“जय दुर्गा मां!,आज हमारे घर लक्ष्मी आईं हैं आपको प्रणाम!”दस साल की राधा मंदिर में अपनी गोद में गाय की एक छोटी सी बछिया को लेकर भगवती के दर्शन कराने लेकर आई थी।
जैसे ही घंटी बजाकर वह बाहर निकली उसके पिता पंडित उमाकांत जी उसके सामने आ गए।
उन्होंने राधा को बछिया के साथ देखा तो उसे टोकते हुए बोले
“राधा, कहां से आ रही हो?”
“मंदिर से। बाबा इसे मां का दर्शन कराने लाई थी।
आपने ही तो कहा था कि हमारी राधा की बहन आ गईं हैं।”
“हां हां हमने कहा था। अब इसका नाम लक्ष्मी ही रख देते हैं।” पंडित जी मुस्कुराते हुए बोले।
“हां फिर ठीक रहेगा। लक्ष्मी तुम सुन रही हो ना तुम्हारा नाम लक्ष्मी है।”राधा उसे सहलाते हुए बोली।
“बाबा आज तो खीर बनेगा और हम सब खाएंगे। आज हमारे घर लक्ष्मी आईं हैं।”
“हां हां जरूर खाएंगे! लेकिन अभी जाओ और खेलों।”
राधा वहां से चली गई।
पंडित जी ने कहा तो दिया मगर खीर बनता कहां से! एक ही तो गाय थी, जो अभी बिआई थी।वह दूध दे नहीं सकती थी किसी यजमान के घर से आ जाता दूध तो बात अलग थी।
मगर दूध देता भी कौन!
पंडित उमाशंकर जी बियावनपुर गांव के एक मंदिर के पुजारी थे।
वहीं मंदिर में ही अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहते थे।
अपनी गरीबी देखकर राधा के भविष्य को लेकर संदेह में पड़ जाते थे।
“क्या हुआ जी! आप ऐसे क्यों बैठ गए हैं?”
पीछे से पंडिताइन ने आकर उन्हें टोका तो पंडित जी बोले
“कुछ नहीं कर बस राधा के बारे में सोच रहे हैं ।देखते देखते वह 10 साल की हो गई है अब 20 साल होते टाइम नहीं लगेगा फिर लड़का ढूंढो! कहां से लड़का मिलेगा हमारे पास कुछ है भी!
मंदिर ने शरण दे दिया,जो मिलता है वह खा लेते हैं। यह गाय हमारा पोषण कर देती है। कुछ जमीन है उनमें से खाना पानी निकल आता है।
उसके अलावा दो-चार घर में पूजा पाठ कर कर हम कितना कमा लेंगे। पता नहीं कैसे पार लगेगा।”
“जो सबकी पार लगाता है वही लगाएगा।”
“नहीं भाग्यवान ,तुम्हें समझ में नहीं आ रहा हमारे पास अपने खाने के लिए तो कुछ है नहीं।हम क्या करेंगे।”
“आप क्या कर सकते हैं। गरीब की बेटी गरीब के घर ही जाएगी।”पंडिताइन ने आह भरते हुए कहा।
“नहीं जाएगी। हम अपनी बिटिया को खूब पढ़ायेंगे ।इतना काबिल बनाएंगे दुनिया यह नहीं रहेगी की बेटी है, लोग यह कहेंगे राधा पंडित का बेटा है।”
“हम् म् !, पंडिताइन थोड़ा खीझ कर बोली “पंडित जी,बेटी और बेटे में फर्क होता है।बेटी कभी भी बेटा नहीं बन सकती है ।”
“बन सकती है। हम उसे बनाकर दिखाएंगे।
तुम देखते रहना।”
यह बात आई गई हो गई। पंडित जी अपनी बिटिया को खूब पढ़ाते। संस्कृत का ज्ञान, श्लोक का ज्ञान कराते हुए स्कूल की पढ़ाई में भी पूरा ध्यान देते थे।
किस्मत से राधा भी पढ़ने में काफी तेज थी।
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हर क्लास अपनी क्लास में फर्स्ट आती थी।
धीरे-धीरे उसे स्कॉलरशिप भी मिलने लगा। पंडित जी की कोई चिंता कम होती गई देखते-देखते उसने बोर्ड भी परीक्षा अच्छे नंबरों निकाल लिए। अपने स्कूल की टॉपर थी।
पंडित जी की खुशी का ठिकाना नहीं था। 12वीं के लिए एक बहुत ही बड़े स्कूल से उसके लिए ऑफर आया जहां तत्काल उसका एडमिशन भी हो गया।
उसके बाद 12वीं में भी टॉप करने के बाद उसने नीट क्लीयर कर मेडिकल पढ़ने लगी।
पंडित जी उसकी उपलब्धियों पर वारे न्यारे होते रहते थे।
जैसे जैसे राधा बड़ी हो रही थी अब पंडित जी को डर सताने लगा था। कहीं पढ़ाई के साथ-साथ वह कहीं ऊंच-नीच न कर ले।
राधा थी भी बहुत ही सुंदर और उससे भी ज्यादा पढ़ाई में तेज।
धीरे-धीरे समय ने गति पकड़ी। राधा ने डॉक्टरी पास कर लिया था।
पंडित जी की आंखों में आंसू थे। खुशी का ठिकाना नहीं था। मगर उनके भीतर एक डर था -एक बेटी के पिता होने का।
उन्होंने मेडिकल कॉलेज के राधा के सम्मान महोत्सव में कहा “राधा तो डॉक्टर बन गई है। अब हमें तो बस एक ही चिंता है कि राधा की शादी कैसे करेंगे!”
इस पर सभी लोग जोर से हंसने लगे।
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राधा के मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर ने पंडित जी से कहा “हम एक निवेदन लेकर आपके घर आना चाहते हैं।”
“जी डॉक्टर साहब, आप बहुत शौक से आइए।हम तो मंदिर में रहते हैं। वही हमारा घर है।”
डॉक्टर गिरजानंदन गुप्ता अपनी पत्नी और बेटे के साथ दुर्गा मंदिर आए। उन्होंने पंडित उमाशंकर जी को पैर छूकर प्रणाम किया और कहा
“यह हमारा बेटा है यह भी डॉक्टरी पढ़ रहा है आपकी बिटिया के साथ अगर आप अपनी बिटिया का हाथ मेरे हाथ में दे दे तो मैं इसे अपना परम सौभाग्य मानूंगा।”
“कैसी बातें कर रहे हैं डॉक्टर साहब! पंडित जी ने उनके हाथ पकड़ लिए ,यह तो मेरा अहो भाग्य होगा अगर आपने हमारी बिटिया का हाथ अपने बेटे के लिए मांगा हैं। मेरी तरफ से हां है।”
कुछ दिनों में राधा और कुंदन की शादी हो गई।
थोड़े दिनों बाद राधा और कुंदन ने मिलकर कई अस्पताल गांव में खोला।
दूर-दूर तक राधा का नाम होने लगा था। अब वह राधा नहीं डॉक्टर राधा हो चुकी थी।
सब लोग उसकी तारीफ करते तो वह कहती “मैं इस तारीफ के काबिल नहीं हूं, मेरे पिता हैं ।
अगर मेरे पिता मेरे साथ नहीं खड़े होते तो मैं आज कुछ भी नहीं होती।
इसलिए धन्यवाद मुझे नहीं मेरे पिता को दीजिए।
ईश्वर करे हर लड़की को ऐसा ही पिता मिले।
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सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
#बाबुल
पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां के साप्ताहिक विषय के लिए।