“सुनिए, एक बात बताइए! मैं कब तक बड़ी भाभी की धौंस सहती रहूँ….बात बात में मुझे मेरे छोटे पद और छोटी हैसियत का ध्यान दिलाती रहती हैं…. मुझसे अब नही सहा जाता।”
सुजाता प्रश्नवाचक दृष्टि से मनीष को घूरती रही….वो चिढ़ कर बोला,”ये क्या आँख फाड़े घूर रही हो? तुम लोगो का तो झगड़ा ही खत्म नही होता।”
वो रुआँसी हो गई,”तो तुम ये समझते हो कि झगड़ा मैं करती हूँ? तुम समझते हो कि भाभी बहुत सीधी हैं।”
“अरे बाबा, मुझे माफ़ करो! मुझे कुछ भी ना तो समझ में आता है और ना ही समझना चाहता हूँ….मैं बस इतना जानता हूँ….मम्मी थी तो सब कुछ कितना सही चल रहा था…भैया भी कितने अच्छे हैं… तुम दोनों भी तो कितना हिलमिल कर रहती थी,,अब क्या मुसीबत आ गई है?”
“ये तुम अपनी प्यारी भाभी से ही पूछो।”
“हाँ ,तुम ठीक कह रही हो!अब वो समय आ ही गया है… मैं अपनी जोरू के सिखाने पर अपने देवतातुल्य भाई भाभी की नीयत पर सवाल उठाऊँ।”
तभी अचानक बड़े भाई मोहन जी आ गए ,”सुजाता, परेशान मत हो…कोई झगड़ा है ही नही… मुझे सब समझ आ रहा है… आज और अभी चूल्हे अलग कर लो…फिर सब ठीक हो जाएगा।”
दोनों सहम गए,”भैया, ये क्या कह रहे हैं… हम ऐसा तो नही चाहते।”
“पर ये रोज रोज की किचकिच समाप्त करने का यही एकमात्र उपाय है।”
बेचारा मनीष को तो जैसे लकवा ही मार गया… मोहन जी ने पास आकर कान में कुछ कहा और चूल्हे अलग कर दिए।
दोनों तरफ़ घोर उदासी छा गई….सुजाता स्वयं को दोषी मानती हुई रोने लगी…उसका ह्रदय चीत्कार कर उठा,”हाय हाय…मैं अलग तो नही होना चाहती थी…बस जरा भाभी को समझा दिया जाता… भैया ने तो तुरंत ते और छे कर दी।”
उधर संजना तो खाना ही नही खा सकी…शोकाकुल होकर मन ही मन विलाप करने लगी,”मम्मी जी के जाने के बाद मुझे ही बड़ी होने का घमंड हो गया था….ये जेठानी वाला कीड़ा कुछ ज्यादा ही काटने लगा था…वो अल्हड़ है पर सीधी भी बहुत है… मुझे प्यार से समझाना चाहिए था।”
इसी तरह दोनों एक दूसरे के गुण दोषों का मन में मंथन करके दुखी होती रही …और अंत में दोनों ही एक दूसरे की अच्छी बातों पर अटक जाती। दोनों भाई एकदम तटस्थ रहते….आप लोगों ने ही झगड़ा किया है …अब आप ही समझो…।
आखिर दोनों ही बेचैन होकर एक दूसरे की तरफ़ दौड़ पड़ी… सुजाता ने आज भैया भाभी के पसंद की रबड़ी बनाई और खूब सजा कर ऊपर की तरफ़ भागी…उधर संजना देवर देवरानी की पसंद के दमआलू बना कर नीचे की तरफ दौड़ पड़ी। बीच में दोनों टकरा कर एक दूसरे के गले लग गई….दोनों भाई भी मुस्कुराने लगे…मोहन जी हँसने लगे,”देखा ,मेरे होम्योपैथिक डोज़ का कमाल! अलग होते ही कीमत मालूम हो गई।”
“सच भैया, एक के हाथ में चटपटे दमआलू तो दूसरी के हाथ में मीठा… जीवन में दोनों खट्टे मीठे स्वाद जरूरी हैं। भाभी बड़ी इलायची हैं तो सुजाता छोटी इलायची…. दोनों के ही मिश्रण से किसी भी चीज में स्वाद और खुशबू आती है।”
*एहसास की नमी*
*बेहद ज़रुरी है हर रिश्ते में…।*
*वरना रेत भी सूखी हो*
*तो निकल जाती है हाथों से…।।*
नीरजा कृष्णा
पटना