रमा बड़े दिनों बाद बहू बेटे के साथ अपने घर आई थी,घर बहुत गंदा हो गया था।बहू ने किचन संभाल ली और रमा घर की साफ-सफाई करने में जुट गई।रमा ने अपनी अलमारी को साफ करने के लिए जैसे ही खोला तो उसमें से एक फाइल निकलकर नीचे गिर गई।उसने फाइल को उठाया और खोलकर देखा,उसमें पीले से पड़ चुके कुछ खत रखे थे।
देखने से ही समझ आ रहा था,कि सुंदर लेखनी से सजे खत उसके पापा के थे।बहुत प्यार करते थे रमा के पापा उससे आखिर वो इकलौती संतान जो थी उनकी।अक्सर खत लिखकर कभी वो अपना प्यार जताते तो कभी प्रेरणादायक बातें लिखकर उसे जीवन जीने की कला सिखाते।इसलिए रमा उनके खत हमेशा संभालकर रखती थी।देखते देखते एक पत्र पर रमा की नजर पड़ी,वो शायद उसके पापा का लिखा हुआ आखिरी खत था…
प्रिय रमा,
आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है इसलिए तुम्हें खत लिखने बैठ गया।ज्यादा कुछ नहीं बस यही कहूँगा कि जीवन में कैसी भी परिस्थितियां आएं तुम फूल सी मुस्कुराती रहना।जीवनसाथी का साथ इतनी जल्दी छूट जाने पर भी तुम टूटी नहीं बल्कि और मजबूती के साथ अपने बच्चों की ढाल बनकर खड़ी रहीं।
जानता हूँ,कि तुम्हारे बच्चे तुमसे बहुत प्यार करते हैं किन्तु जीवनसाथी की जगह कोई नहीं ले सकता।मैंने तुम्हें तन्हाइयों में सिसकते देखा है।लेकिन अब मैं ये देखकर बहुत खुश हूँ,कि तुमने अपने जीवन की रिक्तता को पूर्ण करने के लिए कलम का सहारा ले लिया है और अपना एक मुकाम भी बना लिया है।
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तुम जिंदगी को बोझ समझकर नहीं खुशी से जी रही हो,आगे भी खुश रहना।तुमने सुख में दुख में परमात्मा का साथ नहीं छोड़ा ऐसे ही सदा उनपर अपना भरोसा बनाए रखना वो ही तुम्हारी हर पल रक्षा करेंगे।कल को मैं ना रहूँ तब भी अपनी मुस्कुराहट को यूँही लबों पे सजाए रखना क्योंकि इस मुस्कुराहट में ही तुम्हारे परिवार की खुशियाँ निहित हैं।
तुम्हारा
पापा
खत पढ़कर रमा की आँखों से अश्रुओं की अविरल धारा बह निकली।पुरानी यादें ताजा हो आईं।पति के यूँ अचानक चले जाने के बाद,जब सबने मुँह मोड़ लिया तो एक पापा ही थे जिन्होंने हर कदम पर उसका साथ दिया। जबकि उनकी खुद की उम्र ऐसी थी,कि कोई उन्हें सहारा देता।माँ तो बहुत समय पहले ही उनका साथ छोड़कर चली गई थी।भाई भाभी भी विदेश में जाकर बस गए।वो बहुत ही धेर्यवान थे
अकेले रहकर भी उन्होंने हर परिस्थिति का सामना हँसते-हँसते किया।अंतिम दिनों में उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था फिर भी उन्होंने रमा को नहीं बताया ये सोचकर कि अगर वह उसे बताएंगे तो वो बच्चों को छोड़कर उनके पास आ जाएगी।वो नहीं चाहते थे,कि बच्चों की पढ़ाई में कोई रुकावट आए क्योंकि दोनों बच्चों की बोर्ड की परीक्षाएं थीं।आज भी ये सोचकर रमा का मन बहुत विचलित हो जाता है,
कि वो आखिरी खत लिखते वक्त पापा उससे मिलने के लिए कितना तड़पे होंगे?इस पत्र के मिलने के बाद तो बस उनके मौत की खबर आई।जिस पापा ने दुख में उसका साथ दिया उनके लिए वो कुछ नहीं कर पाई ये अफसोस शायद उसे मरते दम तक रहेगा।
तभी कमरे में रमा का बेटा आ गया और उसकी आँखों में आँसू देखकर बोला-“क्या हुआ माँ?”
“कुछ नहीं बेटा,बस बड़े दिन बाद आज तेरे नाना जी का खत पड़ा तो उनकी याद आ गई।”
“कितना पुराना हो गया है?ये खत और पीला भी पड़ गया है।कब तक संभालकर रखोगी इसे?” बेटा झुंझलाते हुए बोला
“जब तक जीऊँगी तब तक इसको संभालकर रखूँगी।ये खत नहीं मेरे लिए प्रेरणा का स्त्रोत है..मेरे पापा की आखिरी निशानी है।”रमा दुखी होकर बोली तो उसका बेटा समझ गया था,कि रमा खत को लेकर काफी भावुक और गंभीर थी किसी भी हाल में उसे नष्ट नहीं करना चाहती थी।
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वह मुस्कुराकर बोला-“ठीक है मैं इसे आज ही जाकर लेमिनेट करा लूँगा।अब तो खुश!” कहकर उसने रमा को गले से लगा लिया।उसकी ममतामयी भरी बाँहों में रमा को असीम सुख की अनुभूति हुई।एक पल को ऐसा लगा,जैसे पापा ने उसे प्यार से गले लगा लिया हो..!
सच बेटी के लिए बाबुल की यादें बहुत अनमोल होती हैं वो मरते दम तक उन्हें संजोकर रखती है।
कमलेश आहूजा
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