बचपन से ही ताई का रुबाब देखा था मम्मी तो मम्मी दादी भी उनकी बात को काट नहीं पाती थी बस कोने में माला लेकर बैठ जाती थी। जब मेरे विवाह की बात चली और मुझे पता चला कि घर में मुझे बड़ी बहू बनना होगा तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। घर में पति से छोटी दो बहने और एक भाई और था एक छोटी बहन का तो विवाह हो चुका था।
विवाह के उपरांत बड़ी बहू बनने का जब सौभाग्य मिला तो मैंने पाया सब सारे नियम मुझे ही समझा रहे थे। घर के घूंघट पर्दा से लेकर रसोई तक संभालना मेरा ही काम था। बड़ी ननद रानी भले ही छोटी हो परंतु उसका विवाहित होने के कारण बड़े के जैसे सम्मान करना था और दूसरी ननदिया भी एक दिन अपने ससुराल में चली जाएगी
इसलिए मायके में उसे आराम करना था। रहे देवर जी कुछ समय बाद उनकी नौकरी भी लग चुकी थी और उनकी तनख्वाह भी कम नहीं थी। दोनों के लिए रिश्ते ढूंढे जा रहे थे इसलिए लगभग हर सप्ताह मेरे लिए और दिनों से भी ज्यादा काम तैयार रहता था।
बड़ी बहू होने का एकमात्र सिला जो मुझे मिला था वह यह कि जो गहने मुझे चढ़े थे उनमें से एक सेट तो ननद रानी को उसके विवाह के अवसर पर दे दिया गया और दो कड़ों को तुड़वाकर चार चूड़ियों में बदल दिया शायद सबका ख्याल था कि दो दो चूड़ियां बांट दी जाएंगी।
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पहले ननद रानी का विवाह हुआ और उसके बाद देवर का विवाह होने से पहले हमको जगह की तंगी के कारण घर से थोड़ी दूर पर ही अलग कर दिया गया था। यह निश्चित हो गया था कि सासू जी और ससुर जी अपने छोटे बेटे के साथ ही रहना चाहेंगे। विवाह के अवसर पर बहुत सारा काम करते हुए भी मन में यह तो तसल्ली थी कि इस विवाह के बाद मैं वास्तव में सीनियर हो जाऊंगी तो मेरे को अब काम नहीं करना पड़ेगा।
पाठकगण नई बहू के आने के बाद जब मुझे व्यस्तताओं से थोड़ी मुक्ति मिली और मैं फुर्सत से दूसरे दिन रात के समय नई बहु रानी से मिलने उसके कमरे में गई तो बहुरानी ने मुझे देखते ही पूछा आपकी
और मेरी साड़ी तो एक जैसी है ना? मैंने लाल रंग की साड़ी पहन रखी थी और उसने नीली, मुझे तो लगा कि यह कुछ खिसकी हुई तो नहीं है ?०खैर उसका मन रखने के लिए मैंने छोटी बहू को कह दिया बिल्कुल एक जैसी साड़ी है बस रंग का ही फर्क है। देवरानी ने मेरी और घूरा और फिर सासू मां नेमुझे काम करने के लिए अपने पास बुला लिया ।
शादी में तो मैंने नकली गहने ही पहने थे क्योंकि एक बार सारे गहने छोटी बहू को दिखावे के लिए चढ़ा दिए थे। ननदों के द्वारा ही मुझे पता चला कि छोटी देवरानी ने माता जी को गहने देने से बिल्कुल इनकार कर दिया
कि यह सब मेरे गहने हैं और मैं इनको किसी को भी नहीं दूंगी। जब देवर से गने लौटने का अनुरोध किया गया तो देवर ने भी कह दिया था कि मेरी पत्नी से गहने ना मांगे जाए अगर जरूरत है तो मैं गहनों की एवज में कुछ पैसे दे दूंगा।
व्यस्तताओं के दौर के बाद मैं अपने मायके में चली गई थी। 15 -20 दिन बाद जब मैं वापस आई और दोबारा से अपने ससुराल में जा रही थी तो यही सोच कर खुश हो रही थी कि अब देखती हूं
सासू मां कैसे छोटी बहू से काम करवा रही होंगी? मेरे ऊपर तो उन्होंने सारे नियम चला रखे थे फिर कभी अपने ही ख्यालों पर शर्म आती थी और मैं अपने मन ही मन अपने आप को नारी मुक्ति आंदोलन की मुखिया समझकर यह सोचती थी कि मैं छोटी बहू का साथ दूंगी। उसके काम में भी हाथ बंटवा ही दूंगी।
पाठकगण वापस जाने पर जैसे मैं हैरान हुई वैसे ही आप भी यह पढ़कर हैरान होंगे कि घर एकदम साफ था बर्तन मंजे हुए थे। घर से बहनें भी इतनी जल्दी विदा हो चुकी थी और मेरी सासू मां ने मुस्कुराते हुए मेरा स्वागत किया था।
ऐसा तो उन्होंने मेरे पहली बार आने पर भी नहीं हुआ था। मैंने अपने सर पर पल्ला संभाला ही था कि एक नौकर हमारे लिए ट्रे में पानी लेकर आया था। सासू मां ने धीमी आवाज में कहा यह 24 घंटे के लिए घर में नौकर रख लिया है। यह वही सासू मां थी जो कि डंके की चोट पर कहती थी कि तुम्हें कोई बाहर का काम तो करना नहीं है घर के काम में भी रोना आता है।
मैं हैरान परेशान सी बैठी ही थी की छोटी देवरानी सूट पहने बैठी थी। मेरा हाथ पकड़ कर प्यार से वह मुझे अपने कमरे में ले गई और एक साड़ी मुझे दी यह बिल्कुल वैसी ही साड़ी थी
जो कि उसने उस दिन पहन रखी थी। देवरानी ने कहा मेरी मम्मी ने आपकी और मेरी साड़ी एक जैसी ही दी थी परंतु जब आप हैरान हो रही थी तो मैं समझ गई कि आपको यह वाली साड़ी नहीं दी गई है। मैंने माताजी से पूछा, वह शायद यह साड़ी किसी और को देना चाह रही थी परंतु मैंने तो आपको ही दिलवानी थी ना।
हैरानी पर हैरानी और सदमे पर सदमा शायद अभी खत्म नहीं हुए थे थोड़ी देर में सासू मां मेरे गहने भी ले आई थी उन्होंने मुझे मेरे गहने लौटाते हुए कहा कि अब मैं दोनों बहुओं को बराबर और उनके गहने दे दिए हैं । अपने गहने संभाल लो, जब तुम्हारी इच्छा हो तब पहन लेना। सासू मां में इतना बदलाव?
वैसे भी मैं अपनी देवरानी के विचारों से बेहद प्रभावित हो रही थी और उसका कहना सही तो है कि बड़ी बहू और छोटी बहू में फर्क कैसा? अगर सासू मां के कोई बेटा पहले हो या बाद में इसमें हमारा क्या कसूर? पाठकगण, बड़ी बहू हो या छोटी बहू मैं भले ही देवरानी पर धोंस नहीं जमा पाई पर उसकी कायल पूरी हूं।
बस कभी-कभी बैठकर मन में ख्याल आता है कि मेरी मम्मी और ताई जी को देखकर जो मैंने इतने समय से बड़ी बहू और छोटी बहू के बारे में विचार बनाए थे वह सब तो गलत ही हो गए। आपका इस विषय में क्या ख्याल है पाठकगण, जरा कमेंट्स में तो बतलाइए।
मधु वशिष्ठ
#बड़ी बहू