बाबुल का दिल – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

“रंजना ,ओ रंजना! सुनो जरा जल्दी इधर आओ भई।”नरोत्तम जी खुशी से चहकते हुए बोले। 

रंजना -“हां हां बोलिए क्या हुआ? बड़े खुश दिख रहे हैं।” 

नरोत्तम-“मुंह मीठा करवाओ। गुप्ता जी ने हमारी अनुराधा के लिए बहुत अच्छा रिश्ता बताया है।” 

रंजना -“गुप्ता जी? वही जो रिश्ते करवाते हैं?” 

नरोत्तम-“हां हां वही” 

रंजना -“रिश्ता बताया है उन्होंने, तय नहीं हुआ है अभी, जो आप पहले से ही मुंह मीठा कर रहे हैं। पहले लड़के की और उसके परिवार की जांच-पड़ताल जरूरी है।” 

नरोत्तम-“हां अगले हफ्ते चलेंगे। अनुराधा के पास आशीष रहेगा। (आशीष अनु का छोटा भाई था। दोनों में बहुत प्यार था) 

अगले सप्ताह दोनों लड़के वालों के घर गए। उनका एक बड़ा सा घर था। घर में सारे आवश्यक सामान मौजूद थे। माता-पिता और लड़के वैभव का व्यवहार काफी मधुर था। उन लोगों ने विवाह में कुछ भी उपहार लेने से इनकार कर दिया था। कह रहे थे सब कुछ है हमारे पास। उन्होंने पूछा -“क्या हम लड़की देखने आपके घर आ सकते हैं?” 

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नरोत्तमजी ने उन्हें अगले सप्ताह आने को कहा। वैभव जब अनुराधा से मिला, तो वह उसे बहुत अच्छी लगी। यह लोग चट मंगनी पट ब्याह करना चाहते थे। तुरंत 15 दिन के  अंदर शादी। 15 दिन का समय भी उन्होंने रंजना के बहुत कहने पर माना था। 

रंजना को शुरू से लेकर अब तक उनका हद से ज्यादा मीठा व्यवहार और शादी के लिए जल्दबाजी खटक रही थी। उसने नरोत्तम से कहा भी था, पर उन्होंने कहा तुम्हारी तो आदत है शक करने की, सब ठीक है ऐसा कुछ नहीं है। 

अनुराधा माता पिता की लाडली थी और खासकर अपने बाबुल की और आशीष भी दीदी दीदी करते थकता नहीं था। कभी-कभी अनुराधा बच्ची बनकर उसके साथ खेलने लगती थी। कभी कांच का टुकड़ा चमका कर दोनों एक दूसरे की आंख में रोशनी डालते, तो कभी घर में छुपन छुपाई खेल कर धमा चौकड़ी मचाते। एक बार तो आशीष अनुराधा को पूरे घर में ढूंढ नहीं पाया और परेशान होकर रोने लगा। तब अनुराधा हंसती हुई बाहर निकल आई। आशीष ने कहा-“दीदी आपने चीटिंग की है, आप पूरे घर में नहीं थी, आप घर से बाहर गार्डन में छपी थी। इसीलिए मुझे नहीं मिलीं।” 

अनुराधा-“नहींआशीष, मैं घर के अंदर ही थी।” 

आशीष-“अच्छा ठीक है दीदी, आगे से जब कभी हम खेलेंगे, तो आप अपना एक रुमाल छुपने से पहले कमरे के कोने में गिरा देना, ताकि मैं समझ जाऊं कि आप घर के अंदर ही है।” 

यह सब बातें नरोत्तम जी देख रहे थे और मुस्कुरा रहे थे। 

अनुराधा की शादी की तैयारी जल्दी-जल्दी कर दी गई और विवाह संपन्न हुआ। अनुराधा लाडली बेटी थी और नरोत्तम जी के पास आर्थिक संपन्नता थी तो उन्होंने उसे काफी गहने दिए थे। वैभव और उसके पिता को हीरे की अंगूठी और सास को हीरे के टॉप्स दिएथे। 

अनुराधा को उसकी सास बहुत चाहती थी पर पता नहीं क्यों अनुराधा को कभी-कभी सब कुछ बनावटी लगता था, पर वह उसे अपना वहम समझ कर उस विचार को झटक देती थी।  वैभव और अनुराधा हनीमून के लिए चले गए। वापस आने पर देखा कि सास ससुर मुंह लटका कर बैठे हैं। पूछने पर पता लगा कि कल रात घर में चोरी हो गई है। वे लोग दूसरे कमरे में सोते रह गए और साथ वाले कमरे से कर सारे गहने चुराकर ले गए। सुबह नौकर जब सफाई करने गया तब पता लगा। पुलिस कंप्लेंट दर्ज कर दी गई है। 

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एक बार अनुराधा ने ऊपर वाले कमरे की खिड़की से देखा कि एक आदमी वैभव से लड़ाई करके चला गया। अनुराधा ने वैभव से पूछा तो उसने बताया कि मैंने उससे₹200000 उधार लिए थे, व्यापार में घाटा होने के कारण मैं चुका नहीं पा रहा हूं, वह मुझे जान से मारने की धमकी देकर गया है। अनुराधा एक बात कहूं बुरा तो नहीं मानोगी। क्या तुम अपने पापा से ₹200000 उधार लाकर दे सकती हो। मैं 2 महीने के अंदर वापस कर दूंगा। मेरी तो उनसे मांगने की हिम्मत नहीं हो रही।” 

अनुराधा ने अपने पापा से बात की और वैभव को रुपए लाकर दे दिए। 

एक दिन सुबह जब वह मंदिर से लौट रही थी तब उसने उस आदमी को वैभव से हाथ मिलाते हुए देखा, उसे लगा कि वैभव ने पैसे लौटा दिए होंगे। 

इसी तरह कोई ना कोई मजबूरी बताकर वैभव अनुराधा से कहकर पैसे मंगवाता रहता था। अनुराधा के पिता को भी यह बात अब खटकने लगी थी। 

एक बार अनुराधा मायके से अचानक वापस आई, तो उसने कुछ हंसने की आवाज़ें सुनी। वह दरवाजे के बाहर चुपचाप खड़ी हो गई और सुनने की कोशिश करने लगी। 

उसकी सास कह रही थी-“बेटा वैभव, तू बड़ा उम्दा कलाकार है। कितनी बढ़िया एक्टिंग करता है अनुराधा के सामने, अपने व्यापार का रोना रोता है और वह बेवकूफ सच समझकर अपने बाप से रुपए लाकर तुझे दे देती है।” 

ससुर कहता है-“उनकी कमाई हुई दौलत उनकी किस्मत में नहीं है, तो इसमें हम क्या कर सकते हैं हा हा हा।” 

वैभव-“आप लोग भी कुछ कम नहीं है, हमें दहेज नहीं चाहिए, कोई उपहार नहीं चाहिए कहकर उस बुड्ढे के सामने महान बन गए और उसे लूट भी लिया।” 

यह सब सुनकर अनुराधा उनके सामने जाकर खड़ी हो गई। तीनों के चेहरे का रंग उड़ गया। फिर वैभव खुद को संभालता हुआ बेशर्मी से बोला -“मम्मी पापा लगता है इसने सब कुछ सुन लिया है। कोई बात नहीं, एक दिन तो पता लगना  ही था।” 

अनुराधा गुस्से से चिल्लाई-“मैं अभी अपने पापा को फोन करके सब कुछ बताती हूं और तुम्हें जेल में डलवा दूंगी।” 

वैभव ने अपने पिता को इशारा किया और दोनों ने अनुराधा को कसकर पकड़ लिया। 

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उन्होंने उसे ऊपर वाले कमरे में कुर्सी पर बांधकर बैठा दिया और उसके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया। 

उधर अनुराधा के पिता को न जाने कौन-सी शक्ति बता रही थी कि कुछ अनहोनी होने वाली है। बाबुल का दिल बहुत बेचैन हो रहा था और मां का दिल परेशान। माता-पिता दोनों आशीष को साथ लेकर अनुराधा की ससुराल पहुंच गए। वैभव ने उन्हें बड़े आराम से चाय-नाश्ता करवाया और उनसे कहा कि”आप बेकार ही परेशान हो रहे हैं, अनुराधा मायके ही गई है। आपके पास ही आ रही थी। मैंने उसे कहा था

कि पापा को बता देता हूं, पर उसने कहा कि मैं पापा को सरप्राइज देना चाहती हूं। अब तो मुझे भी चिंता हो रही है कि वह अब तक आपके पास पहुंची क्यों नहीं। उसका फोन भी नहीं लग रहा।” 

रंजना, नरोत्तम और आशीष वापस लौटने लगे। तभी आशीष की नजर अनुराधा के रूमाल पर पड़ी, जो कि कमरे के कोने में पड़ा था। अनुराधा ने खुद को जाल में फंसा हुआ जानकर उस रुमाल को  वहां फेंका था। उसने सोचा था कि शायद भगवान मेरी मदद कर दें। 

माता-पिता और आशीष उस समय वहां से चुपचाप चले गए और 10 मिनट बाद उन्होंने पुलिस के साथ दोबारा प्रवेश किया। 

वैभव और उसके माता-पिता को उनके दोबारा आने की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। आशीष और नरोत्तम के कहने पर पुलिस ने ऊपर के कमरे में जाकर देखा तो वहां पर अनुराधा बंधी हुई मिली। वे लोग उसे अपने साथ घर ले आए और वैभव और उसके माता-पिता पर मुकदमा कर दिया। तीनों को पुलिस ने लॉकअप में डाल दिया था। नरोत्तम जी को इस बात की तसल्ली थी कि उन्होंने अपनी बेटी की जान बचा ली थी

क्योंकि वे लोग कुछ भी कर सकते थे। बाबुल का दिल ऐसा ही होता है, जो अपने बच्चों का कभी अहित नहीं होने देता। समय रहते चेतावनी दे देता है। 

स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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