“बधाई हो, बधाई हो,
मीठी को पाँचवे जन्मदिन की बधाई हो…”
घर के हर सदस्य के होंठो पर आज सुबह से यही पँक्तियाँ थिरक रही थीं। आख़िर हो भी क्यों न, आज सबकी लाडली, सबकी दुलारी, घर की सबसे छोटी सदस्य मीठी की पाँचवी सालगिरह जो थी।
मीठी की माँ नंदिता और पापा नीरज के साथ-साथ उसके दादाजी और दादी माँ के चेहरों की रौनक देखते ही बनती थी।
शाम को होने वाली जन्मदिन के दावत के लिए मिल-जुलकर घर की सजावट करते हुए सब मानों छोटे बच्चे बन गए थे।
रंग-बिरंगे गुब्बारों से तो पूरा घर ही भर गया था। मीठी, जो अब समझने लगी थी कि जन्मदिन का दिन कितना विशेष होता है वो भी अपने इस ख़ास दिन पर बहुत खुश और उत्साहित नज़र आ रही थी।
सबके साथ हँसते-खेलते हुए उसकी मासूम नज़रें बार-बार इस इंतज़ार में घर के मुख्य दरवाजे की तरफ जा रही थीं कि कब उसके नानाजी और नानीजी भी उसके लिए ढ़ेर सारे खिलौने लेकर जन्मदिन के जश्न में शामिल होने आएंगे।
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कुछ देर के बाद जब मीठी की नानीजी और नानाजी आए तब सब लोगों ने आगे बढ़कर उनका स्वागत किया।
मीठी ने दौड़कर पहले अपनी नानीजी के पैर छुए और फिर सीधा अपने नानाजी की गोद में चढ़कर उनके साथ खेलने लगी।
मीठी को अपने पापा की गोद में इस तरह लिपटा हुआ देखकर नंदिता ने एक लंबी आह भरी और सबकी नज़र बचाकर अपनी नम हो आई आँखों को पोंछ लिया।
हालांकि नंदिता के पापा ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया था। वो उससे कुछ कहना चाहते थे लेकिन न जाने क्यों कह नहीं पाए।
थोड़ी देर के बाद नीरज नाश्ता करके अपने दफ़्तर के लिए निकल गया और नंदिता सबके साथ मिलकर शाम की बाकी तैयारीयाँ करने लगी।
दोपहर के खाने के बाद सब लोग अब अपने कमरे में आराम कर रहे थे।
नंदिता भी मीठी को सुलाने की कोशिश कर रही थी लेकिन उत्साह के अतिरेक में उसे नींद ही नहीं आ रही थी।
उसी समय नीरज जन्मदिन का केक लेकर घर पहुँचा। केक देखते ही मीठी उसे छूने के लिए मचलने लगी।
जब नंदिता और नीरज ने उसे ऐसा करने से मना किया तब वो एकदम से चीखकर रोने लगी।
नंदिता उसे शांत करने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो संभल ही नहीं रही थी।
इसी आवेश में उसने नंदिता को धक्का दे दिया।
नीरज ने आगे बढ़कर जल्दी से नंदिता को संभाल लिया वरना उसे मेज़ से गम्भीर चोट लग जाती।
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मीठी की इस हरकत पर नाराज़ होकर नीरज ने उसे सख़्त आवाज़ में डाँटा और आगे से ऐसी शरारत न करने की चेतावनी दी।
नीरज के इस गुस्से को देखकर मीठी सहमकर और भी ज़्यादा रोने लगी। नंदिता ने उसे गोद में उठा लिया और उसके आँसू पोंछते हुए उसे चुप कराने की कोशिश करने लगी।
अब तक घर के बाकी सदस्य भी वहाँ आ चुके थे और स्थिति को समझने की कोशिश कर रहे थे।
जब सबको पता चला कि नीरज ने मीठी को डाँटा है इसलिए वो रो रही है तो सब लोग एक साथ मिलकर नीरज पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने लगे कि जन्मदिन के दिन उसने उसे क्यों रुलाया?
ये देखकर रोती हुई मीठी सहसा चुप हो गई और फिर अपनी भोली सी आवाज़ में बोली, “अच्छा हुआ पापा को डाँट पड़ी। पापा गंदे हैं।”
उसकी बात सुनकर नंदिता ने उसे समझाते हुए कहा, “नहीं बेटू, पापा गंदे नहीं हैं। पापा बहुत अच्छे हैं और वो तुमसे बहुत प्यार करते हैं। तभी तो वो तुम्हारी पसंद का केक लाए, तुम्हारे लिए नए कपड़े-खिलौने लाए। रोज़ सुबह वही तो तुम्हें स्कूल के लिए तैयार करते हैं, छुट्टी के दिन घूमाने ले जाते हैं। बताओ मैंने सही कहा या नहीं?”
“लेकिन फिर उन्होंने मुझे इतनी जोर से डाँटा क्यों?” मीठी ने अपना सहज प्रश्न नंदिता के सामने रखा।
उसके प्रश्न का उत्तर देते हुए नंदिता बोली, “क्योंकि तुम गलत ज़िद कर रही थी न और अपनी बदमाशी में तुम मम्मा को भी चोट लगा रही थी।
जैसे अभी तुम्हारे पापा को उनके पापा यानी दादाजी ने ये सोचकर डाँटा की उन्होंने गलती की वैसे ही तुम्हारे पापा ने तुम्हें डाँटा ताकि फिर कभी तुम ऐसी बदमाशी न करो और कोई तुम्हें गंदी बच्ची न कहे।”
नंदिता की बात सुनकर मीठी ने अपने गाल पर ऊँगली रखते हुए सोचने का अभिनय किया और फिर नीरज की तरफ देखते हुए बोली, “अब मीठी कभी बदमाशी नहीं करेगी, गंदी बच्ची नहीं बनेगी तो पापा मुझे कभी नहीं डाँटेंगे?”
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नीरज ने उसे गोद में लेते हुए कहा, “हाँ मेरी बिटिया रानी, पापा तुम्हें कभी नहीं डाँटेंगे अगर तुम अच्छी बच्ची की तरह रहोगी। बहुत दुलार करेंगे तुम्हें पापा।”
नीरज की बात सुनकर मीठी उसके गले लग गई और उसके साथ अंदर कमरे में चली गई।
अब वहाँ नंदिता के साथ उसके सास-ससुर और माँ-पापा रह गए थे।
नंदिता ने उन्हें भी आराम करने के लिए कहा तो उसके ससुर जी बोले, “बेटा हम आराम कर लेंगे, लेकिन आज मुझे भी एक प्रश्न का उत्तर तुमसे जानना है।”
“कैसा प्रश्न पापा?” नंदिता ने उत्सुकता से पूछा।
“मैंने हमेशा देखा है कि जब भी नीरज मीठी पर नाराज़ होता है तब मीठी को संभालते हुए, समझाते हुए तुम उससे ये ज़रूर कहती हो कि पापा बहुत प्यार करते हैं। मैंने कभी तुम्हें मीठी को माँओं वाली आम धमकी देते हुए नहीं देखा कि पापा को आने दो फिर मैं उनसे तुम्हारी शिकायत करती हूँ। क्या इसके पीछे कोई खास वजह है?”
अपने ससुर जी का ये प्रश्न सुनकर नंदिता ने अपने माँ-पापा की तरफ देखा और फिर बोली, “जब मैं छोटी थी न पापा तब मैं भी बहुत शरारत करती थी और मुझसे तंग आकर माँ हमेशा यही माँओं वाली धमकी मुझे देती थी कि आने दो पापा को फिर मैं पिटवाऊंगी तुम्हें।
फिर शाम में पापा आते थे और मेरी शिकायत सुनकर मुझे थप्पड़ लगा देते थे।
जब मेरी उम्र थोड़ी बढ़ी और समझ आने लगी उसके साथ मेरी शरारतें तो बन्द हो गईं लेकिन मेरे दिमाग में ये बात भी बहुत गहराई तक बैठ गई कि पापा मुझसे प्यार नहीं करते हैं।
अगर मैं उनके पास जाऊँगी तब वो मुझे मारेंगे।
इसका नतीजा ये हुआ कि मैं उनसे कतराने लगी। वो कभी मुझसे बात भी करना चाहते थे, मेरे साथ समय भी बिताना चाहते थे तो मैं हाँ, हूँ करके किसी तरह टालमटोल करके वहाँ से हट जाती थी।
बड़े होने पर मुझे धीरे-धीरे चीजें समझ आने लगीं की मेरी सोच गलत थी। माँ का मेरी शिकायत करना, पापा का नाराज़ होना स्वाभाविक था, इसका अर्थ ये नहीं है कि वो मुझसे प्यार नहीं करते हैं। हमेशा उन्होंने मेरी खुशी का, मेरी ज़रूरतों का, पसंद-नापसंद का पूरा ख़्याल रखा है।
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लेकिन इसके बावजूद मैं चाहकर भी अपने पापा के साथ अपने रिश्ते में सहजता नहीं ला पाई।
इसलिए मेरी हमेशा से ये कोशिश रही है कि जो गलती मेरे और मेरे पापा के रिश्ते में हुई, जो दूरी हमारे बीच आई वो कभी मीठी और नीरज के रिश्ते में न आए।
इसलिए मैं वक्त-वक्त पर मीठी से ये कहना नहीं भूलती हूँ कि पापा उससे प्यार करते हैं।”
नंदिता की बात सुनकर सब लोग सोच में पड़ गए थे कि वाकई वो बातें जो बड़ों को मामूली लगती हैं उनका बच्चों के नाजुक़ मन पर कितना गहरा असर पड़ता है।
कमरे में इस समय जो ख़ामोशी छा गई थी उसे तोड़ते हुए नंदिता के पापा उससे बोले, “बेटा, अब जब तुम सब कुछ समझने लगी हो तब ये भी समझो कि तुम्हारे इस बूढ़े पापा को अपनी बेटी के साथ सहज रिश्ते की, उससे ढ़ेर सारी बातें करने की, उसके साथ समय बिताने की बहुत ज़रूरत है।”
नंदिता की माँ ने भी स्नेह से उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा, “हाँ बेटा, अंजाने में मेरी वजह से जो संकोच, जो डर तुम्हारे अंदर बैठ गया अब तुम उससे स्वयं को भी मुक्त कर दो और अपने पापा को भी क्योंकि सिर्फ मीठी के पापा ही नहीं नंदिता के पापा भी उससे बहुत प्यार करते हैं।”
“समधी-समधन जी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। चलो अब तुम आराम से अपने माँ-पापा के साथ बैठो और जी भरकर बातें करो।” नंदिता की सास ने मुस्कुराते हुए कहा और उनकी बात से सहमत होते हुए उसके ससुर जी उनके साथ अपने कमरे की तरफ बढ़ गए।
अपने माँ-पापा के पास बैठी नंदिता पहले तो उनकी गोद में सिर रखकर जी भरकर रोती रही और फिर जब आँसुओं के साथ उसके तमाम गिले-शिकवे बह गए तब उसके चेहरे पर आख़िरकार धीरे-धीरे बचपन वाली नटखट नंदिता के जैसी उल्लासित चमक लौट ही आई।
अपनी बेटी से पहली बार जी भरकर बातें करते हुए नंदिता के पापा की खुशी भी देखते ही बन रही थी।
बातों-बातों में कब दोपहर ढ़ल गई इसका उन्हें अंदाज़ा भी नहीं हुआ।
मीठी जब आँखें मलते हुए वहाँ आकर अपने नानाजी की गोद में बैठी और उनसे पूछने लगी कि वो अभी जन्मदिन की पार्टी में किस रंग का कुर्ता पहनेंगे तब उन सबका ध्यान घड़ी की तरफ गया।
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मीठी के प्रश्न का उत्तर देते हुए जब उसके नानाजी बोले कि भाई अपनी बड़ी मीठी से इतनी सारी बातें करने के बाद हम अब अपनी छोटी मीठी के साथ खेलेंगे, तब नंदिता ने हँसते हुए कहा, “बिल्कुल पापा। वैसे भी मुझे पता है कि मूल से ज़्यादा सूद प्यारा होता है।”
शाम की चाय पीते हुए नंदिता के पापा ने अपने समधि जी से कहा, “किन शब्दों में मैं आपका धन्यवाद करूँ? अगर आज आपने नंदिता से प्रश्न नहीं किया होता तो मुझे मेरी बेटी का साथ, उसकी निकटता का अनमोल अहसास कभी नहीं मिलता।”
“ये प्रश्न तो मुझे करना ही था समधी जी उस इंतज़ार को खत्म करने के लिए जो आज मैंने आपकी आँखों में बहुत गहराई से देखा था जब आपकी गोद में तो मीठी थी, लेकिन आपकी नज़रें नंदिता के स्नेह को तलाश रही थीं और वो बस औपचारिकता निभाकर आपसे दूर हटी जा रही थी।
आख़िर मैं भी एक पिता हूँ। फिर एक पिता के भाव कैसे नहीं समझता?” नंदिता के ससुर जी बोले तो सबके होंठो पर एक मुस्कान सी छा गई।
थोड़ी देर के बाद अपने जन्मदिन की पार्टी में केक काटने के बाद जब शरारती मीठी नीरज के गालों पर केक की क्रीम लगाते हुए ताली बजाकर हँस रही थी, ठीक उसी समय नंदिता भी अपने दोनों पापाओं के साथ ऐसी ही शरारत करते हुए कह रही थी, “सचमुच पापा बहुत प्यार करते हैं।”
“अच्छा, अब सिर्फ पापा प्यार करते हैं, माँ नहीं। देख लीजिए समधन जी, हमारी तो कोई पूछ ही नहीं है।” नंदिता की सास ने बनावटी नाराजगी ज़ाहिर करते हुए कहा तो नंदिता ने उनके और अपनी माँ के भी गालों पर केक लगाते हुए कहा, “ऐसा कैसे हो सकता है? माँ और पापा दोनों प्यार करते हैं बराबर-बराबर।”
“और इस प्यार के साथ डाँट की खाद पाकर ही कोई भी बेटी रूपी कली सुंदर पुष्प बनती है। है न?” कहते हुए नीरज ने सहमति पाने के लिए अपनी नन्ही मीठी की तरफ देखा तो बात समझ में न आने के बावजूद मीठी ने मुस्कुराते हुए कहा, “पापा एकदम ठीक बोलते हैं।”
अपने माँ-पापा के स्नेह की छाँव में खिली हुई कलियों जैसी दोनों बेटियाँ अपनी मनमोहक सुगंध से घर-आँगन के साथ-साथ अपनों के जीवन को भी सुवासित करने के लिए तत्पर नज़र आ रही थीं और उनके मुस्कुराते हुए चेहरे को अपनी आँखों में भरकर उनके माँ-पापा के हृदय में भी खुशियों की अनगिनत कलियाँ खिलकर कभी न कुम्हलाने वाले नाज़ुक फूलों के रुप में ढ़लती हुई नज़र लगी थीं।
©शिखा श्रीवास्तव ‘अनुराग’