बाबू काका का दर्द – बालेश्वर गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

बाबू काका क्या हुआ है आपको,इतने कमजोर?किसी डॉक्टर को दिखाया या नही?

        बहुत क्षीण आवाज में बोले,बेटा कुछ नही बुखार आ गया था,कमजोरी के कारण उठा नही गया,डॉक्टर के पास कैसे जाता भला?

       मुझे ही खबर भेज देते,मैं तो आ ही जाता।

      तुम्हारा नंबर मिला ही नही,बुढापा है ना,पता नही कहाँ लिखा या रखा।

     ओह, तो मैं अपना मोबाइल नंबर लिखकर सामने दीवार पर चिपका रहा हूँ।आगे कभी भी,किसी भी समय कोई भी परेशानी आये,मुझे फोन जरूर कर देना।

        अहमदाबाद ही क्या गुजरात मे ही बच्चो को विदेश में भेजना एक प्रकार से चलन है।वहाँ अधिकतर परिवारों की आकांक्षा होती है,उनके बच्चे बाहर पढ़े,नौकरी करे।इससे वहां के समाज मे एक समस्या आ गयी है कि बुढ़ापे में माता पिता के नितांत अकेले रहने की,उनके पास घर,पैसा तो सब कुछ होता है, पर कोई अपना नही होता।ऐसे ही समय से झूझ रहे थे बाबू काका।

       मैं रोज ही सूर्य निकलने से पूर्व एक पार्क में घूमने जाता था। हम अहमदाबाद में बेटे के पास शिफ्ट हो गये थे,वही की घटना है।पार्क में एक दिन मैंने एक बुजुर्ग व्यक्ति को ठोकर खाकर गिरते देखा,उनकी उम्र 80वर्ष के लगभग थी।मैंने उन्हें उठाया और पानी पिला कर उनको अपने स्कूटर से उनके घर छोड़ आया।

उन बुजुर्ग का नाम ही बाबू भाई था।इस बहाने उनके घर का देखना भी हो गया,वहां उनकी पत्नी प्रभा बेन उनका इंतजार कर रही थी।बाबू भाई को मैं सहारा देकर अंदर लाया तो प्रभा बेन घबरा गयी, उन्हें लगा पता नही क्या हुआ?मेरे द्वारा तस्सली देने पर वे शांत हो गयी।प्रभा बेन के घुटनो में दर्द रहता था सो उन्हें चलने में दिक्कत होती थी।

       अब अक्सर मेरी और बाबू भाई की आत्मीयता से बातचीत होने लगी।मैं उन्हें बाबू काका पुकारने लगा था।मैंने एक दिन पूछा बाबू काका एक बात तो बताओ क्या आपके कोई संतान नही है?वे तपाक से बोले हैं ना एक बेटा हरदीप,वह लंदन में जॉब करता है ना,हमें बहुत प्यार करता है,

पर सात समुंदर पार है,वह भी क्या करे,कहते कहते बाबू काका छलकती आंखों से दूर शून्य में देखने लगे।आगे मैंने उन्हें कुरेदना उचित नही समझा।पर मेरी अपनी जिज्ञासा थी सो एक अन्य दिन मैंने बाबू काका से पूछा काका क्या आपका मन बेटे के पास रहने,जाने को नही करता?

बोले बहुत करता है बेटा,कभी कभी तीन चार महीने के लिये उसके पास चले भी जाते है,पर क्या करूँ?न मैं हरदीप की माँ को समझा पा रहा हूँ और न हरदीप अपनी पत्नी नेहा को।मेरी उत्सुकता बढ़ी,मैं बोला ऐसा क्या?बाबू काका बोले असल मे हरदीप हमारा एकलौता बेटा है,

हमे बेइंतिहा प्यार करता है,जब हम लंदन जाते है या वह यहां अहमदाबाद आता है तो वह चाहता है कि अपना अधिक से अधिक समय हमारे साथ गुजारे, हमारी सब समस्याओं का निदान करे।हरदीप की माँ भी बेटे पर खूब ममता लुटाती है,उसकी पसंद की हर चीज बनाती है।

यह तो बहुत अच्छा है,बाबू काका,आपका बेटा विदेश में रहते हुए भी भारतीय संस्कार नही भूला है।वह तो ठीक है बेटा, पर नेहा को लगता है कि हरदीप के हमारे साथ रहने से उसकी उपेक्षा होती है,हरदीप बट जाता है।उधर हरदीप की मां को मैं समझाता हूँ, भागवान जब हरदीप पास हो

तो उसके पास कुछ समय नेहा के लिये भी तो छोड़ दिया कर।पर वह माँ है ना ममता कैसे छोड़े?उधर पत्नी अपना हक कैसे छोड़े?इसी अंतर्द्वंद में हरदीप पिसता है।माँ को कैसे कह दे कि वह अपनी ममता की छांव उस पर न रखे,नेहा तो जन्मजन्मांतर की साथी है,पर वह माँ को सहन नही कर पाती।जब हम जाते है तो उन दोनों की कलह बढ़ जाती है।इसलिये अब हमने उसके पास जाना कम कर दिया है।

     मेरा मन खिन्न हो गया था।मैं सोच रहा था,किसकी गलती है,पत्नी की,माँ की या फिर हरदीप की?मुझे लगा कही न कही हरदीप ही सामंजस्य स्थापित नही कर पाया।संतुलन से शायद बात बन जाती।फिर लगा माँ का तो विराट दिल होता है जब उसने स्वेच्छा से अपने बेटे को बहु को समर्पित कर दिया तो माँ को ही समझ लेना चाहिये था।

पर युवा पीढ़ी की नेहा भी तो समझ सकती थी,कि सास ससुर कितना जीवित रहने वाले है,वे क्या उसका हक छीनेंगे?एक गुत्थी मन मस्तिष्क में उलझ कर रह गयी।

  अब तक धन संपत्ति पर हक की लड़ाई सुनी थी,पर यहाँ एक बेटे पर माँ के हक और पत्नी के पति पर हक की लड़ाई थी और इसमें पिस रहे थे बूढ़े माँ बाप जो भोग रहे थे नितांत एकांतवास।मेरे पास कोई समाधान नही था।एक दिन हरदीप की माँ अहमदाबाद में ही चल बसी।बेटा अंतिम संस्कार में एकदम आ नही सकता था,

हम कुछ लोगो ने मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया।कई दिनों बाद हरदीप आया,उसने पिता यानि बाबू काका को अपने साथ रहने के लिये जिद की,कि वह वहां ब्रिटेन में उसकी अनुमति ले लेगा।पर बाबू काका बोले बेटा हरदीप यहां तेरी माँ की आत्मा बसती है,उसे छोड़कर कैसे जाऊं भला?ना बेटा ना, जैसी भी थी मेरी जीवन संगिनी थी,कैसे छोड़ दूं उसको?

      हरदीप और नेहा ने बाबू काका को काफी मनाने का प्रयास किया,बाबू काका चुप लगा गये।उनकी चुप्पी को उनकी स्वीकृति मान अगले सप्ताह लंदन जाने के लिये हरदीप ने घोषणा कर दी।इस बीच बाबू काका के वीजा की औपचारिकता पूरी करनी थी।

        सब तैयारी पूरी हो गयी थी,बाबू काका का वीजा भी बन गया,अगले दिन सुबह 8 बजे एयरपोर्ट निकलने के लिये बाबू काका को बता दिया गया।गुमसुम बाबू काका तैयारी में जुट गये।सुबह सुबह हरदीप बाबू काका को उठाने उनके कमरे में गया तो देखा बाबू काका तो अभी बिस्तर पर ही लेटे है,हरदीप ने उन्हें झकझोर कर उठाना चाहा तो देखा वहाँ बाबू काका कहाँ थे,वे तो कभी के जा चुके थे,हरदीप की माँ के पास।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

सच्ची घटना से प्रेरित,अप्रकाशित।

#हक

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