लीना ने उपरी तल्ले से झांककर देखा…आँगन में सासुमां घायल शेरनी की तरह बिफरी हुई थी।
“अब भोरे-भोरे कौन सी आफत आ गई “भीतर से ताई जी मिनमिनाई।
“जाकर देखूं क्या हुआ “!
“पहले अपना हुलिया तो ठीक कर लो “लव करवट बदल खर्राटे भरने लगा।
लीना का ध्यान अपने आधुनिक नाइट ड्रेस पर गया… लव ने उसे सचेत न किया होता तो आज गजब हो जाता।
“थैंक्यू पतिदेव “लीना ने पलटकर कहा। लेकिन यहाँ लव सुबह की मीठी नींद ले रहा था।
जब चेंज करके नीचे आई! सबकुछ शांत हो गया था।
“आज कल की बहुएं… सिर्फ मोबाइल लैपटॉप और पार्लर में व्यस्त रहती हैं… इसके अलावे कुछ नहीं सूझता। “सासुमां और ताई जी का हाथ और जबान दोनों एक साथ चल रहा था।
“हमारे जैसी बुढिया है ही उनकी खातिरदारी के लिये “ताई ने एक में दो मिलाया।
लीना सच में मोबाइल पर आज का स्टेटस देख रही थी… “कहीं कुछ छूट न जाये। “
उनकी बातें सुन घबराकर वापस जाने लगी… जल्दबाजी में पांव मुड़ गये और लीना गिर पडी़। दोनों स्त्रियां चौंक उठी, “क्या हुआ… देखकर नहीं चलती.. भगवान ने आंखें नहीं दी है… !”
पाँव में मोच आ गई थी, “जाकर आराम करो… हम है ही काम करने को”उनकी तीखी आवाज… लीना का दर्द उसके सामने फीका पड़ गया।
डाॅक्टर ने लीना के पाँव पर पट्टी बांधी.. कुछ दिनों तक आराम कहा।
लव और लीना ने प्रेमविवाह किया था। घरवालों ने स्वीकार तो कर लिया था किंतु लीना का अलग-थलग अपने काम से काम रखना …घरेलू कामों में रुचि नहीं लेना…अतिव्यवस्तता के आड़ में लव के साथ इधर-उधर मटरगश्ती करना उनके असंतोष को बढा देता।
घर में था ही कौन? दो बुजुर्ग महिलायें सासुमां और ताईजी तथा अवकाशप्राप्त ससुर जी। लीना से मिलने उसके माता-पिता आये, “आइये -आइये “घरवालों ने दिल खोलकर स्वागत किया।
लीना की तीमारदारी घर का काम सासुमां ने खीझ निकाली, “अब मम्मी को रख लो अपनी देखभाल के लिए। “
” हम बेटी बहू में अंतर नहीं करते…लेकिन मां तो मां होती है “
ताई भला पीछे कहाँ रहने वाली थी।
अनुभवी लीना की मां वस्तुस्थिति समझने का प्रयास कर रही थी।
दोनों वृद्धा आराम के उम्र में …घर-गृहस्थी में उलझी हुई चिड़चिडी़ हो गई थी। जहाँ तक हो सकता लीना की मम्मी रसोई में मदद करने का प्रयास करती, “बहन जी, आप बैठें… आज का नाश्ता मैं बनाती हूं। “
कभी गरम चाय बनाकर सबको पिलाती, “मेरे हाथ की चाय पीकर… बताइये कैसी बनी है? “
लीना के विपरीत उसकी माँ का मिलनसार स्वभाव ने सबका मन मोह लिया। सच बात है मिलजुलकर काम करने से किसी एक को बोझ नहीं लगता और हंसने बोलने से आत्मीयता बढती है।
अब लीना का मोच ठीक हो गया था लेकिन वह जरा सा भी घर के कामों में दिलचस्पी नहीं लेती थी।
जबकि उसकी मम्मी अपनी समधिन का पूरा सहयोग करती। अपनी मांं का यह रुप लीना को पसंद नहीं आया, “क्या मम्मी तुम आई हो… मुझे देखने… आराम से मेरे पास रहो… क्या जरूरत है… उनलोगों के साथ मगजमारी करने की। “
“क्या तुम घर के काम नहीं करती थी… अभी तुम्हें रेस्ट है तो मै उन बुजुर्ग महिलाओं को अकेले कैसे छोड़ दूं। “
“सच बताऊं मम्मी, मैं सिर्फ अपने काम से काम रखती हूं … मुझे इस घर गृहस्थी के कामों से क्या लेना-देना…बस लव को दिखाने के लिये थोड़ा बहुत आगे-पीछे कर देती हूँ। “
” यह अशोभनीय आचरण है, भला घर-गृहस्थी के काम से कैसी दूरी… “मम्मी बोली।
” आज ही से इनकी खुशामद करुं या अपनी नौकरी देखूं… कुछ करने जाओ… तो दस बातें सुनो… ऐसे नहीं वैसे होगा.. यह ठीक नहीं बना… वह काम सही नहीं हुआ… ना बाबा ना… इस घर में मेरी अहमियत ही क्या है? सिर्फ काम… काम… काम! “
लीना ने अपने सिर पर हाथ रख लिया।
“काम करना क्या इतना पहाड़ है? कामकाजी हो… कमाती हो तो एक कामवाली रख लो… लेकिन सबके दिल में जगह बनानी है… यहाँ तक कि अपने पति के तब सबसे मिलजुलकर रहना होगा। “मम्मी ने निर्भीकता से कहा।
“ओह मम्मी मेरा लव मेरा दिवाना है… मैं दिन को रात कहूंगी तो वह रात ही कहेगा”लीना हठधर्मिता पर उतर आई थी।
“गलत, लव एक संस्कारी लड़का है वह तुम्हारी इज्जत करता है… इस मुगालते में मत रहना कि वह तुम्हारी इस बेरुखी से वाकिफ नहीं है… अगर अपनी अहमियत बनाये रखना है तो लव के माता-पिता और ताई जी को तुम्हें सम्मान देना ही होगा। “
” लीना हम आज शाम में जा रहे हैं लेकिन रोज का रिपोर्ट लेते रहूंगी …व्याहता घर-गृहस्थी से जी चुराये किसी को इज्जत न दे फिर वह सम्मान कैसे पायेगी। “
मम्मी की खरी-खरी बातों ने लीना के हृदय में उथल-पुथल मचा दी… वह देर तक अपने शुष्क व्यवहार पर सोचती रही।
दूसरे ही दिन लीना ने लव से बात कर एजेंसी से एक सेविका मंगवाया… वह स्वयं सासुमां, ताईजी, ससुरजी के जरूरतों का ख्याल रखती…
लीना और लव के प्रथम वैवाहिक वर्षगांठ पर सासुमां दोनों की बलैया लेते बोली,”बेटा तुमने इतनी प्यारी समझदार बहु लाकर हमारी उम्र बढा दी… सुख-सौभाग्य से तुम्हारी झोली भरी रहे। “
“जीते रहो दोनों “ताईजी और ससुरजी का आशीर्वाद…दोनों गदगद हो गये। बडो़ं का साथ ईश्वर की विशेष कृपा है।
लीना को अपनी और परिवार की अहमियत समझृ आ गई थी।
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा ©®