आज सिलाई मशीन की खट खट शांत हो गई थी। कौशल्या की निर्जीव शरीर फर्श पर पड़ा था। रौशनी मां के पार्थिव शरीर के पास बैठी आंसू बहा रही थी।और सोंच रही थी अब क्या करूंगी कहां जाएगी ,
मां ही तो आखिरी सहारा थी अब वो भी न रही ।बाप तो बहुत पहले ही छोड़ गया था।एक मां ही थी जिसके सहारे जी रही थी वो भी मुझे छोड़ कर चली गई। मां ने नाम रखा रौशनी लेकिन मेरी जिंदगी में तो बस अंधेरा ही अंधेरा है।
कौशल्या और रौशनी मां बेटी पुश्तैनी घर के एक कमरे में सिमटकर रह गई थी।पति की एक दुर्घटना में मौत के बाद देवर ने पूरे घर को अपने कब्जे में कर लिया था। बहुत मिन्नतें वजाहते करने के बाद कौशल्या को एक कमरा दे दिया था रहने को पति के मौत के बाद कौशल्या सिलाई कढ़ाई करके अपना और रौशनी का पालन पोषण करती थी ।
ज्यादा पढ़ी लिखी नही कि बाहर जाकर नौकरी करती ।सिलाई कढ़ाई में अच्छी थी तो इसी को अपनी जीविका का सहारा बना लिया। रौशनी छोटी थी तो ठीक था धीरे-धीरे बड़ी हो रही है तो पढ़ाई लिखाई का उसका खर्चा बढ गया था जो कौशल्या के सिलाई कढ़ाई से पूरा न होता था।देवर रमाशंकर और देवरानी बीना से कौशल्या को कभी कभार पैसे मांगने पड़ते थे।
देवर देवरानी उसको ज़लील करते थे कि क्या होगा बेटी को पढ़ा लिखा कर तु मलोग हमपर बोझ बनी हुई हो । कौशल्या को रोशनी को न पढ़ाने की सलाह देते। लेकिन रौशनी ने जिद पकड़ रखी थी कि पढ़-लिख कर वो मां का सहारा बनेगी । कौशल्या देवर से कहती आखिर घर का पूरा हिस्सा अपने पास रख लिया
बस एक कमरे में गुजारा कर रही हूं।उस पर भी जब मशीन चलाती हूं तो तुम लोग चिल्लाते हैं कि शोर मचता है । मुझे और कुछ नहीं चाहिए बस घर के हिस्से में जो कुछ मेरा हिसाब निकलता है
उसके बदले में तुम मेरी बेटी की स्कूल फीस ले दिया करो।जब भी फीस जमा करनी होती थी तो घर में यही नाटक होता था कि क्या होगा पढ़ाई-लिखाई करा के।और इसी बात पर घर में झगड़ा हुआ और फिर कौशल्या रात को सोती तो सोती ही रह गई। उठीं ही नहीं।
अंधेरे कमरे में बैठी रौशनी मां की याद में आंसू बहा रही थी तभी चाची बिना की तेज आवाज सुनाई दी अरी वो महारानी कबतक बैठी आंसू बहाती रहोगी , मां तो तेरी चली गई और तेरा बोझ मुझपर डाल गई।चल जा रोटियां बना,अरे सुना कि नहीं,आ रही हूं चाची । रौशनी रोटियां बना कर कमरे में जाने लगीं तो बिना बोली चल खाना लगा ।
खाना लगा दिया रौशनी ने और जाने लगी तो चाचा ने कहा रौशनी तुम भी खाना खा लो , मुझे भूख नहीं है चाचा।अरे ना खाने दो मिन्नतें न करो महारानी के कबतक नहीं खायेंगी भूख लगेगी तो अपने आप खा लेंगी बीना बोली। तभी चाचा रमाशंकर को रोशनी पर थोड़ी दया आ गई चुप रहो बीना , थोड़ा बड़ा दिल रखो बच्ची है कुछ दिन पहले अपनी मां को खोया हैं दुखी तो होगी न कोई सहारा नहीं बचा उसका।
। धीरे धीरे रौशनी संभलने लगी । दिनभर चाची की जली कटी चुपचाप सुनती रहती। लेकिन शांत रहती ।जबसे भाभी कौशल्या गई है दयाशंकर रौशनी के लिए थोड़ा नरम पड़ गए हैं। रौशनी इस साल बीए का इम्तिहान ले रही थी।बिना दिनभर रमाशंकर के कान भर्ती रहती थी
कि कोई लड़का मिले बस मंदिर में शादी करके इसे ससुराल भेजों जान छूटे हमारी।अरी भाग्यवान क्या ले रही है तुम्हारा एक कोने में पड़ी है और घर का काम भी तो करती है। हां वो तो ठीक है लेकिन शादी तो करनी है न , हां करेंगे देखभाल के करना होगा ऐसे ही तो नहीं कहीं भी फेंक देंगे।
रमाशंकर जी एक फैक्ट्री में काम करते थे।बस घर चल जाता था आराम से । रमाशंकर को कोई औलाद न थी। फिर एक दिन उड़ते उड़ते खबर रमाशंकर के कानों तक भी पहुंची कि फैक्ट्री के मालिक आनन्द सिंह शादी करना चाहते हैं। उम्र कोई 45 साल के आसपास रही होगी ।
पत्नी की डिलीवरी के समय मृत्यु हो गई थी ।एक बेटी थी , अभी तक तो उसकी देखभाल दादी करती थी लेकिन अभी कुछ दिन पहले उनकी भी मृत्यु हो गई ।करीब आठ साल की बेटी है । आया से काम नहीं चल रहा है अब वो दूसरी शादी करके बेटी के लिए मां लाना चाहते हैं। जिससे बेटी की अच्छे से देखभाल हो पाए ।
किसी गरीब और जरूरतमंद लड़की हो और पढ़ी लिखी है बस बिना पैसे के ही बस मंदिर में शादी करके पत्नी बनाना चाहते हैं। रमाशंकर ने घर में आकर पत्नी को बताया तो पत्नी तुरंत बोली अरे हमारी रौशनी तो है । पढ़ी लिखी है और सबसे बड़ी बात पैसा भी नहीं खर्च होगा और शादी भी हो जाएगी।
लेकिन रमाशंकर ने कहा उनकी उम्र ज्यादा है और क्या रौशनी तैयार होगी,अरे रौशनी से पूछना ही क्यों है ।बस हम शादी कर रहे हैं तो कर रहे हैं। चाचा ने जब रौशनी से कहा तो रौशनी ने मना कर दिया कि मुझे अभी आगे पढ़ना है। तभी चाची की तेज आवाज आई नहीं है मेरे पास पैसा तूझे पढ़ाने को।
जहां तेरे चाचा कह रहे हैं वहां शादी करने को चुपचाप तैयार हो जा नहीं तो हम जबरदस्ती कर देंगे।दो तीन सोचने के बाद परिस्थितियों से समझौता करके रौशनी ने हां कर दी । शादी हो गई घर में सब सुख सुविधाएं मौजूद थे । बस नहीं था तो पति का प्यार । आनन्द जी ने घर की और बेटी की पूरी जिम्मेदारी रौशनी पर डाल दी।
रौशनी ने भी इसे अपना मुकद्दर समझकर स्वीकार कर लिया।वो अच्छे से बच्ची का ख्याल रखती और धीरे धीरे पति के दिल में भी जगह बनाने की कोशिश कर रही थी। रौशनी के अच्छे व्यवहार को देखकर पति आनन्द का भी मन रौशनी के प्रति बदलने लगा।
और रौशनी को भी अपना बना लिया।अब रौशनी अपनी पिछली जिंदगी से ज्यादा खुश रहने लगी ।इस बीच चाची तो मतलब न रखती थी लेकिन चाचा बीच बीच में हालचाल लेते रहते थे।
दो साल बाद रौशनी ने भी एक बेटे को जन्म दिया ये खबर सुनकर चाचा रौशनी से मिलने गए और बिना से बिना पूछे रौशनी को घर आने का निमंत्रण दे आए । रौशनी आज दोनों बच्चों को लेकर जब घर आई तो चाची चिल्लाने लगी ये क्यों आई है यहां अब ये घर तुम्हारा नहीं है वहीं घर तुम्हारा है जहां रहती है।
अरे भाग्यवान शांत रहो पहली बार बच्चों को लेकर घर आई है बड़ा दिल रखो थोड़ा ,मैं ही बुला आया था तभी आई है वैसे नहीं आई है।तो फिर तुम्हीं करो इसकी खातिर दारी मैं न करूंगी। रौशनी चाची के इस तरह के व्यवहार से दुखी तो हुईं लेकिन थोड़ी देर रूककर चली गई।
जिंदगी यूं ही चलती रही लेकिन तभी एक दिन सुबह-सुबह चाचा के फोन से रौशनी के पास फोन आया लेकिन चाचा नहीं बोल रहे थे कोई और बोल रहा था ।उधर से आवाज आई आप रौशनी बोल रही है हां मैं रौशनी बोलरही हूं लेकिन ये तो मेरे चाचा का फोनहै , हां उनका एक्सीडेंट हो गया है सिर में काफी चोट आई है
अस्पताल में हैं उनका आपरेशन होगा आप जल्दी से आ जाए । रौशनी दोनों बच्चों को घर पर आया के पास छोड़कर अस्पताल पहुंची तो डाक्टर ने कहा देखिए आप तुरंत दो लाख रुपए जमा कराए इनका आपरेशन होगा नहीं तो इनका बचना मुश्किल हो जाएगा । रौशनी ने आनन्द जीसे कहकर दो लाख रुपए जमा कराए और फिर रमाशंकर का आपरेशन हुआ । फिर रौशनी ने घर चाची को फोन किया।
आपरेशन सक्सेज हो गया उनकी जान बच गई थी अब कोई खतरा नहीं था ।आज रमाशंकर को आई सी यू से रूम में शिफ्ट कर दिया गया है। रौशनी को देखकर रमाशंकर के आंख में आसूं आ गए बेटा इतना बड़ा अहसान किया तुमने और हमलोग हमेशा तुम्हारे साथ गलत व्यवहार करते रहे ।
चाची ने भी उठकर रौशनी को गले लगा लिया रौशनी मुझे माफ़ कर दो बेटा मैंने तुम्हारे साथ बहुत ग़लत किया फिर भी तुमने इतने पैसे लगाकर चाचा की जान बचाई हमारे पास तो इतने पैसे भी न थे । बहुत बड़ा दिल है तुम्हारा बेटा। तुमने बेटी होने का फर्ज निभाया और हमने क्या किया कभी घर का हिस्सा नहीं माना हमेशा तुमसे पीछा छुड़ाना ही चाहते थे
।अरे नहीं चाची आप ऐसे न बोलें आप लोगों के सिवाय हमाराहै ही कौन। बीना बोली तुम हमारी बेटी हो बेटा मेरे कोई औलाद नहीं है लेकिन आज से तुम मेरी बेटी हो ये घर तुम्हारा है जब जी चाहे आओ बच्चों को लेकर । बच्चे भी तो अपने नाना नानी के घर रहे
और आज रमाशंकर जी की अस्पताल से छुट्टी हो गई । रौशनी दोनों बच्चों के साथ आई है घर में खूब रौनक है सभी खुश हैं और बिना रौशनी के बेटे को गोद में लेकर घुमा रही है इधर उधर।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
21 जनवरी