रजनी अपनी ताईजी के गले मे हाथ डाले झूल रही थी और बोल रही थी, “सुनो बड़की अम्मा वो गाना सुनाओ न तुम बहुत बढ़िया गाती हो, वो क्या है, अबके बरस भेज…”
“नही रे, बहुत काम पड़ा है, इतने दिनों बाद तो तू मेरे पास आई है, वरना, जमाई बाबू कहाँ छोड़ते हैं तुझको, जाने दे जरा कई पकवान बनाना है, कोई भरोसा नही उनका, शाम को ही लेने न टपक पड़े।”
“अबकि बार बोलकर आयी हूँ, जल्दी मत आना, मेरा मन तरसता है, बड़की अम्मा के साथ रहने को।”
अचानक दरवाजे की घंटी की बेसुरी आवाज़ ने सोने में खलल डाला, और बड़बड़ाने लगी, अच्छा सपने में ताई जी आयी थी, जल्दी से दरवाजा खोला, मेड खड़ी थी। फिर आकर बिस्तर पर लेट गयी, अब नींद कहाँ आती, पर ताईजी की बहुत याद आने लगी। रजनी की अम्मा तो दो वर्ष की उम्र में ही उसको ताईजी के भरोसे छोड़कर स्वर्ग सिधार गयी। पापा आफिस में व्यस्त रहते, माँ का प्यार दुलार, ताईजी ने ही रजनी को दिया।
दिल मे आया, अरे जा नही सकती, घर दूर ले लिया, चलो फ़ोन करती हूं। फ़ोन अभि भैया ने उठाया, “हेलो, रजनी कैसी हो, हमलोग भी इनदिनों बहुत व्यस्त थे फ़ोन नही कर पाए, अगर आ सको तो आ जाओ।”
“ठीक है भैया आ जाऊंगी, पहले ताईजी से बात तो कराओ। रवीना के पेपर चल रहे, एक हफ्ते बाद आऊंगी।”
“सो रही हैं, बाद में बात करना।”
एक हफ्ते बाद रजनी चल पड़ी अपनी ताईजी से मिलने, दरवाजे से आवाज़ देने लगी, “कहाँ हो अम्मा, चलो जल्दी से निमोना, परांठे बनाकर खिलाओ, बहुत दिन हो गए, वो स्वाद मैं हज़ारों बार बना लूं, फिर भी नही आता।”
तभी ताऊजी की आवाज़ आयी, “रजनी बेटा, आओ बैठो बड़े दिन बाद आयी हो, तुमको बहुत कुछ बताना है, फ़ोन पर कहने की हिम्मत नही हो रही थी।”
“ताऊजी, सब सुनूँगी, पहले अम्मा से तो मिल लूं।”
और दौड़कर अम्मा के कमरे में पहुँच गयी और बोली, “अभी तक सो रही हो, शाम हो गयी।”
और अम्मा के चेहरे को देखकर चकित रह गयी, चीख पड़ी, “ये क्या हुआ, एक महीने में क्या सूरत बन गयी, बाल कहाँ गए।”
दोनो लिपट कर रोने लगी।
ताऊजी रजनी को पकड़ कर बाहर हॉल में ले गए, बेटा, उनके सामने ऐसे मत रो, उन्हें आंत का कैंसर हो गया है, कीमो चल रहा है। अचानक एक दिन पेट मे ज़ोर से दर्द उठा, हॉस्पिटल ले जाना पड़ा। सारे टेस्ट हुए और हम सब के ऊपर ये वज्रपात हुआ। बाद में तुम्हारी अम्मा ने बताया, बहुत दिन से दर्द होता था, वो बताती नही थी। डॉक्टर लास्ट स्टेज का कैंसर बता रहे है, हम सबके समझ मे नही आ रहा, उनके बिना हम कैसे रहेंगे, घर उसी ने बनाया, फिर ये ईंट पत्थर के मकान रह जायेगा।
तभी कमरे से भैया की आवाज़ आयी, रजनी दीदी तुमको अम्मा बुला रही, वो गाना सुनेगी…अब के ब……
और गाना अधूरा रह गया, किसी की सांसें पूरी हो गयी।
शायद रजनी का ही इंतज़ार वो कर रही थी।
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़