बाबू गर ये चार महीने की बच्ची न होती ना,कसम भगवान की आज तुम मुझे जिंदा न देखते।वैसे भी मैं तो अंदर से मर ही गयी हूँ।
ऐसा क्यों बोल रही हो शब्बो?बताओ तो हुआ क्या है? किसी ने कुछ कहा है?
खेती मजदूर बाबू अपनी पत्नी शब्बो और पिता धीरू के साथ मुजफ्फरनगर के एक मुहल्ले में रहता था।मेहनती था सो कभी खाली नही रहता।घर का खर्च ठीक ठाक चल रहा था।दो वर्ष पहले ही शब्बो से उसकी शादी हुई थी।सुंदर सलोनी शब्बो से बाबू खूब प्यार करता था।शब्बो भी अपने पति और ससुर का पूरा ध्यान रखती।
जब ब्याहकर आयी थी तो सास स्वर्ग सिधार चुकी थी,उनकी मृत्यु को आठ वर्ष बीत चुके थे।अकेले ससुर वैसे तो स्वस्थ थे,पर उनकी जीवन चर्या विचित्र थी।देर से सोना देर से उठना।घर मे ही पड़े रहना या फिर यार दोस्तो के साथ शराब आदि पी लेना।शब्बो को अजीब सा लगता पर वह क्या कह सकती थी?उनकी दिन चर्या से शब्बो प्रभावित भी नही थी,
वह ससुर का खाना बनाकर रख देती,उन्हें जब खाना होता खुद लेकर खा लेते।शब्बो ने अपने को उसी माहौल में ढाल लिया था।चार माह पूर्व ही उसको बेटी पैदा हुई थी,सो अब उसका अधिकतर समय अपनी गुड़िया की देखरेख में ही व्यतीत होने लगा था।
गेंहू की फसल कटाई के समय बाबू पंजाब चला जाता था,उसे दो महीने जरूर घर से बाहर रहना पड़ता,पर पंजाब में मजदूरी अच्छी मिलने के कारण उसे कमाई भी अच्छी हो जाती थी।
इस बार भी बाबू कटाई के समय पंजाब चला गया।अबकी बार किसान आंदोलन के कारण उस पर ही सारी जिम्मेदारी आ गयी थी,पर मजदूरी गत वर्ष से अधिक मिल रही थी।थोड़ा समय भी अधिक लगा,पर कमाई पिछले वर्ष से अधिक हो गयी।बाबू ने इसे अपनी गुड़िया के भाग से लक्ष्मी का आना ही माना।उनके गुरु जी ने गुड़िया को उनके लिये भागवान बताया भी था।
असल मे उनके यहां पहले से ही स्वामी सतवंत जी को परिवार का परम गुरु मानते थे।उनकी वाणी उनके परिवार में पत्थर की लकीर होती।घर के हर कार्य मे गुरु जी का परामर्श ही अंतिम होता।कोई भी परेशानी परिवार में आती तो समाधान गुरु जी से ही पूछा जाता।
बाबू जैसे ही पंजाब से आया तो उसे शब्बो का रुदन सुनने को मिला,वह हक्का बक्का रह गया।इस प्रकार मरने की बात तो शब्बो कभी करती नही थी वैसे भी वह घर मे किसी चीज की कमी रहने नही देता था।शब्बो को काफी धीरज देने पर शब्बो ने जो कुछ बताया उससे वह धक से रह गया।जो बात सपने में भी नही सोची जा सकती थी,
वह घर मे घट चुकी थी।शब्बो के साथ नशे में उसके ससुर यानि बाबू के पिता धीरू ने बलात्कार किया था।क्रोध से कांपते बाबू ने धीरू को खोजा तो वह गायब हो गया था।आत्मग्लानि और क्रोध में बाबू पगला सा गया था। शब्बो तो धीरू की बहू क्या बेटी जैसी थी,फिर ऐसा घिनौना कार्य,वह भी उसके पिता द्वारा,सोच सोचकर उसको अपने पिता पर घिन्न आने लगती और खून खोलने लगता।
धीरू को पता नही धरती निगल गयी थी,सामने ही नही आ रहा था।धीरे धीरे घर की यह घिनौनी बात बाहर भी फैलने लगी।बाबू कैसे मुँह दिखाये, उसकी समझ मे नही आ रहा था, उसके बाप ने ही उसे दयनीय बना दिया था।मुहल्ले में थू थू हो रही थी,धीरू को सभी धिक्कार रहे थे,पर जो हो चुका था वह तो हर समय सीना चीरती रहती।
एक दिन गुरुजी का बुलावा आया।शाम के धुंधलके में बाबू गुरु जी के आश्रम में पहुंचा।गुरु जी ने बहुत ही स्नेह से बाबू को अपने पास बैठाया और बोले बेटा मुझे तेरे दुःख का पता है,पर तू चिन्ता मत कर मैं हूँ ना,मैं सब ठीक कर दूंगा।सहानुभूति पाकर बाबू सिसकी भर रोने लगा,उसको जीवन भर का गम उसका बाप दे चुका था।
गुरु जी ने एक पर्चा बाबू को दिया और बोले बेटा घर जाकर इस पर्चे को पढ़ना, इसमें तुम्हारे परिवार की इस समस्या का समाधान है।कल तेरा पिता धीरू भी घर पहुंच जायेगा।पिता का नाम सुन बाबू की मुठ्ठियां भिंच गयी,पर बोला कुछ नही।चुपचाप घर वापस आ गया।घर आ अकेले में उसने गुरु जी द्वारा दिये पर्चे को पढ़ा तो उसका सिर ही चकरा गया,ये समाधान?ये गुरु,ये पिता वह सर पकड़ कर बैठ गया।उसे समाधान दिया गया था कि वह शब्बो को छोड़ दे क्योकि वह अब उसकी माँ बन चुकी है और दूसरे स्थान पर रहने चला जाये।
सारी रात बाबू क्रोध बेबसी में ही काटी।पर उसने निर्णय ले लिया,इस जिल्लत से खुद बचने और शब्बो को भी बचाने के लिये।अगले दिन उसका बाप धीरू भी आ गया,बाद में पता चला कि वह तो गुरु जी के आश्रम में ही छुपा हुआ था।आश्चर्यजनक रूप से बाबू ने अपने पिता के आने पर कोई प्रतिक्रिया नही दी,चुप ही रहा।
इससे हौसला पा धीरू ने अपने बेटे को समझाया, कि शराब के नशे में उससे गलती हो गयी,उसे माफ कर दे।गुरु जी का फैसला तो मानना ही पड़ेगा,पर बेटा तू चिंता न कर मैं तेरी शादी शब्बो से भी सुंदर लड़की से करूँगा।बाबू अपने बाप को हिकारत की निगाह से देखकर उसके पास से उठ गया।अगले दिन ही वह शब्बो को उसके मायके छोड़ आया।घर उसके नाम था,उसने उसका एक परिचित से सौदा कर दिया।चार दिन बाद ही सेल डीड कर पूरे पैसे भी प्राप्त कर लिये।
बाबू ने घर को बेच कर प्राप्त रुपये और उसके पास जो भी जमा पूंजी थी सब अपनी शब्बो के खाते में जमा कर दिये।अब बाबू अपने को हल्का महसूस कर रहा था।इतने में ही उसका पिता धीरू आकर बोला बेटा पड़ौस के गावँ में सोहन की बेटी है,खूब सुंदर है,मैं तेरा उससे विवाह करा देता हूं,बाद में शब्बो को यहां बुला लूंगा।अपने पिता की जुबान से शब्बो का नाम निकलते ही बाबू अंदर की ओर भागा और अनाज की कटाई करने वाली दराती से एक झटके में ही धीरू का गला कलम कर दिया।
एक जघन्य पाप का अंत हो चुका था,पर बाप का शव सामने पड़ा था,कैसी परीक्षा थी?बाप के दुष्कर्म की और कोई सजा होई नही सकती थी।इस जिल्लत को लेकर शब्बो क्या जी सकती थी,क्या कभी वह अपना मुंह उठाकर चल सकता था,सोचते सोचते बाबू ने थाने में जाकर अपने को कानून के हवाले कर दिया।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
(लगभग 20-22 वर्ष इसी प्रकार की घटना का अपनी तरह प्रस्तुतिकरण। चरित्र ,धर्म सब काल्पनिक है।रचना मौलिक और अप्रकाशित है।)