परिवर्तन एक बहुत ही धीमी गति से चलने वाली सहज प्रक्रिया है, कुछ परिवर्तन ऐच्छिक होते हैं तो कुछ परिस्तिथिवश थोप दिए जाते हैं, और कब वह हमारी आदतों में शुमार हो जातें है हमें पता ही नही चलता।
मैं बचपन से ही बहुत खुले माहौल में रही थी, हमारे यहां किसी तरह की कोई रोक_टोक नही थी । फिर भी ये बात अच्छी थी बड़ों का आदर करना ,उनकी कही हर बता सम्मान करना, अपने से पहले दूसरों को रखना मेरी आदत में शुमार था । मैं स्वभाव से संकोची और शांत थी, इसलिए कई बार जानते समझते भी गलत बात का विरोध इसलिए नही करती की शांति बनी रहे।
शादी के बाद ससुराल का माहौल एकदम
अलग ससुरजी बहुत सख्त और पुराने विचारों के थे,हमारे यहां घूंघट प्रथा थी अच्छी बहू का मतलब सब के इशारों पर चलने वाली गुड़िया। अपने एडजस्टिंग स्वभाव की वजह से मुझे ज्यादा दिक्कत नही आई। मुझे जॉब करने का बहुत शौक था, ससुरजी सख़्त खिलाफ थे, उस समय मुझे शांत रहना ही ठीक लगा। यदा कदा बैंक जॉब के लिए फॉर्म भरे पर कभी एग्जाम नही दे पाई। धीरे धीरे सात_आठ साल बीत गए।बेटा पांच साल का और बेटी एक साल की हो गई। मै सैनिक शिशु
निकेतन रीवा में बतौर शिक्षिका कार्य करना शुरू कर दिया।घर और नौकरी दोनो बहुत अच्छे से मैनेज हो गए।
मेरे सपनों को पंख मिले, लिखना ,बोलना गाना ,डांस करना मेरे सारे शौक पूरे हो गए।मुझे स्टेज पर बोलने में कभी डर नही लगता था, लेकिन लोगों के बीच मैं खुलकर बात नही कर पाती थी, थोड़ा बदलाव आया है, अपनी बात रखने लगी हो, कुछ अपने मन की करने लगी हूं, लेकिन मुझे आज भी अपने से पहले दूसरों का ख्याल ज्यादा रहता है,इस वजह से मुझे परेशानी भी
होती है, अभी बहुत ज्यादा परिवर्तन की गुंजाइश भी है और जरूरत भी है, आशा है कुछ अच्छे परिवर्तन आगे भविष्य में आत्मसात करूं ।
मीना माहेश्वरी स्वरचित मौलिक
रीवा मध्य प्रदेश