अमन और सिया बारिश के सुहावने मौसम में घुमावदार पहाड़ी रास्ते से शादी के एक माह बाद गाँव जा रहे थे ; बुआ बहुत दिनों से गाँव आने का बोल रही थी ।
बुआ के तेज स्वभाव के बारे में सिया ने सुन रखा था, इसलिए वह घबरा भी रही थी गाँव जाने से पर अमन की ये बात भी उसे याद थी
की बुआ नारियल जैसी ऊपर से कड़क और अंदर से नरम है ! तीज का त्यौहार भी निकट आ ही गया था, और अमन की तीन दिन की छुट्टियाँ भी सो गाँव जाने का मन बना ही लिया ,
जैसे ही अमन की कार बुआ के घर के सामने रुकी बुआ की बेटी श्यामा खुशी के मारे चिल्ला उठी
; माँ-माँ अमन भैया और भाभी आ गए…आवाज सुनकर बुआ अंदर से आ ही गई थी, आ गया बबुआ !
मिल गई फुरसत तुम दोनों को ? उलाहना देते हुए बुआ ने कहा तो सिया सहम उठी थी! आखिर आज गाँव आने का महुरत आ ही गया बुआ…हा-हा हँस कर कहते हुए अमन बैग लेकर बुआ के बड़े से आँगन में आ गया।
श्यामा बड़े आश्चर्य से भाभी को देख रही थी माथे पर लाल टिकुलि हाथों में भरी भरी चूड़िfयाँ , झुमके पैरों में पाजेब और धानी चुनर में बहुत सुंदर लग रही थी सिया… अरे वाह ! भाभी तुम तो बिल्कुल गाँव की गोरी लग रही हो ,लग ही ना रही हो की किसी बड़ी कंपनी में इंजीनियर हो ; है ना अम्मा !
कित्ती सुंदर लग रही है सिया भाभी,कहते हुए वह सिया को आँगन में ले आई अमन ने सिया को देख कर अपनी बाँयी आँख दबा दी थी ,शर्म से पानी पानी हो गई थी सिया…झुक कर बुआ के पैर छुए तो बुआ ने उसे ढेरों आशीष दे डाले और श्यामा से कह उठी ; तुझे भी बहुरिया से सीख लेना है
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की वक्त और माहौल के साथ अपने को कैसे ढालना चाहिए अब तु भी जल्दी ही ससुराल जाएगी, एक लड़की दो परिवार का मान होती है बेटी और बहू के रूप में समझी !
उधर श्यामा ने सिया की अलग ही छबि बनाई थी मन में…जींस टी-शीर्ट, कटे हुए बाल,गहरी लाली,आँखो पर गॉगल लगाए हिल्स वाली सैंडल में ठक ठक चलती हाय-हेलो करती आएगी सिया भाभी !
बुआ ने जब श्यामा से कहा तो सिया ठगी से बुआ को देखने लगी ; उसने तो बुआ के स्वभाव के बारे में कुछ और ही धारणा बना रखी थी… तभी बारिश की बड़ी-बड़ी तेज बूँदे आँगन में बरसने लगी… “अपने भाई-भाभी को अदरक की चाय वाय भी पिलाएगी की यूँ ही खड़ी बतियाती रहेगी तू
” श्यामा को कहती हुई बुआ आँगन में रखी छतरी में बारिश की बूँदों से सिया को बचाती हुई बैठक खाने में ले आई थी
; लेकिन सिया को बारिश की झरती हुई बूँदे मोतियों की मानिंद लगने लगी थी और बुआ को गर्व के साथ तसल्ली हो रही थी की आज की पीढ़ी में भी संस्कारों के दायरे अभी इतने सिमटे नही है…
किरण केशरे