बाबुजी – पुष्पा पाण्डेय

पंडित जी! सुने है अपनी बिटिया की शादी वकील साहब के बेटे से कर रहे हैं?”

“सही सुना है आपने रामदीन जी।सब भगवान की कृपा है।”

पंडित जी की बेटी वाणी भी तो रूप और गुण दोनों की मल्लिका थी। सितार वादन में निपुण काॅलेज की टाॅपर थी। वाणी आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन पिता की स्थिति को देखकर उसने अपनी इच्छा को अन्दर ही दबा लिया और कला विषय से पत्राचार का माध्यम बना आगे पढ़ने की योजना बनायी।

एक दिन अचानक वाणी के फोन पर अजय का संदेश आया। 

” मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ।कहाँ मिल सकता हूँ?”

पहले तो वाणी को समझ में ही नहीं आया कि ये कौन है? फिर जोर डालने पर उसे याद आई कि ये तो अजय जी हैं, जो काॅलेज में दो साल आगे थे। मैं विज्ञान विषय में थी और अजय जी कामर्स पढ़ रहे थे। 

” ठीक है। आप शाम को घर पर ही आ जाइये। मैं पता भेज देती हूँ।”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मेरी मां मेरे लिए भगवान है – बीना शर्मा : Moral stories in hindi

वाणी ने अपने पिता जी और बुआ को बता दिया कि शाम को मुझसे मिलने एक दोस्त आ रहा है। वाणी की माँ  दस साल की वाणी को छोड़कर इस दुनिया से चली गयी थी। तब से  उसकी विधवा बुआ यहीं आकर रहती थी। घर और वाणी दोनों की देख-रेख करती थी। पंडित जी भी वाणी की खुशी के लिए दिन-रात मेहनत करते थे। शहर के प्रसिद्ध शिव मंदिर के सहयोगी पुजारी थे। इसके अतिरिक्त कहीं से भी कोई पूजा कराने का नेवता आता था तो तुरत हामी भर देते थे, न रात देखते थे, न अपनी तबीयत।  पूरी जिन्दगी की कमाई से अपना एक घर भी बना लिए थे। बचपन से ही वाणी की हर फर्माइश पूरी करते थे। अब तो उनका एक मात्र लक्ष्य था वाणी की अच्छी शादी।


शाम को अजय और वाणी की मुलाकात हुई।

अजय दूसरे शहर के स्टेट बैंक में P.O के पोस्ट पर कार्यरत था। अजय ने अपनी  बात स्पष्ट रूप से वाणी के सामने रखी।

” वाणी मैं तुम्हारी पढ़ाई पूरी होने का इंतजार कर रहा था। तुम में मुझे अपनी जीवन-संगिनी के सारे गुण नजर आते हैं।यदि तुम्हें कोई एतराज न हो तो मैं पापा से बात करूँ?”

वाणी एकाएक ऐसे सवाल के लिए तैयार नहीं थी। अजय को समझते देर नहीं लगी।

” अभी जल्दी नहीं है, तुम दो-तीन दिन में बताना। “

औपचारिक बातों के बाद अजय वहाँ से चला गया।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सतरंगी जीवन – शिव कुमारी शुक्ला  : Moral stories in hindi

वाणी ने खूब सोचा- उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि अजय जैसा रिश्ता स्वयं चलकर उस तक आयेगी। अजय के पिता भी एक नामी वकील थे। अजय एकलौता बेटा था। 

वाणी को विश्वास था कि बाबुजी भी इस रिश्ते से काफी खुश होंगे। एक अंधे को क्या चाहिए- दो आँखें।——-

शादी हुई और वाणी अपने ससुराल गयी।कुछ दिनों के बाद जब वो अपने पति के साथ जाने लगी तो पंडित जी बेटी से मिलने आये।


विशेष रूप से वो वाणी के लिए बेसन और गुड़ की बनी मिठाई (लकठो) लेकर आए। बचपन से वाणी को ये मिठाई पसंद थी। कहीं भी जाने से वो अपने बाबुजी से इसी की मांग करती थी।

“आज बिना मांगे मिठाई लेकर आये बाबुजी।”

“हाँ,बेटी सोचा आखिरी बार खिला दूँ।”

” आखिरी बार– ऐसा क्यों बोल रहे हैं?”

“यों ही”

और हँसने लगे। 

बेटी पति के साथ दूसरे शहर चले गयी।इधर पंडित जी अपनी बहन को गाँव भेज दिए और स्वंय न जाने कहाँ गायब हो गये। हाँ एक चिट्ठी पड़ोस में देकर जरूर गये थे, कि जब वाणी कभी खोजती हुई इधर आए तो उसे दे देना।

काफी दिन तक बाबुजी का फोन नहीं आया तो वो परेशान हो गयी। वकील साहब तो वैसे भी पंडित जी को भाव नहीं देते थे। बेटे की जिद्द पर रिश्ता जोड़ना पड़ा था।

वाणी खुद पापा को खोजती हुई घर आयी तब उसे वो चिट्ठी मिली।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

ग़लतियाँ इंसानों से ही होती है – करुणा मलिक : Moral stories in hindi

वाणी बेटा,

तुम दुखी मत होना। हर बेटी को अपने पीहर से दूर होना पड़ता है, लेकिन तुम्हारे साथ—-


ये घर मैं ने बेच डाला। तुम्हारी शादी वकील साहब की हैसियत से करनी थी। कहाँ से लाता इतनी रकम? यही तो बस पूँजी थी। तुम्हारी बुआ गाँव चली गयी। अपने परिवार के बीच। मैं ठहरा पुजारी, किसी भी मंदिर में ,कहीं भी ठिकाना मिल जायेगा। फिर यहाँ रहने से वकील जी का समधी के नाम से पहचान बने, ये मैं नहीं चाहता था। तकदीर ने चाहा तो जिन्दगी में दुबारा जरूर मुलाकात होगी।

 

    तुम्हारा 

       बाबुजी।

 

चिट्ठी पढ़कर वाणी फूट-फूट कर रोने लगी। ड्राइवर के साथ घर आई, लेकिन सबसे यही कहा कि बाबुजी गाँव जाकर रहने लगे। एक अनजाना इंतजार करती रही पापा के संदेश का।

 

स्वरचित और मौलिक रचना

 

पुष्पा पाण्डेय 

राँची,झारखंड। 

1 thought on “बाबुजी – पुष्पा पाण्डेय”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!