बेटे-बहू का घर छोडने के बाद मैं शहर के ही कई हलवाई की दुकान पर गई, पर सबके यहां पर काम करने वाले थे, और मुझे रखने का खर्चा अलग से था, तो सबने मना कर दिया… फिर मैंने हिम्मत नहीं हारी, अपनी सोने की चूड़ियां और कान के बेचकर एक कमरा किराए पर लिया और उन्हीं में से बचे पैसों से लड्डू बनाने शुरू किये… कुछ ही महीनों में लड्डूओं के ऑर्डर आने लगे और इतने अधिक आने लगे कि मैंने दुकान ली और उस पर केवल महिलाओं को रखा… जो घर बैठे बेटे-बहू के तानें सुन रही थी, उन महिलाओं में भी जीने का हौंसला बढ़ गया है। आज मेरे द्वारा बनाए गए तरह-तरह के लड्डू विदेशों तक जाते हैं और अच्छी कमाई भी हो रही है।
किसी ने मेरा बहुत अपमान किया और वही अपमान मेरे लिए वरदान बन गया, मै अपने पैरों पर फिर से खड़ी हो गई हूं, अब मै इज्जत से जी रही हूं।
मेरे द्वारा कमाया गया धन मेरे मरने के बाद गरीब, लाचार महिलाओं में दान दे दिया जाएंगा, क्योंकि मेरा इस दुनिया में अब कोई नहीं है।
दोनों नीचे लिखे पते पर गये तो देखा बीस-पच्चीस महिलाएं लगी हुई थी और गायत्री जी कुर्सी पर बैठकर हिदायत दे रही है।
अपने बेटे -बहू को लड्डू देते हुए बोली, लड्डू खाओ चोरी के नहीं हैं, मेरी मेहनत की कमाई के है।
तुम मेरे धन के लालच में आये हो पर तुम दोनों को एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी, मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं है, बहू अब मै भी अपने पैरों पर खड़ी हूं, उनकी बात सुनकर पुनीत और मीनल मुंह लटकाकर चले गए, उनकी पोती जब भी उन्हें फोन करती थी तो वो उसे लड्डू जरूर भेजती थी।
पाठकों, अपनो के द्वारा लगाया गया चोरी का इल्ज़ाम किसी के मन को भी तोड़ सकता है, अगर बेटा ही मां का इस तरह अपमान करेगा तो बहू तो जरा भी सम्मान नहीं करेगी। रिश्तों में प्यार और भरोसे का होना बहुत जरूरी है, तभी परिवार एकजुट रहता है वरना बिखरते हुए देर नहीं लगती ! अपमान कभी-कभी वरदान बन जाता है, लेकिन उस अपमान की टीस मन में हमेशा रहती है।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल ✍🏻
# अपमान बना वरदान