बडी बहू – परमा दत्त झा : Moral Stories in Hindi

आज रमा ने बेटी का ब्याह कर बेटे बहू दोनों का फ़र्ज़ निभाया है।सास कांता की आंखों से आंसू निकल रहे थे और वह बार बार बहू का हाथ चूम रही थी।

ले बहू चाय पी ले-जब सास ने प्याला हाथ में दिया तो चौंक गयी।आज सारा काम पूरा हो गया।

वह चाय पीते हुए खो गयी अतीत में –!

आज से तीस साल पहले अठारह साल की आयु में व्याहकर इस घर में आयी थी और शादी के चार महीने बाद ही भयंकर दुर्घटना में पति और श्वसुर दोनों चल बसे।

अब खुशी मातम में बदल गया। खुद इंटर पास यह बैंक में नौकरी पा गयी।

घर पर तीन ननदें क्रमशः बाइस,बीस और अठारह की थी।सबसे छोटा देवर पंद्रह का दसवीं में था।

अब तो श्वसुर का पेंशन और इसके वेतन से घर चलने लगा। इसकी खुद की बेटी भी हुई।

अब सबों को पढ़ाना,समय पर शादी कराना सारा कुछ इसने निपटाया।

तीनो को बीए पास कराकर शादी करायी।

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मांजी घबराइये मत ,सब ठीक हो जाएगा,यह ढांढस देती।-मगर अकेले में छुपकर रोती।बिन पिता के सभी बच्चे निरंकुश थे, खासकर सभी ननदें तो परेशान करने का कोई मौका नहीं चुकती थी।

यह भी काम में लगी रहती,कभी डांटकर तो कभी पुचकार कर काम निकालती।पढ़ा लिखाकर शादी करवायी।देवर मदन को भी पढ़ाया।पहले बी काम, फिर सी ए कराया।

आज वह भी बैंक में है और सपरिवार मुम्बई में रहता है।

इधर इसकी बेटी भी मेडिकल करके हास्पिटल में डाक्टर है।वह भी एम्स में।

नतीजा उसी का विवाह कल डा मनोहर से किया था।

अरे भाभी समधि का फोन है-सुनते ही यह वर्तमान में लौट आयी।

जी -कहती बात करने लगी।

हम दहेज विरोधी हैं,फिर कार-

अरे हमने बेटी दामाद को खुशी से दिया है।फिर इसके चाचा ,बुआ सभी लोगों की लाडली है।-किसी तरह समझा बुझाकर शांत किया।

एक विधवा इतना कुछ करेगी, किसीने सोचा तक नहीं था।

मगर इस शादी में वह सजावट,समान लोगों का स्वागत सभी अद्भुत था।सभी यह देखकर दंग थे।दांतों तले उंगली दबा रहे थे।

उधर सास और ननदों के लिए यह देवी समान थी।

‘अरे जब वे और बाबू खत्म हुआ तो मैं बावड़ी हो गयी थी, दिन-रात रोती रहती थी।

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इसी बहू ने सम्हाला,सबकी पढ़ाई-लिखाई,शादी सारा कुछ देखा।

सच तीन ननदों की शादी,देवर की पढ़ाई लिखाई सारा कुछ इसने किया है।आज सारे बच्चे आत्म निर्भर और सुखी हैं। मैं अस्सी साल में भी ठीक हूं,इसी लक्ष्मी #बडी बहू#के कारण।

भगवान उसे सुखी रखें -मंथरा चाची अंदर से जलती और ऊपर से मिसरी घोलती बोली।

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

देय शब्द -कम से कम -700शब्द।

रचना मौलिक और स्वरचित है,इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।

#बडी बहू #

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