बड़ों का आशीर्वाद : hindi stories with moral

hindi stories with moral : संजीव के तीसरी बेटी की भी शादी आज निपट गई,सारे मेहमान चले गए ।काम से निवृत्त होकर संजीव मम्मी के कमरे में डले पलंग पर थोड़ा आराम करने के लिए लेट गये । सामने टेबल पर मम्मी की मुस्कुराती हुई तस्वीर संजीव उठकर बैठ गए मम्मी के फोटो के सामने डबडबाई आंखों से दोनों हांथ जोड़कर खड़े हों गए और सोचने लगे मेरे पास तो कुछ भी नहीं था ऊपर से तीन तीन लड़कियां कैसे करूंगा इनका सबकुछ कैसे मेरे सब काम आसान होते गए मम्मी तुम्हारा आशीर्वाद फलीभूत हो गया वरना मैं तो कुछ कर नहीं सकता था।

                  संजीव और मीनाक्षी को तीन बेटियां थीं। संजीव पांच भाई थे बड़े दोनो भाइयों को दो दो बेटे थे और तीसरे भाई को एक बेटा और एक बेटी थे चौथे संजीव को तीन बेटियां थीं पांचवें भाई ने शादी नहीं की थी ।एक संजीव को छोड़कर बाकी तीन भाइयों के पास अच्छा खासा पैसा था पर संजीव की कोई मदद नहीं करता था ।

पिता जी का पहले ही स्वर्ग वास हो चुका था । मां थी तो कभी इस लड़के के पास कभी उस लड़के के पास रहती रहती थी । इससे मां, कांता जी बहुत परेशान होती थी ।70 की उम्र हो चली थी तबियत ठीक नहीं रहती थी। अभी महीने भर पहले मां को हार्ट अटैक आया था उनकी देखभाल की बहुत जरूरत थी । कोई बहू ठीक से ध्यान नहीं रखती थी । फिर संजीव और उसकी पत्नी मीनाक्षी ने मम्मी को अपने पास रखा लेकिन संजीव के पास पैसों की तंगी थी ।

फिर एक दिन कांता जी को लकवा का अटैक पड़ गया । अस्पताल तक तो ठीक था बाकी बेटों ने पैसे से मदद कर दी थी लेकिन जब घर लाना था तो कोई भी बहू बेटा रखने को तैयार नहीं हो रहे थे। संजीव मम्मी को अपने घर ले आए फिर वही कैसे देख भाल हो पैसे के बिना तो कुछ संभव नहीं है । कांता जी का मकान में हिस्सा था कांता जी ने संजीव से कहा मेरा हिस्सा मकान का बेच दे और जो पैसा मिलेगा उससे मेरा इलाज करा और जो बाकी बच जायेगा तो तेरे काम आयेगा। मकान का हिस्सा बेंचने पर सभी भाई विरोध करने लगे लेकिन और कोई रास्ता नहीं था बाकी बहू बेटों को कुछ पैसा देना नहीं था।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मर्यादा या जीवन क्या है जरुरी? – सुमन श्रीवास्तव

               संजीव और मीनाक्षी ने जी जान से मम्मी जी की सेवा की अब कांता जी थोड़ी थोड़ी ठीक हो रही थी वाकर लेकर थोड़ा थोड़ा चलने भी लगी थी । संजीव और मीनाक्षी की सेवा से खुश होकर कांता जी दोनों को खूब भर-भरकर आशीर्वाद देती थी । संजीव और मीनाक्षी तीनों लड़कियों को लेकर चिंतित रहते थे कैसे शादी ब्याह होगा मेरे पास तो इतना पैसा भी नहीं है।

लेकिन संजीव और मीनाक्षी ने एक बात अच्छी की की लड़कियों को जैसे तैसे अच्छा पढ़ा लिखा दिया था बेटियां पढ़ने में होशियार थी सो स्कालरशिप मिल गई जिससे उनकी पढ़ाई पूरी हो गई।अब एक एक करके नौकरी पर आ गई । फिर भी शादी ब्याह में तो पैसा खर्च होता हुआ है अपने पास पैसे का कोई हिसाब किताब नहीं है ।

        लेकिन जहां आप असहाय हो जाते हैं फिर वहां बड़ों का आशीर्वाद और ऊपर वाले का साथ मिलता है। संजीव के सभी दोस्तों ने जिससे जो बन पड़ा थोड़े थोड़े पैसे से मदद की और क्या बताऊं आपको एक एक करके तीनों लड़कियों की शादी बिना दहेज के हो गई ।और आज बेटियां अपने अपने घर में खुश हैं ।इस बीच कांता जी का भी स्वर्ग वास हो गया ।

लेकिन उनका आशीर्वाद संजीव मीनाक्षी और उनकी बेटियां पर हमेशा रहा । इसी लिए आज मम्मी की फोटो के सामने संजीव की आंखें भर आईं ,और मन ही मन संजीव बोल पड़े आपका ही आशीर्वाद था मम्मी जो इतना सबकुछ हो पाया। बड़ों का आशीर्वाद और दुआएं दिखाई तो नहीं देते लेकिन उनका फल जरूर मिलता है समय आने पर । इसलिए बड़ों का अनादर न करें उनका सम्मान करें विश्वास रखें आप हमेशा फलते फूलते रहेंगे ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

Sps fb

error: Content is Copyright protected !!