बदलता वक्त – रजनी श्रीवास्तव अनंता : Moral Stories in Hindi

“तुमसे दूर होकर वक्त काटे नहीं कटता! तुम्हारे बारे में हीं सोचता रहता हूं! ऑफिस के काम से एक हफ्ते के लिए बाहर जाना है। क्या करूं समझ में नहीं आ रहा।” कहते हुए राहुल ने मिनी को बाहों में भर लिया।

शरमाते हुए मिनी ने खुद को छुड़ा लिया और मुस्कुरा कर बोली-

“इसमें समझना क्या है जरूर जाओ! और ज्यादा मत सोचा करो, वरना काम में गड़बड़ हो जाएगी।”

“जो आज्ञा!” स्टाइल से झुकते हुए उसने कहा तो मिनी हऀस पड़ी।

“अभी तो काम का समय नहीं! अभी प्यार का समय है।”  उसने मिनी का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा।

 तभी बाहर से मम्मी की आवाज आई-

“मिनी बेटा, राहुल आ गया क्या?”

 मिनी हऀसते हुए बोली-

“मिस्टर! यह न काम का समय है न हीं प्यार का। यह तो चाय का समय है। फ्रेश होकर ड्राइंग रूम में आइए, मम्मी आपका वेट कर रही हैं!” 

 वह किचन की तरफ बढ़ गई। राहुल जानता था कि शाम की चाय पर मम्मी उसका इंतजार करती रहती हैं।

“तुम अभी तक नहीं बदली, मेरे बिना चाय नहीं पीती हो।” वह दुलराते हुए सुशिला जी के पास आकर बैठ गया।

“मैं तो नहीं बदली! डर है कि तू न बदल जाए।” सुशिला जी ने हंसते हुए कहा।

“क्या मम्मी! तुम भी, तुम तो मेरी मॉडर्न मम्मा हो, ऐसी बातें तुम्हें सूट नहीं करतीं।” उसके चेहरे पर गर्व साफ झलक रहा था। सुशिला जी मुस्कुरा दीं।

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“बट मम्मी! मेरे बिना चाय पीने की आदत तुम्हें डालनी पड़ेगी। मैं 1 हफ्ते के लिए ऑफिस के काम से बाहर जा रहा हूं। पहले घर में कोई नहीं था, तो बाहर जाते डर लगता था। अब मिनी आ गई है, तो मैंने ये अपॉर्चुनिटी गंवाना सही नहीं समझा।”

पापा के गुजर जाने के बाद से, राहुल ने माऀ को कभी अकेले नहीं छोड़ा था। उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती थी। एक डर बना रहता था। राहुल और मिनी की शादी को दो महीने हुए थे। 

“मिनी को पता है?” उन्होंने परेशान होकर पूछा।

“हां।” छोटा सा जवाब देकर चाय लेकर आती हुई मिनी देखने लगा। 

“काश वो उसे भी साथ ले जा पाता!” मम्मी के सवाल का मतलब वह समझ रहा था। खुद उसका भी मन था, मगर उन्हें अकेले छोड़कर जाया भी नहीं जा सकता।

दोनों को चाय देने के बाद मिनी अपनी चाय लेकर वहीं सोफे पर बैठ गई।

“वैसे तुमने बताया नहीं कि कहां जाना है?” मिनी ने पूछा।

“मुंबई।” बताते हुए उसे बुरा लग रहा था। जानता था कि मिनी को समंदर बहुत पसंद है।

मिनी की आंखों में एक चमक उभरी और बुझ गई।

सुशीला जी चुपचाप बेटा-बहू को देख रही थीं। मिनी एक अच्छी लड़की थी। उसने बड़े प्यार से इस घर को और उन्हें अपनाया था। सुशीला जी को मिनी में अपना कल दिखाई देता था। वह भी बिल्कुल ऐसी हीं थी, मगर उनके सपने पूरे नहीं हुए। परिवारिक जिम्मेदारियों में उलझ कर रह गई और सारे सपने पूरे होने से पहले ही टूट गए। 

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मगर वह चाहती थी कि मिनी के सारे सपने पूरे हों। मन हीं मन उन्होंने एक फैसला लिया और मुस्कुरा उठीं।

फिर कुछ सोचते हुए उन्होंने अपनी मुस्कान छुपाकर राहुल से पूछा-

“वैसे तुम्हें जाना कब है?”

“परसों दोपहर की फ्लाइट है।” राहुल ने खोए से अंदाज में जवाब दिया। 

मिनी और राहुल एक दूसरे से नज़रें चुरा रहे थे।

“ठीक है! मैं अपने कमरे में आराम करने जाती हूं।” अगर वह अपने कमरे में चली आई और किसी को फोन लगाने लगीं।

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आज दोपहर में राहुल को जाना था। मिनी का मूड उसी दिन से खराब हो चुका था, लेकिन उसने इस विषय में कुछ कहा नहीं था। वह उसकी मजबूरी समझ रही थी, मगर फिर भी उसे जाने का बेहद मन था। राहुल बातों-बातों में कई बार उसे अपनी मजबूरी जता चुका था। मिनी ने एकदम से चुप्पी साध रखी थी। उसका एक्सक्यूज सुनकर वह सिर्फ मुस्कुरा देती। 

“कोई बात नहीं!” कहकर टाल रही थी।

वह राहुल का सामान पैक कर रही थी, कि बाहर एकदम से हल्ला-गुल्ला सुनकर वे दोनों चौंक उठे। 

दोनों बाहर निकल के आए तो देखा मिनी के माता-पिता और सुशिला जी तीनों ड्राइंग रूम में बैठे हैं।

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“मम्मा-पापा आपलोग! व्हाट अ सरप्राइज!” मिनी तो खुशी से उछल पड़ी।

“अरे आप लोग अचानक कैसे! काश! मैं रुक पाता मगर मुझे 1 घंटे में फ्लाइट पकड़नी है।” राहुल झेंपते हुए बोला।

“हां हमें पता है! इसलिए तो हम आए हैं!” मिनी के पिता ने कहा। 

“मिनी, फटाफट जाकर पैकिंग करो!” उसकी मां ने कहा तो, वह एकदम से हैरत में पड़ गई। राहुल भी हैरान खड़ा रह गया।

“सिर्फ एक घंटा टाइम है। तुम लोगों के वापस लौटने तक हम यहीं रहेंगे। टिकट व्हाट्सएप पर सेंड करती हूं।” उसकी माऀ ने खुश होकर कहा। मिनी और राहुल को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था।

“मुझे आंखें फ़ाड़ कर क्या देख रहे हो तुम लोग? सब  इनकी प्लानिंग थी।” मिनी की माऀ ने सुशीला जी की तरफ इशारा करके हऀसते हुए कहा।

मिनी और राहुल के चेहरे खुशी से चमकने लगे।

“मम्मी आपको कैसे पता चला कि मैं भी जाना चाहती हूं!”

मिनी, सुशीला जी से लिपट गई और पूछा।

“क्योंकि बेटा जी! सास भी कभी बहू थी।” सुशीला जी ने कहा तो सभी खिलखिला कर हंस पड़े।

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दोस्तों अब वक्त बदल गया है। बदलाव प्रकृति का नियम है और वक्त का तका़जा़! अब सारे रिश्ते बदल गए हैं। कुछ बदलाव सकारात्मक हैं, तो कुछ बदलाव नकारात्मक भी हैं। एक तरफ रिश्तों में बहुत सी उलझनें आ गई हैं, तो बहुत से रिश्ते सुलझ गये हैं। कुछ घरों में ऐसा देखने को मिल रहा है कि अब सास-बहू, सास-बहू ना होकर, माऀएं और बेटियां बन गई हैं। आपका क्या विचार है? अपनी राय जरूर साझा कीजिएगा!

#वक्त 

रजनी श्रीवास्तव अनंता 

 

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