सुम्मी तू अपने को धोखा दे रही हो, सच बता क्या तेरा मन नहीं करता तू पति की गलत आदतों से विद्रोह करें”। प्रीता ने तेज आवाज में कहा।
“नहीं प्रीता मुझे कोई शौक नहीं, मै आशुतोष के साथ खुश हूँ “सुम्मी ने जल्दी से कहा
“हाँ, तेरी पीठ पर सिगरेट के जले निशान तो आशुतोष के प्यार की निशानी है, कब तक मेकअप की परतो से चेहरे पर पड़ी उँगलियों के निशान छुपायेगी, छोड़ दे सहना, तू टैलेंटेड है अपने पैरों पर खड़ी हो जा, विरोध करना भी सीख, क्योंकि अत्याचार सहने वाला भी उतना दोषी होता है, जितना अत्याचार करने वाला।कब तक अपने को धोखे में रखेगी, एक दिन आशुतोष बदल जायेगा। वो नहीं बदला तो इसी धोखे में तेरी जिंदगी बीत जायेगी”, सुम्मी के होठों से बहते खून को साफ करते दुख se प्रीता बोली। “हम लोगों तो सोचते थे, तू हर तरह से भाग्यवान है, अच्छा पति, दो प्यारे बच्चे, ढेरों पैसा, पर आज समझ में आया हमें कितने बड़े धोखे में जी रहे थे, जो जैसा दिखता है, वैसा होता नहीं।”
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आज सुबह किसी काम से प्रीता सुम्मी के घर आ रही थी तभी दरवाजे पर जोर की आवाज हुई, घबरा कर प्रीता ने दरवाजे पर धक्का दिया दरवाजा खुल गया, दरवाजे के पास सुम्मी गिरी पड़ी थी सामने आशुतोष गुस्से से भरा खड़ा था, प्रीता को देखते तुरंत रंग बदल सुम्मी को उठाने लगा,-कितनी बार समझाया है संभल कर चलो, पर इनको तो हमेशा हड़बड़ी रहती। पर प्रीता की आँखों का गुस्सा देख आशुतोष वहाँ से हट गया। जान गया आज उसकी पोल खुल गई।तुरंत ऑफिस के लिये निकल गया। सहमे बच्चे दरवाजे की ओट से देख रहे थे, प्रीता ने दोनों को प्यार से बाहर बुलाया।
“देख सुम्मी, तू अपने धोखे में रह इन बच्चों की भी जिंदगी बिगाड़ रही है, क्या कल को सुहाना भी यही सब झेलेगी, ये सोच कर, ये सामान्य बात है, तू क्या बच्चों को यही सीखा रही अत्याचार सहो… ना इन्हे अपने जैसा कमजोर मत बनाओं, तुम माँ हो, तुम्हारी जिम्मेदारी है इनको मजबूत बनाने की।
सुम्मी को समझा, बच्चों को प्यार कर प्रीता अपने घर लौट आई, मन बहुत खराब था। हम ऊपरी चमक देख धोखे से उसे सुख की परिभाषा दे देते।पर सच कुछ और ही होता। शाम प्रीता के घर की घंटी बजी।”मै अब तक इसी धोखे में थी एक दिन आशुतोष बदल जायेगा, पर नहीं, समय तो बीत रहा, आशुतोष नहीं बदला। मै अपने बच्चों को भय का वातावरण नहीं देना चाहती, और दुनिया की परवाह भी छोड़ दी -कौन क्या कहेगा “… बस अपने बच्चों और अपनी खुशी देखूंगी..। धन्यवाद प्रीता मेरी ऑंखें खोलने का, आशुतोष को छोड़ दिया आज मैंने… यथार्थ पर यकींन कर….। और सुम्मी दोनों बच्चों का हाथ पकड़ चल दी आशा और प्यार की एक नई डगर पर…।